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Monday, 17 June, 2024
होममत-विमतINS विक्रांत के लॉन्च से पहले चीनी सेना ने इसके खिलाफ शुरू कर दिया प्रोपेगेंडा

INS विक्रांत के लॉन्च से पहले चीनी सेना ने इसके खिलाफ शुरू कर दिया प्रोपेगेंडा

चीनी सेना ‘पीएलए’ की अधिकृत वेबसाइट कहती है कि आइएनएस विक्रांत में अभी भी चार कमजोरियां हैं, उधर भारत-चीन के बीच तनाव श्रीलंका में बढ़ता जा रहा है.

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चीन में पार्टी की 29वीं कांग्रेस होने वाली है और तमाम तरह की अफवाहों से माहौल गरम है. सूखे और लू ने जनजीवन को त्रस्त कर दिया है. उधर ताइवान का दौरा करने वाले अमेरिकी सिनेटरों की संख्या बढ़ गई है. ऐसे में चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ ने भारत के विमानवाही युद्धपोत आइएनएस विक्रांत के खिलाफ प्रोपगंडा तेज कर दिया है. निरंतर वीडियो पोस्ट करने वाला एक चीनी ‘व्लौगर’ बता रहा है कि भारत अपने कृषि में सुधार करने में किस तरह विफल रहा है. ‘चाइनास्कोप’ चीन और दुनिया भर की बड़ी और ब्रेकिंग न्यूज़ पेश कर रहा है.

पिछले सप्ताह क्या हुआ चीन में

अटकलें लगाई जा रही हैं कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने लिए तीसरा कार्यकाल हासिल करने की कोशिश में हैं. इस संभावना के मद्देनजर उन संकेतों को पढ़ने की कोशिश की जा रही है कि तब आगे क्या हो सकता है.

‘चाइना मीडिया प्रोजेक्ट’ के डेविड बान्दुर्स्कि ने लिखा है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) पर जिनपिंग की पकड़ ढीली पड़ने की चीनी अटकलें अगस्त से कमजोर होने लगी हैं. सीसीपी की शीर्ष जमात में जिनपिंग की जगह को मजबूत बताने के लिए ‘लियांग गे क्वेली’ (दो अधिष्ठान) मुहावरे का प्रयोग किया जा रहा है. जिनपिंग का वरदहस्त हासिल करने के लिए चीनी नेताओं ने इस मुहावरे का ‘पीपुल्स डेली’ में फरवरी-मार्च में छपे अपने लेखों में खूब प्रयोग किया.

इसके बाद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस हुई जिसमें आला नेताओं ने जिनपिंग से करीबी बढ़ाने के लिए इस मुहावरे का अपने स्तंभों में भी प्रयोग किया. अब यह कुछ कमजोर पड़ा है तो इसकी वजह बैदईहे बैठक के परिणामों और भावी राजनीतिक भूमिकाओं के निर्धारण में देखी जा सकती है. जिनपिंग की चापलूसी का समय अब खत्म हो चुका है. अब 20वीं पार्टी कांग्रेस होने वाली है तो देखना है कि यह मुहावरा सितंबर में फिर प्रचलन में आता है या नहीं.

जून-जुलाई में ‘पीपुल्स डेली’ में जिनपिंग की जो चर्चाएं हुईं उनका ‘सीनोसिज़्म’ के बिल बिशप ने विश्लेषण किया है. अपने इस लोकप्रिय प्रकाशन में बिशप ने लिखा, ‘जुलाई में, जिनपिंग का जिक्र ‘पीपुल्स डेली’ में छपे 683 लेखों में किया गया. इससे पहले जून में उनका जिक्र इससे थोड़े ज्यादा 713 लेखों में किया गया था, लेकिन मई के ऐसे 600 लेखों से तो यह संख्या ज्यादा ही है.’

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उक्त मुहावरे के इस्तेमाल में कमी का क्या अर्थ है यह समझने के लिए अभी हमें थोड़ा इंतजार करना होगा. लेकिन इसका अर्थ यह न लगाया जाए कि जिनपिंग के लिए कोई चुनौती खड़ी हो गई है. चीन के मामलों के पुराने जानकार, पत्रकार डेक्स्टर रॉबर्ट्स कहते हैं, ‘इसे भूल जाइए.’

