जनगणना का मामला बुरी तरह उलझ गया है. केंद्र सरकार ने संसद को सूचना दी है कि जनगणना का विषय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही रहेगा और उसे संविधान की समवर्ती सूची में डालने का उसका कोई इरादा नहीं है. समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार होता है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने ये जानकारी डीएमके सांसद डी. रविकुमार के सवाल के जवाब में दी.
केंद्र सरकार की इस घोषणा के साथ ही विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा कराई जा रही जनगणना और जाति जनगणना अब निरर्थक हो चुकी है. राज्य सरकारों द्वारा कराई जा रही इन कवायद से आई रिपोर्ट को जनगणना की रिपोर्ट का दर्जा नहीं मिल पाएगा. राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर पर इस तरह जुटाए गए आंकड़ों की वैधानिकता और संवैधानिकता दोनों संदिग्ध हो चुकी है क्योंकि अब कोई भी व्यक्ति इन आंकड़ों को कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दे सकता है कि जब राज्य सरकार को जनगणना कराने का अधिकार ही नहीं है तो इन आंकड़ों का क्या मतलब.
केंद्र सरकार की मौजूदा घोषणा को इससे पहले के तीन फैसलों से जोड़कर देखें तो अंदाजा लग पाएगा कि ये मामला कितना पेचीदा हो चुका है.
– केंद्र सरकार पहले ये कह चुकी है कि कोविड के कारण 2021 की जनगणना समय पर नहीं होगी और ये जनगणना कब होगी इसकी कोई समय सीमा नहीं है.
– सरकार कह चुकी है कि मौजूदा जनगणना में अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा, बाकी जातियों की गिनती नहीं कराई जाएगी. यानी जाति जनगणना नहीं होगी.
– सरकार ये भी कह चुकी है कि सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना-2011 के जाति संबंधी आंकड़े जारी नहीं किए जाएंगे.
दरअसल, केंद्र सरकार के इसी रुख की वजह से राज्य सरकारें अपने स्तर पर जनगणना और जाति गणना करा रही थी. कर्नाटक की पिछली सरकार जाति जनगणना करा चुकी है, हालांकि अब वहां बीजेपी की सरकार आ चुकी है और इसकी रिपोर्ट अभी जारी नहीं हुई है. छत्तीसगढ़ में जाति जनगणना का काम जारी है. महाराष्ट्र में पिछड़ा वर्ग आयोग ने सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना कराई है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार घोषणा कर चुके हैं कि राज्य सरकार अपने स्तर पर जातियों की सामाजिक आर्थिक हैसियत का पता लगाएगी. ओडिशा विधानसभा भी ओबीसी की गिनती का प्रस्ताव पारित कर चुकी है.
ये सरकारें जाति जनगणना या सर्वे इसलिए करा रही थीं क्योंकि इन राज्यों में आरक्षण के विभिन्न प्रावधान अदालतों में फंस गए थे. अदालतें जाति के आंकड़े मांग रही है, जो अभी मौजूद नहीं है. जाति जनगणना के आखिरी आंकड़े 1931 के हैं.
महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनावों में ओबीसी आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में फंस गया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश दे दिया है कि जब तक पिछड़ी जातियों की संख्या और उनका पिछड़ापन ट्रिपल टेस्ट के जरिए प्रमाणित नहीं हो जाता, तब तक आरक्षण नहीं दिया जा सकता. वहीं छत्तीसगढ़ में सरकार ने जब ओबीसी का आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया तो आरक्षण विरोधी अदालत में चले गए. अदालत ने आंकड़े न होने की बात कहकर बढ़े हुए आरक्षण पर रोक लगा दी. इसी तरह बिहार में आरक्षण की लिमिट बढ़ाने की चर्चा चल रही है, जिसके लिए सरकार को आंकड़े चाहिए. ओडिशा में भी ओबीसी आरक्षण लागू करने के लिए राज्य सरकार को जातियों के आंकड़े चाहिए.
संविधान, कानून और जनगणना
संविधान में राज्य और केंद्र के बीच कार्य और अधिकारों के विभाजन की योजना यानी 7वीं अनुसूची में जनगणना का काम केंद्रीय सूची में है. केंद्र की सूची में इसके अलावा रक्षा, विदेश मामले, शांति और युद्ध जैसे विषय हैं. इसलिए राज्य सरकार अगर गिनती का कोई काम कराती भी है तो उसे सर्वे या डाटा संकलन ही कहा जाएगा, जनगणना नहीं.
इसी वजह से डीएमके सांसद और सीनियर एडवोकेट पी विल्सन ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मांग की थी कि जनगणना को केंद्रीय लिस्ट से हटाकर समवर्ती सूची में डाल दिया जाए ताकि राज्य सरकारें भी जनगणना करा सकें. उन्होंने लिखा कि अनुच्छेद 342 ए(3) के तहत पिछड़े वर्गों की सूची बनाने और स्थानीय निकाय स्तर पर आंकड़ा रखने के लिए ऐसा करना जरूरी है.
