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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतसेंट्रल विस्टा में सुधार की जरूरत है, वो 7 गैर-कोविड कारण जहां मोदी सरकार ने गलती की

सेंट्रल विस्टा में सुधार की जरूरत है, वो 7 गैर-कोविड कारण जहां मोदी सरकार ने गलती की

सवाल यह है कि इतनी महत्वपूर्ण, विशाल पैमाने वाली परियोजना को, जो गोपनीयता के पर्दे में छिपी है और जिसे जनता की नज़रों से दूर रखा गया है उसे क्या महामारी के बीच लागू किया जाना चाहिए जबकि एक-एक रुपया देश की मेडिकल सुविधाओं को बेहतर बनाने पर खर्च किया जाना चाहिए?

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राजधानी दिल्ली के मशहूर राजपथ पर निर्माणाधीन ‘सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ पर भारत ही नहीं दुनियाभर की नज़रें लगी हैं. इस परियोजना को गलत बताने से पहले कहने को कुछ बातें कही जा सकती हैं. पहली बात यह कि मोदी सरकार से पहले भी कई लोग संसद भवन को असुरक्षित बता चुके हैं. वैसे भी, ‘सेंट्रल विस्टा’ आज कोई मनोरम दृश्य उपस्थित नहीं करती है. यह जगह यहां आने वालों के लिए सुविधाजनक भी नहीं है. यहां के हरित क्षेत्र पर पार्क की जाने वाली कारों का कब्जा है, और एक विशिष्ट क्षेत्र में जमीन का इस्तेमाल अच्छी तरह नहीं किया गया है. यहां खड़े तमाम ‘भवन’ उपयोग में तो हैं मगर सबकी मरम्मत की जरूरत है. लोगों ने फर्श बनाने के सामान और ऑफिस के ले-आउट के साथ काफी खिलवाड़ किया है, दरवाजे-खिड़कियां उम्रदराज हो चुकी हैं, शौचालयों की हालत खस्ता है. लगभग किसी में सेंट्रल एअर-कंडीशनिंग नहीं है, जो कि आज एक जरूरी चीज हो गई है. उनमें सुरक्षा के इंतजाम अस्तव्यस्त और दोहरे हैं. पूरे इलाके में सुधार, आंतरिक डिजाइन में बदलाव, बेहतर रखरखाव की जरूरत है.

इसलिए, जमीन के बेहतर उपयोग, भवनों के बीच आवाजाही की बेहतर व्यवस्था, अंडरग्राउंड पार्किंग, और सेंट्रल एअर-कंडीशनिंग आदि की व्यवस्था करने वाली परियोजना की जरूरत तो है ही. लेकिन क्या इस सबके लिए ‘सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ के मौजूदा स्वरूप को जायज ठहराया जा सकता है? कतई नहीं. सबसे पहले तो, इसमें इतिहास के प्रति सम्मान का अभाव है, भले ही वहां काफी कुछ औपनिवेशिक इतिहास से जुड़ा है. दूसरे, भवनों में सुधार करना या नये भवन बनाना निर्माण प्रक्रिया की समीक्षा करने का अच्छा मौका होता है क्योंकि दोनों में तालमेल होना चाहिए. अगर इरादा ऑफिसों को और खुला-खुला बनाना है और स्वतंत्र कार्य विभागों की संख्या कम करना है (जैसा कि नरेंद्र मोदी चाहते हैं) तब सवाल है कि क्या सरकार डेस्क अधिकारी व्यवस्था चाहती है जिसमें दो स्तर पर ही निर्णय होता है? इस व्यवस्था की सिफ़ारिश करीब पचास साल पहले प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने की थी, जिसके तहत निर्णय के दो स्तर होने थे और फाइलों को आगे बढ़ाने वाली व्यवस्था खत्म होनी थी. लेकिन ऐसे कोई समीक्षा नहीं की गई.

