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Monday, 23 December, 2024
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बीजेपी का दावा सीएए दलितों की मदद करेगा, लेकिन जोगेंद्र नाथ मंडल और आंबेडकर का जीवन कुछ और बयां करता है

हमें जोगेंद्र नाथ मंडल का इस बात के लिए आभारी होना चाहिए कि उनकी वजह से भारत को बाबा साहब जैसा संविधान का रचनाकार मिला.

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भारत की आज़ादी के बाद सीमा के दोनों तरफ जब पहली सरकारें बनीं तो दोनों देशों में कानून मंत्री का पद दलितों के हिस्से आया. भारत के पहले कानून मंत्री बाबा साहब डॉक्टर बीआर आंबेडकर (14 अप्रैल 1891-6 दिसंबर, 1956) बने तो पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने महाप्राण जोगेंद्र नाथ मंडल (29 जनवरी, 1904-5 अक्तूबर 1968).

दोनों नेता साधारण परिवार से थे और मेहनत और मेधा से वकील बने. दलितों के उत्थान और जाति के नाश को दोनों ने अपना जीवन लक्ष्य बनाया. अपने-अपने देशों की संविधान सभा के भी वे प्रमुख सदस्य थे. जहां डॉ आंबेडकर को भारत में संविधान ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमैन बनाया गया, वहीं जब मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के गवर्नर जनरल की शपथ ली तो उस समय पाकिस्तान की संविधान सभा की अध्यक्षता जोगेंद्र नाथ मंडल ने की.

भारत और पाकिस्तान में दलितों का मोहभंग

लेकिन, दोनों नेताओं का ये गौरव और सरकारी पद अस्थायी साबित हुआ. जोगेंद्र नाथ मंडल ने 8 अक्तूबर 1950 को पाकिस्तान के कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके लगभग एक साल बाद 27 सितंबर, 1951 को बाबा साहब ने भारत के कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

सीमा के दोनों तरफ नए शासन में दलितों के मोहभंग की ये बेहद कारुणिक और त्रासद दास्तान है. आज़ादी के बाद जातिवाद से मुक्त, लोकतांत्रिक, समानतामूलक, आधुनिक गणराज्य बना पाने का दोनों को सपना हकीकत की ज़मीन से टकराकर चूर-चूर हो गया. अनुसूचित जाति के लोगों को उनका हक दिलाने में दोनों नेता अपने-अपने देशों में असफल रहे.


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आंबेडकर और जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने इस्तीफे की वजह बताते हुए अपने प्रधानमंत्री क्रमश: जवाहर लाल नेहरू और लियाकत अली खान को लंबे पत्र लिखे. आज जबकि भारत में एक तरफ नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर बहस चल रही है और दूसरी ओर, चंद्रशेखर आज़ाद और प्रकाश आंबेडकर जैसे नेता फिर से दलित-मुस्लिम समेत तमाम वंचितों का गठजोड़ बनाने में जुटे हैं, तब ज़रूरी है कि एक साल के अंतराल में दिए गए उन दो इस्तीफों को एक बार फिर से पढ़ा जाए क्योंकि मौजूदा घटनाओं के कई पिछले संदर्भ वहां छिपे हैं. खासकर जोगेंद्र नाथ मंडल के बारे में नए सिरे से इसलिए भी पढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस बहुत ज़ोर-शोर से उनके बारे में चर्चाएं कर रहा है.

जोगेंद्र नाथ मंडल की कहानी में बीजेपी-आरएसएस की दिलचस्पी

जोगेंद्र नाथ मंडल का ज़िक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक ट्वीट में किया और कहा कि – ‘कांग्रेस पिछड़ों की विरोधी है. उन्होंने डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जी, श्री जोगेंद्र नाथ मंडल जी और बाबू जगजीवन राम जी जैसे महान नेताओं का हमेशा अपमान किया…’

इस भाषण में नरेंद्र मोदी ने जोगेंद्र नाथ मंडल के साथ पाकिस्तान और फिर भारत में क्या हुआ, इसका ज़िक्र किया और बताया कि किस तरह से जिन्ना के भुलावे में आकर वे पाकिस्तान चले गए और उनके साथ पाकिस्तान में जो हुआ, उसके बाद के किस तरह भारत आए और यहां उनके साथ क्या हुआ.

