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गुरूवार, 17 अप्रैल, 2025
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चन्द्रगुप्त मौर्य पर की गयी टिप्पणी से नाराज़ जाति समूह, फूंक रहे हैं राजनाथ सिंह के पुतले

ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं है कि किसी को चौथी शताब्दी (ई.पू) के शासक की जाति मालूम न हो.

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लोकसभा में चल रहे अविश्वास प्रस्ताव में, 20 जुलाई को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत के लोकतंत्र की जड़ों का बखान किया. अपने इस भाषण में वे मौर्य साम्राज्य (321 – 297 ई.पू) के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य का आह्वान भी कर बैठे.

उनकी टिप्पणी से उत्तर भारत के मौर्य समाज और अन्य जाति वर्ग के गुटों में नाराज़गी छा गयी है. उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है और उनके पुतले भी फूंके जा रहे हैं.

यूट्यूब और अन्य जगहों पर इस भाषण के ‘आपत्तिजनक’ अंश को पेश किया जा चुका है. सिंह कहते हैं,’पहले, सिर्फ राजवंश के लोग ही राजा बन सकते थे. पर भारत के पहले शासक जो राजवंश से नहीं थे, चन्द्रगुप्त मौर्य ही थे. और (इस प्रकार से)वे किसी ऊँची जाति से सम्बन्ध भी नहीं रखते थे.’

‘अफ़ग़ानिस्तान से बर्मा तक, उनका विशाल साम्राज्य फैला हुआ था. उन्होंने वैदिक ब्राह्मण, चाणक्य, के दर्शाये पथ की बदौलत सत्ता हासिल की, पर उनका राजतिलक जैन रीति रिवाज़ों से ही हुआ था. अपने अंतिम दिनों में, उन्होंने सिंघासन छोड़ा और कर्नाटक में सन्यासी बनने के लिए चल पड़े…

‘चन्द्रगुप्त मौर्य वो आदमी थे, जो एक गाँव में मवेशी चराते थे. लोकतंत्र भारतीय इतिहास की रग – रग में बसा हुआ है. इसी वजह से एक चरवाहा भी इतने बड़े देश का शासक बन गया. और यही वजह है कि आज देश में एक चायवाला भी प्रधानमंत्री बन गया.’

कुशवाहा, एक खेतिहर पिछड़े वर्गीय समुदाय, ने गृह मंत्री द्वारा चौथी शताब्दी (ईपू) के इस शासक पर की गयी टिप्पणी, हाथों-हाथ नहीं लिया है.

अन्य पिछड़े वर्गीय जातिय समुदाय, जैसे शाक्य, सैनी और मौर्य भी इससे निराश हैं, ये सब खेतिहर जातियां हैं. सैनी जाति को माली के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उनकी जाति के अनुसार बागवानी उनका पेशा है. मौर्यों को मुराओ के नाम से भी जाना जाता है, और यह समुदाय पारम्परिक रूप से सब्ज़िया उगाने का काम करता है. कुशवाहा समुदाय को कोइरी के नाम से भी जाना जाता है, और शाक्य की भाँती ये भी परंपरागत रूप से कृषक हैं.

हमें चरवाहा मत कहो

राजनाथ सिंह ने वही कहा जिसका इन समुदायों के लोग दावा करते रहे हैं: कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की, वे एक निम्न पृष्ठभूमि से आये थे, वे ऊँची जाति के नहीं थे. तो इस सब में आपत्तिजनक क्या था?

उनके अनुसार जो आपत्तिजनक था वो था पेशा – राजनाथ सिंह ने चन्द्रगुप्त मौर्य को एक मवेशी चारक कहा था, जो की जाति व्यवस्था के अनुसार और कुछ लोगों के अनुसार, जाति में ‘निम्न’ है और जो सब्ज़ी उगाने वाले और कमाऊ फसलें उगाने वालों से नीचे है. राजनाथ सिंह ने प्रभावी रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य को गड़ेरिया कह डाला.