I have written a letter to Hon’ble PM @narendramodi seeking to shift Census from Union List to Concurrent List by bringing Constitutional Amendment and to break deadlock in implementation of #OBCreservation in Local bodies for last 30years & remedy the injustice done to #OBC 's. pic.twitter.com/t5gGPNRs3T
— P. Wilson (@PWilsonDMK) July 3, 2022
उन्होंने ये भी कहा कि राज्य सरकारों को इस बारे में अधिकार देने से राज्यों के रिजर्वेशन तथ्य और आंकड़ा आधारित होंगे और उन्हें लेकर कानूनी चुनौतियां भी नहीं आएंगी.
अभी जनगणना की केंद्रीय लिस्ट में होने के कारण जनगणना कानून, 1948 भी केंद्रीय कानून है. इसमें साफ लिखा है कि जनगणना केंद्र सरकार कराएगी. इसी कानून के तहत केंद्र सरकार जनगणना आयुक्त की नियुक्ति करती है जो देश भर में जनगणना कराते हैं.
इस कानून के तहत जनगणना होने के कारण पूरी प्रक्रिया को कई संरक्षण मिल जाते है. जनगणना आयुक्त का दफ्तर सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों को जनगणना के काम में शामिल होने का आदेश दे सकता है. ये आदेश बाध्यकारी होता है. जनगणना कर्मचारियों को अधिकार है कि अपने कार्य के सिलसिले में वे किसी भी स्थान, यहां तक की वाहन और पानी के जहाज पर भी जा सकते हैं. उन्हें इस काम के लिए कानूनी संरक्षण प्राप्त है.
जनगणना के काम में अड़चन डालना या जनगणना कर्मी को गलत जानकारी देना अपराध है और जनगणना कर्मी भी गलत या आपत्तिजनक सवाल नहीं पूछ सकते और न ही दी गई जानकारी को गलत तरीके से दर्ज कर सकते हैं. ये सब जनगणना कानून के तहत अपराध की श्रेणी में है.
राज्यों के जनसंख्या सर्वे को ये सब कानूनी संरक्षण प्राप्त न होने के कारण न तो वे ठीक से काम कर पाएंगे और न ही सही आंकड़ा जुटा पाएंगे. 2011 में यूपीए शासन में शुरू हुई और एनडीए शासन में जाकर पूरी हुई सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना चूंकि जनगणना कानून के तहत नहीं हुई, इसलिए ये काम कभी ढंग से नहीं हुआ और इसमें बेशुमार गलतियां रह गईं.
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आगे आने वाली दिक्कतें
केंद्र सरकार द्वारा जनगणना का अधिकार क्षेत्र अपने पास रखने और राज्यों के इस बारे में किए जाने वाले प्रयासों की वैधानिकता संदिग्ध होने के कारण आने वाले दिनों में कुछ गंभीर समस्याएं सामने आएंगी.
1. सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण (ईडब्ल्यूएस) दिए जाने की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. ये मामला संविधान पीठ के पास जाएगा. सवर्ण गरीबों का आंकड़ा न होने के कारण केंद्र सरकार के लिए इसका बचाव करना आसान नहीं होगा. इस श्रेणी को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का आधार साबित करने के लिए आंकड़ों की जरूरत होगी.
2. केंद्र सरकार ने ओबीसी आरक्षण के लाभार्थियों और ओबीसी लिस्ट में पीछे छूट गए समुदायों का पता लगाने के लिए जस्टिस रोहिणी कमीशन का गठन किया था. लेकिन जातियों से संबंधित सामाजिक और आर्थिक आंकड़े न होने के कारण रोहिणी कमीशन अपनी रिपोर्ट नहीं दे पा रहा है, जबकि उसे दसियों बार कार्य विस्तार दिया गया है. इस कमीशन से कहा गया है कि ओबीसी कोटे के बंटवारे पर भी अपने विचार दें.
3. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ओबीसी आरक्षण सिर्फ 14 प्रतिशत था. वहां सरकार ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत कर दिया. लेकिन इसे कोर्ट में चुनौती दी गई. जाति संबंधी आंकड़ा आने तक 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का मामला तय होना आसान नहीं होगा.
4. कई जातियां ओबीसी कैटेगरी में आने के लिए आंदोलन कर रही हैं. आंकड़े न होने के कारण ये आंदोलन तथ्यों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि सरकार को मजबूर करके अपना लक्ष्य पाने की कोशिश होती है. आंकड़ों के न होने के कारण आगे भी ऐसे आंदोलन होते रहेंगे.
5. आखिरी और सबसे बड़ी समस्या ये है कि आंकड़े न होने के कारण सरकार पिछड़ेपन को दूर करने के लिए टार्गेटेड तरीके से काम नहीं कर पाएगी.
जनगणना को केंद्र के अधिकार क्षेत्र में बनाए रखने और इसे समवर्ती सूची में न डालने के फैसले पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए.
(लेखक पहले इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका में मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं और इन्होंने मीडिया और सोशियोलॉजी पर किताबें भी लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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