फिलीपींस और भारत के माओवादी आंदोलन में काफी समानताएं हैं और असमानताएं भी. दोनों आंदोलन 50 से अधिक साल पहले शुरू हुए और आज तक चल रहे हैं. दुनिया के बहुत से देशों में चीन के चेयरमैन माओ से प्रेरणा लेकर 70 के दशक में माओवादी आंदोलन शुरू हुए थे, जो एक-एक कर धीरे-धीरे ख़त्म हो गए. कोलंबिया में माओवादियों के साथ लड़खड़ाती शांति वार्ता को छोड़ दें तो दुनिया के सिर्फ इन दो देशों भारत और फिलीपींस में ही सक्रिय सशस्त्र हिंसक माओवादी आंदोलन चल रहे हैं.(माओवादी पार्टियां दुनिया के बहुत देशों में हैं कुर्दिस्तान के कुछ लड़ाके भी अपने आप को माओवादी विचारधारा के बताते हैं पर वे अपने आपको माओवादी नहीं कहते)
भारत और फिलीपींस दोनों के माओवादी आंदोलन यह दावा करते हैं कि उनके 3000 से अधिक लड़ाके हैं और उनके कार्यक्षेत्र जैसे फिलीपींस के लुज़ॉन क्षेत्र में और मध्य भारत के दण्डकारण्य क्षेत्र में लगभग 5 करोड़ लोग रहते हैं, जिनमें से अधिकतर इस 50 साल से अधिक समय से चल रहे इस गृहयुद्ध से बेहद परेशान हैं. दोनों क्षेत्रों में कोरोनावायरस के फैलने का डर है और सरकारों ने लॉकडाउन का आदेश दिया है, पर वहां से इस बुरे समय में एक अच्छी खबर भी है. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना पर राष्ट्र को सम्बोधित किया उसी तरह फिलीपींस के राष्ट्रपति दुतरते ने भी राष्ट्र को सम्बोधित किया.
अपने राष्ट्र के नाम सम्बोधन में फिलीपींस के राष्ट्रपति दुतरते ने माओवादियों को भी सम्बोधित किया और कहा कि यह समय आपस में लड़ने का नहीं बल्कि कोरोना वायरस से साथ मिलकर लड़ने का है यह मानवता की मांग और लड़ाई है.
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उसके उत्तर में माओवादी पार्टी के प्रमुख प्रोफ़ेसर सिसोन ने कहा कि राष्ट्रपति को सिर्फ भाषण नहीं यह प्रस्ताव लिखित में भेजना चाहिए. इस बीच संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख एंटोनियो गुएटेरेस ने पिछले सोमवार को पूरी दुनिया के विद्रोहियों और सरकारों से कोरोना को देखते हुए युद्धविराम की अपील की थी. उन्होंने कहा था ‘यह समय हमारे आतंरिक संघर्षों को लॉकडाउन में रखकर हमारे जीवन को बचाने की असली लड़ाई पर ध्यान देने का है.’
अब फिलीपींस के माओवादी पार्टी का यह बयान आया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख एंटोनियो गुएटेरेस के प्रस्ताव को मानते हुए वे भी युद्धविराम की घोषणा कर रहे हैं. फिलीपींस में माओवादी संघर्ष में अब तक लगभग 40 हज़ार लोग मारे गए हैं. भारत में सरकारी आंकड़े कहते हैं कि पिछले 20 सालों में इस संघर्ष में 12 हज़ार से अधिक लोग मारे गए हैं तो 53 साल में यहां भी लगभग 40 हज़ार लोग मारे गए होंगे ऐसा हो सकता है. हमारा अनुरोध है कि भारत की सरकार और माओवादियों को फिलीपींस में हुए उदाहरण का अनुकरण करना चाहिए. फिलीपींस में यद्यपि पिछले युद्धविरामों के अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं वहां इसके पहले भी कई बार युद्धविराम हुए और टूटे हैं. अभी हाल ही में पिछले दिसंबर में बातचीत का प्रयास फिर विफल हो गया क्योंकि फिलीपींस के राष्ट्रपति दुतरते और माओवादी पार्टी के प्रमुख प्रोफ़ेसर सिसोन यह तय नहीं कर पाए कि वे कहां पर बातचीत करेंगे.
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पर हमारे पास उसी इलाके से बेहतर उदाहरण हैं. पड़ोसी देश इंडोनेशिया में जब 2004 में सुनामी आई तो वहां के आचे इलाके में विद्रोहियों और सरकार के बीच शुरू हुआ युद्ध विराम अंततः वहां 2005 में शान्ति समझौता करने में सफल हुआ था. वहां दोनों पक्षों को यह लगा था कि आपस में लड़ने की बजाय सुनामी के पीड़ितों को सहायता पहुंचाना अधिक ज़रूरी है. फिलीपींस और भारत के माओवादी आंदोलन में एक और संभावित समानता है, जिसका उपयोग किया जा सकता है. कुछ वर्षों पूर्व छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ नेता ने मुझसे कहा था कि सरकार ने भारतीय माओवादी प्रमुख गणपति को हेलीकॉप्टर से फिलीपींस पहुंचाया है. यह खबर मैंने कई खुफिया अधिकारियों से भी सुनी पर इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई.
फिलीपींस के माओवादी प्रमुख प्रोफेसर सिसोन हॉलैंड में रहते हैं और वहां से शांति वार्ता का प्रयास कर रहे हैं, जबकि उनके लड़ाके लुज़ॉन प्रांत के जंगलों में सुरक्षा बलों से युद्ध लड़ रहे थे. ऐसा बताया जा रहा था कि गणपति शांति प्रक्रिया का फिलीपींस मॉडल अपनाना चाहते हैं. वह खबर पूरी तरह से गलत हो सकती है पर फिलीपींस के युद्धविराम मॉडल पर दोनों पक्षों को गम्भीरता से ध्यान देना चाहिए. इस अत्यंत बुरे समय में दण्डकारण्य की पीड़ित जनता एक अच्छे खबर की आस देख रही है, हो सकता है इंडोनेशिया में जो हुआ दण्डकारण्य में उसकी पुनरावृत्ति हो.
(लेखक मध्य भारत में शान्ति के लिए जन पत्रकारिता के प्रयोग सीजीनेट स्वर के साथ जुड़े हैं. यह उनका निजी विचार हैं.)