विरोधकर्ता इस बात को खुल कर भी कह नहीं रहे क्योंकि वे अपने आपको गड़ेरियों को नीचा दिखने वाला समुदाय भी नहीं दर्शाना चाहते. वो सिर्फ ये कह रहे हैं कि गृह मंत्री ने चन्द्रगुप्त मौर्य को “नीच जाति” का बतलाते हुए, उनकी बेइज़्ज़ती की है – जबकि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया.

ये कृषक समुदाय, गड़ेरियों की तुलना में काफी धनी हैं. ये अक्सर कुछ भूमिपति होते हैं, और पिछले कुछ सालों में राजनीति में भी मुखर कर आ रहे हैं. कुशवाहा, शाक्य, सैनी और मौर्य सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में लगभग सामान्य ही हैं, और तभी एक दूसरे में वे कुछ समानताएं ढूंढ रहे हैं. खासतौर पर बिहार में, जहाँ नीतीश कुमार, जो इन समुदायों को राजनीतिक रूप से अपने निशाने पर लाए हैं, की आरक्षण नीतियों ने इनको लाभ पहुंचाया है.

कुछ हद तक ये समुदाय उन्हीं जातिगत समुदायों की तरह हैं, जो किसी समय उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में अन्य पार्टियों में विभाजित हुआ करती थीं, पर अब ब्रांड मोदी के चलते एकत्रित हो गयी हैं. ये मोदी-शाह की कमान से छोड़े गए जातिगत प्रहार के तीर का सटीक निशाना हैं.

अब जब मोदी-शाह संचालित भाजपा इन समुदायों को इतनी तवज्जो दे रही है, वे अब और भी ज़्यादा दबंग हो गयी हैं. बेहतर होते हुए सामाजिक और आर्थिक हालातों ने इन समुदायों को एक जुट किया है — और ये विरोध प्रदर्शन उसी का नतीजा हैं.

चन्द्रगुप्त मौर्य को कुशवाहा आदर्श जताने के लिए भाजपा बढ़-चढ़कर आगे आती रही है. 2015 में बिहार चुनावों से पहले भी, पार्टी ने एक अभियान चालू किया था जिसमें उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य को कुशवाहा पुकारा था.

यह तो सिर्फ एक उदाहरण है कि कैसे भाजपा अन्य पिछड़ी जातियां, जो प्रमुख ओबीसी जातियों, जैसे की यादवों, से जाति व्यवस्था अनुसार नीचे हैं, को कैसे लुभा रही है. भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए का एक दल है राष्ट्रीय लोक समाज पार्टी, जिसका नेतृत्व उपेंद्र कुशवाहा कर रहे हैं. वो मोदी सरकार की मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं.

संयोग से, ऐसे कोई तथ्य मौजूद नहीं हैं जो चन्द्रगुप्त मौर्य को कुशवाहा ठहरा सकें, या उनकी जाति को बता सकें. ज़्यादा से ज़्यादा यही माना जाता है कि वे शायद एक ‘निचली’ जाति से हो सकते हैं.

पर जाति के नाम पर चल रही राजनीती में तथ्यों को कभी राह नहीं मिलती.

झारखण्ड से लेकर गुजरात तक विरोध लहर

इन विरोध प्रदर्शनों का आयोजन हो सकता है कि छोटी संख्या वाले जाति समूह करवा रहे हों, पर आश्चर्य की बात यह है की ये कई राज्यों में फ़ैल रहा है, पुतले फूंके जा रहे हैं, मोमबत्तियों के साथ जुलूस निकला जा रहा है और राजनाथ के इस्तीफे की मांग भी उठ रही है. इनमें से कई सारे विरोध प्रदर्शनों का आयोजन तो एक ही संस्था द्वारा किया जा रहा है और वो है अखिल भारतीय मौर्य महासभा.

पटना में मौर्यवंशी युवा सेना ने गृह मंत्री का पुतला जलाया.