हाल के दिनों में जब नागरिकता कानून को लेकर विवाद चल रहा है तो बीजेपी और आरएसएस के नेता बार-बार जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम ले रहे हैं.

– सीएए के लिए समर्थन जुटाने निकले बीजेपी नेताओं में एक, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने एक भाषण में कहा कि – जोगेंद्र नाथ मंडल को पाकिस्तान से भागकर भारत आना पड़ा और यहां शरणार्थी की ज़िंदगी बितानी पड़ी क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान में कानून मंत्री रहने के दौरान वहां के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का मामला उठाया था.

– केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा है कि पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री को वहां से भगा दिया गया और उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी.

– बीजेपी आईटी सेल के इंचार्ज अमित मालवीय ने ट्वीट करके कहा है कि पाकिस्तान में जब इतने बड़े नेता को ऐसा बर्ताव झेलना पड़ा, तो आम लोगों के साथ वहां क्या नहीं हो रहा होगा. मालवीय इस आधार पर सीएए को ज़रूरी बताते हैं.

इनसे भी आगे बढ़कर आरएसएस के प्रमुख नेता दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि जोगेंद्र नाथ मंडल की कहानी ये बताती है कि मुस्लिम लीग के बहकावे में आने वाले दलितों के साथ क्या हुआ. या तो उन्हें धर्मांतरण करना पड़ा या फिर देश छोड़ना पड़ा. आरएसएस के विचारक और बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा इस सिलसिले में कहते हैं कि दलितों और मुसलमानों की एकता असंभव है.

बीजेपी के क्यों याद आ रहे हैं जोगेंद्र नाथ मंडल

ज़ाहिर है कि बीजेपी और आरएसएस इतिहास के अंधेरे से जोगेंद्र नाथ मंडल को बाहर लेकर आ रहे हैं और उनका राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं. इसकी पीछे बीजेपी का लक्ष्य निम्नलिखित है.

1. बीजेपी ये साबित करने की कोशिश कर रही है कि दलितों और मुसलमानों की एकता एक मिथक है, असंभव है. इसकी कोशिश करना दलितों के लिए नुकसानदेह साबित होगा.

2. जोगेंद्र नाथ मंडल के बहाने बीजेपी ये बताने की कोशिश कर रही है कि पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता है और वहां से भागकर भारत आने वाले ऐसे लोगों को सीएए के ज़रिए नागरिकता दी जाएगी.

3. भारत के दलितों को सीएए का समर्थन करना चाहिए क्योंकि जोगेंद्र नाथ मंडल जैसे लोगों को अगर भारत भी नागरिकता नहीं देगा, तो वहां जाएंगे?

4. दलितों को मायावती, चंद्रशेखर आज़ाद, प्रकाश आंबेडकर, उदित राज या जिग्नेश मेवानी जैसे नेताओं की बात मानकर सीएए का विरोध नहीं करना चाहिए.

बीजेपी और आरएसएस नेताओं की बयानबाज़ी के पीछे की राजनीति को अगर छोड़ भी दें तो एक ज़रूरी सवाल ये है कि जोगेंद्र नाथ मंडल के बारे में जो बोला जा रहा है वो कितना सच है और कितना झूठ. तीसरी संभावना ये है कि बीजेपी इतिहास से कुछ तथ्यों को चुन कर पेश कर रही है, जो उसकी राजनीति के हिसाब से उपयोगी है.

जोगेंद्र नाथ मंडल का इस्तीफा

ये कहना पूरी तरह तथ्यों पर आधारित है कि आज़ाद पाकिस्तान ने जोगेंद्र नाथ मंडल के साथ अन्याय किया और उनके साथ विश्वासघात हुआ है. मंडल ने मुख्य रूप से दो कारणों से आज़ादी के मौके पर भारत की जगह पाकिस्तान के साथ रहने का फैसला किया था.

