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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतअमेरिका में जातिगत भेदभाव और सिएटल में जय भीम के जोश से भरे नारों के पीछे लंबी लड़ाई

अमेरिका में जातिगत भेदभाव और सिएटल में जय भीम के जोश से भरे नारों के पीछे लंबी लड़ाई

इस कदम का नोम चॉम्स्की और कॉर्नेल वेस्ट जैसे सार्वजनिक बुद्धिजीवियों ने समर्थन किया था.

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21 फरवरी को अमरीका का सिएटल शहर जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. इस शहर ने अपने भेदभाव-विरोधी कानूनों में जाति की श्रेणी को जोड़ने का ऐतिहासिक कदम उठाया, जिसका दूरगामी महत्व होगा.

इस महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है की भारत में 1949 में  डॉ आम्बेडकर द्वारा भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 के तहत जाति के आधार पर भेदभाव विरोधी कानून बनाने और नेपाल सरकार द्वारा 2011 में जातिगत आधार पर भेदभाव पर रोक लगाने के बने कानून के बाद यह किसी भी सरकारी निकाय द्वारा पारित पहला बिल है.

जैसे ही इस बिल के पारित होने की घोषणा की गई, सिटी हॉल ‘जय भीम’ के जोश से भरे नारों से गूंज उठा और कुछ कार्यकर्ताओं ने आम्बेडकर की तस्वीर के साथ भावनात्मक खुशी में एक दूसरे को गले लगाया. यह संशोधन भारतीय-अमेरिकी मूल की काउंसिल सदस्य क्षमा सावंत द्वारा लाया गया था.


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आम्बेडकर की चेतावनी

अमरीका के पश्चिमी भाग में वाशिंग्टन राज्य में स्थित, सिएटल मेट्रो क्षेत्र की आबादी लगभग 36 लाख  है. शहर में अमेज़ॉन और माइक्रोसॉफ्ट जैसे दिग्गज का कॉर्पोरेट मुख्यालय भी हैं. कामकाज के चलते दक्षिण एशियाई मूल लोगों का स्थलांतरण भी यहां लगातार बढ़ रहा है.

एडवोकेसी ग्रुप साउथ एशियन अमेरिकन्स लीडिंग टुगेदर (SAALT) की 2019 की रिपोर्ट में अमेरिका में दक्षिण एशियाई लोगों की संख्या 54 लाख बताई गई है. 2010 यही जनगणना 35 लाख थी. लेकिन इसी इस वृद्धि के साथ, जाति और जाति आधारित भेदभाव के मामले भी सामने आये.

अमेरिका में ही स्नातक और पीएचडी डिग्री पूरा करने वाले आम्बेडकर ने पहले ही चेतावनी दी थी कि जैसे-जैसे हिंदू समुदाय दुनिया के दूसरे हिस्सों में माइग्रेट करेंगे, जाति एक विश्व समस्या बन जाएगी.

हो सकता है कि अमेरिका में जाति के आधार पर भेदभाव उतना प्रचलित और हिंसक न हो जितना दक्षिण एशिया में होता है, फिर भी हाल के अध्ययनों से पता चला है कि यह अहम है. अमेरिका स्थित दलित नागरिक अधिकार संगठन, इक्वैलिटी लैब्स के 2016 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 60 प्रतिशत दलित जाति-आधारित अपमानजनक चुटकुले या टिप्पणियों का अनुभव करते हैं, तीन दलित छात्रों में से एक ने अपनी शिक्षा के दौरान भेदभाव किए जाने की पुष्टि की है और 20 प्रतिशत दलित अपने साथ कामकाज करने के ठिकानों पर भेदभाव का अनुभव किए.

सिएटल अध्यादेश के लिए, 200 से अधिक लोगों ने दूरस्थ गवाही पर हस्ताक्षर किया था, लेकिन समय सीमा के कारण व्यक्तिगत और दूरस्थ गवाही प्रत्येक में केवल 40 लोग ही अपनी सुनवाई कर सके. गवाही देने आये लोगों ने भारी बहुमत से सिएटल परिषद के सदस्यों से जातिगत भेदभाव पर रोक लगाने के लिए हां के पक्ष में मतदान करने का आग्रह किया.

