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Tuesday, 19 November, 2024
होममत-विमतसही इतिहास, इस्लामी देशों से रिश्ता- तनी हुई दो रस्सियों पर चलना BJP को पड़ रहा महंगा

सही इतिहास, इस्लामी देशों से रिश्ता- तनी हुई दो रस्सियों पर चलना BJP को पड़ रहा महंगा

अब भाजपा में केवल रणनीतिक बदलाव ही हो सकता है, बुनियादी परिवर्तन नहीं क्योंकि वह बहुत आगे बढ़ चुकी है.

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सत्ता के आठ सालों में भारतीय जनता पार्टी तनी हुई दो रस्सियों पर चलने का करतब करती रही है. पहली रस्सी तो है भारत के मुसलमानों के प्रति उसके नजरिए की. मीडिया में भाजपा के समर्थक हमें बड़े गर्व के साथ बताते हैं कि पार्टी को एक भी मुस्लिम वोट न मिले तब भी वह चुनाव जीतती रहेगी. बल्कि, अगर वह मुस्लिम विरोधी भावना को भड़का देती है और हिंदू मतदाताओं का संप्रदायीकरण कर देती है तो वास्तव में उसे और ज्यादा वोट मिलेंगे.

इसलिए, संघ परिवार मुसलमानों पर हमला करने से नहीं हिचकता है. बेशक, हमले करने का काम आमतौर पर ‘ट्रोल्स’ और तथाकथित ‘समर्थक बाहरी तत्वों’ के जिम्मे दे दिया गया है. लेकिन हम यह जान सकें कि इन हमलों का स्रोत कहां है, इसके लिए भाजपा और उसके प्रवक्ता इन हमलों पर निगाहों-निगाहों में इशारे करने का तरीका ढूंढ लेते हैं.

नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान कश्मीरियों और पाकिस्तानियों पर हमला करने की रणनीति चुनी गई और यह टीवी चैनलों पर बहसों का केंद्रीय मुद्दा बन गई, जिनमें भाजपा प्रवक्ता गला फाड़ कर चीखते रहे. वह तरीका अब अपनी गति खो चुका है इसलिए नयी रणनीति बनाई गई.

पार्टी के प्रवक्ता और पदाधिकारी अब मुसलमानों पर सीधे हमला नहीं करेंगे बल्कि ‘आक्रमणकारियों’ पर हमला करेंगे. वे कहेंगे कि सदियों तक मुस्लिम विजेता हिंदुओं पर अत्याचार करते रहे, उन्हें अपमानित करते रहे, हिंदुओं के मंदिर ढहाए गए. हिंदू देवी-देवताओं का अपमान किया गया, आदि-आदि.


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इतिहास और पराये मुसलमानों पर हमला

इतिहास में हुई गलतियों का हवाला इतिहास में किसी सच्ची दिलचस्पी के कारण नहीं दिया जाता है. यह सिर्फ हिंदुओं को यह याद दिलाने के लिए किया जाता है कि मुसलमान वास्तव में उतने भारतीय नहीं हैं जितने हिंदू हैं. मुसलमान तो आक्रमणकारियों के वंशज हैं. वे भारतीय हैं यह वे तभी साबित कर सकते हैं जब वे उन आक्रमणकारियों की निंदा करें और प्रायश्चित करें. वे अपनी मस्जिदें जांच के लिए खोल दें और हिंदू अगर वैसा फैसला करें तो वे मस्जिदों को हिंदू मंदिरों में बदलने के लिए सौंप दें.

इसके अलावा मुसलमान अपनी धरोहरों को सौंप दें और यह कबूल करें कि मुस्लिम शासकों के बनाए स्मारक हिंदुओं पर जुल्म के सबूत हैं और भाजपा सरकार जब मुस्लिम जुड़ाव वाले शहरों के नाम बदलें तो वे उनकी तारीफ करें. यह सब ‘पराये’ मुसलमानों को यह अहसास कराने के लिए है कि वे भयानक लोगों की संतानें हैं और वे हिंदुओं के अधीन रहें.

चूंकि सरकार आज के मुसलमानों पर हमला करने से लगभग बचते हुए उनकी जगह औरंगजेब तथा इतिहास के दूसरे नामों पर हमले करती है इसलिए वह दावा कर सकती है कि वह मुस्लिम विरोधी नहीं है. वह तो सिर्फ पहले हुई गलतियों को ठीक कर रही है. लेकिन यह हर बार विश्वसनीय नहीं लगता और यह साफ हो जाता है कि भाजपा को असली मतलब इतिहास से नहीं बल्कि वर्तमान से है. और वह इतिहास के मुसलमानों पर हमला करते हुए आज के मुसलमानों या इस्लाम पर कोई टिप्पणी करने से बचने का भी करतब करती रही है.

