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Sunday, 3 November, 2024
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वित्त मंत्री का पहला काम बजट बनाना और तय करना कि घाटा कम करें या रोज़गार बढ़ाएं

जीएसटी कंपन्सेशन सेस को खत्म करने से उत्पादों तथा सेवाओं पर कुल जीएसटी में कमी लाई जा सकती है और मांग को मजबूती दी जा सकती है.

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अब जबकि निर्मला सीतारमण फिर से उसी मंत्रालय में वापस आ गई हैं जिसे वे पिछले पांच साल से संभाल रही थीं, केंद्रीय वित्त मंत्रालय अपने सबसे महत्वपूर्ण काम, 2024-25 का बजट बनाने में जुट गया है. सीतारमण ने इस साल 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश किया था, लेकिन वे नई सरकार के गठन और उसके द्वारा पूरे साल का बजट पेश करने तक खर्च चलाने के लिए संसद से एक निर्दिष्ट राशि की मंजूरी दिलाने का लेखानुदान था. पिछले कुछ अंतरिम बजटों से हट कर सीतारमण ने इस बार कोई नीतिगत घोषणा या करों में बदलाव करने से बचते हुए परंपरा का पालन करने का सही रास्ता चुना था. अब जबकि वे चालू वित्त वर्ष के लिए पूर्ण बजट तैयार कर रही हैं, तब सवाल उठता है कि उनके मुख्य सरोकार क्या होने चाहिए?

इसमें संदेह नहीं है कि वे जिन व्यापक आर्थिक परिस्थितियों के बीच अगला बजट बना रही हैं वे अंतरिम बजट पेश करते समय की परिस्थितियों के मुकाबले बेहतर दिख रही हैं. खुदरा महंगाई काबू में है, हालांकि वह सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य, 4 फीसदी से अभी भी ऊपर है. 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.2 फीसदी की वृद्धि हुई और उम्मीद की जाती है कि चालू वर्ष में इसमें 7.2 फीसदी की वृद्धि होगी. विदेशी मुद्रा भंडार 640 अरब डॉलर के सुखद स्तर पर है. चालू खाता घाटा 2023-24 की पहली तीन तिमाहियों में जीडीपी के 1.2 फीसदी के बराबर यानी काफी नियंत्रण में था और कुछ अनुमानों के मुताबिक पूरे साल के लिए यह आंकड़ा 1 फीसदी से नीचे रह सकता है, लेकिन निर्यात के मोर्चे पर स्थिति चिंताजनक है क्योंकि व्यापारिक माल के निर्यात में पिछले साल थोड़ी गिरावट आई थी और सेवाऑन के निर्यात की गति पहले के मुकाबले सुस्त हुई है. भू-राजनीतिक तनावों में कमी आती नहीं दिख रही है तो जींसों, खासकर कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें चिंता का सबब बन सकती हैं, लेकिन 2024-25 के बजट को भारतीय अर्थव्यवस्था की मूलभूत मजबूती के कारण कुल मिलाकर लाभ ही मिल सकता है.

इसके अलावा, हाल में कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जो 2024-25 के बजट को कुछ और सकारात्मक ताकत दे सकती हैं. रिजर्व बैंक सरकार को इस साल अपेक्षा से 133 फीसदी ज्यादा सरप्लस दे सकता है. अनुमान है कि कुल सरप्लस ~2.1 ट्रिलियन होगा, जो जीडीपी के करीब 0.37 फीसदी के बराबर होगा और अतिरिक्त वित्तीय गुंजाइश उपलब्ध कराएगा. क्या सरकार को इस अधिक आय का इस्तेमाल वित्तीय घाटा कम करने के लिए करना चाहिए? या उसे देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर की मजबूती के लिए निवेश में जोड़ना चाहिए? या उसे उपभोग की मांग को मजबूती देने के लिए टैक्स संबंधी प्रोत्साहन पर खर्च करना चाहिए? या रोज़गार बाज़ार के निचले स्तरों पर ज्यादा रोज़गार पैदा करने के उपाय करने चाहिए?

पिछले साल सरकार ने संसाधनों का कुशलता से उपयोग किया तो वह 2023-24 के लिए वित्तीय घाटे को जीडीपी के 5.6 फीसदी के बराबर लाने में सफल रही, जबकि बजट में इसे 5.9 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था. इससे घाटे को 5.1 फीसदी के बराबर लाना आसान होगा, जैसा कि अंतरिम बजट में अनुमान लगाया गया है. वास्तव में, वित्त मंत्रालय इसे तेज़ी से घटाकर 4.5 फीसदी पर लाने के अपने लक्ष्य को 2025-26 से पहले भी हासिल कर सकता है और अगले कुछ साल में इसे 3 फीसदी के अधिकतम लक्ष्य पर लाने का नया रास्ता तैयार कर सकता है. अगले बजट का बड़ा नीतिगत विकल्प यह होगा कि वह इस साल केवल घाटे को कम करने पर ज़ोर दे या उपलब्ध संसाधनों का उपयोग अर्थव्यवस्था के निवेश, रोज़गार वृद्धि, उपभोग की मांग को बढ़ावा देने जैसे ज़रूरी उपायों के लिए करे. आदर्श कदम तो यह होगा कि सबके ऊपर ज़ोर दिया जाए.

