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Sunday, 22 December, 2024
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परिजन हिताय, परिजन सुखाय की नीति पर चली बसपा

भाई और भतीजे को पार्टी नेतृत्व में लाते समय मायावती शायद भूल गयीं कि पिछली बार अपने भाई को पद से हटाते समय उन्होंने घोषणा की थी उनके परिवार का कोई भी सदस्य बसपा में कोई भी पद नहीं संभालेगा.

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परिवारवाद के आरोपों की परवाह न करते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश गौतम को राष्ट्रीय संयोजक बना दिया है. मायावती ने ये कदम ऐसे समय में उठाया है. जब राजनीतिक पार्टियों का परिवारों के क़ब्ज़े में होना एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन कर उभरा है. लोकसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद कांग्रेस ने गांधी-नेहरु परिवार से इतर व्यक्ति को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की प्रक्रिया शुरू की, जिसमें अशोक गहलोत और मुकुल वासनिक समेत कई नेताओं के नाम सामने आए हैं. वहीं, प्रचंड जीत के बावजूद बीजेपी ने जेपी नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर नया अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.  

इससे पहले मायावती उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा उप-चुनाव सपा के साथ न लड़ने की घोषणा करके चर्चा बटोर चुकी हैं, जिसके पीछे उनका तर्क है कि यादव जाति ने उनकी पार्टी को वोट नहीं दिया. हालांकि, चुनाव के आंकड़े और दोनों पार्टियों के समर्थक उनकी इस बात से इंकार करते हैं. बसपा लोकसभा की 10 सीटें जीत कर वापसी करती हुई दिखती है. जो बिना गठबंधन के संभव नहीं था.


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गठबंधन के बिना बीएसपी की क्या ताकत है, इसकी परीक्षा आगे चल कर होगी. लेकिन, इस बीच मायावती समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव पर तीखे और निजी हमले कर रही हैं.

मायावती ने चुनाव बाद बदल दिए प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी

अपनी पार्टी की समीक्षा के पहले दौर में मायावती ने ज़्यादातर प्रदेशों के अध्यक्ष और प्रभारी भी बदल दिए, जैसा कि वे हर चुनाव बाद करती हैं. ऐसा करते हुए वे इस बात तक का भी ध्यान नहीं रखतीं कि किसी प्रदेश के नेतृत्व ने अपने पिछले प्रदर्शन से इस बार अच्छा प्रदर्शन किया है. मसलन पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष को विगत कई चुनावों की अपेक्षा इस बार बीएसपी के बेहतर प्रदर्शन के बावजूद हटा दिया गया है. 

हर चुनाव बाद पार्टी पदाधिकारियों और प्रभारियों को एक सिरे से हटा देने के पीछे मायावती की दो रणनीति दिखती है. पहला, लगातार चुनावों में मिल रही हार की वजह से उनके ख़िलाफ़ पार्टी में बग़ावत न हो जाए. जिससे बचने के लिए पार्टी पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखना ज़रूरी होता है. दूसरा, प्रभारियों को एक राज्य/मंडल/ज़ोन से दूसरी जगह ट्रांसफ़र करने को कांशीराम और मायावती के कार्य करने के तरीक़े में फ़र्क़ बताने वाले इस लेख से समझ सकते हैं.

बसपा के ज़्यादातर प्रभारी न सिर्फ़ मायावती की अपनी उपजाति ‘जाटव’ से होते हैं. बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उनके गृह जनपद के आस-पास से होते हैं. किसी प्रदेश में किसी दूसरे क्षेत्र या जाति से प्रभारी भेजते समय वे ये सुनिश्चित कर लेती हैं कि उसके साथ, उनके गृह जनपद के आस-पास वाला एक स्वजातीय प्रभारी ज़रूर जाए. ऐसे प्रभारी के साथ पिछले हफ़्ते हाथरस में मारपीट की घटना हुई. जिसके बाद वहां के ज़िलाध्यक्ष ने उनको भीम आर्मी से जुड़ा बताकर एफआईआर दर्ज करा दिया है. पिटाई की ऐसी ही घटना महाराष्ट्र में भी घट चुकी. बीएसपी में प्रभारी ही टिकट बांटते हैं, और इसे लेकर तरह-तरह के आरोप लगते रहते हैं, इसलिए चुनाव बाद उनसे मारपीट का ख़तरा भी बना रहता है. दूसरी जगह ट्रांसफ़र हो जाने पर वह ख़तरा कम हो जाता है.

