scorecardresearch
Tuesday, 17 December, 2024
होममत-विमतकोक बनाम पेप्सी की तरह ही है भाजपा बनाम विपक्ष, हिंदुत्व की नकल काम नहीं करेगी

कोक बनाम पेप्सी की तरह ही है भाजपा बनाम विपक्ष, हिंदुत्व की नकल काम नहीं करेगी

भारत के विपक्ष को नकल की राजनीति छोड़ अपने ब्रांड की रिपोजिशनिंग करनी चाहिए– जैसा एविस ने हर्ट्ज़ के खिलाफ या फॉक्सवैगन बीटल ने बड़ी अमेरिकी कारों के मुकाबले किया था.

Text Size:

भारत में आज भाजपा और शेष विपक्षी दलों के बीच की लड़ाई काफी कुछ कोक बनाम पेप्सी की प्रसिद्ध लड़ाई जैसी हो गई है. वो भी तमाम गलत कारणों से.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अयोध्या में भूमि पूजन के कुछ दिन बाद ही जदयू और राजद के नेताओं ने कहा कि वे जानकी जन्मभूमि का विकास चाहते हैं और भव्य राम मंदिर की तरह ही वहां पर सीता मंदिर का निर्माण भी. इससे पहले 5 अगस्त को लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेताओं में जय श्रीराम का जाप करने की होड़ लग गई थी.

उत्तर भारत में वास्तव में नकल के ज़रिए हिंदुत्व की बराबरी करने का इकोसिस्टम बन गया है. ये दूसरे के ब्रांड की नकल का क्लासिक उदाहरण है. और यहीं कोक बनाम पेप्सी के ब्रांड युद्ध का संदर्भ आता है.

पेप्सी को ‘कोका-कोला जैसा’ माना जाता था जबकि कोक ने ‘द रीयल थिंग’ का अपना टैगलाइन जारी रखा था. हालांकि पेय का नाम बताए बिना चखने के परीक्षणों में अधिकांशत: पेप्सी को बेहतर स्वाद वाला माना जाता है लेकिन कोक अग्रणी ब्रांड बना हुआ है. नरेंद्र मोदी-अमित शाह की भाजपा की भी यही स्थिति है.

भाजपा का हिंदुत्व कोक है– वर्तमान में बाज़ार का शीर्ष ब्रांड. दूसरी तरफ कई पेप्सी जैसे ब्रांड हैं– कांग्रेस का जनेऊधारी वाला ब्रांड, आप का हनुमान चालीसा का पाठ करने और शाहीन बाग से कन्नी काटने वाला, राजद-जदयू का सीता मंदिर वाला और सपा-बसपा का परशुराम वाला ब्रांड.


यह भी पढ़ें: भारतीय बाज़ार के आकार को रणनीतिक हथियार बना रहे हैं मोदी, चीन लंबे वक्त तक ऐसा कर चुका है


आदि-हिंदुत्व में किसी की रुचि नहीं

एक प्रतिस्पर्धी और तेज़ बाज़ार में– भारतीय लोकतंत्र से अलग स्थिति नहीं– उन कंपनियों का ही वर्चस्व हो सकता है जो अपने ब्रांडों की विशिष्टता स्थापित करने में निवेश करती हैं. जो ऐसा नहीं करती हैं, उन्हें प्रमाणिक नहीं माना जाता है.

अयोध्या के 5 अगस्त के आयोजन से पहले कई कांग्रेसी ‘आखिर ताला किसने खोला?’ का सवाल उछाल रहे थे. उनका आशय राजीव गांधी के 1985 में बाबरी मस्जिद को खुलवाने और 1989 में शिलान्यास की अनुमति दिए जाने से था. एक तरह के आदि-हिंदुत्व पर उनकी दावेदारी इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि किस तरह की ब्रांडिंग से बचा जाना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि कंप्यूटर का आविष्कार करना ही पर्याप्त साबित नहीं हुआ था, जो कि स्पेरी रैंड कंपनी ने किया था. आज कोई भी उस कंपनी को याद नहीं करता. जैसा कि अल रीस ने अपनी किताबपोजिशनिंग:द बैटल फॉर योर माइंड’ में बताया है- ब्रांड लीडर वो है जो कि उपभोक्ताओं के दिलोदिमाग पर छा जाए, जैसा कि कंप्यूटर के मामले में आईबीएम ने किया. यह बात भाजपा और अयोध्या पर भी लागू होती है.

जब आपके सामने बाज़ार का शीर्ष ब्रांड हो तो फिर आप किसी नकल वाले और देर से सामने आए हिंदुत्व पर क्यों यकीन करेंगे? ये बर्गर किंग को छोड़ बर्गर सिंह को अपनाने जैसा होगा.

घटिया नकल दीर्घावधि में कभी फायदेमंद साबित नहीं होती है. हालांकि अल्पावधि में यह चर्चित हो सकती है. जैसा कि फेयर एंड हैंडसम क्रीम के 2014 में रीलॉन्च के दौरान शाहरुख खान द्वारा उसका विज्ञापन किए जाने पर दिखा था. नए उत्पाद ने फेयर एंड लवली ब्रांड की लोकप्रियता और रीकॉल वैल्यू का फायदा उठाने की कोशिश की थी (जिसका पुरुष उपभोक्ता चुपके-चुपके इस्तेमाल भी कर रहे थे). लेकिन आगे चलकर फेयर एंड हैंडसम का जादू खत्म हो गया.