भाजपा की बदकिस्मती यह है कि उसके सभी प्रवक्ता तनी हुई रस्सी पर चलने जैसा यह करतब करने में उतनी महारत नहीं रखते जितने उसके वरिष्ठ नेता रखते हैं. इसलिए उसके दो प्रवक्ता पिछले दिनों इस रस्सी से गिर पड़े, उनके मुखौटे उतर गए और इस्लाम के प्रति उनकी नफरत सामने आ गई.

भाजपा को जबकि यह स्पष्ट हो जाना चाहिए था कि यह एक गलती है, उसने कदम वापस नहीं खींचे. बल्कि उसने इन प्रवक्ताओं को दी जा रही धमकियों (जो कि शर्मनाक थीं और जिनकी व्यापक निंदा की जानी चाहिए) की आलोचना शुरू कर दी और नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल जैसों ने जिस तरह उकसाने की शुरुआत की उस पर चुप्पी साधे रही.


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‘आंतरिक मामला’ नहीं रहा

तनी हुई दूसरी रस्सी पर चलना ज्यादा कठिन है. धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भारत के बर्तावों की दुनियाभर में निंदा होती रही है लेकिन हमारे राजनयिकों की कुशलता के कारण मुस्लिम जगत ने कोई आधिकारिक विरोध नहीं किया है. इसकी ठोस कूटनीतिक वजह भी है.

तर्क के लिए मान लीजिए कि भारतीय मुसलमानों पर परोक्ष हमलों के कारण सऊदी अरब या ईरान या कतर नाराज हो जाता है. लेकिन वे कोई आपत्ति या टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि यह भारत का आंतरिक मामला है, यह उन मामलों में शामिल है जिन पर कोई दूसरा देश आपत्ति करने का अधिकार नहीं रखता.

इसलिए प्रधानमंत्री मोदी यह दावा कर पाते हैं कि कांग्रेस इसलिए परेशान है क्योंकि इस्लामी दुनिया से उनकी सरकार के रिश्ते बहुत अच्छे हैं. इसका एक मतलब यह भी है कि हम अगर मुस्लिम विरोधी होते तो क्या मुस्लिम देश हमारे दोस्त होते?

बदकिस्मती से, जब आप औरंगजेब पर हमला करने, गोमांस खाने वाले गरीब मुसलमानों की ‘लिंचिंग’ करने से आगे बढ़कर खुद पैगंबर पर हमला करने तक पहुंच जाते हैं तब यह भारत का आंतरिक मामला नहीं रह जाता. इसलिए, उसके प्रवक्ताओं ने नफरत का जिस तरह खुला प्रदर्शन किया उसके कारण सरकार तनी हुई दूसरी रस्सी से भी गिर गई है.

इसलिए अब यह सारा घालमेल है, प्रवक्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई है और दूतावासों की ओर से मूर्खतापूर्ण बयान जारी करके शासक दल के आधिकारिक प्रवक्ताओं को ‘फ्रिंज एलिमेंट’ बताया जाता है.


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क्या भाजपा अपना ‘रंग’ बदल सकती है?

इस्लामी मुल्क अब तक तो यही संकेत देते रहे हैं कि वे इस तूफान के गुजर जाने का इंतजार करेंगे. लेकिन इसमें शक नहीं है कि वे हालात पर गहरी नज़र रखेंगे. इस्लाम और मुसलमानों के प्रति भारत के रुख को अब आंतरिक मामला भर नहीं माना जा सकता है. यह भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि बड़ी संख्या में भारतीय मध्य-पूर्व के देशों में रोजगार और रिहाइश कर रहे हैं. उस क्षेत्र के साथ हमारे व्यापारिक संबंध हमारी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं.

तो, अब क्या होगा? क्या भाजपा फिर से तनी हुई रस्सियों पर खड़ी हो जाएगी? या वह टीवी समाचार चैनलों के प्रति अपने रुख पर बुनियादी पुनर्विचार करेगी, जिसके साथ वह तुच्छ सोशल मीडिया वाला बर्ताव करती है? क्या वह ‘ट्रोल’ जैसे शोरमचाऊ, बेशर्म, राजनीतिक रूप से महत्वहीन प्रवक्ताओं को अपना नजरिया पेश करने के लिए आगे करने से परहेज करेगी?

यह अभी साफ नहीं है लेकिन संभावना यही है कि जो भी बदलाव होगा वह बुनियादी नहीं बल्कि सिर्फ रणनीतिक बदलाव होगा.

भाजपा इतनी आगे बढ़ चुकी है कि अब वह अपना मूल संदेश नहीं बदल सकती.

(वीर सांघवी भारतीय प्रिंट और टीवी पत्रकार, लेखक और टॉक शो होस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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