इस साल के बजट के लिए दूसरी बेहतर बात अप्रत्याशित हलकों से उभर सकती है. जुलाई 2022 से जून 2024 तक सरकार को जीएसटी कंपन्सेशन सेस राजस्व के रूप में ~2.7 ट्रिलियन मिल सकते हैं. सरकार ने कोविड के दौरान राज्यों के राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए रिजर्व बैंक से इतनी रकम उधार ली थी. राज्यों को तो जुलाई 2022 के बाद से कोई कंपन्सेशन सेस लाभ नहीं मिला, लेकिन केंद्र कर्जों के भुगतान के लिए यह रकम उगाहता रहा.

इस मद में वास्तविक भुगतान देनदारी का ब्योरा उपलब्ध नहीं है, लेकिन उम्मीद है कि मार्च 2025 के अंत तक पूरा भुगतान कर दिया जाएगा. इससे सरकार को दो तरह से एक अवसर उपलब्ध हो सकता है. वित्त मंत्रालय जीएसटी कंपन्सेशन सेस को खत्म कर सकता है (फिलहाल यह सेस तंबाकू, ठंडे पेयों, मोटर वाहनों जैसे सामान पर अलग-अलग दर से लागू किया जाता है), या इसका एक हिस्सा ऐसे सामान के लिए संशोधित दरों के हिसाब से खत्म किया जा सकता है. सबसे अच्छा तो यही होगा कि इस सेस को खत्म कर दिया जाए और इस प्रक्रिया को जीएसटी की दरों को तर्कसंगत बनाने के बहुप्रतीक्षित कदम के साथ जोड़ा जाए ताकि दरों की संख्या कम हो और जीएसटी के लिए राजस्व से असंबद्ध दर में वृद्धि हो. दूसरा लाभ यह हो सकता है कि कंपन्सेशन सेस को खत्म करने से उत्पादों तथा सेवाओं पर कुल जीएसटी में कमी लाई जा सकती है और मांग को मजबूती दी जा सकती है.

बजटीय विकल्पों के सिवा, वित्त मंत्रलाय एक बड़ा सुधार बजट प्रस्तुति में ज्यादा पारदर्शिता लाकर कर सकता है. आम चुनावों के बाद पेश किए जाने वाले बजटों में प्रायः पिछले साल के संशोधित अनुमानों पर भरोसा किया जाता है, जो अनुमान अंतरिम बजट में पेश किए गए थे. वैसे, पूर्ण बजट पेश करने तक वित्त मंत्रालय को पिछले साल के कामचलाऊ आंकड़े मिल जाते हैं, हालांकि उनकी ऑडिटिंग नहीं हुई होती. गौरतलब है कि चुनाव से पहले वाले सालों में पेश किए गए कुछ बजटों में संशोधित अनुमानों के आंकड़ों और कामचलाऊ अनुमानों के आंकड़ों में अंतर काफी उल्लेखनीय रहे हैं.

उदाहरण के लिए 2008-09 में कुल राजस्व प्राप्ति का कामचलाऊ अनुमान संशोधित अनुमान से 3 प्रतिशत कम था और सरकार के पूंजीगत खर्च के कामचलाऊ अनुमान का आंकड़ा संशोधित अनुमान के आंकड़े से 8 फीसदी कम था. 2013-14 में सरकार के शुद्ध कर राजस्व के कामचलाऊ अनुमान का आंकड़ा संशोधित अनुमान के आंकड़े से 2.4 फीसदी कम था. यह अंतर 2018-19 में अति ऊंचे स्तरों पर पहुंच गया, जब कुल राजस्व प्राप्ति के कामचलाऊ अनुमान का आंकड़ा संशोधित अनुमान के आंकड़े से 9.6 फीसदी कम, शुद्ध कर राजस्व के मामले में यह कमी 11 फीसदी की और अंतिम वित्तीय तथा राजस्व घाटों के मामले में यह कमी 6 फीसदी की थी, लेकिन राजस्व और खर्च के आंकड़ों में अंतर का अर्थ यह है कि इन आंकड़ों के आधार पर अर्थव्यवस्था का कोई भी आकलन भ्रामक होगा.

ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि चुनावी वर्ष में पेश पूर्ण बजटीय अनुमानों ने गलत तुलनाएं कीं. बजट दस्तावेज़ राजस्व और खर्च की आंकड़े केवल बजट अनुमान और संशोधित अनुमान के अंतर्गत प्रस्तुत करेंगे, हालांकि बिना ऑडिटिंग के कामचलाऊ अनुमान पर आधारित बेहद भिन्न आंकड़े सरकार के पास ही होंगे.

2023-24 के लिए कामचलाऊ और संशोधित अनुमानों के आंकड़ों में अंतर बहुत तीखे नहीं रहे हैं (कामचलाऊ अनुमान के आंकड़े संशोधित अनुमान के आंकड़े से 1 प्रतिशत ज्यादा रहे हैं), लेकिन बजट में कामचलाऊ आनुमान के आंकड़ों के साथ संशोधित अनुमान के आंकड़े भी उपलब्ध कराए जाएं तो वित्त मंत्री ज्यादा पारदर्शिता बरतती नजर आएंगी.तब सरकार की राजस्व उगाही और खर्चों के स्वरूप का सही अंदाज़ा लग पाएगा. यह फैसला बजट निर्माण में अधिक पारदर्शिता लाने की ओर एक और कदम होगा.

(ए.के. भट्टाचार्य @AshokAkaybee बिजनेस स्टैंडर्ड के संपादकीय निदेशक हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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