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Friday, 22 November, 2024
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बुली बाई ऐप और मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते भारत के शिक्षित युवा

मुस्लिम महिलाओं की ‘नीलामी’ के इस्तेमाल की जा रही बुली बाई ऐप बनाने पर गिरफ्तार सभी चारो आरोपियों विशाल झा, श्वेता सिंह, मयंक रावल और नीरज बिश्नोई, की उम्र 18 से 21 वर्ष के बीच है.

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18 से 21 वर्ष की उम्र के चार युवाओं विशाल झा, श्वेता सिंह, मयंक रावल, और नीरज बिश्नोई को बुली बाई नामक एक ऐप बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, जिस पर तमाम मुसलिम महिला पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा जेएनयू के लापता छात्र नजीब जंग की 52 वर्षीय मां समेत सैकड़ों महिलाओं की ‘नीलामी’ की जा रही थी. इन चारों ने न केवल मुसलिम महिलाओं की तस्वीरें सर्कुलेट कीं बल्कि सोशल मीडिया पर मुस्लिमों के खिलाफ नफरत, कट्टरता और महिलाओं के प्रति द्वेष की भावना फैलाई और हिंदुओं के ही श्रेष्ठ होने का दंभ भी भरा. जुलाई 2021 में ‘सुल्ली डील्स’ ऐप के जरिये मुसलिम महिलाओं की नीलामी का ऐसा ही एक मामला सामने आया था जिसे सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट प्लेटफॉर्म गिटहब ने होस्ट किया था. लेकिन दिल्ली पुलिस अभी तक उस मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं कर पाई है.

बुली बाई ऐप मामले में सबसे पहली गिरफ्तारी विशाल कुमार झा की हुई थी जिसे मुंबई पुलिस ने मामला दर्ज करने के तीन दिन बाद मंगलवार को बेंगलुरु के दयानंद सागर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से उठाया था, जहां वह एक छात्र था.

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में रहने वाली श्वेता सिंह को मुंबई पुलिस की साइबर सेल ने मंगलवार को उत्तराखंड से गिरफ्तार किया. उधम सिंह नगर शहर की पुलिस अधीक्षक ममता बोरा ने कहा कि श्वेता की सोशल मीडिया एक्टिविटी ‘हिंदू कट्टरपंथियों’ वाली थीं.

सैन्य अफसर के बेटे और दिल्ली यूनिवर्सिटी के जाकिर हुसैन कॉलेज के छात्र 21 वर्षीय मयंक रावत को मुंबई पुलिस ने बुधवार को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार से गिरफ्तार किया. उसके वहां होने की जानकारी उसके सेल फोन की लोकेशन को ट्रैक करके मिली थी.

दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने के चार दिन बाद नीरज बिश्नोई को असम के जोरहाट स्थित उसके घर से गिरफ्तार किया. दिल्ली पुलिस का दावा है कि इस सबके पीछे ‘मास्टरमाइंड’ वही है. यह जानकारी भी सामने आई है कि वह सुल्ली डील्स ऐप मामले में भी शामिल था, उसने कांग्रेस की राष्ट्रीय मीडिया समन्वयक हसीबा अमीन को टारगेट किया था और उन्हें ‘सेल’ पर डाल दिया था. दिल्ली पुलिस के डीसीपी, इंटेलिजेंस फ्यूजन और स्ट्रेटजिक ऑपरेशन के.पी.एस. मल्होत्रा के मुताबिक, एक व्यवसायी के बेटे नीरज ने कथित तौर पर नवंबर 2021 में बुली बाई ऐप डेवलप किया, दिसंबर में इसे अपडेट किया और 3 जनवरी को अपनी ट्विटर आईडी बनाई. उसे उसके कॉलेज वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, भोपाल ने सस्पेंड कर दिया है. पुलिस अब इस बात की जांच कर रही है कि क्या सुल्ली डील्स ऐप भी नीरज ने ही बनाया था.

मुंबई पुलिस ने एक बयान में बताया है कि बुली बाई ऐप के कंटेंट को प्रोमोट करने के लिए ट्विटर हैंडल @sage0x11, @jatkhalsa7, @hmaachaniceoki, @jatkhalsa, @sikhkhalsa11 और @wanabesigmaf आदि का इस्तेमाल किया गया. पुलिस ने कहा कि ट्विटर हैंडल पर दावा किया गया था कि यह ऐप ‘खालसा सिख फोर्स’ संगठन ने बनाया है, जो गुमराह करने और सिखों और मुसलमानों को बीच दरार डालने का प्रयास था. विशाल झा की संलिप्तता तब सामने आई जब पुलिस ‘खालसा सुप्रीमेसिस्ट’ नामक एक हैंडल के बारे में पड़ताल कर रही थी.