पहली वजह उनका ये आकलन था कि खासकर पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में दलितों और मुसलमानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में काफी समानता है. दोनों समुदाय मुख्य रूप से किसान या मछुआरे या कारीगर हैं और उनके हित एक जैसे है. इसलिए वे साथ रह सकते हैं.


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उनका दूसरा आकलन ये था कि आज़ाद भारत में हिंदुओं (तब इस शब्द का इस्तेमाल सवर्ण हिंदुओं के लिए होता था) का वर्चस्व कायम हो जाएगा और दलितों का दर्जा दोयम होगा. उन्हें लगता था कि भारत में दलितों को समान अवसर नहीं मिलेंगे और उनका दमन होगा.

पाकिस्तान में दलितों की स्थिति

इतिहास ने साबित किया कि पाकिस्तान में दलितों की हैसियत के बारे में उनका आकलन गलत साबित हुआ. ये जोगेंद्र नाथ मंडल की बड़ी भूल थी, जिसकी कीमत दक्षिण एशिया के लाखों बांग्लाभाषी दलितों को चुकानी पड़ी. जोगेंद्र नाथ मंडल ने अपने इस्तीफे में उन घटनाओं और दमन का विस्तार से ज़िक्र किया है, जिसके आधार पर वे इस नतीजे पहुंचे कि धार्मिक अल्पसंख्यकों का पाकिस्तान में कोई भविष्य नहीं है.

अपने इस्तीफे में वे ये भी कहते हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान को उपनिवेश बना लिया है. इसके अलावा उनका ये भी कहना था कि पूर्वी पाकिस्तान और नॉर्थ वेस्टर्न फ्रंटियर के मुसलमानों के साथ भी पाकिस्तान में बुरा व्यवहार होता है. इस सिलसिले में वे खान अब्दुल गफ्फार खान और पूर्वी पाकिस्तान के दो सबसे प्रमुख नेता सुहरावर्दी और फजलुल हक के साथ किए गए व्यवहार का ज़िक्र करते हैं.

वे लिखते हैं- ‘मैं ये मान चुका हूं कि केंद्रीय मंत्री बने रहने के बावजूद मैं हिंदुओं की कोई मदद नहीं कर पाऊंगा. ऐसे में मुझे कैबिनेट में बने रहकर ये भ्रम नहीं पैदा करना चाहिए कि पाकिस्तान में हिंदू आबादी का जीवन, संपत्ति और धर्म सुरक्षित है और वे यहां इज़्ज़त के साथ रह सकते हैं.’

ज़ाहिर है कि पाकिस्तान दलितों के लिए वैसा देश नहीं बना, जिसकी कल्पना जोगेंद्र नाथ मंडल ने की थी. बेहद निराश-हताश होकर वे भारत चले आए. यहां उनका जीवन गुमनामी में बीता. उन्होंने राजनीति में खुद को फिर से स्थापित करने की कोशिश की. चुनाव प्रचार अभियान के दौरान ही 1968 में उनकी रहस्यमय स्थितियों में मृत्यु हो गई.

भारत में दलितों की स्थिति

लेकिन आज़ाद भारत में दलितों की स्थिति के बारे में उनका आकलन सही साबित हुआ, जिसकी पुष्टि के लिए बाबा साहब का नेहरू मंत्रिमंडल से दिए गए इस्तीफे को पढ़ना पर्याप्त होगा. जो ये नहीं पढ़ना चाहते हैं, वे दलितों की भारत में स्थिति जानने के लिए मानव विकास के मानकों पर दलितों से संबंधित डाटा, दलित उत्पीड़न के आंकड़े, सत्ता यानी न्यायपालिका, मीडिया, नौकरशाही, कॉरपोरेट सेक्टर और विश्वविद्यालयों में शिक्षक पदों पर दलितों की लगभग अनुपस्थित होने के आंकड़े आदि देख सकते हैं. वे ये देख सकते हैं कि सीवर में मरने वाला अमूमन हर शख्स दलित है और राष्ट्र के सामूहिक विवेक को ये घटनाएं आहत नहीं करतीं. भारत के 20 करोड़ दलितों की दुर्दशा अभी भी राष्ट्र की मुख्यधारा का प्रश्न नहीं है.

