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Sunday, 30 March, 2025
होममत-विमतब्लड, बंगाल और ब्रेकिंग न्यूज़ — लोकल टीवी चैनल हमें बुरी तरह से असंवेदनशील बना रहे हैं

ब्लड, बंगाल और ब्रेकिंग न्यूज़ — लोकल टीवी चैनल हमें बुरी तरह से असंवेदनशील बना रहे हैं

हां, हमारे चारों ओर अपराध है, लेकिन जब यह हमारे घरों के अंदर टीवी स्क्रीन पर चौबीसों घंटे सामने आ रहा हो, तो कुछ न कुछ तो करना ही होगा. मैं हमेशा इस डर में रहती हूं कि आखिर क्या होगा.

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पश्चिम बंगाल में टेलीविजन न्यूज़, खासकर स्थानीय चैनल देखना असंभव हो गया है. इतना खून-खराबा, हत्या और उत्पात है कि आपको इसे हज़म करने में मुश्किलें या मेंटल हेल्थ को नुकसान पहुंचने का जोखिम है. मैं उम्मीद करती हूं और प्रार्थना करती हूं कि देश के अन्य हिस्सों में चीज़ें अलग हों, हालांकि मुझे डर है कि मैं आशावादी हूं. पुणे के स्वर्गेट बस टर्मिनस पर जो हुआ, उसे देखिए — 26-वर्षीय हेल्थ काउंसलर के साथ सुबह-सुबह ज़मानत पर बाहर आए एक व्यक्ति ने बलात्कार किया. नेशनल न्यूज़ चैनलों पर क्राइम रिपोर्टिंग कुछ हद तक साफ-सुथरी होती है, लेकिन स्थानीय बंगाली चैनलों पर? अक्षम्य.

अपने बचाव में, चैनल केवल संदेशवाहक हैं — वह दिखाते हैं कि हमारे आसपास क्या हो रहा है. हर समय भयानक चीज़ें हो रही हैं और जनता को जागरूक बनाने की दरकार है.

लेकिन क्या इस बात का कोई बहाना है कि हम बिना किसी लाग-लपेट के घृणित समाचारों की रिपोर्टिंग करें, जिसमें रिपोर्टरों को प्रतिस्पर्धा और ब्रेकिंग न्यूज़ के दबाव के कारण फैक्ट्स और फिक्शन के बीच की लाइन पर चलने के लिए मजबूर किया जाता है और एंकरों को अस्वाभाविक रूप से तीखी आवाज़ में सबसे खौफनाक जानकारियों का विश्लेषण करना पड़ता है?

अपराधीकरण

ऐसा नहीं है कि लोकल समाचार अचानक से बिगड़े हैं, लेकिन पिछले दस दिन बुरे रहे हैं और मैं भयानक ओवरडोज से उबर रही हूं जिसने मुझे ह्यूमन नेचर के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है.

दूसरा दिन खासतौर से कष्टदायक था. मैंने अभी-अभी अंडे खाए ही थे कि मेरी टीवी स्क्रीन पर दो महिलाओं और लोगों से घिरे एक नीले सूटकेस का वीडियो दिखाई दिया. यह घटना कुमारतुली की थी — जहां पास की हुगली नदी की मिट्टी से देवी दुर्गा और मां काली और बाकी देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां बनाई जाती हैं.

दो महिलाएं — मां और बेटी भारी सूटकेस को पास के घाट पर ले जाने के लिए संघर्ष कर रही थीं — ऐसा लग रहा था कि उन्हें इसे नदी में फेंकना है. शक होने पर, स्थानीय निवासी उनके चारों ओर इकट्ठा हो गए और जोर देकर कहा कि सूटकेस खोला जाए. पुलिस पहुंची और सूटकेस खोला गया. बैग में एक महिला का शव था — टुकड़ों में कटा हुआ.

मेरा नाश्ता कूड़ेदान में चला गया और टीवी बंद हो गया: मुझे पता था कि इस भयानक अपराध की भयावह खबर बार-बार दिखाई जाएगी, उबकाई आने तक.