मामला राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में छाया हुआ है और पूर्व में इसी तरह के ‘सुल्ली डील्स’ मामले में किसी कार्रवाई में नाकाम रहने को लेकर दिल्ली पुलिस की काफी आलोचना हो रही है. बुली बाई ऐप मामले में मुंबई पुलिस की सक्रियता और एक के बाद गिरफ्तारी के अलावा सोशल मीडिया पर मुसलिम समुदाय को निशाना बनाने की युवाओं की मानसिकता को दर्शाती यह घटना दिप्रिंट के लिए न्यूजमेकर ऑफ द वीक है.


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सुल्ली डील्स 2.0—कार्रवाई बनी मिसाल

सुल्ली डील्स मामले में अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. सूत्रों का कहना है कि गिटहब जानकारी देने से मना कर चुका है और जांच एजेंसी से जांच की ‘उबाऊ’ प्रक्रिया माने जाने वाले कानूनी मार्ग—एमएलएटी—को अपनाने को कहा है. दिल्ली पुलिस की साइबर सेल अभी भी मामले में आरोपियों का पता लगाने की कोशिश कर रही है. सुल्ली डील्स ऐप गिटहब द्वारा हटाए जाने से पहले 20 दिनों तक सक्रिय था. बुली बाई ऐप एक दिन के भीतर ही वेबसाइट से हट गया.

पिछले साल इसी तरह के एक मामले में कई मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें और उनकी पहचान से जुड़ी जानकारी उनकी सहमति के बिना सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी गई थी. 13 मई को, नफरत फैलाने वाले कंटेंट से भरे एक यूट्यूब चैनल ‘लिबरल डोगे’ पर ‘ईद स्पेशल’ के नाम पर आपत्तिजनक भाषा वाले एक वीडियो में पाकिस्तानी महिलाओं की तस्वीरें साझा की गई थीं.

दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालीवाल ने यह कहते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई है कि उनकी निष्क्रियता और लापरवाह रवैये के कारण ही बुली बाई का मामला सामने आया है.

शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी मामले में ट्वीट किया, इसमें उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव से बार-बार आग्रह किया कि इस तरह ‘महिलाओं के अपमान और धर्म के नाम पर उन्हें निशाना बनाए जाने की प्रवृत्ति पर पर रोक लगाने के लिए कड़ी कार्रवाई करें.’

कांग्रेस सांसद डॉ. मोहम्मद जावेद ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को टैग करते हुए दोनों मामलों में कार्रवाई की मांग की.

इसी तरह कई अन्य लोगों ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की.

ऐसे में सवाल उठता है कि नीरज, श्वेता, विशाल और मयंक को यह सब करने के विचार कहां से आते हैं.

नीरज ने अपने ट्विटर हैंडल @giyu44 पर जानकारी दी थी कि ऐप उसने ही बनाया था और पुलिस ने गलत लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. यह सब उसने क्रिसमस पर दिल्ली से लौटने के बाद असम में अपने घर पर बैठकर किया. दिल्ली पुलिस ने आईपी एड्रेस ट्रैक किया और बुधवार रात 11 बजे उसके दरवाजे पहुंच गई. अधिकारियों ने उसका लैपटॉप जब्त कर लिया जिसमें कथित तौर पर उन मुसलिम महिलाओं की मॉर्फ्ड फोटो और प्रोफाइल मिली हैं, जिन्हें उसने ‘नीलामी के लिए रखा था.’

उसने एक मुसलिम महिला को ‘बुली बाई 2.0’ कहकर धमकाया भी था.

आप नीरज को फेसबुक या इंस्टाग्राम पर नहीं ढूंढ़ सकते. वह क्वोरा पर है. उसकी सोशल मीडिया एक्टिविटीज पर द क्विंट की एक रिपोर्ट कहती है कि उसका दिमाम बुरी तरह इस्लामोफोबिक, कट्टरपंथी, समलैंगिकता, महिला विरोधी और सेक्सिस्ट भावनाओं से भरा हुआ है.

सोशल मीडिया और न्यूज रिपोर्ट्स से पता चलता है कि बुली बाई ऐप मामले में गिरफ्तार चारों युवा कट्टरपंथी बन चुके हैं, और इसके साधन बड़े पैमाने पर उपलब्ध हैं. हजारों लोग सनातन धर्म के स्वयंभू रक्षक और डासना देवी मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद के विचारों से प्रभावित होते हैं, जिन्होंने कनाडा से इंजीनियरिंग की है और अपने यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज पर इस्लामोफोबिक टिप्पणियां करते रहते हैं.

