ये बात जनवरी 2012 की है, सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर पहले टेस्ट मैच में भारत की स्थिति खराब थी. अभिमानी माइकल क्लार्क की अगुवाई में ऑस्ट्रेलिया मेहमान टीम को बेबसी की हालत में धकेले जा रहा था. पहली पारी में बल्ले का ज़ोर नहीं दिखा पाए 23 वर्षीय विराट कोहली आउटफील्ड में भाग-भाग कर बेदम हुए जा रहे थे और बाउंड्री लाइन के करीब बैठे ऑस्ट्रेलिया समर्थक लगातार उन्हें उकसाने की कोशिश कर रहे थे. खेल को पूरी तरह अपने और अपनी टीम के खिलाफ जाता देख रहे कोहली आखिरकार अपना आपा खो बैठते हैं और एक पल के लिए उनकी प्रतिरोध की मुद्रा देखने को मिलती है.
रौबदार युवा बल्लेबाज ने इस इस मौके पर कोई अपशब्द नहीं कहा, जैसा कि उनके हर ज़ोरदार शतक के बाद सुनने को मिलता है. ना ही, कोहली ने स्थानीय दर्शकों की ओर तिरस्कार भाव से घूरने का काम किया. बजाए इसके, दर्शकों की ओर अपना पीठ करते हुए कोहली ने अपनी बायीं मुट्ठी ऊपर की और बेफिक्री के साथ बीच की अंगुली ऊपर कर दी– भद्रजनों के खेल में किसी भारतीय क्रिकेटर के लिए ये हरकत अभूतपूर्व थी.
आठ साल से अधिक बीत चुके हैं और कोहली की सिडनी में प्रदर्शित उस उद्दंडता को आमतौर पर भुला दिया गया है, किसी गलत टाइमिंग वाली कवर ड्राइव के समान जो कि कभी-कभार ही देखने को मिलती है. कम वय में ही अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाला दिल्ली का उत्साही युवक अब परिपक्व होकर दुनिया का सबसे सफल क्रिकेटर बन चुका है, खेल के मैदान पर और बाहर भी.
फोर्ब्स पत्रिका ने 2020 के लिए दुनिया के सर्वाधिक कमाऊ खिलाड़ियों की सूची में कोहली को 26 मिलियन डॉलर की अनुमानित आमदनी के साथ 66वां स्थान दिया था. कोहली इस सूची में जगह बनाने वाले एकमात्र क्रिकेटर और अकेले भारतीय थे.
आज जबकि विराट कोटली 32 साल के हो रहे हैं, आइए इस बात पर नज़र डालते हैं कि अपनी खेल प्रतिभा और अपने विराट स्टार पावर के संगम से उन्होंने दुनिया के सर्वाधिक मार्केटेबल क्रिकेटर का मुकाम कैसे हासिल किया.
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सबसे अव्वल
वैसे तो किसी खिलाड़ी को ब्रांड बनाने में खास उसके लिए गढ़े गए मार्केटिंग अभियान का हाथ होता है लेकिन एक बात जो हर व्यावसायिक रूप से सफल खिलाड़ी के संबंध में सही है, वो है– खेल के मैदान पर उसका प्रदर्शन.
कोहली ने 2010 के दशक में 69 शतकों के सहारे 20,960 रनों का अंबार खड़ा किया था. समान अवधि में कोई अन्य खिलाड़ी इस तरह की उपलब्धि हासिल नहीं कर पाया है. वैसे तो भारत में प्रतिभाशाली बल्लेबाजों की कमी नहीं रही है लेकिन कोहली की उपलब्धियां बाकियों से अलग हैं क्योंकि उनमें प्रतिभा को भावनाओं से जोड़ने की क्षमता है जिससे कि यादगार पल बनते हैं.
