scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतअसम एनआरसी गड़बड़झाले के लिए सुप्रीम कोर्ट पूरी तरह ज़िम्मेदार

असम एनआरसी गड़बड़झाले के लिए सुप्रीम कोर्ट पूरी तरह ज़िम्मेदार

Text Size:

भाजपा में शामिल वरिष्ठ राजनेता लगातार इस तथ्य का जिक्र करते हैं कि एनआरसी के नवीनीकरण के कार्य की निगरानी शीर्ष न्यायालय द्वारा की जा रही है।

हाँ राजनीतिक दल असम के एनआरसी अद्यतन के मुद्दे से लाभ उठाने की अपनी रणनीतियों पर सावधानीपूर्वक काम कर रहे हैं, वहीं एक संस्था जिसे लाखों नागरिकों-निवासियों को असुरक्षित बनाने का बहुत बड़ा दोष झेलना होगा, वह है सर्वोच्च न्यायालय।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि, “संपूर्ण अद्यतन एनआरसी दिसंबर 2016 के अंत तक प्रकाशित हो जाए” सुप्रीम कोर्ट ने ही एक रोडमैप बनाया था। इसमें ढाई सालों की देरी की राजनीतिक दलो द्वारा स्वागत किया जा रहा है और वह मन ही मन ख़ुश हो रहे हैं।

अदालत ने क्या कहा

नागरिकता अधिनियम की धारा 6 ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के दिसम्बर 2014 के फैसले की प्रथम पंक्ति इस मामले को लेकर कोर्ट को रुख को दर्शा रही थी।

“एक पैगंबर अपने ही देश में सम्मान के बिना है। ‘पैगंबर’ के स्थान पर ‘नागरिक’ को रखें तो आपको नागरिकता अधिनियम की धारा 6 ए का आकलन करने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर विभिन्न रिट याचिकाओं का सारांश मिलेगा।”

धारा 6ए, जो कि 1985 के असम समझौते के परिणामस्वरूप बनाई गई थी, “असम समझौते के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों की नागरिकता” के संबंध में कानून में विशेष प्रावधान से संबंधित है।

अदालत ने आदेश दिया कि नागरिकों की राष्ट्रीय रजिस्ट्री (एनआरसी) को समय-समय पर अपडेट किया जाना चाहिए।

ऐसा करने में, इसने मामले को सरकार के हाथों से छीन लिया, और इस प्रकार शासनात्मक क्षेत्र में खुद घुस पड़ने के आरोप में खुद को शामिल कर लिया, शायद यह ना महसूस करते हुए की यह उनके लिए कितना नुक़सानदेह होगा।

भारतीय बनाम बाहरी व्यक्ति बहस

यदि कुछ भी गलत होता है, तो उंगलियां सर्वोच्च न्यायालय के उपर उठेंगी, और इसके लिए पहले से ही भूमिका तैयार की जा चुकी है। भाजपा सहित कई वरिष्ठ नेताओं द्वारा की गई विभिन्न सार्वजनिक घोषणाओं को देखें, जो वह इस तथ्य का जिक्र करते हैं कि एनआरसी अपडेट की पूरी प्रक्रिया की निगरानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जा रही है।

सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीयों के बनाम बाहरी लोगों की विवादित बहस में भी छेड़छाड़ की, जो इस बात पर दशकों से चिंता ग्रस्त होकर उग्र हो रहे हैं कि “आजादी के 67 साल बाद भी पूर्वी सीमा (इंडो-बांग्लादेश) छिद्रपूर्ण क्यों छोड़ी गई है”।

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाओं ने याचिका दायर की कि “भारत की संप्रभुता और अखंडता ख़तरे में है क्योंकि पड़ोसी देश से हो रही अवैध प्रवासियों की भारी मात्रा में घुसपैठ देश के संवैधानिक मूल्य को प्रभावित कर रही है।”

अवैध प्रवासियों और निर्वासन पर

जस्टिस रोहिंटन नरीमन की बेंच द्वारा लिखित उनके फैसले में, जिसमें न्यायमूर्ति रंजन गोगोई भी शामिल हैं, जो आकस्मिक रूप से असम से हैं, ने कहा कि इस मामले को कानून के महत्वपूर्ण प्रश्नों को सुलझाने के लिए उपयुक्त बेंच के समक्ष रखा जाना चाहिए।

इसमें यह शामिल था कि क्या धारा 6ए भारतीय नागरिकों के अधिकारों के खिलाफ है क्योंकि यह “बांग्लादेश से किसी भी पारस्परिकता के बिना और भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेने के बिना प्रवासियों के एक वर्ग को भारत का नागरिक मानता है।”

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि “1.1.1966 से 24.3.1971 की धारा से संबंधित विदेशी लोगों का पता लगाने के लिए, नागरिकता अधिनियम की धारा 6(3) और (4) के प्रावधानों को प्रभावित करने के लिए और उन सभी अवैध प्रवासियों को पहचानकर उन्हें निर्वासित करने के लिए जो असम राज्य में 25.3.1971 के बाद आए हैं, खंडपीठ ने भारत संघ और असम राज्य को उपयुक्त निर्देश जारी करने की आवश्यकता पर विचार किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बांग्लादेश से भारत तक अवैध पहुँच को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए गए हैं।”

इस मुद्दे से निपटने के लिए केंद्र और असम सरकारें दोनों “उठाए जाने हेतु आवश्यक कदमों के संबंध में व्यापक समझौते में” थीं।

अन्य चीजों के अलावा, “अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकॉल की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए मौजूदा कार्यप्रणाली पर विचार करते हुए” खंडपीठ ने भारत को “निर्वासन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए बांग्लादेश सरकार के साथ आवश्यक चर्चाओं में शामिल होने” का निर्देश दिया।

इसने सरकार से सुनवाई की अगली तारीख़ पर अदालत को “कथित काम के परिणाम” के बारे में सूचित करने के लिए कहा।

इसके इरादे को स्पष्ट करते हुए, खंडपीठ ने आगे कहा कि इसके द्वारा “उपरोक्त आदेशों के क्रियान्वयन की जाँच” तीन महीने बाद की जाएगी। इतना ही नहीं इसने आगे यह भी आदेश दिया, “इस समय यह बहुत आवश्यक है, और यदि ज़रूरत पड़ी तो अदालत द्वारा एक कमेटी का भी गठन किया जा सकता है।

Read in English : Blame for Assam’s NRC chaos lies squarely at Supreme Court’s door

share & View comments