यह भी पढ़ें: भारत के बारे में कमला हैरिस के विचार उनके DNA से नहीं, हमारी अर्थव्यवस्था की हालत से तय होंगे


दक्षिणपंथ के लिए मारामारी

ब्रांड पोजिशनिंग संबंधी जोखिमों के अलावा नकल से तैयार हिंदुत्व भारतीय राजनीति को उन लोगों के लिए उबाऊ बना देता है जो वास्तव में धार्मिक कट्टरतावाद के विकल्प की उम्मीद कर रहे हैं. यह एक खतरनाक उपक्रम भी है. यदि हर कोई खुलेआम हिंदू राजनीति या उसके किसी प्रकार को– अपना रहा हो तो उसके मूल वाहक को बदलने के लिए, बाकियों से अधिक सख्त बनने के लिए बाध्य होना पड़ता है. ये रसातल में जाने की होड़ है.

इज़रायल में पिछले चुनाव में सभी दल दक्षिणपंथी रुझान लिए दिख रहे थे. इसके कारण राजनीतिक विभेद समाप्त हो गया था. इस संबंध में पड़ोसी पाकिस्तान के उदाहरण को भी देख सकते हैं. वहां प्रमुख दलों पीपीपी, पीएमएल (एन) और पीटीआई में विभेद के बहुत सीमित आधार रह गए हैं– तीनों इस्लामी कट्टरपंथियों को बढ़ावा देते हैं और सेना का गुणगान करते हैं.

गत वर्ष, मैंने दलील दी थी कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति में मध्यमार्ग का एक नया विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं जो हिंदूवाद, राष्ट्रवाद, सामाजिक उदारवाद और लोक कल्याणवाद का घालमेल है. लेकिन उसके बाद से वह मध्यमार्ग से दूर हटते हुए दक्षिणपंथ के अधिक करीब आ गए हैं. उनका वैचारिक भटकाव खतरों से भरा है.

समय बीतने के साथ, वास्तविक विकल्प का अभाव और क्षैतिज जवाबदेही तंत्र का क्षरण लोकतंत्र को कमज़ोर बना सकता है.

बराबरी करने की राजनीति के बजाए भारतीय विपक्ष को अपने ब्रांड की सही रिपोजिशनिंग पर ध्यान देना चाहिए.


यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों ने पहली बार 15 अगस्त को नहीं फहराया काला झंडा, पुलिस अधिकारी बता रहे बड़ी कामयाबी


नंबर 2 ही आगे बढ़ सकता है

विज्ञापन जगत में रेंटल कार सेक्टर के भीतर एविस बनाम हर्ट्ज़ की ब्रांड प्रतिद्वंदिता किवदंती बन चुकी है. एविस बाज़ार में दूसरे नंबर पर थी और हर्ट्ज़ शीर्ष पर. वर्षों तक एविस का संदेश हर्ट्ज़ के समान ही था यानि कारों, अपने नेटवर्क आदि की बातें करना. फिर एविस ने नंबर 2 की अपनी हैसियत को बेचना शुरू किया और कुछ इस तरह का संदेश देने लगी कि हमारे पास आएं, हम दूसरी सबसे बड़ी कार रेंटल कंपनी हैं, हम बेहतर करने का हरसंभव प्रयास करते हैं, हमारे यहां भीड़ कम है, हमारी कारें बेहतर कंडीशन में हैं आदि-आदि.

जब बाज़ार में शीर्ष कंपनी बहुत बड़ी हो जाती है तो वह अपनी गढ़ी कहानी में ही उलझने लगती है और स्वनिर्धारित ‘बेहतर तौर-तरीकों’ में फंसकर रह जाती है. सफलता उसे आलसी बना देती है. घबराहट में ज्यादा सोच-विचार किए बिना कदम उठाने की बजाए एविस ने सफल ब्रांड की कमज़ोरी– प्रदर्शन में सुधार की ज़रूरत का अभाव का फायदा उठाने का निर्णय किया.

कोला बहुल बाज़ार में ‘अनकोला’ बनकर 7अप ने ऐसा ही कुछ किया था. इसी तरह जब अमेरिका में बड़ी और भड़कीली कारों का चलन था, फॉक्सवैगन बीटल ने ‘थिंक स्माल’ का अपना प्रसिद्ध टैगलाइन जारी किया था. पेप्सी की भी तब अपनी विशिष्ट जगह बनी जब उसने युवाओं को लक्षित करना, संगीत से जुड़ना और माइकल जैक्सन को अपने विज्ञापनों में प्रदर्शित करना शुरू किया. ताज़गी भरी पसंद के रूप में अपनी पोजिशनिंग करके उसने कोक को पुराना साबित करने की कोशिश की.

कुआलालंपुर स्थित ब्रांड विश्लेषक शिवरंजन सहगल बताते हैं, ‘व्यवसाय को बढ़ाने के लिए आपको नए उपभोक्ताओं को जोड़ने या वर्तमान उपभोक्ताओं को उत्पाद के अधिक इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने या उत्पाद के नए उपयोगों को बढ़ावा देने की ज़रूरत होती है. इसी प्रकार राजनीतिक दल को नए समर्थकों को जोड़ने या एक विशिष्ट संदेश के साथ मूल समर्थकों के बीच अपनी प्रासंगिकता बढ़ाने की ज़रूरत होती है.’

भाजपा के प्रभावशाली हिंदुत्व के रहते भला नकलची हिंदुत्व में किसकी रुचि होगी?

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: बजट प्राइवेट स्कूलों को सता रहा ताला लगने का डर, महामारी के बीच फंड खत्म होने पर शिक्षकों को राशन बांट रहे


 

share & View comments