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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतरियल एस्टेट में लगे काले धन की वजह से नुकसान उठा रहे हैं उपभोक्ता

रियल एस्टेट में लगे काले धन की वजह से नुकसान उठा रहे हैं उपभोक्ता

पिछले कुछ सालों में डेवलपरों की गड़बड़ियों और रियल एस्टेट में लगे काले पैसों की वजह से इस सेक्टर की स्थिति खराब हो गई है.

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नोएडा की एक आईटी कंपनी में काम करने वाले नीरज सचदेव इसी शहर के सेक्टर 50 में किराये के मकान में रहते हैं. करीब चार वर्ष पहले उन्होंने एक बड़े बिल्डर के प्रोजेक्ट में तीन बीएचके का एक फ्लैट बुक कराया था. चार साल बीतने के बाद भी उनका फ्लैट उन्हें कब मिलेगा, उन्हें पता नहीं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे घर का किराया तो चुका ही रहे हैं, भारी-भरकम ईएमआई भी चुकाने को मजबूर हैं. इसी तरह बृजेंद्र श्रीवास्तव ने जिस बिल्डर के प्रोजेक्ट में अपना घर बुक कराया था, वह प्रोजेक्ट ही पूरा होने का नाम नहीं ले पाया. बृजेंद्र को समझ में नहीं आ रहा है कि उनके घर के सपने का क्या होगा. नीरज और बृजेंद्र की तरह असंख्य लोग हैं, जो ऐसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. ऐसे कई लोगों को मैं व्यक्तिगत रूप से भी जानता हूं.

मुझे पटना के कुछ लोग मिले थे. उन्होंने बताया कि यमुना एक्सप्रेस-वे पर प्रस्तावित जेवर एयरपोर्ट के पास एक जालसाज़ तथाकथित बिल्डर राजीव तिवारी नाम के व्यक्ति ने लगभग पटना के नब्बे लोगों को ऐसी कृषि योग्य भूमि बेच दी जिसपर कालोनियां बन ही नहीं सकतीं. इस व्यक्ति पर पटना और नोएडा में जालसाजी और धोखाधड़ी के मुकदमे भी चल रहे हैं. लेकिन, यह जालसाज राजीव तिवारी भागा फिर रहा है.

किसी व्यक्ति के लिए अपना आशियाना बनाने का सपना जिंदगी के सबसे बड़े सपनों में से एक होता है. इसके लिए वह न जाने कितनी मेहनत, कितने जतन करता है. अब ऐसे में अपनी सारी जमा-पूंजी लगा कर कोई घर बुक कराए, उसकी मासिक किस्तें जमा करें और उसके बावजूद अपने घर में शिफ्ट होने का इंतजार लंबा होता जाए और अंतहीन प्रतीक्षा में तब्दील हो जाए, तो उसके सामने विकट समस्या पैदा हो जाती है.


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पिछले कुछ सालों में डेवलपरों की गड़बड़ियों और रियल एस्टेट में लगे काले पैसों की वजह से इस सेक्टर की स्थिति खराब हो गई और उसका सबसे बड़ा खामियाजा ऐन्ड-यूजर यानी अंतिम और वास्तविक उपभोक्ताओं को ही भुगतना पड़ रहा है. केंद्र की मोदी नीत एनडीए सरकार घर खरीदारों की इन दिक्कतों से अपने कार्यकाल के पहले ही दिन से वाकिफ है. साथ ही, बुरी हालत में फंसे रियल एस्टेट सेक्टर के पुनर्जीवन को लेकर भी वह काफी संवेदनशील है. यही वजह है कि 2014 में सत्ता में आने के बाद ही मोदी सरकार ने रियल एस्टेट और घर खरीदारों की समस्याओं को अपनी प्राथमिकता सूची में रखा है.

