आज कांग्रेस वैसी ही लग रही है जैसी वह 1915 में थी। 1915 में गांधी द्वारा कांग्रेस बनाई और बदली गयी थी।
रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गाँधी में, एक ऐसा दृश्य है जिसमें मोहनदास करमचंद गाँधी हाल ही में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद कांग्रेस पार्टी के एक सत्र को संबोधित करते हैं।वह कहते हैः
यहाँ हम एक दूसरे के लिए भाषण देते हैं और अंग्रेजी की वे उदारवादी पत्रिकाएं हमें केवल कुछ पंक्तियाँ ही दे सकती हैं।
लेकिन फिर भी भारतीयों पर इसका कुछ असर नहीं होता है। उनकी राजनीति बस रोटी और नमक तक ही सीमित है। हो सकता है कि वे पढ़े लिखे न हों लेकिन अंधे तो नहीं हैं। उनके पास धनी और रौबदार लोगों के प्रति अपनी वफादारी दिखाने की कोई वजह नहीं है जो “स्वतंत्रता” के नाम पर अंग्रेजों की भूमिका निभाना चाहते हैं।
कांग्रेस दुनिया को बताती है कि यह भारत का प्रतिनिधित्व करती है। मेरे भाइयों, भारत में 700,000 गाँव हैं यह दिल्ली या बॉम्बे के कुछ सौ वकील नहीं है।
जब तक हम उन लाखों लोगों के साथ खड़े नहीं होते जो हर रोज कड़ी धूप में दिनभर खेतों में मेहनत करते हैं, तब तक हम भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएंगे और न ही हभी हम एक राष्ट्र के रूप में अंग्रेजों को चुनौती देने में सक्षम हो पाएंगे।
आज कांग्रेस वैसी ही लग रही है जैसी वह 1915 में थी। 1915 में गांधी द्वारा कांग्रेस बनाई और बदली गयी थी।
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2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लगभग 11 करोड़ वोट मिले थे। लगभग हर पांचवे मतदाता ने पार्टी के लिए मतदान किया था। लेकिन फिर यह धीरे-धीरे, चुनाव दर चुनाव, राज्य दर राज्य कांग्रेस सिकुड़ती चली जा रही है।
जो लोग भाजपा के ख़िलाफ़ है उनको लगता है की भारत में उदारवाद मर रहा है क्योंकि भारत के लोग दक्षिणपंथी और हिन्दुत्ववादी हो गए हैं। ऐसे लोगों में कांग्रेसी नेता, मुसलमान और उदारवादी बुद्धिजीवि जैसे लोग शामिल है।
एक मसीहा का इंतजार
लेकिन शायद, उदारवाद का इसलिए पतन हो रहा है क्योंकि आज भारतीयों के पास कोई उदारवादी जन-नेता नहीं है। भारतीय उदारवाद को एक ऐसे उदारवादी जन-नेता की जरूरत है जो प्रतिदिन तपती धूप में खेतों में काम करने वाले लाखों लोगों के साथ खड़ा हो सके।
आज नरेन्द्र मोदी अकेले राष्ट्रव्यापी जन-नेता हैं। हिंदुत्व राष्ट्रवाद की विचारधारा छायी हुई है, इस बड़े जन-नेता को धन्यवाद जिसने जनता को सपना बेच दिया। मोदी के तहत, भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में राज्यों, क्षेत्रों, शहरों और गाँवों में फैल गई है जहाँ पहले इसका नामोनिशान तक नहीं था।
एक बड़े स्तर पर महात्मा गाँधी ने भी यही किया था। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को बॉम्बे क्लब से एक बड़े संगठन में बदल दिया था। सबसे पहले और सबसे अहम काम जो उन्होंने किया वह था लोगों के पास जाकर एक जन-नेता बनना।
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ऐसा करने के लिए गाँधी ने लोगों को एक सपना दिखाया और लोगों को अपनी विचारधारा का पालनकर्ता बनाया। गोरखपुर के किसानों को हिंसक विद्रोह का मार्ग छोड़ने का आग्रह करते हुए 1921 में उन्होंने कहाः “मैं आपको बताना चाहता हूँ, अगर आप मेरी योजना का पालन करते हैं – मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूँ, अगर आप वैसा ही करते हैं जैसा मैं कहता हूँ, तो सितंबर के अंत तक हम स्वराज प्राप्त कर लेगें।”
इतिहासकार शाहिद अमीन ने 1980 के अपने एक प्रसिद्ध निबंध में इस बात का वर्णन किया है कि 1921 तक महात्मा गाँधी इतने बड़े कैसे हो गए थे। अमीन के निबंध का शीर्षक हैः गाँधी एज महात्मा (महात्मा के रूप में गाँधी)। लोग गाँधी के दर्शन करने, उनका सत्कार करने और दान देने के लिए गाँधी को लेकर जा रही ट्रेन को रोक दिया करते थे। गाँधी की चमत्कारिक शक्तियों के बारे में भी अफवाहें व्याप्त थीं।
विद्वान जैक्स पॉचपदास के अनुसार ऐसी अफवाहें थीं, उदाहरण के लिए, चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी यूरोपीय इंडिगो प्लांटर्स के द्वारा किसानों पर किए गए शोषण को दर्शाया था:
उन अफवाहों से पता चला कि गांधी को चंपारण जनता की समस्याएं सुनने के लिए वायसराय ही नहीं साथ में राजा के द्वारा भी भेजा गया था और उनके आदेश ने सभी स्थानीय अधिकारियों और अदालतों को खारिज कर दिया। प्लांटर के द्वारा जनता पर लगाए गए सभी अलोकप्रिय दायित्वों को खत्म करने के बारे में उन्हे कहा गया, ताकि किसी भी प्लांटर के वचन का पालन करने की कोई आवश्यकता न हो। एक अफवाह यह भी फैली हुई थी कि चंपारण का प्रशासन भारतीयों से भरने वाला था, और कुछ महिनों के भीतर अंग्रेज़ों को वहाँ से खदेड़ दिया जाएगा।
गांधी को महात्मा ही नहीं बल्कि महात्माजी भी कहा जाता था। जब लोग उनको शब्दों में वर्णित नहीं कर पाए, तो उनको एक भगवान बना दिया और भगवान कृष्ण के एक अवतार की तरह उनको मानने लगे। गांधी को खुद एक बयान देना था, जिसमें वह यह स्वीकार करते कि वह किसी भी भगवान के अवतार नहीं हैं! लेकिन लोग नहीं सुनेंगे, उनको “बम बम महादेव” जैसे धार्मिक जयघोषों की जगह, “महात्मा गांधी की जय!” जैसे जयघोषों से सम्बोधित करने जाया लगा।
अमीन ने एक राष्ट्रवादी समाचार पत्र स्वदेश का उद्धरण दिया, जो गांधी की सिर्फ एक छोटी सी गोरखपुर यात्रा द्वारा छोड़े गए प्रभाव के बारे में था
ऐसा घटित होना हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वही गोरखपुर जो राजनीतिक रूप से निष्क्रिय था वह अचानक इस तरह जाग जाएगा … यह शायद कहा जा सकता है कि यह महात्मा के दर्शन के लिए एकत्र हुआ अब तक का सबसे बड़ा जनसैलाव था। लेकिन किसी ने भी नहीं सोचा कि यह भीड़ अंधविश्वास (अंधभाक्ति) से प्रेरित होकर भेड़ की तरह आई और खाली हाथ वापस चली गई। जो समझदार थे वह यह देख सकते थे कि ‘गांधी महात्मा’ (यह संबोधन उनके लिए गांवों में प्रयोग किया जाता है) के दर्शन व्यर्थ नहीं रहे। जनता उनके दिल में भक्ति की तरह आई और भावनाओं तथा विचारों के साथ निकल गई। गुरु-गांधी का नाम अब जिले के चारों कोनों में फैल गया था ..
लोग एक मसीहा चाहते हैं। गांधी ने स्वयं को वह मसीहा बनाया। वे समस्याग्रस्त स्थान पर जाकर लोगों को उससे उबरने का मार्ग प्रशस्त करते थे। वे वहाँ पर तथा इसके बाद कहीं और तथा अपने तनाव से उबरने के लिए यूरोप फोटो-अवसर के लिए नहीं जाते थे।
गांधीजी और गांधी उपनाम के लोग
क्या भारत में आगे कभी एक अन्य उदार जन नेता हो सकता है? क्या कोई दक्षिण अफ्रीका से आएगा और गर्मी व धूल में लोगों के साथ खड़े होकर उन्हें एक नया सपना, एक नया रास्ता दिखाएगा?
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ऐसा कोई कारण नहीं है कि कोई ऐसा न कर सके। यदि एक उदार नेता/नेत्री जनता के पास जाकर उन्हें गांधीजी की तरह सपने दिखाता/दिखाती है, तो वह एक बड़ा नायक/बड़ी नायिका बन सकता/सकती है- शायद यहाँ तक कि उचित समय आने पर मोदी का भी स्थान ले सकता/सकती है।
हालांकि, यह संभव नहीं है कि ऐसा बड़ा नेता कांग्रेस पार्टी से या उसके माध्यम से उभरकर सामने आ सकता है। मोहनदास करमचंद गांधी के अलावा, कोई भी केवल कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर देश का सबसे बड़ा जन नेता नहीं बन सकता है। इससे नेहरू-गांधी परिवार के प्रभुत्व को ठेस पहुँचेगी और वे इसकी अनुमति नहीं देंगे।
नेहरू-गांधी परिवार ने जनता के साथ सम्बद्ध होने की क्षमता स्वयं खो दी है। राहुल गांधी स्वयं को राष्ट्रीय जन नेता के रूप में स्थापित करने में असमर्थ रहे हैं – उन्हें स्वयं की अपनी अमेठी सीट को जीतने के लिए समाजवादी पार्टी के समर्थन की आवश्यकता है।
अंततः देश को उदार जन नेता देने की बात आती है तो कांग्रेस पार्टी का नाम सामने आता है। यदि भारत में कोई उदार जन नेता होगा तो वह कांग्रेस पार्टी के बाहर का होना चाहिए। यह एक धर्मसंकट वाली बात है क्योंकि भाजपा और कांग्रेस के अलावा किसी भी पार्टी का प्रभुत्व देशव्यापी नहीं है।
नए उदार जन नेता, 21वीं सदी के महात्मा गांधी को एक नई पार्टी के माध्यम से सामने आना होगा जो नेहरू-गांधी परिवार के कारोबार के स्थान पर स्वयं को स्थापित करे।
नए गांधी को अपनी नई पार्टी और ख़ुद को जनता के समक्ष ले जाना होगा, ठीक उसी तरह जैसे कि गांधीजी कांग्रेस पार्टी को जनता तक ले गए थे और महात्मा बन गए थे।
Read in English : Can India have a liberal mass hero ever again?