पाकिस्तान के खिलाफ ज़ोरदार बैटिंग के लिए जाते हुए स्टैंड में मौजूद अपने आदर्श क्रिकेटर और पूर्व टीम सहयोगी सचिन तेंदुलकर का झुककर अभिवादन करना हो या एक और शतक जड़ने के बाद अपनी पत्नी और बॉलीवुड स्टार अनुष्का शर्मा को फ्लाइंग-किस भेजना या ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वर्ल्ड कप के मैच के दौरान भारतीय प्रशंसकों से स्टीवन स्मिथ का उपहास नहीं उड़ाने की अपील करना, कोहली न सिर्फ खेल पर हावी होते हैं बल्कि उसे चमका देते हैं. खेल में पूरी तरह रमने, अपनी बॉडी लैंग्वेज और कैमरे को भाने वाली अपनी अदाओं के करण कोहली हमेशा आकर्षण का केंद्र होते हैं, अपने शानदार बैटिंग रिकॉर्ड के साथ या उसके बिना भी.
इस वजह से दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए कोहली बेहद उपयोगी हैं, जो स्वाभाविक है कि अपने उपभोक्ताओं से बेहतर जुड़ाव के लिए उनके आकर्षक व्यक्तित्व का इस्तेमाल करना चाहते हैं.
लेकिन उनके नाम से जुड़ने के प्रति कंपनियों के भारी उत्साह के बावजूद उन्होंने अपने हिसाब से उत्पादों का चयन करने का विकल्प नहीं छोड़ा है. क्रिकेट का प्रतीक बन जाने पर कोहली को ये समझने में देर नहीं लगी कि अपने प्रोफाइल के अनुरूप विज्ञापनों का चयन और सावधानीपूर्वक गढ़े गए संदेशों से जुड़ाव बहुत ही महत्वपूर्ण है.
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आदर्श छवि का निर्माण
क्रिकेटरों का मेहनताना शीर्ष अंतरराष्ट्रीय फुटबॉलरों या नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन (एनबीए) के खिलाड़ियों की तुलना में कहीं नहीं ठहरता. ऐसा इसलिए है कि शीर्ष स्तर का क्रिकेट राष्ट्रीय टीमों के बीच होता है जिनके कॉन्ट्रैक्ट क्लब या फ्रेंचाइज आधारित प्रतियोगिताओं के समान आकर्षक नहीं होते हैं. इसका मतलब ये है कि विराट कोहली जैसे दुनिया के श्रेष्ठ क्रिकेटर के लिए भी कॉन्ट्रैक्ट से होने वाली आमदनी के मुकाबले विज्ञापनों से होने वाली आय और निवेश पर होने वाले मुनाफे कहीं अधिक होते हैं.
कोहली की मार्केटिंग से जुड़ी प्रतिबद्धताओं और वित्तीय मामलों को कॉर्नरस्टोन स्पोर्ट एंड एंटरटेनमेंट नामक कंपनी संभालती है, जिसके संस्थापक बंटी सजदेह (एक सुपरएजेंट) केएल राहुल, युवराज सिंह, सानिया मिर्ज़ा समेत अनेक भारतीय स्पोर्ट्स स्टार के व्यावसायिक हितों को भी देखते हैं.
सजदेह ने 2016 में एक इंटरव्यू में कहा था, ‘जब पहली बार विराट पर मेरी नज़र पड़ी थी, उन्होंने मलेशिया में अंडर-19 के एक मैच में कोई खास रन भी नहीं बनाए थे. लेकिन मैं ये देखकर दंग रह गया कि वह लोगों से कितने आत्मविश्वास के साथ बात कर रहे थे और स्थितियों पर नियंत्रण रख रहे थे.’ सजदेह ने ये भी बताया कि कोहली के टीम इंडिया के लिए नियमित रूप से खेलना शुरू करने से पहले ही वह उनके साथ अनुबंध कर चुके थे.
सजदेह जिसे कोहली प्यार से ‘जेरी’ बुलाते हैं (जेरी मैग्वायर नामक फिल्म में टॉम क्रूज द्वारा अभिनीत पात्र के नाम पर) ने ये सुनिश्चित किया कि कोहली द्वारा किए जाने वाले विज्ञापनों से एक खिलाड़ी के रूप में उनकी एक संतुलित छवि पेश हो, जिसे इन तीन विशेषताओं के आधार पर परिभाषित किया जा सकता है: जुनून, फिटनेस और निरंतरता.
