scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतCCP ने तय की शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल के लिए 'चुनाव' की तारीख और चीनी ब्लॉगर्स दे रहे हैं भारत को बधाई

CCP ने तय की शी जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल के लिए ‘चुनाव’ की तारीख और चीनी ब्लॉगर्स दे रहे हैं भारत को बधाई

नई दिल्ली को 'एशिया फॉर एशियन' और 'एशियन सेंचुरी' जैसे ‘झुनझुने’ पेश कर रहा है बीजिंग. स्पष्ट रूप से चीन भारत के हितों को गलत तरीके से समझता है.

Text Size:

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी- सीसीपी) की 20वीं नेशनल कांग्रेस 16 अक्टूबर को शुरू होगी. चीन ने शिनजियांग पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को ‘अमेरिका द्वारा किया गया दुष्प्रचार’ बताया और अपने मेनलैंड (मुख्यभूमि) के अंदर से आ रही खबरों पर चुप्पी साधे रखी. तीसरे सबसे शक्तिशाली चीनी नेता ली जांशु रूस, मंगोलिया, दक्षिण कोरिया और नेपाल की यात्रा करने वाले हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बीजिंग के प्रस्तावों को ठुकराया. अमेरिका द्वारा ताइवान को एक अरब डॉलर से अधिक के हथियार बेचने की पेशकश की. पिछले हफ्ते चीन और शेष दुनिया के बीच जो कुछ भी घटित हुआ उसकी गहराई से पड़ताल कर रहा है इस हफ्ते का चाइनास्कोप.

कैसा रहा चीन का पिछला सप्ताह?

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति ने अंततः अपनी 20वीं नेशनल कांग्रेस की शुरुआत करने की तारीख तय कर ली है और यह 16 अक्टूबर है. पार्टी के तमाम प्रतिनिधि बीजिंग में एकत्र होंगे जहां राष्ट्रपति शी जिनपिंग को उनके तीसरे कार्यकाल के लिए नियुक्त किए जाने की संभावना है.

इस बीच, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के अल्फ्रेड वू मुलुआन ने शी के चौथे कार्यकाल के बारे में एक साहसिक भविष्यवाणी की है. वू ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘वह पोलित ब्यूरो में अपने समर्थकों, विशेष रूप से फ़ुज़ियान और झेजियांग से जहां शी पहले शीर्ष पदों पर रहे थे, का प्रतिशत बढ़ाएंगे … फिर वह पांच साल के बाद अपने चौथे कार्यकाल के लिए उनके समर्थन पर भरोसा कर सकते हैं.’

19वीं नेशनल कांग्रेस के दौरान, शी ने नए नेतृत्व को चुनने के लिए आमने-सामने की जाने वाली बैठकों की शुरुआत की थी और उस स्ट्रॉ पोल प्रक्रिया को खत्म कर दिया, जिसे 2007 में 17वीं कांग्रेस के दौरान अपनाया गया था. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (एससीएमपी) के वांग जियांगवेई के अनुसार, ‘बढ़ते सबूतों के साथ अब हम जानते हैं कि पिछली परम्पराएं अब काफी कम मायने रखती हैं. लेकिन उन पिछली परम्पराओं को शी द्वारा पूरी तरह से बदल दिया गया है. मैंने शी द्वारा अपनी खुद की पसंद के दोस्तों को बढ़ावा देने की नई शैली के बारे में एक कॉलम लिखा था.’

हालांकि, नेशनल कांग्रेस, अटकलों के अनुसार, प्रतीकात्मक ही होगी क्योंकि इसके नेताओं द्वारा 16 अक्टूबर को बीजिंग में मिलने से पहले ही अपने-अपने सौदों को पक्का कर लिए जाने की संभावना है.

एससीएमपी ने एक इंटरैक्टिव मल्टीमीडिया ग्राफिक प्रकाशित किया है जिसमें बताया गया है कि शीर्ष चीनी नेता शी के कितने करीब हैं. यह वाकई एक नजर डालने लायक है.

चीन की नेशनल कांग्रेस से पहले के आगामी कुछ दिनों के दौरान ‘चाइनास्कोप’ अभिजात्य चीनी राजनीति के बारे में समाचार, और अफवाहें, आपतक पहुंचाना जारी रखेगा.

यदि हम उस विषय की तरफ इशारा करें जिसने चीन के ‘नए राष्ट्रवाद’ और शी जिनपिंग की ‘राष्ट्रीय सुरक्षा से प्रेरित राज्य की पहचान’ को वैश्विक मंच पर ला दिया है, तो शिनजियांग में उइगर मुसलमानों से किये गए व्यव्हार का जिक्र सबसे पहले होगा.

