टोक्यो में 29 जुलाई को आयोजित क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक में क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता पर समूह के ध्यान को उजागर किया गया. ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका से मिलकर बना क्वॉड इस बात पर ज़ोर देता है कि उनका सहयोग किसी ख़ास देश के लिए नहीं है. फिर भी, चीन एक केंद्रीय चिंता का विषय बना हुआ है.
हालांकि आधिकारिक बयानों में चीन का सीधा उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन क्वॉड के रिवाइव होने और इसका दायरा स्पष्ट रूप से चीन के मुखर व्यवहार और उसके और सदस्य देशों के बीच बढ़ते तनाव का जवाब देता है. संयुक्त बयान में सभी देशों द्वारा क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में योगदान देने, प्रभुत्व या दबाव से बचने और प्रतिस्पर्द्धा को ज़िम्मेदारी से मैनेज करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए चीन की ओर इशारा किया गया. इसने पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर के बारे में भी चिंता व्यक्त की, एकतरफा (चीन की) कार्रवाइयों की निंदा की जो बल या धमकी के माध्यम से यथास्थिति को बदलती हैं, और दक्षिणी चीन सागर के सैन्यीकरण की आलोचना की.
पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर पर क्वॉड के बयान के बारे में मीडिया के सवालों के जवाब में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने क्वॉड की आलोचना भय फैलाने वाले, दुश्मनी और टकराव को पैदा करने वाले और अन्य देशों के विकास में बाधा डालने वाले ग्रुप के रूप में की.
क्वॉड के बारे में चीनी विचार
2018 में, विदेश मंत्री वांग यी ने क्वॉड को केवल “सुर्खियाँ बटोरने वाला विचार” और प्रशांत व हिंद महासागर में “समुद्री झाग” बताकर यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जल्द ही खत्म हो जाएगा. हालांकि, 2020 तक, उनका रुख स्पष्ट रूप से बदल गया था. उन्होंने क्वॉड की आलोचना करते हुए इसे अमेरिकी आधिपत्य के हाथों उसके औजार के रूप में बताया साथ ही इस पर “शीत युद्ध की मानसिकता” को पुनर्जीवित करने और गुटों के बीच टकराव को बढ़ाने वाला भी कहा.
चीनी अधिकारियों, रणनीतिक समुदाय और मीडिया में क्वॉड को लेकर चिंता बढ़ रही है, कई लोग क्वॉड देशों में चीन के प्रति गहरी नाराजगी को पहचानने में विफल रहे हैं. यह अनदेखी अक्सर अंतर्निहित मुद्दों को हल करने के बजाय पीड़ित होने की मानसिकता को बढ़ाती है.
शंघाई इंस्टीट्यूट्स फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के एक रिसर्च फेलो झोउ शिक्सिन का तर्क है कि आसियान की केंद्रीयता पर क्वॉड का जोर मूल रूप से क्षेत्रीय बहुपक्षीय सहयोग में आसियान की भूमिका के लिए क्वॉड भागीदारों के घोषित समर्थन के विपरीत है. उनका सुझाव है कि क्वॉड विदेश मंत्रियों की बैठक, जिसमें बड़े पैमाने पर आसियान सदस्य देशों को शामिल नहीं किया गया था और जो लाओस में आसियान विदेश मंत्रियों की बैठक के तुरंत बाद हुई थी, आसियान देशों के लिए एक अपमान की बात है और इसे एक सूक्ष्म खतरे के रूप में देखा जा सकता है. झोउ का मानना है कि इस बहिष्कार से आसियान की केंद्रीयता कमज़ोर होती है और क्षेत्रीय तनाव बढ़ने का जोखिम है.
चीनी चर्चा में अक्सर क्वॉड के रिवाइवल के लिए सीधे तौर पर अमेरिका को दोषी ठहराया जाता है. कई चीनी विश्लेषक और मीडिया इसे अमेरिकी गुट-उन्मुख नीतियों का प्रत्यक्ष परिणाम मानते हैं. चाइना फॉरेन अफेयर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ली हैडोंग ने टिप्पणी की, “क्वाड एक अमेरिकी नेतृत्व वाला तंत्र है, और इसका संयुक्त बयान दिखाता है कि अमेरिका “चीन के खतरे” की बयानबाजी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करके और क्षेत्र में सुरक्षा चिंता को भड़काकर ब्लॉक के निर्माण को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है, ताकि कुछ क्षेत्रीय देश सुरक्षा के मामले में अमेरिका के नेतृत्व वाले ब्लॉक पर अधिक निर्भर हो सकें.”