केंद्र सरकार ने रियल एस्टेट की स्थिति में सुधार लाने के लिए भी कई सुधारात्मक उपायों को लागू किया. इस क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को भी बढ़ाया और लालफीताशाही को दूर किया. साथ पूंजी के प्रवाह को बढ़ाने के लिए अपने पहले बजट में ही ‘रियल एस्टेट इन्वेंस्टमेंट ट्रस्ट्स’ (रिट्स) को मंजूरी दी. रिट्स के जरिये जहां रियल एस्टेट डेवलपरों को सस्ती दरों पर पैसा मिलता है, वहीं स्थानीय निवेशकों को कुछ कम जोखिम पर रियल एस्टेट में निवेश करने का मौका मिलता है. ‘रिट्स’ विभिन्न निवेशकों से पैसे इकट्ठा कर रियल एस्टेट संपत्तियों के पोर्टफोलियो का स्वामित्व प्राप्त करता है और उनका प्रबंधन करता है. इससे रियल एस्टेट मार्केट में तरलता आती है यानी पूंजी की उपलब्धता बढ़ती है.

यही वजह है कि रियल एस्टेट में केंद्र सरकार के सुधारात्मक कदमों से उत्साहित इस क्षेत्र के दिग्गजों ने मोदी सरकार के दूसरी बार सत्ता में आने पर बेहद खुशी जाहिर की है. इन सुधारों के असर को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि वर्ष 2009 से 2018 के दौरान रियल एस्टेट सेक्टर में कुल 30 अरब अमेरिकी डॉलर का सांस्थानिक निवेश (इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टमेंट) हुआ. इसमें से 20 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश वर्ष केवल 2014 से 2018 के दौरान यानी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में हुआ, जो पिछली सरकार के दस वर्षों के मुकाबले दोगुना था. इस अवधि के दौरान विदेशी निवेश भी दोगुना से ज्यादा हुआ. 2009 तक विदेशी निवेश का हिस्सा इसमें 31 प्रतिशत था, वह 2018 तक 70 प्रतिशत हो गया. दरअसल, निवेश में वृद्धि से रियल एस्टेट सेक्टर के विकास को तेज गति मिलती है. इसके कई लाभ हैं. एक ओर तो रोजगार में वृद्धि होती है, दूसरी ओर पैसे का प्रवाह बढ़ने से परियोजनाओं के समय पर पूरा होने की संभावना भी बढ़ जाती है. इससे किसी आवासीय परियोजना में घर खरीदने वालों को समय पर अपना घर मिलने की उम्मीदें बढ़ जाती है.

मोदी सरकार ने घर खरीदारों के हितों की रक्षा करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कानून भी बनाए हैं, साथ ही कई नई योजनाओं की घोषणा भी की है. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मार्च 2016 में पारित ‘रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट, 2016’ (रेरा) एक ऐसा कानून है, जो घर खरीदारों के अधिकारों की रक्षा करता है और डेवलपरों की मनमानियों पर रोक लगाता है. यह आम लोगों के हितों की रक्षा करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था. इससे रियल एस्टेट में पारदर्शिता बढ़ रही है. चूंकि उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा जैसे शहरों में हजारों आवासीय परियोजनाएं चल रही हैं और उनमें लाखों लोगों ने घर बुक कराए हैं, तो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी लोगों की हितों की रक्षा के लिए बेहद संवेदनशील है. उत्तर प्रदेश सरकार ने भी कई फ्राड डेवलपरों पर कड़ी कार्रवाई की है. कई कंपनियों के अधिकारियों को जेल में भी डाला है. हरियाणा की भाजपा सरकार ने भी इस दिशा में कई प्रभावी कदम उठाए हैं.


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इसके अलावा, अधूरे प्रोजेक्टों को पूरा करने के लिए भी मोदी सरकार प्रतिबद्ध है. जुलाई माह में आम्रपाली की अधूरी योजनाओं को पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर भारत सरकार की निर्माण इकाई ‘नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन’ (एनबीसीसी) को नियुक्त किया गया है. इससे करीब 40,000 घर खरीदारों को राहत मिलेगी. इससे दूसरे अधूरे प्रोजेक्टों में फंसे घर खरीदारों में भी उम्मीद जगी है कि उनके साथ भी अंततः न्याय होगा. साथ ही, जुलाई माह में ही केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा है कि वह घर खरीदारों की दिक्कतों को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है.

