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Sunday, 22 December, 2024
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साध्वी प्रज्ञा सिंह के चुनाव लड़ने के साथ ही भाजपा ने संपूर्ण भारत में आधी लड़ाई जीत ली है

वह 2008 के मालेगांव बम धमाका मामले में मुकदमे का सामना कर रही हैं. लोकसभा चुनाव के बिगड़ते माहौल के बीच अब सबकी नज़र भोपाल पर रहेगी.

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यदि भोपाल इस चुनाव में सर्वाधिक दिलचस्पी वाले लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक बन गया है तो इसका एकमात्र कारण वहां से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का चुनाव लड़ना है. वह 2008 के मालेगांव बम धमाका मामले में मुकदमे का सामना कर रही हैं.

प्रज्ञा ठाकुर की चुनावी लड़ाई मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह से है. पर भोपाल का यह मुकाबला किसी अन्य ठाकुर-बनाम-ठाकुर मुकाबले जैसा नहीं है.

भारी ध्रुवीकरण वाले इस चुनाव अभियान के दौरान प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी ने सुनिश्चित कर दिया है कि आधी लड़ाई भाजपा के पक्ष में जा भी चुकी है, न सिर्फ भोपाल में बल्कि पूरे भारत में.


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भोपाल सीट के लिए प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनकर भाजपा ने, पार्टी प्रमुख अमित शाह के शब्दों में, यह सुनिश्चित किया है कि ‘हिंदू आतंकवाद का हव्वा खड़ा करने वाले मुख्य साजिशकर्ता’ को दंडित किया जा सके.

समझौता एक्सप्रेस बम धमाका मामले में असीमानंद को बरी किए जाने के बाद से ही ‘अमनपसंद हिंदुओं को आतंकवाद से जोड़ने’ के लिए कांग्रेस पर हमले तेज कर चुकी भाजपा के लिए, दिग्विजय सिंह के खिलाफ प्रज्ञा सिंह ठाकुर एक सही उम्मीदवार हैं. भाजपा का मानना है कि ‘हिंदू आतंकवाद के संदिग्ध और शरारती विचार को फैलाने’ वालों में दिग्विजय सिंह सबसे आगे रहे हैं.

बुधवार को भाजपा में शामिल होने के तुरंत बाद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा था कि वह भोपाल से चुनाव लड़ने की इच्छुक हैं, और वह अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं. अपनी उम्मीदवारी घोषित हो जाने के बाद उन्होंने उसी दिन ‘सनातन धर्म’ को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए दिग्विजय सिंह पर हमला शुरू कर दिया.

शुक्रवार को उनके इस बयान पर विवाद छिड़ गया कि मुंबई एटीएस के पूर्व प्रमुख हेमंत करकरे उनके ‘शाप’ के कारण मारे गए थे. उनकी मौत 26/11 के आतंकवादी हमले के दौरान अपना कर्तव्य निभाते हुए हुई थी. वह मालेगांव बम धमाका मामले की जांच करने वाली टीम में शामिल थे. प्रज्ञा ने बाद में अपनी टिप्पणी के लिए खेद व्यक्त किया.

पर, प्रज्ञा सिंह ठाकुर के चुनाव लड़ने के साथ ही, भाजपा के लिए ‘हिंदू आतंकवाद’ एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है.

उत्तर प्रदेश में भाजपा की शानदार जीत और वहां योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद पार्टी को लगा था कि उसने अपने हिंदू समर्थकों को एक प्रबल संदेश दे दिया है और निकट भविष्य में उसे किसी भगवाधारी को उम्मीदवार बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.

लेकिन उसके बाद कांग्रेस नरम हिंदुत्व की अपनी छवि पेश करने में जुट गई, और पार्टी प्रमुख राहुल गांधी ने खुद को शिवभक्त घोषित कर दिया. गांधी मंदिर-मंदिर घूमने लगे और उनकी पार्टी ने उन्हें एक जनेऊधारी ब्राह्मण करार दिया. लेकिन कांग्रेस पार्टी ‘हिंदू आतंकवाद’ मुद्दे से अपने जुड़ाव की घबराहट से पीछा नहीं छुड़ा सकी.


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और, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने ‘हिंदू आतंकवाद’ के खिलाफ हल्ला बोलने के लिए कांग्रेस को रक्षात्मक मुद्रा में ला खड़ा किया है. यह मुद्दा कांग्रेस को खास कर उन निर्वाचन क्षेत्रों में परेशान करेगा जहां इसके नेता ‘हिंदू/भगवा आतंकवाद’ संबंधी बयान से सीधे तौर पर जुड़े रहे हैं.

बदले चुनावी माहौल में बीच अब भोपाल पर सबकी नज़र रहेगी. मध्य प्रदेश में 2003 में उमा भारती की अगुआई वाली भाजपा के हाथों परास्त होने के बाद पिछले 10 वर्षों से चुनावी राजनीति से दूर रहे रहे दिग्विजय सिंह के लिए एक बार फिर करो या मरो की लड़ाई है.

अभी पिछले पखवाड़े ही, उमा भारती ने दिग्विजय सिंह के खिलाफ भोपाल में चुनाव प्रचार करने क ऐलान किया था. और अब, उनका सामना एक और भगवाधारी प्रतिद्वंद्वी, प्रज्ञा ठाकुर, से है.

(लेखक ‘ऑर्गनाइज़र’ के संपादक रह चुके हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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