यूएन हाई कमिश्नर फॉर ह्यूमन राइट्स (मानव अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र के पूर्व उच्चायुक्त) मिशेल बाचेलेट की बहुप्रतीक्षित शिनजियांग रिपोर्ट 31 अगस्त को उस दिन जारी की गई थी जिस दिन बैचेलेट अपने पद से सेवानिवृत्त हुईं. शिनजियांग प्रांत की यात्रा के बाद से उनकी रिपोर्ट के नदारद रहने ने कई सवाल खड़े कर दिए थे. कुछ लोग तर्क देते हैं कि साल 2016-17 से ही मानवाधिकारों के हनन के और यहां तक कि नरसंहार के भी, सबूत सामने आने लगे थे.

हालांकि, चीनी राजकीय मीडिया ने संयुक्त राष्ट्र की शिनजियांग रिपोर्ट का सीधे तौर पर उल्लेख नहीं किया. इसके बजाय, उसने चीन के खिलाफ ‘दुष्प्रचार’ के लिए अमेरिका की आलोचना की. राजकीय मीडिया ने इस रिपोर्ट के प्रकाशन को ‘कोएर्सिव डिप्लोमेसी’ (जोर-जबरदस्ती की कूटनीति) का नाम दिया.

इसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, ‘यह तथाकथित आकलन अमेरिका और कुछ पश्चिमी ताकतों द्वारा सुनियोजित तरीके से बनाया और पेश किया गया है और पूरी तरह से यह अवैध तथा अमान्य (नल एंड वॉयड) है. यह उस दुष्प्रचार वाला एक पैचवर्क है जो चीन को नियंत्रित करने के लिए शिनजियांग का रणनीतिक उपयोग करने के लिए एक राजनीतिक उपकरण के रूप में कार्य करता है.’

चीन ने हमेशा से संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पालन करने का आह्वान किया है, लेकिन इसने अपनी खुद की शिनजियांग नीति की संयुक्त राष्ट्र द्वारा की जा रही आलोचना को नजरअंदाज कर दिया है.

18 अगस्त को, चीनी राजकीय मीडिया ने शिनजियांग में जबरन बंध्याकरण एवं नसबंदी के बारे में कथित रूप से झूठ बोलने के लिए यूके में बसे एक जापानी अकादमिक और यूएस स्पेशल राप्पोर्टर टोमोया ओबोकाटा की कड़ी आलोचना की.

रिपोर्ट की प्रकाशन का मतलब यह नहीं है कि बैचेलेट ने अपनी जांच के दौरान अपनी टीम द्वारा पता लगाई गई हर बात को सामने रख ही दिया है.

राजनयिक सूत्रों का हवाला देते हुए पोलिटिको द्वारा दी गयी एक खबर के अनुसार, उइगर महिलाओं के जबरन बंध्याकरण पर आधारित रिपोर्ट के एक खंड अंतिम समय में ‘कमजोर बनाया गया’ था.

जबरन बंध्याकरण का विषय बीजिंग को परेशान करने वाला है क्योंकि उइगरों द्वारा गवाही में दिए गए सबूतों ने नरसंहार के दावों का समर्थन किया है, और यह कुछ ऐसा है जिससे चीनी राजकीय मीडिया इनकार करता है.

सीसीपी के तीसरे सबसे शक्तिशाली नेता ली जांशु 7 सितंबर को अपनी बहु-राष्ट्रीय यात्रा शुरू करेंगे. समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, वह अपने 11 दिवसीय दौरे के दौरान रूस, मंगोलिया, नेपाल और दक्षिण कोरिया की यात्रा करेंगे.

मॉस्को में, ली रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अध्यक्षता बाले सातवें ईस्ट इकनोमिक फोरम में भाग लेंगे.

ली सीसीपी पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सदस्य हैं और चीन की संसद, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस, की 13वीं स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं. वह अपनी पार्टी में अपने पद से सेवानिवृत्त होने जा रहें हैं, लेकिन एनपीसी में अपना पद बरकरार रख सकते हैं.


यह भी पढ़ेंः आईएनएस विक्रांत के लॉन्च से पहले चीनी सेना ने इसके खिलाफ शुरू कर दिया प्रोपेगेंडा


दुनिया की खबरों में चीन

बीजिंग आजकल नई दिल्ली को ‘एशिया फॉर एशियन’ और ‘एशियन सेंचुरी’ जैसे पैंटोमाइम ट्रॉप (झुनझुने) प्रदान करता रहता है. ये ऐसी अवधारणाएं जिन्हें भारत अपने औपनिवेशिक अनुभव के कारण विशेष रूप से बढ़ावा दे सकता है. लेकिन यहीं पर चीनी पार्टी-स्टेट नई दिल्ली के हितों को गलत तरीके से समझता है.