सरकार कानून में बदलाव पर काम कर रही है, जो बड़े डेवलपरों द्वारा फ्लैटों की डिलीवरी कर पाने में नाकाम हो जाने के बाद अपने घर को पाने के लिए भटक रहे घर खरीदारों की मदद करेगा. जानकारी मिली है कि सरकार एक अध्यादेश पर भी काम कर रही है, जो घर खरीदारों की शिकायतों और दिक्कतों का निष्पक्ष और तत्काल निवारण करेगा.

सरकार यह समझती है कि अपना घर तो लोगों की बुनियादी जरूरत है. इसलिए लोगों को घर मिल सके, इसके लिए केंद्र सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है. अपने पहले बजट में ही मोदी सरकार ने कई प्रावधान किए थे, ताकि लोगों को सिर के ऊपर एक छत मिल सके. पहले बजट से शुरू हुआ यह अपना घर के मंसूबों को दृढ करने का सिलसिला 2019 के बजट तक जारी है. केंद्र सरकार की 2022 तक देशभर में सब लोगों को पक्का घर देने की योजना उसकी नीयत का स्पष्ट सबूत है. ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत मई, 2019 तक ढाई करोड़ से ज्यादा घर बनाए जा चुके हैं और इसके तहत अभी तक आठ करोड़ से ज्यादा मकानों के निर्माण को स्वीकृति दी जा चुकी है. लोगों के घर खरीदने के सपने को साकार करने के लिए सरकार ने जो एक और बड़ा काम किया है, वह है होम लोन की ब्याज दरों में कमी. यूपीए सरकार के दौरान जहां होम लोन की ब्याज दरों में लगातार वृद्धि हो रही थी, वहीं एनडीए सरकार के दौरान इसमें महत्वपूर्ण कमी आई है और घर खरीदारों के ऊपर मासिक किस्तों का बोझ कम हुआ है.

मोदी सरकार ने अपने रहने के लिए खरीदे गए घर के होम लोन के ब्याज भुगतान सालाना कर छूट की सीमा को दो लाख रुपये से बढ़ा कर इस बजट में साढ़े तीन लाख रुपये कर दिया है. इससे उन लोगों को फायदा होगा, जो मार्च 2020 तक अपने रहने के लिए 45 लाख रुपये तक मकान खरीदने के लिए लोन लेंगे. यह सचमुच में एक बड़ी राहत है. इससे 15 साल का होम लोन लेने वालों को कुल सात लाख रुपये का फायदा होगा. अफोर्डेबल हाउसिंग पर अब जीएसटी घटा कर 5 प्रतिशत कर दिया गया है. इससे भी लोगों को काफी फायदा होगा. भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को गति देने के लिए दिसंबर, 2014 में भूमि अधिग्रहण कानून में भी बदलाव किया गया. इससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के निर्माण, सोशल इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण, इंडस्ट्रियल कॉरिडोरों के निर्माण के साथ ही गरीब लोगों के मकानों के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में तेजी आई है.

जून 2014 से लेकर अब तक की गतिविधियों पर एक नजर डालें, तो यह स्पष्ट तौर पर यह नजर आएगा कि लोगों के घर खरीदने के सपने को साकार करने, इस रास्ते में आने वाली दिक्कतों को दूर करने के लिए, बिल्डरों के शोषण से उन्हें बचाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार और राज्यों की भाजपा सरकारें हर मोर्चे पर सक्रिय हैं. चाहे नियमों को सरल बनाना हो, चाहे नए कानून बनाना हो, चाहे घर खरीदारों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएं लागू करना हो, चाहे सब्सिडी प्रदान करना हो या फिर धोखाधड़ी करने वाले डेवलपरों पर कार्रवाई करना हो, सरकार इसके लिए हरसंभव कदम उठा रही है.

(लेखक बीजेपी से राज्यसभा सांसद हैं और यह लेख उनका निजी विचार है)

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