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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतभारत में बने iPhone 15 पर हमलावर होने चीन हर कोशिश कर रहा, पर यह 'तकनीकी-राष्ट्रवाद' उसे अलग-थलग कर देगा

भारत में बने iPhone 15 पर हमलावर होने चीन हर कोशिश कर रहा, पर यह ‘तकनीकी-राष्ट्रवाद’ उसे अलग-थलग कर देगा

सार्वजनिक रूप से की गई नवीनतम बदनामी भरी टिप्पणी इस गहरी भावना को व्यक्त कर रही है कि विनिर्माण के अगले प्रमुख केंद्र के रूप में भारत को अधिक मुद्रा मिलने के वादे के कारण चीन की आर्थिक संभावनाएं नीचे की ओर जा रही हैं.

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मेड-इन-इंडिया iPhone 15 का लॉन्च चीन को रास नहीं आ रहा है. देश का सोशल मीडिया फोन की कथित ‘घटिया गुणवत्ता’ पर टिप्पणियों और भारत में अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं के विस्तार के लिए ऐप्पल की आलोचना से भरा हुआ है. लेकिन क्या चीज़ है जो इन टिप्पणियों को बढ़ावा क्या दे रही है? अशांत, जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में चीन की आर्थिक संभावनाएं.

चीन की स्टेट मीडिया ने इस धारणा को आगे बढ़ाया है कि भारत विनिर्माण केंद्र के रूप में देश में आगे बढ़ रहा है, जो जनता के बीच भी एक व्यापक रूप से स्वीकृत चिंता है. सार्वजनिक रूप से की गई नवीनतम बदनामी भरी टिप्पणी इस गहरी भावना को व्यक्त कर रही है कि विनिर्माण के अगले प्रमुख केंद्र के रूप में भारत को अधिक मुद्रा मिलने के वादे के कारण चीन की आर्थिक संभावनाएं नीचे की ओर जा रही हैं. iPhone मामले में देखा गया उग्र राष्ट्रवाद आगे चलकर दोहराया जाएगा क्योंकि अधिक से अधिक कंपनियां अपना विनिर्माण आधार भारत और वियतनाम में स्थानांतरित कर रही हैं.

iPhone 15 के बारे में अफवाहें बताती हैं कि ‘तकनीकी-राष्ट्रवाद’ कभी न्यूट्रल रही सप्लाई चेन में घुसपैठ कर रहा है. और एप्पल की चीन पर निर्भरता कम करके ‘जोखिम कम करने’ की कोशिश इस अति-राष्ट्रवादी भावना को और बढ़ाएगी.

चीन क्या सोचता है

यह बहस लगभग एक साल पहले शुरू हुई थी जब Apple ने पहली बार भारत में अपने उत्पाद बनाने का फैसला किया था.

तब भी, वीबो नस्लवादी टिप्पणियों से भरा हुआ था जैसे “नए भारत में निर्मित आईफोन ‘करी फ्लेवर्ड’ होगा.” इसके अलावा, देश में प्रौद्योगिकी के प्रति उत्साही यह साबित करने के लिए काफी प्रयास कर रहे हैं कि भारत निर्मित आईफोन 15 कभी भी चीनी मानकों को पूरा नहीं कर सकता है.

सिचुआन स्थित ‘बिग बिग बिस्किट’ नाम के एक ब्लॉगर ने चार नए iPhone 15s को अलग किए जाने का एक वीडियो पोस्ट किया. वीबो पर 1.6 मिलियन से अधिक बार देखे गए एक एक्सप्लेनर वीडियो में दावा किया गया है कि इन iPhones के अंदर धूल के कण थे.

लेकिन कुछ यूजर्स ने इस दावे पर पलटवार किया.

“धूल होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि हमारे [चीन निर्मित आईफ़ोन] में धूल नहीं है?” एक यूज़र ने कहा, वीडियो बिना किसी कारण के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है.

कुछ उपयोगकर्ताओं ने यहां तक दावा किया है कि नए iPhone का लेंस ‘धूलयुक्त’ है.

हुबेई के एक वीबो यूज़र ने कहा, “ऐसी अफवाहें हैं कि भारत में बने iPhone लेंस डस्टी हैं. विशेष रूप से चीनी बाजार में आपूर्ति किए गए iPhone 15 के इस बैच में यह समस्या है. यह iPhone 15 की बिक्री के लिए एक बड़ा झटका होगा.”

‘खराब गुणवत्ता’ वाले ओईएम (मूल उपकरण निर्माता) के दावों के अलावा, चीनी सोशल मीडिया पर अन्य गलत सूचनाएं भी प्रसारित की गईं.