‘सपचाइना’ के लिए लिखे अपने नए स्तंभ में उन्होंने लिखा है, ‘इस ताजा गप्प को महज गप्प ही मानिए कि जिनपिंग के लिए ली एक चुनौती बन गए हैं. जिनपिंग निश्चित ही अपना तीसरा कार्यकाल हासिल करेंगे और कई पीढ़ियों में वे चीन के सबसे ताकतवर नेता बन जाएंगे.’

इस बीच, लू और ऐतिहासिक अकाल के कारण हालात और बिगड़ रहे हैं. चीन में रेकॉर्ड रखने का काम पिछले 60 साल से चल रहा है और इस बीच दक्षिण चीन ने सबसे लंबे समय तक अकाल झेलने का रेकॉर्ड बना लिया है.

चोंगक्विंग में अग्निकांड की तस्वीरें चीनी सोशल मीडिया पर व्यपाक रूप से प्रसारित हुई हैं. ‘चोंगक्विंग माउंटेन फायर’ नामक हैशटैग को ‘वैबो’ पर 2.74 अरब बार देखा जा चुका है.

चीन को रोटी खिलाने वाले सिचुयान प्रांत तथा दूसरी जगहों पर में सूखे को खत्म करने के लिए ड्रोन की मदद से बारिश कराने की कोशिश की जा रही है. इन इलाकों में सूखे के कारण फसल का मौसम प्रभावित हो सकता है. इसके कारण खाड़ी सुरक्षा के लिए संकट पैदा होने की चिंता बढ़ गई है.

‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ ने खबर दी है कि ‘जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, पिछले रविवार तक सिचुयान और पड़ोसी चोंगक्विंग के अलावा यांग्तज़े नदी क्षेत्र के साथ लगे नौ प्रांतों में 24.6 लाख की आबादी और 22 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि अकाल से प्रभावित हो चुकी थी.’

अकाल और लू ने चीन को बिजली की कटौती की भरपाई करने के लिए कोयले का सहारा लेने को मजबूर किया है. दक्षिण के कशेट्रोन में व्यावसायिक इकाइयों से बिजली की खपत घटाने के लिए कहा गया है.

ताइवान पर नज़र

अमेरिका के टेनिसी की सीनेटर मार्शा ब्लैकबर्न तीन दिन के दौरे पर 26 अगस्त को ताइवान पहुंचींशुक्रवार को वे उसकी राष्ट्रपति त्साइ इंग-वेन से मिलीं और ताइवान की आज़ादी तथा लोकतंत्र के प्रति अपना समर्थन प्रकट किया.

उनसे पहले, अगस्त में ही नान्सी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया. इससे कुछ दिन पहले, इंडियाना के गवर्नर एरिक होल्कोंब एक प्रतिनिधिमंडल लेकर पधारे थे, और उनके बाद केजी फूरूया के नेतृत्व में जापान का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल आया था.

ब्लैकबर्न ने ताइवान का अपना दौरा खत्म किया ही था कि अमेरिकी नौसेना ने अपनी 7वीं फ्लीट के गाइडेड मिसाइलों से लैस दो पोत—‘यूएसएस एंटीएटम’ और ‘यूएसएस चांसलर्सविले’— ताइवान की खाड़ी में भेज दिए. अमेरिकी 7वीं फ्लीट ने कहा कि ये पोत ‘खाड़ी के कॉरीडोर से गुजरे, जो कि किसी तटवर्ती देश की समुद्री सीमा से दूर है’.

पीएलए का पूर्वी थिएटर कमान पिछले कुछ दिनों से लाइव-फायर अभ्यास कर रहा है और 26 अगस्त को भी उसने अभ्यास किया था. पीएलए का कई विमान ताइवान के वायु रक्षा क्षेत्र में उड़ान भरते रहे हैं.

‘रायटर्स’ के विश्लेषण के मुताबिक, चीन ताइवान के साथ ताइवान खाड़ी में दोनों देशों की ‘काल्पनिक’ सीमारेखा के साथ घालमेल करने की फिराक में है. ताइवान के एक अधिकारी ने रायटर्स से कहा कि ‘वे हमारे ऊपर दबाव बढ़ाना चाहते हैं ताकि हम उस सीमारेखा से हट जाएं.’

लेकिन चीन के लिए इस सीमारेखा का घालमेल करने के अलावा दूसरी चिंताएं भी हैं. भविष्य में ताइवान को लेकर युद्ध के असर के बारे में एक रिपोर्ट कहती है कि तब विश्व बाज़ार से 2.6 ट्रिलियन डॉलर गायब हो जाएंगे. ‘निक्के एशियन रिव्यू’ के मुताबिक, यह रिपोर्ट चीन की स्टेट काउंसिल को भी दी गई, जिसके कई लोग सन्न रह गए.