कोहली द्वारा किए जाने वाले विज्ञापनों में से कुछेक– प्यूमा, बूस्ट, हर्बलाइफ, टीसो, फिलिप्स, ऑडी, गूगल डुओ– पर नज़र डालने से ये बात स्पष्ट हो जाती है, साथ ही इनसे इस बात की भी झलक मिलती है कि अपने अधिकांश विज्ञापनों के ज़रिए कोहली उपभोक्ताओं के एक खास वर्ग से जुड़ने का प्रयास करते हैं: शहरी युवा (जो खासतौर पर खेलों में दिलचस्पी रखता हो).
कोहली और सजदेह, स्थापित अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों के सहयोग से अपना ब्रांड तैयार करने के महत्व को भी समझते हैं. तभी तो खेल उत्पादों की कंपनी एडिडास के साथ 2017 में अपने अनुबंध को आगे बढ़ाने के बजाए कोहली ने प्यूमा को चुना, जो कोहली के खुद का ब्रांड ‘वन8’ (कोहली के जर्सी नंबर 18 पर आधारित) जारी करने देने पर राज़ी थी. कोहली का प्यूमा के साथ ये अनुबंध 100 करोड़ रुपये से ऊपर का था, जिसे किसी भी भारतीय खिलाड़ी द्वारा किया गया सबसे बड़ा अनुबंध माना गया. वन8 ब्रांड के तहत उपलब्ध कराए गए कपड़ों, जूतों और उपकरणों में प्यूमा की डिजाइन के साथ ही कोहली का कस्टमाइजेशन है. ये करार उसी तर्ज पर है जिसके तहत नाइकी ने बास्केटबॉल के महान खिलाड़ी माइकल जॉर्डन के साथ एयर जॉर्डन नाम से एक सफल ब्रांड लॉन्च किया था.
प्रचलित रुझानों और अपने प्रोफाइल के एक-दूसरे पर पड़ने वाले असर को लेकर हमेशा संवेदनशील रहने वाले कोहली ने 2017 में पेप्सी और एक फेयरनेस क्रीम के विज्ञापनों से हाथ खींच लिया क्योंकि उन्हें लगा कि ये उत्पाद अस्वास्थ्यकर आहार और त्वचा के रंग संबंधी पूर्वाग्रह को बढ़ावा देते हैं. इसे एक स्वागत योग्य कदम माना गया क्योंकि इससे पहले प्रसिद्ध हस्तियों ने अपने ब्रांडों के मूल्यों को खुद की मान्यताओं और नैतिकता से जोड़ने का शायद ही कोई प्रयास किया था.
अपनी भावनाएं खुलकर व्यक्त करने के लिए प्रसिद्ध कोहली की मार्केटिंग क्षमता हमेशा इस भाव पर केंद्रित रही है कि हकीकत सबके सामने होनी चाहिए. यहां तक कि अपने निवेशों में भी– चाहे फिटनेस सेंटर चिज़ल हो या फैशन आउटलेट रोन या इंडियन सुपर लीग में एफसी गोवा जैसी फ्रेंचाइज़ी या फिर दिल्ली में उनका खुद का रेस्टोरेंट जहां मेन्यू के निर्धारण में उनकी दखल रहती है– कोहली की सावधानीपूर्वक निर्मित छवि– अग्रणी क्रिकेटर और स्टेट्समैन का मिश्रण है जो कि एक आदर्श रोल मॉडल पेश करता है– के केंद्र में एक खास विश्वसनीयता को स्थान दिया गया है. ऐसे देश में जहां सौ करोड़ से अधिक लोगों की आमतौर पर अपने नायकों से यही अपेक्षा होती है कि वे कुछ भी गलत नहीं करेंगे- विराट कोहली अधिकतर सही कदम उठाकर बेहद भरोसेमंद साबित हुए हैं.