देश में प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी और कॉलेजों से डिग्री हासिल करने वाले युवा अब विभिन्न समुदायों के खिलाफ ऑनलाइन वैचारिक जंग छेड़ने के लिए इंटरनेट और टेक्नोलॉजी का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. बाकायदा टारगेट तय करके हिंसक कंटेंट को सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्विटर, फेसबुक, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप सब पर खुलकर शेयर किया जाता है. मसलन, हरियाणा के पलवल में मारे गए एक मुसलिम शख्स का वीडियो सबसे पहले फेसबुक पर शेयर किया गया था. बाद में इसे बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ अपलोड किया गया, लेकिन फिर हटा लिया गया. डासना देवी मंदिर में पानी पीने अंदर चले जाने के कारण एक 14 वर्षीय मुसलिम लड़के की पिटाई का वीडियो भी सोशल मीडिया पर अपलोड किया गया था, और कई लोगों ने इसे शेयर करने के साथ आपत्तिजनक और नफरत भरी टिप्पणियां की थीं.

इन हिंदू कट्टरपंथियों को दो समूहों—‘ट्रेड’ और ‘रायता’ के तौर पर बांटा गया है. ट्रेड यानी ट्रेडिशनल मतलब ‘परंपरावादी’ में शामिल उत्पीड़क हिंदू जाति के वे लोग हैं जो दलितों के खिलाफ जहर उगलते हैं और उनके प्रति तिरस्कार का व्यवहार रखते हैं. वहीं, ‘रायता’ समूह ‘ट्रेड’ की लीक से हटकर चलता है और अपनी गिरफ्तारी का जश्न भी मनाता है.

मेटावर्स और नए खतरे

इस सबके बीच, हम वर्चुअल रियल्टी की एक अलग ही दुनिया—मेटावर्स—की ओर बढ़ रहे हैं, जिसमें लोग अपने डिजिटल अवतार बना लेते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह मेटावर्स उत्साह और रोमांच तो देता है लेकिन इससे होने वाले नुकसान और बढ़ता वैमनस्य चिंता का विषय बन चुके हैं.

डिजिटल पॉलिसी विशेषज्ञ और द डायलॉग के संस्थापक निदेशक काजिम रिजवी कहते हैं, ‘कट्टरपंथ, दुष्प्रचार, हेट स्पीच, उत्पीड़न और अन्य ऑनलाइन अपराधों के भी मेटावर्स का हिस्सा बन जाने की आशंका है.’ उन्होंने कहा कि ऐसे में यूजर प्राइवेसी सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत डेटा संरक्षण कानून की जरूरत है.

रिजवी ने कहा, ‘लोगों को सोशल मीडिया की लत लगता तो एक चुनौती है ही लेकिन मेटावर्स रेग्युलर सोशल मीडिया की तुलना में उन्हें और भी ज्यादा आकर्षक लगता है. इसका बहुत ज्यादा इस्तेमाल मनोवैज्ञानिक तनाव को बढ़ाता है और उन्हें वास्तविक स्थितियां समझने से भी दूर कर देता है.’

मेटा के चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर और पूर्व फेसबुक कर्मचारी एंड्रयू बोसवर्थ ने तो एक इंटर्नल मेमो में कहा था कि यह वर्चुअल रियल्टी महिलाओं और बच्चों के लिए एक द्वेषपूर्ण माहौल बनने की वजह हो सकती है. उनके मुताबिक, ‘लोग कहते क्या हैं और किसी खास परिस्थिति में करते क्या हैं, इस मॉडरेट करना व्यावहारिक तौर पर असंभव है.’

दरअसल, मेटावर्स में छिपे खतरे पहले ही दस्तक दे चुके हैं. वर्चुअल रियलिटी प्लेटफॉर्म होराइजन वर्ल्ड पर एक महिला ने कहा कि उसके साथ किसी अजनबी ने छेड़छाड़ की. मेटा की इंटर्नल रिव्यू कमेटी ने कहा कि यूजर ने ‘सेफ जोन’ को सक्रिय नहीं किया था.

जब अपराधों पर लगाम कसने की जिम्मेदारी संभाल रही जांच एजेंसियों की बात आती है तो साइबरस्पेस में कोई जांच-पड़ताल करना एक दुरूह कार्य बन जाता है. शिक्षित युवाओं के कट्टरपंथ की राह पर चलने के साथ मेटावर्स केवल शोषित समुदायों और महिलाओं के खिलाफ मानसिक हिंसा को ही बढ़ा सकता है.

यहां व्यक्त विचार निजी है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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