यह रिपोर्ट चीन की नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसियों, पब्लिक सिक्यूरिटी मंत्रालय और स्टेट सिक्यूरिटी मंत्रालय ने मिलकर तैयार की है. यह रिपोर्ट कहती है कि अगर अमेरिका, यूरोप, जापान ने ताइवान युद्ध में चीन के खिलाफ प्रतिबंध लगा दिए तो उसकी अर्थव्यवस्था को भारी चोट लगेगी.


यह भी पढ़ें : श्रीलंका संकट के बाद चीन यह समझने में जुटा है कि दिवालिया घोषित करने का मतलब क्या होता है


आईएनएस विक्रांत के खिलाफ आक्रोश

भारतीय नौसेना जब कि देश में निर्मित अपना पहला विमानवाही पोत आइएनएस विक्रांत लॉन्च करने जा रही है, चीनी सेना के मीडिया ने उसकी कमजोरियों को कमतर बताने का प्रोपगंडा छेड़ दिया है.

पीएलए की अधिकृत वेबसाइट पर जारी एक लेख ‘इंडियन-मेड एयरक्राफ्ट केरियर्स मे सर्व विद सिकनेस’ में कहा गया कि ‘हालांकि भारत अपने देश में निर्मित पहले विमानवाही पोत से बहुत उम्मीदें बांधे हुए है, लेकिन इस पोत के साथ कई समस्याएं जुड़ी हैं, और उसे संपूर्ण युद्ध क्षमता विकसित करने में समय लगेगा… वैसे भी इस पोत के डिजाइन में कई बड़ी खामियां हैं.

पिछली बार समुद्र में परीक्षण के दौरान तेज गति से चलते हुए उसका ‘बो’ (एकदम अगला भाग) ऊपर-नीचे हो रहा था.’ लेख में पोत की चार अक्षमताएं गिनाई गई हैं जो इसके लॉन्च की तैयारी के बावजूद कायम हैं. लेख के लेखक के नाम के बारे में जो संकेत दिया गया है उससे लगता है कि वह पीएलए के प्रोपगंडा विभाग से जुड़ा है.

भारत-चीन की भू-राजनीतिक होड़ समुद्र के अलावा श्रीलंका में भी तेज हो रही है. श्रीलंका में चीन के राजदूत क्वी झेनहोंग ने हाल में एक लेख लिखा जिसमें श्रीलंका के हंबनतोता बंदरगाह पर चीनी पोत युआन वांग-5 द्वारा लंगर डालने का जिक्र किया गया और भारत के खिलाफ उपहासपूर्ण टिप्पणियां की गईं.

झेनहोंग लिखा, ‘श्रीलंका के महान इतिहास को देखें तो पाएंगे कि उसने अपने उत्तरी पड़ोसी के 17 हमलों का सामना किया, पश्चिमी देशों द्वारा उपनिवेश बनाए जाने के खिलाफ 450 वर्षों तक संघर्ष किया और करीब तीन दशकों तक आतंकवाद के खिलाफ जंग लड़ी, और आज भी वह दुनिया के सामने बहादुरी और गर्व के साथ खड़ा है.’

श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त ने इस लेख के जवाब में ट्वीट किया : ‘श्रीलंका के उत्तर के पड़ोसी के बारे में उनके विचार उसी रंग में रंगे दिखते हैं जिस रंग में उनका अपना देश आचरण करता है. हम उन्हें आश्वस्त करना चाहते हैं कि भारत इससे भिन्न है.’

दुनिया की खबरों में चीन

भारत-चीन सीमा विवाद पर गतिरोध की स्थिति बन गई है लेकिन सिर्फ यही नहीं हो रहा है. भारतीय सेना ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ के तहत लद्दाख के ऊंचे ठिकानों पर हल्के टैंकों का बेड़ा तैनात करना चाहती है, ताकि चीन को एक संदेश दिया जा सके.

एक सूत्र ने पीटीआइ को बताया है कि ‘हल्के टैंकों की मारक शक्ति वर्तमान टैंकों जैसी ही होगी. उन्हें इसलिए हासिल किया जा रहा है क्योंकि उन्हें तेजी से तैनात किया जा सकता है और सेना की गति बढ़ाई जा सकती है क्योंकि दिख रहा है कि उत्तरी सीमा पर ‘भविष्य में भी’ खतरा बना रहेगा.’