हाल ही में, विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर द्वारा ‘एशियन सेंचुरी’ का समर्थन करने वाली टिप्पणी की चीनी राजकीय मीडिया द्वारा काफी प्रशंसा की गई थी.

लेकिन मंत्री महोदय ने 29 अगस्त को एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के शुभारंभ के अवसर पर अपने विचार के बारे में स्पष्टीकरण भी दे दिया.

जयशंकर ने कहा, ‘जब हम उभरते हुए एशिया की बात करते हैं, तो ‘एशियन सेंचुरी’ वाला शब्द स्वाभाविक रूप से दिमाग में आता है. समझदार और शांत लोगों के लिए, यह समग्र वैश्विक गणना में एशिया के लिए अधिक महत्व का प्रतीक है. हालांकि, विवादात्मक लोगों के लिए, इसमें ‘विजय के भाव वाले स्वर’ शामिल होते हैं, जिसके साथ कम-से-कम भारत को सहज नहीं होना चाहिए.’

उन्होंने किसी भी देश का नाम लिए बिना एशिया को ‘कम एकजुट और कम संवादात्मक’ बनाये रखने की चीन की रणनीति को भी उजागर किया.

उन्होंने कहा, ‘वास्तव में, यह अवधारणा ही एक विभाजित एशिया को प्रतिबिंबत करती है, क्योंकि कुछ लोगों के निहित स्वार्थ इस क्षेत्र को कम एकजुट और कम संवादात्मक बनाए रखने में है. यह बात कि क्वॉड जैसे सहयोगी प्रयासों से वैश्विक आमजन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को बेहतर मदद मिलती है, जाहिर तौर पर उन्हें निराश कर देती है. इसलिए, एशिया में एक बुनियादी रणनीतिक सहमति विकसित करना भी स्पष्ट रूप से एक कठिन कार्य है.’

ये टिप्पणियां चीन का मुकाबला करने के लिए आसियान और कुछ अन्य पूर्वी एशियाई देशों को क्वॉड के विस्तारित संस्करण में लाने – जिससे एक एशियाई सुरक्षा संरचना का निर्माण संभव हो सकता है – से जुडी कठिनाई को सामने लाती हैं.

अपनी चार दिवसीय भारत यात्रा से पहले, बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना का दक्षिण एशिया में भारत और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता के बारे में कुछ इस तरह कहना था.

हसीना ने समाचार एजेंसी एएनआई के साथ एक साक्षात्कार के दौरान कहा, ‘और मुझे हमेशा लगता है कि हां, अगर चीन और भारत के बीच कोई समस्या है, तो मैं उस पर अपनी नाक नहीं घुसाना चाहती. मैं अपने देश का विकास चाहती हूं और चूंकि भारत हमारा एकदम निकट का पड़ोसी है, इसलिए हमारे बीच बहुत अच्छे संबंध हैं. यह सच है कि हमारे बीच कई द्विपक्षीय समस्याएं थीं, लेकिन आप जानते हैं कि हमने कई समस्याओं का समाधान कर लिया है.’

इस बीच, चाइना डेली ने उत्तराखंड में अमेरिका के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास की मेजबानी करके ‘सीमा पर उकसावे’ की कार्रवाई के लिए भारत को दोषी ठहराते हुए एक संपादकीय प्रकाशित किया है.

‘चाइना डेली’ के बिना किसी बायलाइन वाले संपादकीय में कहा गया है, ‘बाहरी ताकतों को औली, जो भारत-चीन सीमा के एक विवादित हिस्से से 100 किलोमीटर से भी कम दूरी पर है, में संयुक्त सैन्य अभ्यास करने के लिए आमंत्रित करके भारत अपनी नासमझी से एक अस्थिर स्थिति को जटिल बना रहा है, और अनावश्यक रूप से सीमा पर अमन और शांति बहाल करना और अधिक कठिन बना रहा है.’

लोग भले ही अब नैन्सी पेलोसी की ताइपे की यात्रा को भूलने लगे हों, लेकिन वाशिंगटन का ध्यान अब ताइवान को अपनी रक्षा के लिए पर्याप्त समर्थन देने पर है. शुक्रवार को, अमेरिका ने ताइवान को उन्नत हथियारों के रूप में 1.1 बिलियन डॉलर से अधिक के हथियारों की बिक्री को मंजूरी दे दी, जो राष्ट्रपति जो बिडेन के तहत सबसे बड़ा सौदा है.

ताइवान अपनी तटीय सुरक्षा के लिए हार्पून मिसाइल, वायु रक्षा के लिए एआईएम -9 एक्स मिसाइल और अपनी सी 4आईएसआर (C4ISR) क्षमताओं का समर्थन करने के लिए रडार तकनीक खरीदेगा.