यह गवाही देने के लिए व्यक्तिगत रूप से पेश होने वालों को आधी रात से लाइन में लगना पड़ा था ताकि वे सब परिषद के मतदान से पहले बोल सकें. कई दलित, बहुजन, सिख, मुस्लिम, गैर-दक्षिण एशियाई और यहां तक कि कुछ उच्च जाति के हिंदुओं ने जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में बात की.

एक स्थानीय दलित कार्यकर्ता संकेत ने परिषद के सदस्यों से अपील करते हुए  कहा, ‘यह विषय की गहनता को इस बात से अंदाजा लगाइये की हम जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने के लिए 30 सेकंड की गवाही देने के लिए रात 2 बजे से 12 घंटे तक लाइन में लगने के लिए तैयार थे.’

कुछ वक्ताओं ने भावनात्मक होते हुए बताया की कैसे एक बार उनकी जाति का पता चलने के बाद उन्हें जातिवादी गालियों और सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ा.

अंत में, जाती विरोधी अध्यादेश 6-1 के बहुमत से पारित किया गया. अकेला विरोध करने वाली सारा नेल्सन थीं, जिन्होंने तर्क दिया कि यह ‘हिंदू समुदायों के खिलाफ नस्लवादी रूढ़िवादिता’ को बढ़ावा देगी.

पार्षद सावंत ने करारा जवाब देते हुए कहा कि यह किसी एक धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय और धार्मिक सीमाओं से परे की बात है. उन्होंने याद करते हुए कहा कि इस देश में महिलाओं और एलजीबीटीक्यू अधिकारों का भी विरोध हुआ था. उन्होंने पूछा, ‘हम आज कहां होते अगर उन विरोधियों के डर से या मुकदमों के डर से उन अधिकारों को बहाल करने में देरी की होती.’

विश्वविद्यालयों से शहरों तक

पिछले कुछ वर्षों से, अमेरिकी समान रोजगार अवसर आयोग के अनुसार कार्यकर्ता जाति को भेदभाव से सुरक्षित वर्गों की सूची में शामिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. सूची में जाति, रंग, धर्म, लिंग (गर्भावस्था, यौन अभिविन्यास, या लिंग पहचान सहित), राष्ट्रीय मूल, उम्र (40 या अधिक), विकलांगता, और आनुवंशिक जानकारी (पारिवारिक चिकित्सा इतिहास सहित) शामिल हैं.

2020 में, कैलिफ़ोर्निया डिपार्टमेंट ऑफ़ फेयर एम्प्लॉयमेंट एंड हाउसिंग ने भारतीय-अमेरिकी कर्मचारी जॉन डो (नाम बताने से इनकार किया) के साथ दलित समुदाय से वंश या नस्ल के आधार पर भेदभाव करने के लिए सिस्को कंपनी पर मुकदमा दायर किया था. 2021 में, हिंदू संप्रदाय, बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) के खिलाफ न्यू जर्सी में मंदिर बनाने के लिए दलित श्रमिकों का शोषण करने के आरोप में मामला दर्ज किया था.

कार्यकर्ताओं का कहना है कि जाति को एक अलग संरक्षित श्रेणी के रूप में शामिल करने से भेदभाव का सामना कर रहे लोगों को राहत मिलेगी.

पिछले कुछ वर्षों में, अमेरिका में जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए बढ़ते समर्थन के कारण, जाति को एक संरक्षित श्रेणी के रूप में शामिल किया गया.

1- दिसंबर 2019 में ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी अपनी गैर-भेदभाव नीति में जाति को शामिल करने वाला पहला अमेरिकी कॉलेज बन गया.

2- 2021 में, कोल्बी कॉलेज, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस (यूसी डेविस) और हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने अपनी नीतियों में जातिगत भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा को शामिल किया.

3- जनवरी 2022 में, कैलिफ़ोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी जाति-उत्पीड़ित छात्रों को भेदभाव से बचाने के लिए देश की पहली और सबसे बड़ा यूनिवर्सिटी सिस्टम बन गया.