चीन ने 2021 में, शिनजियांग डिस्ट्रिक्ट में टाइप-15 हल्के टैंक तैनात किए थे और वे रुतोग और नगरी गुन्सा के पास पीएलए के अड्डों के पास अभ्यास करते देखे गए हैं.

इस बीच, चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता तान केफ़े ने ‘तीसरे पक्षों’ को भारत-चीन सीमा विवाद में दखल न देने के लिए कहा है.

भारत-चीन मैत्री संघ (आइसीएफआइ) वैसे तो एक सदभाव संगठन जैसा दिखता है, लेकिन वास्तव में यह भारत में अपनी राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने की चीनी रणनीति का एक हिस्सा है. गौरतलब बात यह है कि कर्नाटक में विपक्ष के नेता सिद्धरमैया ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने वैचारिक मतभेद के कारण आइसीएफआइ के 28 अगस्त के कार्यक्रम में भाग लेने से मना कर दिया. इससे एक दिन पहले उन्होंने ट्वीट किया था कि ‘मैंने आइसीएफआइ के कल होने वाले कार्यक्रम में भाग लेने से मना कर दिया है. माना करने के बावजूद अपना नाम वहां देखकर मुझे आश्चर्य हो रहा है.’

एक दशक से ज्यादा समय से अमेरिका वाल स्ट्रीट में सूचीबद्ध चीनी कंपनियों की ऑडिट रिपोर्ट मांग रहा है लेकिन चीन राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने इससे मना करता रहा है. इस सप्ताह अमेरिका और चीन ने एक समझौता किया जिसके तहत अमेरिकी रेगुलेटर चीनी ऑडिट रिपोर्टों को हासिल कर सकेंगे. लेकिन कुछ हलक़ों में इसको लेकर संदेह है क्योंकि जानकारों का मानना है कि चीन अपनी कंपनियों के बारे में सब कुछ नहीं बताएगा. वैसे, यह समझौता फिलहाल चीनी कंपनियों को अमेरिकी शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध रहने की छूट देगा, जबकि रेगुलेटरों ने उन्हें ऑडिट रिपोर्ट न देने पर सूची से बाहर करने की चेतावनी दी थी.

इस सप्ताह इन्हें जरूर पढ़ें—

‘सोंग जिआओरेन ऐंड ब्रोकन प्रोमिसेज ऑफ द चाइनीज़ रिपब्लिक’ –जेम्स कार्टर
‘अ लिटेनी ऑफ इकोनॉमिक वूज़ बट इन चाइना पॉलिटिक्स रूल्स’ –जेबिन जेकब
‘बाइडन-शी मीटिंग अनलाइकली टु हाल्ट यूएस-चाइनीज़ स्लाइड’ –जेम्स कार्टर

चीन में भारत

लोकप्रिय चीनी ‘व्लोगर’ गु झीशुआन ने एक वीडियो बनाया है जिसमें यह सवाल उठाया है कि जब भारत में खुद खाद्य सामग्री की कमी है तो वह पूरी दुनिया को खिलाने की बात क्यों करता है. इस वीडियो को ‘वेबो’ पर 82,000 बार और यूट्यूब पर 26,000 बार देखा गया.

गु झीशुआन ने कहा है कि ‘आरएसएस मोदी को गांवों में शौचालय बनवाने में मदद कर सकता है लेकिन जब छोटे किसान तीन कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए सामने आए तब उसने मोदी का साथ नहीं दिया. भूमि अधिग्रहण और खुदरा बाज़ार को खोलने के मसलों पर आरएसएस भाजपा के खिलाफ है और उसने विदेशी निवेश आकर्षित करने और व्यावसायिक माहौल को बेहतर बनाने को लेकर मोदी सरकार के आग्रह की खुली आलोचना की है. यह कहा जा सकता है कि हालांकि हिंदू राष्ट्रवाद ने मोदी को जमीनी स्तर पर पकड़ बनने में मदद की है, लेकिन इसने आर्थिक सुधारों को बहुत पीछे छोड़ दिया है.’

‘वेबो’ पर एक हैशटैग ‘व्हाइ काण्ट इंडिया फीड द वर्ल्ड’ ‘ट्रेंड’ होने लगा है.

(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो फिलहाल लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरियंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (एसओएएस) से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एमएससी कर रहे हैं. इससे पहले वो बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में एक चीनी मीडिया पत्रकार थे. वो @aadilbrar पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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