तीसरे, पुराने विशिष्ट भवनों का उपयोग बदला जा सकता है और उन्हें आधुनिक युग के लिहाज से अंदर-बाहर से फिर से बनाया जा सकता है. इसमें उनके बाह्य रूप को बदले बिना उनके ढांचे को मजबूती दी जाएगी, जैसा कि अमेरिका के व्हाइट हाउस, जर्मनी के संसद भवन बुन्देस्टाग, और लुटिएन्स-बेकर निर्मित कई पुराने भवनों के साथ किया गया. अगर लोकसभा के कक्ष में ज्यादा सदस्य नहीं बैठ सकते (जो आगे चलकर जरूरी हो जाएगा), तो सेंट्रल हॉल को निचले सदन में तब्दील किया जा सकता है. चौथी बात यह कि दूसरे विश्वयुद्ध के समय के कुछ ‘अस्थायी’ बैरकों की जगह का इस्तेमाल पार्किंग टावर, पार्क करें तथा चलाकर ले जाएं वाली व्यवस्था बनाने के लिए किया जा सकता है ताकि पार्किंग की मौजूदा घालमेल को दुरुस्त किया जा सके.


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पांचवीं बात, सभी सरकाई दफ्तरों को पास-पास रखना जरूरी नहीं है; इससे सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है. वास्तव में, दफ्तरों को पास-पास रखने की जगह नये सेना मुख्यालय को दूर, छावनी क्षेत्र में ले जया जा सकता है जबकि वायुसेना मुख्यालय जहां है वहीं रह सकता है, हालांकि रक्षा सेवाएं योजना और संचालन में तालमेल बैठा रही हैं. भवनों को एक हो डिजाइन का बनाना भी कोई जरूरी नहीं है; जरा वाशिंगटन मॉल की वास्तु विविधता पर गौर कीजिए. और छठी बात, राष्ट्रीय संग्रहालय और राष्ट्रीय अभिलेखागार की लाखों अनमोल कलाकृतियों और नाजुक संग्रहों को नॉर्थ और साउथ ब्लॉक में किस तरह सुरक्षित रखा जा सकता है, जबकि वे अगर असुरक्षित हैं तो वे उनके लिए अनुपयुक्त नहीं होंगे?

अंत में, जो नए भवन बनाए गए वे वे पुराने भवनों के मुक़ाबले निम्न स्तर के हैं. वे या तो आंखों को चुभते हैं (जैसे सेना भवन, और करीब का ही लोकनायक भवन) या उनमें जगह को बरबाद किया गया है, जैसे साउथ ब्लॉक के पीछे डिफेंस रिसर्च बिल्डिंग, कुछ दूर सीएजी का नया मुख्यालय, विदेश मंत्रालय का नया ठिकाना. ये सब मानो यह मान कर बनाए गए हैं कि वे जिस प्राइम जमीन पर बनाए गए हैं उसकी कोई कीमत नहीं है और उसकी कोई सीमा नहीं है. इन भवनों (लोधी रोड इन्स्टीट्यूशन एरिया, जो भवनों का एक और असहनीय जमावड़ा है) के अंदर अलग-अलग दफ्तर बैडमिंटन कोर्ट से बड़े हैं. इस तरह के इतिहास को दोहराए जाने, या एक ऐतिहासिक क्षेत्र के साथ खिलवाड़ से कैसे बचा जाए?

संक्षेप में, सवाल यह है कि इतनी महत्वपूर्ण, विशाल पैमाने वाली परियोजना को, जो गोपनीयता के पर्दे में छिपी है और जिसके बारे में चंद लोगों के छोटे से समूह को ही पता है और जिसे जनता की नज़रों से दूर रखा गया है उसे क्या महामारी के बीच लागू किया जाना चाहिए जबकि खर्च किया जाने वाला एक-एक रुपया देश की मेडिकल सुविधाओं को बेहतर बनाने पर खर्च किया जाना चाहिए?

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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