4- दिसंबर 2022 में, ब्राउन यूनिवर्सिटी ने पूरे परिसर में जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगा दिया. इस कदम से वो अति प्रतिष्ठित आईवी लीग के विश्वविद्यालयों में ऐसा करने वाला पहला विश्वविद्यालय बन गया.

अगले कदम

विभिन्न अम्बेडकरवादी, दलित और मानवाधिकार समूहों ने सिएटल में हालिया जीत सुनिश्चित करने के लिए अथक रूप से काम किया, जिसमें कैंपेन, काउंसिल सदस्य सावंत के साथ काम करना, पब्लिक टेस्टिमनी और व्यक्तिगत उपस्थिति शामिल थी.

सिएटल इंडियन-अमेरिकन का गठबंधन, आम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर (AIC), आम्बेडकर असोशिएशन ऑफ़ नार्थ अमेरिका (AANA), इक्विटी लैब्स, आम्बेडकर किंग स्टडी सर्कल, टेक्सास के आम्बेडकराइट बौद्ध एसोसिएशन (एबीएटी), अमेरिकन मुस्लिम एम्पावरमेंट नेटवर्क एट द मुस्लिम एसोसिएशन ऑफ पुगेट साउंड (एमएपीएस-एएमईएन) और रविदासिया समुदाय के साथ-साथ दर्जनों अन्य संगठनों ने सावंत के बिल का समर्थन किया, जिसे 24 जनवरी को पेश किया गया था.

सिएटल में UAW 4121 (वाशिंगटन विश्वविद्यालय, सिएटल में 6,000 शिक्षाविदों, छात्रों, कर्मचारियों और पोस्ट-डॉक्टरेट का एक संघ), वाशिंगटन के ACLU, नोआम चॉम्स्की और कॉर्नेल वेस्ट जैसे प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों ने भी जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने की लड़ाई का समर्थन किया था.

AIC के अध्यक्ष राम कुमार ने जीत के बाद कहा, ‘हम इतिहास का हिस्सा हैं और आज जाति समानता, सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. हम उत्पीड़ित जाति की वकालत के लिए सिएटल शहर और क्षमा सावंत को धन्यवाद देते हैं.’

AIC ने एक प्रेस रिलीज जारी किया कि उनका काम नहीं रुकेगा और 1964 के नागरिक अधिकार अधिनियम के शीर्षक VII में जाति को एक संरक्षित श्रेणी के रूप में जोड़ना अगला कदम है.

इक्विलिटी लैब्स के थेनमोझी सुंदरराजन ने ट्वीट किया, ‘हम जाति से मुक्ति पाने की हमारी प्रतिबद्धता में एक दक्षिण एशियाई अमेरिकी समुदाय के रूप में एकजुट हैं. पहले सिएटल, अब राष्ट्र, जयभीम, जय सावित्री.’

AANA की माया कांबले ने कॉर्पोरेट्स जगत से आह्वान करते हुए कहा कि, ‘हमें उम्मीद है कि सिएटल में मुख्यालय वाले अमेज़ॅन और अन्य कंपनियां अपनी ग्लोबल नीति के तहत नस्लभेद जैसे ही आंतरिक संरक्षित श्रेणी सूची में जाति को सक्रिय रूप से जोड़ देंगे.’

काउंसिलर सावंत, जो फिर से चुनाव नहीं लड़ रही हैं, ने इस जीत को पूरे देश में फैलाने के लिए एक आंदोलन बनाने की आवश्यकता पर बल दिया.

एक शहर द्वारा जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ कानून का अर्थ यह होगा कि अब विश्वविद्यालय के बाहर भी उत्पीड़ित समुदायों सुरक्षा मिल सकेगी. इसके साथ ही सिएटल जैसे कई शहर और राज्य भी सामाजिक न्याय की इस पहल का अनुकरण कर सकते हैं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(रवि शिंदे एक स्वतंत्र लेखक और स्तंभकार हैं. वह सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखते हैं और विविधता के समर्थक हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)


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