हिमालय में बर्फ पिघलने लगी है, मई के पहले हफ्ते से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री के अलावा बाकी तीर्थों के भी पट खुल जाएंगे. जब आप दर्शन के लिए निकलेंगे तो कई जगह सड़क पर काम चल रहा होगा. एक महामार्ग आकार ले रहा है. दावा है कि नौ सौ किलोमीटर लंबी और दस से बारह मीटर तक चौड़ी सड़क होने के कारण यात्रियों और पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी जिससे उत्तराखंड में विकास आ जाएगा.
तीर्थाटन को पर्यटन में बदलने की इस कालजयी कोशिश के पीछे लंबा संघर्ष है जिसे सरकार ने सेना की मदद से हासिल किया है.
साल 2016 में सरकार ने जोर शोर से उत्तराखंड के सभी तीर्थों तक पहुंच आसान बनाने के उद्देश्य से चार धाम महामार्ग विकास परियोजना शुरु की. प्रस्ताव था कि दस से बारह मीटर चौड़ी सड़क यात्रियों को फटाफट दर्शन करा देगी, सीमा पर तनाव की स्थिती में काम आएगी यहां तक की सोलह चक्का और बीस चक्का ट्रकों को आसानी से हिमालय के ऊपरी हिस्से में ले जाएगी ताकि आर्थिक गतिविधियां बढ़ सकें.
लेकिन जैसा कि होता है हिमालय को लेकर संवेदनशील लोगों ने इसका विरोध किया- कच्चा पहाड़ है, मलबा कहां जाएगा, भूकंप जोन है, पारिस्थितकीय तंत्र नष्ट हो जाएगा, भीड़ बढ़ने से प्लास्टिक का पहाड़ बन जाएगा वगैरह वगैरह.
मामला अदालत तक पहुंच गया. खुद परिवहन मंत्रालय का सर्कुलर कहता है कि पहाड़ पर 5.5 मीटर चौड़ी सड़क निर्माण किया जा सकता है. तो दस – बारह मीटर चौड़ी सड़क कैसे बनेगी. कोर्ट ने हिमालय की संवेदनशीलता को महत्वपूर्ण मानते हुए सरकार से कहा कि वह 5.5 मीटर सड़क ही बनाए. हिमालय को जरुरत के लिए निहायत जरुरी होने पर छेड़ा जाए नाकि लालच की लंबी चौड़ी सड़क बनाने के लिए. इस निर्णय पर कोर्ट के लिए तालियां और वाह वाह से सोशल मीडिया भर गया.
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सरकार ने हार नहीं मानी आखिर सड़क बनाने का वायदा खुद प्रधानमंत्री जी ने किया है.
अब कहानी में सेना का प्रवेश हुआ और तस्वीर बदल गई. सेना ने कोर्ट में कहा कि चीन सीमा पर तनाव को देखते हुए 5.5 मीटर सड़क से काम नहीं चलेगा और कम से कम 7 मीटर चौड़ी सड़क चाहिए. बहस शुरु हो गई और सोशल मीडिया पर राष्ट्र प्रथम का दबाव ट्रेंड करने लगा, कोर्ट ने कहा कि सेना की जरूरत के मुताबिक सड़क बननी चाहिए, इसी की आड़ में सरकार फिर अपना पूर्व प्रस्ताव लेकर सामने आई यानी 10 से 12 मीटर चौड़ी रोड.
दबाव में कोर्ट ने सहमति दे दी सरकार जीत गई. हलांकि संतुलन दिखाने के लिए एके सीकरी कमेटी का गठन किया गया. सीकरी कमेटी देखेगी कि काम कोर्ट के आदेशानुसार और पर्यावरणमानकों को ध्यान में रखकर हो. जस्टिस सीकरी उस उच्चाधिकार प्राप्त समिति के भी अध्यक्ष होंगे. जिसकी अध्यक्षता अब तक पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा कर रहे थे, रवि चोपड़ा ने हिमालय के साथ किए जा रहे व्यवहार पर निराशा व्यक्त की और अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देकर खुद को समिति से अलग कर लिया.
वैसे वर्तमान कानूनी स्टेटस यह कि तीन स्ट्रेच यानी बद्रीनाथ, गंगोत्री और पिथोरागढ़ में सेना की जरूरत को देखते हुए 10-12 मीटर चौड़ी सड़क बनाई जाएगी और बाकि दो स्ट्रेच यमनोत्री और केदारनाथ में कोर्ट का पहला आदेश ही लागू होगा यानी 5.5 मीटर चौड़ी सड़क वहां बनेगी. वैसे इसके लिए न्यायाधीश चंद्रचूड़ जी ने एक खिड़की खोल दी है कि सरकार इन दो स्ट्रेचों में चौड़ाई बढ़ाने के लिए भी कोर्ट में अपील कर सकती है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि तीन स्ट्रेच जिसमें 10 से 12 मीटर चौड़ी सड़क बनाई जा रही है उसमें गंगोत्री वाला अतिसंवेदनशील इको सेंसटिव जोन भी है. कागज में यह सौ किलोमीटर का है लेकिन वास्तविकता में अस्सी किलोमीटर की गंगा में नैसर्गिक प्रवाह दिखता है. इसका मतलब है कि 2500 किलोमीटर लंबी गंगा में सिर्फ यह अस्सी किलोमीटर का क्षेत्र है जहां गंगा अविरल है. यह सड़क बन जाने के बाद आने वाली पीढ़ियों के लिए गंगा का अविरल प्रवाह वाला कोई स्थान नहीं बचेगा. यह कैसे नष्ट होगा यह भी समझ लीजिए – गंगा कोई एक धारा नहीं है बल्कि कई छोटी धाराएं और झरने मिलकर गंगा को गंगा बनाते हैं. दस मीटर चौड़ी सड़क के लिए मोटे तौर पर दोगुना यानी बीस मीटर तक पहाड़ को काटना होगा. ड्रिल मशीनों और विस्फोटों के उपयोग से वाटर शेड यानी गंगा को पानी देने वाले स्रोत बंद होने का पूरा खतरा रहता है. यह तथ्य गंगा संरक्षण के चौड़े सीने वाले दावे को गलत साबित करता है.
चारधाम परियोजना में तीन हजार देवदार वृक्ष काटे जाने है. केंद्रीय राजमार्ग मंत्री ने अपनी एक चुनावी रैली में दावा किया कि इन पेड़ों को काटा नहीं जाएगा बल्कि ट्रांसफर किया जाएगा. गडकरी अक्सर पेड़ों को स्थानांतरित करने का दावा करते रहे हैं लेकिन कभी इस आंकड़े पर बात नहीं करते कि अब तक कितने पेड़ों को दूसरी जगह प्लांट किया गया है और कितने सफल रहे हैं. हिमालय वन अनुसंधान संस्थान शिमला की रिपोर्ट है कि क्लाइमेट चेंज के कारण देवदार के नए वृक्ष पनप नहीं पा रहे. अब सोचिए जब नर्सरी ही सफल नहीं हो रही तो स्थानांतरण जैसी कवायद कहां टिकेगी.
बहरहाल सारे किंतु परंतु मिलकर भी चारधाम परियोजना को नहीं रोक सकते. अगले आम चुनाव से पहले सरकार इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए दृढ़संकल्पित है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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