प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड की अपनी रैली में बार-बार कहा है कि झारखंड 19 वर्ष का युवा है. युवा जब 19 साल का होता है तो मां-बाप की फिक्र बढ़ जाती है कि वो क्या करिअर चुने. लेकिन झारखंड ऐसा युवा है जिसके पास फोन और इंटरनेट नहीं है. इसके साथ ही वो बेरोजगारी से भी जूझ रहा है. इंटरनेट के दौर में बेरोजगारी का कुछ हद तक सामना किया जा सकता है, पर यहां इंटरनेट का कम पेनेट्रेशन मजबूरी बढ़ा देता है. वहीं जिसके पास इंटरनेट है, उसे समझ नहीं आ रहा कि क्या करे.
झारखंड में इंटरनेट पेनेट्रेशन बहुत ही कम है
इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन की रिपोर्ट ‘इंडिया इंटरनेट 2019’ के मुताबिक झारखंड में इंटरनेट का पेनेट्रेशन मात्र 26% है. झारखंड से नीचे सिर्फ बिहार है जहां 25% है. जबकि केरल और दिल्ली में क्रमशः 54% और 69% है. इंटरनेट पेनेट्रेशन की परिभाषा जनवरी-मार्च 2019 में 12 साल से ऊपर के लोगों द्वारा इंटरनेट के इस्तेमाल के आधार पर दी गई है.
इंडिया इंटरनेट रिपोर्ट 2019 के मुताबिक पूरे देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने में 10 शहरियों में से एक ऐसा है जो पूरे सप्ताह में एक बार इंटरनेट इस्तेमाल करता है. जबकि ग्रामीण इलाकों में हर पांच में से एक व्यक्ति ऐसा है जो सप्ताह में एक बार इंटरनेट इस्तेमाल करता है. इसके अलावा पूरे देश में शहरों में इंटरनेट पेनेट्रेशन 51% है जबकि गांवों में 27% है.
सेन्सस 2011 के मुताबिक झारखंड में अर्बन आबादी लगभग 24% है. ग्रामीण आबादी 76% है. इस हिसाब से झारखंड के ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट पेनेट्रेशन बहुत ही कम है.
सेन्सस 2011 के ही मुताबिक झारखंड के धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, रांची, बोकारो और रामगढ़ सबसे ज्यादा शहरी आबादी वाले क्षेत्र हैं. वहीं सिमडेगा, खूंटी, लातेहार, चतरा और गोड्डा कमशहरी आबादी वाले क्षेत्र हैं.
ऐसा नहीं है कि झारखंड में इंटरनेट पेनेट्रेशन बढ़ाने के प्रयास नहीं किए गए. अगस्त 2016 में डिजिटल इंडिया कैंपेन के अंदर पूर्वी सिंहभूम जिले से लगभग 23 किलोमीटर दूर के गांव हीराचुनी को इंटरनेट से जोड़ने के लिए गांव का ही फेसबुक अकाउंट और वॉट्सऐप ग्रुप बनाया गया. ये देश का पहला ऐसा गांव था जिसका अपना सोशल मीडिया अकाउंट था. पर आज हीराचुनी के फेसबुक अकाउंट पर प्रातःकाल के मीम और तमाम घटनाओं की बरसी ही मनाई जाती है. उस पर कुछ प्रोडक्टिव नहीं हुआ है. इसके पीछे वजह भी है. सोशल मीडिया का इस्तेमाल या तो कोई व्यक्ति अपने निजी इंटरेस्ट से कर सकता है या फिर कोई संस्थान. एक गांव के लिए मिलकर सोशल मीडिया चलाना ना सिर्फ अनुपयोगी है बल्कि लक्ष्यविहीन भी है.
2015 में गूगल इंडिया और टाटा ट्रस्ट ने मिलकर ‘इंटरनेट साथी’ के नाम से एक प्रोग्राम चलाया जिसके तहत देश के तीन लाख गांवों में डिजिटल लिटरेसी बढ़ानी थी. इसमें मुख्य फोकस ग्रामीण महिलाओं पर था. इसमें रिटेल मार्केटिंग, नेट बैंकिंग और सरकारी सेवाओं को समझाने की कोशिश थी. पहले फेज में झारखंड के 4480 गांव भी इसके लिए चुने गए थे.