एक टिप्पणी में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अमेरिका चीन को अपना “सबसे गंभीर प्रतियोगी” और “प्रणालीगत चुनौती” मानता है, और प्रतिस्पर्धा को रणनीतिक और वैचारिक दोनों रूप में देखता है. इस परिप्रेक्ष्य के अनुसार, अमेरिका ने हिंद-प्रशांत रणनीति का लाभ उठाकर गठबंधनों और साझेदारियों का एक नेटवर्क बनाया है – जिसमें हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचा, फाइव आईज एलायंस और क्वॉड शामिल हैं – जिसका उद्देश्य चीन को नियंत्रित करना है.
एक अन्य टिप्पणी में कहा गया है कि क्वॉड के बयानों में दक्षिण चीन सागर पर ध्यान केंद्रित करना आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि अमेरिका और उसके सहयोगी लंबे समय से चीन पर इस क्षेत्र में सैन्यीकरण का आरोप लगाने का प्रयास कर रहे हैं. चीनी आलोचकों का तर्क है कि यह बयानबाजी जनता के विचारों को गुमराह करने, ‘चीन दक्षिण चीन सागर खतरे के सिद्धांत’ को बढ़ावा देने, चीन की संप्रभुता को कमजोर करने और उसके क्षेत्रीय दावों को सीमित करने के लिए की गई है.
वीबो पर एक छोटे से हिस्से ने क्वॉड में भारत की सक्रिय भूमिका का पता लगाया. एक पोस्ट ने सुझाव दिया कि भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के प्रयास मुख्य रूप से भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की रूस यात्रा से संबंधित अन्य क्वॉड सदस्यों की चिंताओं को दूर करने के उद्देश्य से हैं.
वीबो पर क्वॉड के बजाय जयशंकर की वियनतियान में वांग यी से मुलाकात और क्वॉड विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद भारत-चीन मतभेदों पर उनकी टिप्पणियों पर ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है. इस तरह के कम ध्यान के पीछे दो कारण हो सकते हैं. सबसे पहले, क्वॉड के रिवाइवल का श्रेय अक्सर अमेरिका और जापान को दिया जाता है, हाल ही में हुई अमेरिका-जापान 2+2 बैठक को दोनों देशों द्वारा चीन के खतरे की कहानी को बढ़ाने और चीन को क्षेत्र का सबसे बड़ा देश बताने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
दूसरा, क्वॉड में भारत और ऑस्ट्रेलिया के योगदान को कम करके आंकते हुए, यह नैरेटिव बताता है कि ये देश अपने द्विपक्षीय मुद्दों को हल करने के लिए अधिक चिंतित हैं और क्वॉड के प्रति कम प्रतिबद्ध हैं, जैसा कि आम तौर पर माना जाता है. इसका मतलब है कि, चीन के दृष्टिकोण से, ऑस्ट्रेलिया और भारत को अभी भी अमेरिका और जापान की तुलना में अधिक अनुकूल माना जाता है.
ऑस्ट्रेलिया, भारत को कम आंकता है चीन
चीन अक्सर क्वॉड के भीतर अलग-अलग देशों की भूमिकाओं को कम आंकता है, मुख्य रूप से अमेरिका पर ध्यान केंद्रित करता है और क्षेत्रीय सदस्यों को चीन के खिलाफ अपनी व्यापक इंडो-पैसिफिक रणनीति में केवल साधन के रूप में देखता है. यह दृष्टिकोण क्वॉड को पुनर्जीवित करने और बनाए रखने में ऑस्ट्रेलिया और, सबसे महत्वपूर्ण रूप से भारत के महत्वपूर्ण योगदान को नजरअंदाज करता है. उनकी भूमिकाओं के प्रति चीन की उपेक्षा क्वॉड के डायनमिक्स की गड़बड़ समझ को दर्शाती है.
चीन को यह जानने की ज़रूरत है कि क्वॉड की सफलता केवल अमेरिकी हितों से प्रेरित नहीं है, बल्कि सभी चार सदस्य देशों, विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया और भारत की सक्रिय भागीदारी और आवश्यक भूमिकाओं पर निर्भर करती है. यह गलत अनुमान चीनी विमर्श में स्पष्ट है. यह इन प्रमुख खिलाड़ियों के साथ संबंधों को मैनेज करने में एक रणनीतिक भूल है. चूंकि चीन क्वॉड के सदस्यों की स्वायत्तता को चुनौती देना जारी रखता है और उनकी चिंताओं को खारिज करता है, इसलिए चीन की मुखरता के प्रतिकार के रूप में क्वॉड के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और भी गहरी हो गई है.
(सना हाशमी ताइवान-एशिया एक्सचेंज फाउंडेशन में फेलो हैं. उनका एक्स हैंडल @sanahashmi1 है.)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
यह भी पढ़ेंः हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभाव चिंताजनक है, इससे क्षेत्र की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है