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Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतराफेल को लेकर BJP का कांग्रेस पर हमला 'गड़े मुर्दे उखाड़ना' नहीं है बल्कि, सोची समझी रणनीति है

राफेल को लेकर BJP का कांग्रेस पर हमला ‘गड़े मुर्दे उखाड़ना’ नहीं है बल्कि, सोची समझी रणनीति है

भाजपा, खासकर मोदी और शाह के नेतृत्व में, बेकार के मुद्दों पर अपना समय बर्बाद करने में काफी माहिर है. इसलिए उसने पूरी तरह कांग्रेस के अतीत पर फोकस कर रखा है.

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कांग्रेस के खिलाफ 2007 और 2012 के बीच राफेल सौदे में भ्रष्टाचार संबंधी आरोपों ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को अपने विरोधी दल के खिलाफ फिर से हमले के लिए गोला-बारूद दे दिया है, और ऐसा लगता है कि उसने यह मुद्दा लपकने में कतई देर नहीं लगाई है. लेकिन अब भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस पर हमला किया जाना समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है.

सच्चाई तो यही है कि अब किसी को न तो कांग्रेस की परवाह है और न ही किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की. निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार अब ऐसा मुद्दा नहीं रहा जो कथित तौर पर एक दशक पहले हुआ करता था. समय आ गया है कि भाजपा कांग्रेस के अतीत को उछालना बंद करे, जो अब पूरी तरह अप्रासंगिक और संदर्भ से परे हो चुका है.

बहरहाल, हमें यह पता होना चाहिए कि भाजपा जो कुछ भी करती है उसके पीछे उसकी कोई न कोई रणनीति जरूर होती है. और इस मामले में भी जाहिर है कि सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस को नीचे गिराने के लिए पिछली बातों को कुरेदकर दरअसल अपने ऊपर होने वाले किसी भी विपक्षी हमले की धार कुंद करने और अपने कामकाज को लेकर किसी भी तरह की आलोचना से बचने की कोशिश कर रही है. इस मामले में, राफेल पर कांग्रेस के खिलाफ संबित पात्रा की तरफ से यह जोरदार हमला लखीमपुर खीरी हिंसा मामले की जांच में लापरवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपी की भाजपा सरकार को कड़ी फटकार लगाए जाने के लिए एक दिन बाद ही बोला गया है.

कुल मिलाकर, अतीत की बातों को लेकर कांग्रेस पर हमले जारी रखना एक तरह से मुर्दे में जान डालने की कोशिश वाली कहावत को ही चरित्रार्थ करता नजर आता है, और भाजपा अपने विरोधियों को टक्कर देने के लिए ऐसे और अधिक सामयिक मुद्दे खोजने में जुटी रहेगी.


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सांकेतिक तौर पर नेहरू-बोफोर्स-राफेल का इस्तेमाल

भाजपा के लिए कांग्रेस के अतीत को निशाना बनाना हमेशा एक पसंदीदा साधन रहा है. जैसे जवाहरलाल नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक, कांग्रेस के नेताओं ने कभी कुछ अच्छा किया ही नहीं है. पार्टी बोफोर्स से लेकर 2जी तक घोटालों की उस्ताद रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर ही संसद सदन के भीतर अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों नेहरू और इंदिरा गांधी की आलोचना करते रहे हैं. जरा याद कीजिए नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर आलोचनाओं के बीच पिछले साल फरवरी में लोकसभा का उनका भाषण, जिसमें उन्होंने दोनों नेताओं की जमकर आलोचना की थी? या फिर राजीव गांधी पर उनका जोरदार हमला, जब 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने उन्हें भ्रष्ट नंबर-1 करार दिया था?

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने मंगलवार को कहा कि आईएनसी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) का मतलब है ‘आई नीड कमीशन’ यानी ‘मुझे कमीशन चाहिए.’ यह बेहद चतुराई के साथ शब्दों की बाजीगरी के अलावा और क्या हो सकता है जबकि, मतदाता कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के पुराने अवतार के बारे में अपना मानस पहले ही बना चुके हैं और उन्हें बाहर कर चुके हैं. आपको एक ही सुर अलापने और गड़े मुर्दे उखाड़ने में समय बर्बाद करने की क्या जरूरत पड़ी है?