आनंद इससे पहले भी बन चुके हैं बीएसपी के उपाध्यक्ष

मायावती इससे पहले भी अपने भाई आनंद कुमार को उपाध्यक्ष बना चुकी हैं. ऐसा उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद किया था, जब लम्बे समय से पार्टी उपाध्यक्ष रहे राजाराम को बिना किसी कारण के पद हटा दिया गया. मायावती ने देश भर में रैलियां करके जनता से आनंद कुमार का परिचय ऐसे कराना चाहा, मानो उनका उत्तराधिकारी यही है. समर्थकों ने सही रिस्पॉन्स नहीं दिया, तो उनको हटाकर एक अन्य अनजान चेहरे जय प्रकाश को उपाध्यक्ष बना दिया. जय प्रकाश जब विवादों में घिर गए तो उनको भी हटाकर अवध क्षेत्र के रामजी गौतम को उपाध्यक्ष बना दिया, अब उनको हटाकर पुनः अपने भाई को वे उपाध्यक्ष पद पर लायी हैं.

लेकिन, ऐसा करते समय वो शायद भूल गयीं कि पिछली बार अपने भाई को पद से हटाते समय उन्होंने घोषणा की थी उनके परिवार का कोई भी सदस्य बसपा में कोई भी पद नहीं संभालेगा. इसी तरह अपने भतीजे आकाश आनंद को लाते समय भी उन्होंने कहा था कि वह बिना पद के काम करेगा.


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वैसे मायावती सार्वजनिक भाषणों में चाहे कुछ भी कहें, लेकिन सच्चाई यह है कि पिछली एक दशक से उनकी राजनीति का मुख्य उद्देश्य बसपा और उससे जुड़ी ज़मीन-जायदाद को अपने भाई-भतीजे के हवाले करना हो चला है. जिसकी शुरुआत उन्होंने 2007 में बहुजन प्रेरणा ट्रस्ट बनाकर कीयह ट्रस्ट लगातार विवादों में है. इस ट्रस्ट में वो ख़ुद और उनके भाई आनंद कुमार सदस्य हैं. 

बसपा को जानने वाले आनंद कुमार के बारे में बताते है कि उन्होंने दलित समाज के कुछ युवाओं की एक टीम भी बनायी है, जिसका काम मायावती के पक्ष में लिखना है. मायावती के निर्णयों की आलोचना करने वाले इस टीम के निशाने पर होते हैं.

पार्टी नेतृत्व में अपने परिवार के सदस्यों को लाने के मायावती के फैसले का बीएसपी और दलित आंदोलन के आंदोलन विरोध भी हो रहा है. कुछ युवाओं ने इस निर्णय के ख़िलाफ़ दिल्ली के रकाबगंज स्थित बसपा के राष्ट्रीय मुख्यालय के सामने प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है. किसी पार्टी में बढ़ रहे परिवारवाद के ख़िलाफ़ भारत में होने वाला यह शायद पहला धरना होगा. भारत जैसे विकासशील देश में किसी राजनीतिक पार्टी के लोकतंत्रीकरण के लिए इसका महत्व है.

किसी भी देश में स्वस्थ लोकतंत्र के विकास के लिए राजनीतिक पार्टियों में लोकतंत्र का होना बहुत ज़रूरी है. दुर्भाग्य से भारत में नेता लोकतंत्र बचाने के नाम पर चुनाव लड़ते हैं, लेकिन अपनी पार्टी में लोकतंत्र नहीं लाते. बाबासाहेब आंबेडकर को मानने वाले दलित-पिछड़े समाज के युवा अपनी पार्टियों में व्याप्त परिवारवाद के ख़िलाफ़ जंग छेड़कर, पार्टियों को लोकतांत्रिक बनाने की मुहिम की शुरुआत कर सकते हैं. 

(लेखक रॉयल हालवे, लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी स्क़ॉलर हैं )

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