इस बीच, ताइवान अपने किनमेन द्वीप के पास उड़ान भरने वाले चीनी पीएलए ड्रोन की समस्या का भी सामना कर रहा है. ताइवानी प्रीमियर (प्रधानमंत्री) ने हाल हो में कहा कि द्वीप की सेना ने एक पीएलए ड्रोन को मार गिराया था, जिसने चीनी मुख्यभूमि द्वारा नियंत्रित ज़ियामी शहर से ताइवानी सेना द्वारा नियंत्रित एक द्वीप की ओर उड़ान भरी थी.

जर्मनी भले ही हिंद-प्रशांत के पानी में देर से उतरा हो, लेकिन बर्लिन अब अपनी क्षेत्रीय उपस्थिति को काफी अधिक मजबूत करना चाहता है.

जर्मन सेना प्रमुख एबरहार्ड ज़ोर्न ने कहा है कि उनका देश अपने सहयोगियों के साथ सैन्य अभ्यास में शामिल होने के लिए और अधिक युद्धपोत और सैनिक भेजकर हिंद-प्रशांत में अपनी सैन्य उपस्थिति का विस्तार करेगा.

जर्मनी इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत करके चीन के प्रति अपने पिछले ‘डरपोक दृष्टिकोण’ से दूर जाने का संकेत दे रहा है. कहा जाता है कि जर्मनी निवेश की समीक्षा करने और चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए एक सरकार-व्यापी चीन रणनीति पर काम कर रहा है.

भारत में नए जर्मन राजदूत फिलिप ने भी जर्मन सेना प्रमुख द्वारा शुरू किए गए बहस में अपना स्वर जोड़ा है.

एकरमैन ने अपनी पहली प्रेस ब्रीफिंग में कहा, ‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन का दावा है कि अरुणाचल प्रदेश उसका एक का हिस्सा है, जो एक तरह से अपमानजनक बात है. और हम बहुत स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि सीमा पर इसके द्वारा किया गया उल्लंघन बेहद मुश्किल है और इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.’


यह भी पढ़ेंः बीस फीसदी चीनी युवा बेरोजगार हैं जबकि स्मार्ट युवा कम्युनिस्ट पार्टी में नौकरी पाने की फिराक में हैं 


चीन में भारत की ख़बरें

पिछले हफ्ते, एक विषय जिसने चीनी सोशल मीडिया का ध्यान खींचा है, वह है भारत द्वारा ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना. सिना वीबो पर हैशटैग ‘इंडिया बिकम्स फिफ्थ लार्जेस्ट इकॉनमी’ को 140 मिलियन बार देखा गया. कुछ वीबो यूजर्स ने यूके की समग्र जीडीपी को पार करने के लिए भारत को बधाई भी दी.

झेजियांग के एक वित्तीय ब्लॉगर ने सवाल किया कि भारत के शेयर बाजार ने 2016 के बाद से इतना अच्छा प्रदर्शन कैसे किया है, जबकि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था ब्रेक्सिट के बाद से सापेक्ष रूप से गिरावट में चली गई है.

झेजियांग के ब्लॉगर ने लिखा, ‘भारत के आसन की ताकत को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए.’

शानक्सी के एक ब्लॉगर ने कहा कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए मौजूदा भू-राजनीतिक माहौल का फायदा उठा रहा है.

शांक्सी के ब्लॉगर ने लिखा, ‘पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने चीन और अमेरिका की एक-दूसरे के साथ चल रही कुश्ती का फायदा उठाया है. वह चुपचाप अपनी संपत्ति बना रहा है, तेजी से विकास कर रहा है, और उसने अपनी ताकत में काफी सुधार किया है. जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) भारत का सबसे बड़ा लाभ है. हम भारतीय जनसंख्या के आयु विभाजन की तुलना करते हैं, और हम देख सकते हैं कि भारत अब डेमोग्राफिक डिविडेंड के उसी चरण में है, जो हमारी पिछली स्थिति थी. ‘

और अंत में पेश है चाइनास्कोप के संपादकों को धन्यवाद देने के लिए कुछ शब्द जो इस न्यूज़ लेटर को आपके द्वारा समय दिए जाने के लायक बनाते हैं.

(लेखक एक स्तंभकार और एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो वर्तमान में स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज. लंदन यूनिवर्सिटी में चीन पर ध्यान केंद्रित करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में एमएससी कर रहे हैं. वह पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीन मामलों के मीडिया पत्रकार थे. वे @aadilbrar से ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करे.)


यह भी पढ़ेंः रूस-यूक्रेन जंग पुतिन को समझौते के मेज तक ले आई, चीन के पास नई BRI योजना


 

share & View comments