अंतरराष्ट्रीय सुपरस्टारडम की ओर
भारत के सर्वाधिक जाने-पहचाने चेहरों में से एक कोहली अपने रवैये के बारे में बताते हैं, ‘मेरे खेल को हर कोई स्क्रीन पर देख सकता है. मैं समझता हूं यदि आप अपनी स्वाभाविक प्रवृति बनाए रखें और ईमानदारी से 100% प्रयास करें… लोग आपसे अधिक जुड़ सकेंगे. मैं इसी तरह की पृष्ठभूमि से हूं, मैंने कभी दूसरे के जैसा बनने की कोशिश नहीं की.’
एक ओर जहां सचिन तेंदुलकर की क्रिकेट यात्रा आर्थिक खुलेपन और महत्वाकांक्षा वाले भारत की कहानी कहती है या महेंद्र सिंह धोनी की एक रेलवे टीसी से विश्व कप विजेता कप्तान बनने की यात्रा एक छोटे शहर से निकले शख्स की सफलता का बयान करती है, वहीं कोहली का स्टारडम अधिक बारीक और जटिल बातों पर आधारित है. कोहली ना तो क्रिकेट के भगवान हैं और ना ही कैप्टन कूल, बल्कि वह एक अलग भारत की अलग कहानी के नायक हैं. एक ऐसा भारत जो अधिकारपूर्वक अपना दावा पेश करता है लेकिन आत्मनिरीक्षण भी करता है, एक ऐसा भारत जो अपने अतीत से जुड़ा है लेकिन तमाम संभावनाओं को अपनाने के लिए भी तैयार बैठा है.
अंतत: एक क्रिकेटर के रूप में कोहली की मार्केटिंग क्षमता का गहरा संबंध इस बात से है कि भारतीय खासकर युवा किस बात से जुड़ाव रखते हैं और किस बात को अपनी स्वीकृति देते हैं. इसलिए ब्रांड विराट की अगली चुनौती स्वदेश में अपने प्रभाव को आगे अंतरराष्ट्रीय स्तर विस्तार देने की है, जैसा कि लीब्रोन जेम्स, माइकल जॉर्डन और कोहली के पसंदीदा क्रिस्टियानो रोनाल्डो कर चुके हैं.
क्रिकेट के अपेक्षाकृत सीमित दर्शकों (फुटबॉल, टेनिस या बास्केटबॉल के भी मुकाबले) के कारण ऐसा कर पाना आसान नहीं होगा लेकिन सोशल मीडिया (कोहली इंस्टाग्राम पर सबसे अधिक फॉलो किए जाने वाले भारतीय हैं) और कोहली द्वारा चयनित ब्रांडों की अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में बढ़ती लोकप्रियता के मद्देनज़र ये काम बिल्कुल असंभव भी नहीं लगता.
एक चतुर व्यवसायी के रूप में कोहली को इस बात का एहसास होगा कि इस दशक के आगामी वर्षों में क्रिकेट में उनका असर खत्म होने लगेगा यानि अपने व्यापक कॉमर्शियल हितों को कायम रखने के लिए उन्हें अपनी अंतरराष्ट्रीय अपील बढ़ानी होगी.
अपने लिए निर्धारित किए गए कसी भी लक्ष्य को हासिल करने की उनकी सहज प्रवृति को देखते हुए आश्चर्य नहीं होगा यदि इस दशक के अंत तक– व्यापक रूप से योजनाएं बनाकर और थोड़ा सौभाग्य की मदद से– विराट कोहली खुद को अंतरराष्ट्रीय सुपरस्टार की कतार में शामिल करते हुए दुनिया के सर्वाधिक मार्केटेबल क्रिकेटर से आगे दुनिया का सर्वाधिक मार्केटेबल खिलाड़ी बन जाएं.
(लेखक ब्रिटेन के ससेक्स विश्वविद्यालय में पोस्टग्रैजुएट छात्र और खेल, राजनीति एवं संस्कृति पर लिखने वाले स्वतंत्र पत्रकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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