मार्च 2019 तक इसके टारगेट को पूरा किया जाना था. हालांकि इंटरनेट साथी वेबसाइट के मुताबिक अप्रैल 2019 तक देश के 20 राज्यों में 289000 गांवों की 2.80 करोड़ महिलाओं को इंटरनेट से जोड़ा गया है. पर झारखंड में बहुत सारी औरतें और पुरुष भी डिजिटल लिटरेसी से अभी दूर ही हैं. हाल फिलहाल में मोबाइल कंपनियों द्वारा चार्जेज बढ़ाने से ये दूरी थोड़ी और बढ़ सकती है.
जिनके पास इंटरनेट है वो क्या कर रहे हैं?
रांची से कुछ दूर खूंटी जिले में दो युवा मिले- रंजन (20 साल) और अर्जुन (19 साल). ये दोनों युवा सीजनल काम करते हैं अर्थात एक तरीके से मजदूरी. ये अनस्किल्ड होते हुए भी कई चीजों में स्किल्ड हैं. जैसे ये जाड़े के मौसम में अंडे और ऑमलेट बेच लेते हैं. बाकी दिनों में कन्सट्रक्शन इंडस्ट्री में काम कर लेते हैं. दोनों के पास स्मार्टफोन है. पर इस फोन में लगभग सारे ऐप एंटरटेनमेंट से ही जुड़े हुए हैं. कुछ मोबाइल गेम्स के अलावा यूट्यूब और टिकटॉक भी मौजूद है.
रंजन हंसते हुए बताते हैं कि मोबाइल से बढ़िया टाइम पास हो जाता है. जब दिप्रिंट ने रंजन से पूछा कि इस पर सरकारी योजनाओं का पता नहीं चलता? उन्होंने जवाब दिया, ‘अंग्रेजी पढ़नी आएगी तब तो पता चलेगा. सिर्फ मोबाइल लेने से कौन सी नौकरी मिल जाएगी? सिर्फ टिकटॉक ही जहां कुछ करना नहीं है. ढंग के वीडियो आ जाएंगे तो काम चल पड़ेगा.’
वहीं अर्जुन के लिए मोबाइल और इंटरनेट फिल्में देखने का जुगाड़ है. पांच-दस रुपये में अर्जुन अपनी पसंद की हिंदी और भोजपुरी फिल्में फोन में डाल लेते हैं और देखते रहते हैं. अर्जुन के मुताबिक उनके साथ के सारे युवा फोन का इस्तेमाल एंटरटेनमेंट के लिए ही करते हैं. वो कहते हैं, ‘सिर्फ इंटरनेट से रोजगार पाने के लिए अंग्रेजी आनी जरूरी है. जब कुछ समझ ही नहीं आएगा तो हम क्या करेंगे. सिर्फ कला है जिसमें पैसा मिल सकता है. गायें, नाचें, हंसायें तो ठीक. वरना इंटरनेट हमें क्या देगा? सरकारी योजनाएं जान भी जाएं तो उसका फायदा फोन पर तो मिलेगा नहीं. अधिकारी के ऑफिस तो जाना ही पड़ेगा ना? वो अपने हिसाब से ही काम करेगा. तो फोन पर मेहनत करने का क्या फायदा हुआ?’ वॉट्सऐप और मनोरंजन ही इंटरनेट का मुख्य इस्तेमाल है.
पर यहां इंटरनेट का एक अलग इस्तेमाल भी है!
अगस्त 2018 में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पत्नी प्रेनीत कौर को झारखंड के जमताड़ा के अताउल अंसारी ने साइबर क्राइम के जरिए 23 लाख रुपये ठग लिए. उसने प्रेनीत कौर से कहा कि उनकी सैलरी अकाउंट में जानी है और इसके लिए पिन और ओटीपी की जरूरत है.
संथाल परगना क्षेत्र में स्थित जमताड़ा साइबर क्राइम के लिए फेमस है. कथित रूप से अमिताभ बच्चन तक का अकाउंट यहां से हैक कर पांच लाख रुपये निकाले जा चुके हैं. एक केंद्रीय मंत्रीऔर सांसदों के साथ भी फ्रॉड किया जा चुका है. 90 साइबर क्रिमिनल यहां चिह्नित किए गए और उनके पास 50 करोड़ रुपये होने की सूचना थी.
जब अर्जुन और रंजन से दिप्रिंट ने इस बाबत पूछा तो उनका जवाब था, ‘अगर कोई ऐसा कर सकता है तो उसमें बुराई क्या है. कोई सिर आंखों पर थोड़ी बिठा रहा है. ऐसे भी तो पुलिस किसी ना किसी क्राइम में पकड़ ही लेगी.’