बाबा साहेब ने इन समस्याओं को राष्ट्र के शैशव काल में ही पहचान लिया था. 1951 में ही वे लिख कर गए हैं कि – ‘आज अनुसूचित जाति के लोगों की स्थिति क्या है? मुझे लगता है कि उनकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. वे अभी भी उसी तरह सताए जा रहे हैं, उन पर वैसे ही जुल्म हो रहे हैं जो आज़ादी से पहले होते थे. उनके साथ भेदभाव जारी है. बल्कि उसमें बढ़ोतरी ही हुई है.’

वे आगे लिखते हैं कि ‘सैकड़ों दलित मेरे पास आकर बताते हैं कि ऊंची जाति के हिंदुओं ने उन पर कैसे जुल्म किए और पुलिस ने केस तक दर्ज नहीं किया. मैं सोचता हूं कि क्या दुनिया में किसी और समुदाय पर ऐसे जुल्म होते हैं, जैसे जुल्म भारत में दलितों के खिलाफ होते हैं. मुझे दुनिया में ऐसी कोई और मिसाल नज़र नहीं आती.’

आज़ादी के तीन साल बाद आंबेडकर भारत में उतने ही हताश थे, जितने हताश जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान में थे. बाबा साहब अपने इस्तीफे में लिखते हैं कि संविधान में प्रावधान के बावजूद ओबीसी के लिए आयोग नहीं बनाया गया, दलितों को सरकारी नौकरियां नहीं दी जा रही हैं और भारत में सामाजिक सुधार की सबसे बड़ी कोशिश- हिंदू कोड बिल- को असफल बना दिया गया.

अपने इस्तीफे में बाबा साहब बेहद पीड़ा के साथ लिखते हैं – ‘समाज में जाति और लिंग भेद, जो हिंदू समाज का मूल आधार है, को जस का तस छोड़ देना और आर्थिक समस्याओं को लेकर एक के बाद एक कानून बनाना संविधान के साथ दगाबाज़ी है. ये गोबर के ढेर पर महल खड़ा करने की कोशिश है.’

इस तरह भारत और पाकिस्तान दोनों ने अपने पहले कानून मंत्री खो दिए, जो होते तो शायद दोनों देशों की तस्वीर कुछ अलग होती.

अंत में हमें जोगेंद्र नाथ मंडल का इस बात के लिए आभारी होना चाहिए कि उनकी वजह से भारत को बाबा साहब जैसा संविधान का रचनाकार मिला. 1946 में जब संविधान सभा के लिए सदस्य चुने जाने की बारी आई तो कांग्रेस और ऊंची जाति के लोगों ने बाबा साहब को महाराष्ट्र में हरा दिया. तब जोगेंद्र नाथ मंडल ने बाबा साहब को बंगाल बुलाया, जहां से वे निर्वाचित हुए.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह लेख उनका निजी विचार है.)

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1 टिप्पणी

  1. To isme BJP ko kyu katghre me rkhe hai…..bas isiliye ki unhone jogendra nath mandal ki baat uthayi.
    Aap ye batao….isse pehle kitne log jante the ki kaun hai jogendra nath mandal
    Aur bjp to rajniti kregi hi…..kyuki wo agr ni kregi to Jaise atal bihari g ki sarkar giri thi waise unki bhi giregi
    Aur jo baba saheb ambedkar k sath hua wo to congress ki den thi…..aapne jo point diya BJP k liye….use padh kr aisa laga …jaise aap bolna chahte ho ki BJP , dalit aur muslim me foot daal rhi hai, aap is nazariye se dekh sakte h… Lekin aap zara socho…..ki BJP ko sirf kursi se pyar hota to….itne bade bade decision ni le paye…..bolne k liye bahut kuch….but ni bolunga….baki mujhe jo janna tha…wo mil gya…uske liye thanks

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