भाजपा आमतौर पर ऐसे रूपक इस्तेमाल करती रहती है. मोदी-अमित शाह के नेतृत्व में राष्ट्रीय पटल में छाने के बाद शुरुआती समय में भाजपा का एकमात्र अन्य राष्ट्रीय पार्टी की आलोचना करना ज्यादा अजीब नहीं था, जिसे वह सत्ता से हटाने में सफल भी रही है. लेकिन सात साल बाद कांग्रेस, जो अपने लिए लड़ने की कोशिश करती भी नहीं दिख रही है, के एकदम खात्मे के कगार पर पहुंच जाने के बावजूद भाजपा का इस तरह बेवजह के मुद्दों को उठाना जारी रखना काफी विचित्र ही लगता है.


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भाजपा की सोची-समझी रणनीति

भाजपा, खासकर मोदी और शाह के नेतृत्व में, बेकार के मुद्दों पर अपना समय बर्बाद करने में काफी माहिर है और पूरी तरह कांग्रेस के अतीत पर फोकस करना इसी का एक तरीका है.

मतदाता पहले से ही कांग्रेस से निराश है, क्योंकि उन्हें कम से कम राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के फिर से उभरने की संभावनाएं काफी कम दिख रही हैं. कांग्रेस का अपने मौजूदा नेतृत्व—खासकर राहुल गांधी—पर हमले जारी रखना मोदी की भाजपा के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए काफी है कि ये पार्टी चुनाव के लिहाज से कमजोर बनी रही. वास्तव में, एक दशक पहले जो हुआ उसके लिए इस पर निशाना साधना कुछ ऐसा है जो शायद तमाम युवा मतदाताओं को साथ नहीं जोड़ पाएगा. और, यह बात भी उतनी ही सच है कि यह कांग्रेस—या कोई भी कांग्रेस सरकार जो आने वाले समय में सत्ता तक पहुंच पाए—यूपीए के दौर वाली कांग्रेस से बहुत अलग होगी, उस समय मंत्री रहे तमाम नेताओं का समय बीत चुका होगा.

दरअसल, भाजपा केवल यह सुनिश्चित करना चाहती है कि कांग्रेस फिर कभी अपना सिर न उठा पाए और अपने अतीत के बोझ से उबरने में इस कदर उलझी रहे कि उसे अपने भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कतई समय ही न मिले.

भाजपा इस मौके का इस्तेमाल विमर्श को बदलने और इसे उस दिशा में ले जाने के लिए कर रही है जो उसे फायदा पहुंचाए. ताजा घटनाक्रम में राफेल मुद्दा काफी मायने रखता है क्योंकि कांग्रेस भी इस पर बोलने और भाजपा पर जवाबी हमले करने में व्यस्त हो गई है. यह मोदी-शाह के लिए अच्छा ही है, क्योंकि ये तो उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में ही देख लिया था कि राफेल कैसे पूरी तरह कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है और इसके फिर सुर्खियों में आने से कोई दिक्कत नहीं है, खासकर जब यह किसान, लखीमपुर खीरी, ईंधन की कीमतें और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने में कारगर हो.

सत्ताधारा दल अपने मुख्य विरोधी दल को उसके अतीत में ही उलझाए रखने और मौजूदा समय में अपने लिए असहज सवाल खड़े करने वाली किसी भी बात से ध्यान भटकाने के अलावा और क्या चाहेगा?

ऐसे में, जब भाजपा अपना सारा ध्यान कांग्रेस के अतीत पर केंद्रित कर रही है, तो कांग्रेस के लिए बेहतर यही होगा कि वह इस जाल में फंसने के बजाये अपना ध्यान इस सरकार की कमियों और गलतियों पर सवाल उठाने पर केंद्रित करे.

(व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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