उनमें से एक यह था कि उत्पाद “यूरोपीय मानकों को पास नहीं कर सका”. चीनी ब्लॉगर और टिप्पणीकार दावा कर रहे हैं कि भारत में निर्मित नया iPhone अपने खराब मानकों के कारण यूरोपीय और अमेरिकी बाजारों के लिए उपलब्ध नहीं होगा.

वॉयस ऑफ अमेरिका के रिपोर्टर वेन्हाओ मा ने बताया कि चीन की स्टेट मीडिया पहले ही इन दावों को खारिज कर चुका है.

हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि चीन की स्टेट मीडिया ने नए iPhone 15 को कमजोर करने की कोशिश नहीं की है.

चाइना डेली के स्तंभकार गोंग झे ने लिखा, “अमेरिकी फोन निर्माता ऐप्पल की नवीनतम फ्लैगशिप सीरीज़, आईफोन 15, चीनी बाजार के लिए अप्रभावी साबित हुई.”

चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि भारत की उत्पादन क्षमता चीन की 90 फीसदी की तुलना में 7 फीसदी है. चीनी राज्य मीडिया ने इस तर्क को दोहराया है, जिसमें दावा किया गया है कि ऐप्पल अभी भी चीन पर बहुत अधिक निर्भर है और इसकी भारतीय उत्पादन लाइन सफल हो भी सकती है और नहीं भी.

सोमवार को वीबो पर हैशटैग“Apple plans to increase production capacity in India to US$40 billion within five years” को 6 मिलियन से अधिक बार देखा गया. प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के बाद यह बात सामने आई कि एप्पल ने भारत में अपना उत्पादन पांच गुना बढ़ाकर लगभग 40 बिलियन डॉलर करने की योजना बनाई है.

चीनी सोशल मीडिया यूजर्स वियतनाम को उसके नए एप्पल मैकबुक के लिए भी निशाना बना रहे हैं. शंघाई स्थित एक यूज़र ने कहा, “न केवल आईफोन बल्कि लैपटॉप की गुणवत्ता नियंत्रण भी कम हो गया है.” हालांकि, वियतनाम में बने मैकबुक को वैसी कड़ी टिप्पणी नहीं मिली है जैसी भारत में निर्मित iPhone को पिछले सप्ताह में मिली है.


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ईर्ष्या और नस्लवाद से भरी प्रतिस्पर्धा

इसे ईर्ष्या कहें या नस्लीय पूर्वाग्रह, भारत और चीन के बीच तकनीकी और आर्थिक प्रतिस्पर्धा एक-दूसरे की संस्कृति के बारे में रूढ़िवादी समझ से प्रेरित है.

द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीजिंग ने केंद्र सरकार के विभागों को एप्पल उत्पादों का उपयोग बंद करने का निर्देश दिया है. बाद में चीनी विदेश मंत्री ने इन अफवाहों की सत्यता का खंडन किया.

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, “चीन ने ऐसे कानून, नियम या नीति दस्तावेज़ जारी नहीं किए हैं जो ऐप्पल जैसे विदेशी ब्रांड फोन की खरीद और उपयोग पर रोक लगाते हैं.”

लेकिन यह आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर बीजिंग एप्पल उत्पादों के उपयोग को कम करने का निर्देश जारी करे क्योंकि साइबर सुरक्षा अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा के सबसे प्रमुख क्षेत्रों में से एक है. अभी के लिए, बीजिंग ने Apple और फॉक्सकॉन जैसे OEM प्रोड्यूसर्स को संकेत दिया है कि यदि वे अपने विविधीकरण एजेंडे पर बहुत अधिक जोर देते हैं, तो चीन Apple उत्पादों का उपयोग पूरी तरह से बंद भी कर सकता है.

iPhone 15 को लेकर बहस से पता चलता है कि स्टेट मीडिया द्वारा Huawei के नवीनतम फोन को एक क्रांतिकारी उत्पाद के रूप में प्रचारित करने के बावजूद Apple उत्पादों के प्रति चीन का जुनून जारी है.

बीजिंग का तकनीकी-राष्ट्रवाद केवल देश को अलगाव की ओर धकेलेगा क्योंकि एप्पल ‘डी-रिस्किंग’ के साथ आगे बढ़ेगा. किसी खास देश को टारगेट करके गलत सूचना को बढ़ावा देने से केवल बीजिंग के हितों को नुकसान पहुंचेगा.

(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चायना मीडिया जर्नलिस्ट थे. उनका एक्स हैंडल @aadilbrar है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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