कुमारताली अपराध से एक दिन पहले, 26-वर्षीय एक महिला की मौत सुर्खियों में छाई रही: महिला की कार दुर्गापुर के पास राष्ट्रीय राजमार्ग से पलट गई थी. बचे लोगों ने बताया कि युवकों से भरी एक एसयूवी ने उनकी कार का पीछा किया, उसमें टक्कर मारी, उसे ओवरटेक किया, इस दौरान महिला को अश्लील इशारे किए. जब ​​कार पलट गई, तो एसयूवी कुछ देर के लिए रुकी. वह लोग बाहर निकल गए, लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि क्या हुआ है, तो वह शराब की बोतलों से भरी एसयूवी छोड़कर भाग गए.

पहली गिरफ्तारी चार दिन बाद हुई. तब तक, पुलिस ने यौन उत्पीड़न को घातक घटना का कारण मानने से इनकार कर दिया था.

इन सभी को ‘कथित’ और ‘कथित’ की भारी खुराक के साथ पढ़ा जाना चाहिए. ‘दुर्घटना’ की कहानी अभी भी बदल रही है और तथ्य मायावी हैं.

पिछले हफ्ते एक और ‘सड़क दुर्घटना’ के साथ डरावनी कहानियों का सिलसिला शुरू हुआ. रात के अंधेरे में दक्षिणी कोलकाता में एक कार निर्माणाधीन मेट्रो रेल के खंभे से टकरा गई. कार में सवार दो पुरुष और एक किशोर बेटा घायल हो गए. दावा किया गया कि यह ‘आत्महत्या का प्रयास’ था. अस्पताल में, पुरुषों ने पुलिस को बताया कि उनकी पत्नियों और एक किशोर बेटी ने घर पर आत्महत्या कर ली थी क्योंकि उनके चमड़े के कारोबार ने दोनों परिवारों को भारी कर्ज़ में डाल दिया था. पुलिस को अब शक है कि महिलाओं और लड़की की हत्या की गई है.

सच्चाई अभी भी कहीं न कहीं छिपी हुई है.

मेरे सामने जो है वह मानवीय स्वभाव का विकृत, आपराधिक रूप है.


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लेन-देन की राजनीति

भारतीय राजनीति की लेन-देन की प्रकृति मदद नहीं कर रही है. अभी इसी हफ्ते, टेलीविजन न्यूज़ में कई घंटे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सरकारी डॉक्टरों के बीच हुई बैठक पर खर्च किए गए, जिसमें उन्होंने 10,000 से 15,000 रुपये की वेतन वृद्धि की घोषणा की. मैंने जो देखा, बनर्जी द्वारा वेतन वृद्धि की घोषणा करने पर हॉल में तालियां नहीं बजीं. दरअसल, कुछ डॉक्टरों को बिना मुस्कुराए एक-दूसरे की ओर देखते हुए देखा जा सकता था. यह वृद्धि सरकारी डॉक्टरों को शांत करने के लिए बनर्जी की ओर से की गई एक पहल थी, जो आरजी कर बलात्कार और हत्या मामले को लेकर सड़कों पर उतर आए थे. वे घटना से खुश नहीं थीं और वेतन वृद्धि उनके लिए मरहम की तरह थी.

विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले जूनियर डॉक्टर सीएम की बैठक में शामिल नहीं हुए. कुछ लोगों ने वेतन वृद्धि को सबसे खराब लेन-देन की राजनीति कहा. दूसरों ने इसे डॉक्टरों के लिए “लक्खीर भंडार” कहा.

संवेदनहीनता

आम नागरिकों का अपराधीकरण और हमारे लोकल न्यूज़ चैनलों पर हर दिन चलने वाली लेन-देन की राजनीति हमें संवेदनहीन बना रही है और हमें न्यू नॉर्मल के लिए तैयार कर रही है. हां, हमारे चारों ओर अपराध है, लेकिन जब यह हमारे घरों के अंदर टीवी स्क्रीन पर चौबीसों घंटे सामने आ रहा है, तो कुछ न कुछ तो करना ही होगा. मैं हमेशा इस डर में रहती हूं कि क्या होगा.

(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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