लगभग पूरे उत्तर प्रदेश में रोष देखने को मिला है. उन्‍नाव से लेकर बरेली, अम्बेडकर नगर, जौनपुर, अमेठी, आजमगढ़, हरदोई, ग़ाज़ियाबाद, इलाहबाद और लखनऊ, सब इस रोष की आग को देख रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने राजनाथ सिंह के बयान को आरएसएस की विचारधारा का आइना बतलाया, समाजवादी पार्टी के कुशवाहा नेता ने भी कुछ ऐसा ही कहा है. एक मौर्य गुट ने हरियाणा के फरीदाबाद में विरोध प्रदर्शन किया. झारखण्ड के हुसैनाबाद और जमशेदपुर में भी इन विरोध प्रदर्शनों की झलक देखने को मिली है.

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में विरोध दर्ज किया गया.

यहाँ तक की अहमदाबाद में भी कोई नाराज़ नज़र आ रहा है

जातिगत राजनीति

इस दौरान, चन्द्रगुप्त मौर्य को एक यूपी स्थित मौर्य लोगों के व्हाट्सएप ग्रुप में कुछ ऐसा दिखाया जा रहा है.

ऐसा हो सकता है की इन सभी राज्यों में ऐसे विरोध प्रदर्शनों का आयोजन राजनाथ सिंह के ही एक प्रतिद्वंदी ने उकसाया हो. और शायद ऐसा भी हो सकता है कि वे सब व्हाट्सएप वायरल पोस्टों के शिकार हुए हों. पर इन सब चीज़ों को 2019 लोक सभा चुनावों के मद्देनज़र न देखना एक भूल होगी.

यह अजीबो गरीब कहानी रोज़ घटित हो रही जातिगत राजनीति का एक हिस्सा है. ऐसे ही जाति समूह अपने आप को राजनीतिक रूप से एकत्रित करते हैं, और ज़्यादा आत्म सम्मान और सत्ता में पकड़ की लालसा रखते हैं.

चन्द्रगुप्त मौर्य को अपना आदर्श बनाने की कोशिश करने वाले लोगों का मज़ाक बनाना शायद आसान हो.शायद ये और भी अजीब लगे की कैसे चौथी शताब्दी (ईपू) के एक राजा की जाति को ऊंचा या नीचे साबित करने के लिए लोग कितना समय बहा रहे हैं, पर यही तो जाति समाज है. जी हाँ यह राजनीति के बारे में तो है ही, पर यह जातिगत राजनीति के बारे में भी है. यही हम हैं.

Read in English : Caste groups are burning Rajnath Singh’s effigies as he called Chandragupta Maurya shepherd

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7 टिप्पणी

  1. चन्द्रगुप्त मौर्य वास्तव में भेड़पालक समाज गड़रिया मे जन्म लिया था उहोने मौर्य सम्राज्य की थापना की थी ईसका सबुत संसद भवन के गेट नं 5 पर लगी मुरती पर लिखा शेफर्ड वाय चन्द्रगुप्त मौर्य है।

  2. हमे आज पता चला कि चन्द्रगुप्त मॉर्य पाल समाज से है पाल समाज भी बहुत आगे बढ चुका है पाल जाती के नाम से कुछ लोग जानते है कि पाल जाती भी है कोई गड़रिया ने ने से जानते है कि गड़रिया जाती है
    +919568002886
    +917419602886
    +911741230886

  3. Phle toh rajnath singh?
    Jo title use krte h singh ajkl bhot log apne name m Singh ka use krte h but Singh Singh hote h name k piche lga lene se kuch nhi hota hh…Nd guys for Ur all Information guys Mauryavansh is A Kashtriya Vansh …Ese hi koi Empire 137years tk India or neighbour country prr Apna Saashan kr skta ye ek kShatriya hi krr skta hh …like all Kshriya Maurya,Rajput,Maratha etc …
    Name se Kashtriya nahi kam se hote hai??
    For haters????
    Kl ko koi bhi muhh utha k keh dega hm Kashtriya h toh bhai khus ho Tasalli do mnn ko?

  4. गड़रिया puttr सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ki jai ( Gadariya ki उपजाति धनगर में जन्म hua tha) jiske badd unhone मौर्य साम्राज्य की स्थापना की जिसमे कुशवाह, सैनी, मौर्य, और अन्य आते है

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