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Monday, 11 August, 2025
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संविधान क्लब में बीजेपी बनाम BJP की जंग, मुंबई से लखनऊ तक बढ़ती दरारों की झलक

मंगलवार को हुआ संविधान क्लब का चुनाव ‘ठाकुर बनाम बाकी’ की बीजेपी अंदरूनी जंग का अंत नहीं है. अगला लोकसभा चुनाव आने से पहले जातिगत जनगणना के नतीजों का इंतज़ार कीजिए.

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महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने पिछले हफ्ते अपने परिवार के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की, लेकिन सुर्खियों में उनका 5 साल का पोता रुद्रांश छा गया. वह खुद नहीं आया, लेकिन अपने दादाजी से कहा कि प्रधानमंत्री से उनके लिए लड़ाकू विमान लेकर आएं.

दिल्ली में बेटे श्रीकांत के घर पर मेहमानों से बातचीत में मुस्कुराते हुए शिंदे ने बताया, “मोदीजी ने खुद पूछा—रुद्रांश कहां है? मैं हैरान था कि प्रधानमंत्री को उसका नाम याद था!” शिंदे ने हंसते हुए हामी भरी.

जुलाई 2023 में मोदी की मुलाकात रुद्रांश से हुई थी. उस समय शिंदे अपने पिता संभाजी शिंदे, जो मोदी के प्रशंसक हैं, उनको भी उनसे मिलाने लाए थे. दो साल बाद भी प्रधानमंत्री को शिंदे के पोते का नाम याद होना, दोनों के बीच की नज़दीकी दिखाता है.

इससे पहले उपमुख्यमंत्री शिंदे, शिवसेना सांसदों के साथ अमित शाह से मिलने गए थे, उन्हें लगातार 2,258 दिन तक केंद्रीय गृह मंत्री रहने का ‘सबसे लंबे कार्यकाल’ का रिकॉर्ड बनाने पर बधाई देने. यह मुलाकात ठीक एक दिन बाद हुई, जब महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ महायुति में फिर दरारें सामने आईं, इस बार बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (BEST) के महाप्रबंधक की नियुक्ति को लेकर.

सीएम देवेंद्र फडणवीस के सामान्य प्रशासन विभाग और शिंदे के शहरी विकास विभाग ने इस पद के लिए अलग-अलग नाम तय किए. आखिरकार सीएम की पसंद को मंजूरी मिली. फडणवीस के पिछले साल दिसंबर में फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद से, शिंदे का अमित शाह से मिलने दिल्ली जाना आम बात होने लगी है. फडणवीस अक्सर अपने पूर्ववर्ती के फैसलों की समीक्षा या उन्हें पलट देते हैं. पिछले महीने उन्होंने शिवसेना मंत्री संजय शिर्साट के बेटे से जुड़े एक होटल सौदे की जांच के आदेश दिए.

इसी वजह से, जब भी शिंदे अमित शाह से मिलने दिल्ली जाते हैं, फडणवीस खेमे में हलचल बढ़ जाती है. हालांकि, सीएम का जवाब देने का भी अपना तरीका है. पिछले महीने विधान परिषद में फडणवीस ने उद्धव ठाकरे से कहा, “आपके पास यहां आने का मौका है” और उन्हें कोषागार बेंच में शामिल होने का न्योता दे दिया.

यह बात मज़ाक में कही गई लग सकती है, लेकिन राजनीति में मज़ाक के भी मायने होते हैं. फडणवीस अपने दूसरे डिप्टी, अजित पवार के साथ काफी सहज नज़र आते हैं. यही वजह है कि 30 जून को जब अमित शाह ने अजित की बहन और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी सुप्रिया सुले को जन्मदिन की बधाई के लिए फोन किया, तो कई भौंहें उठीं.

तो अगर आप पीके के आमिर खान की तरह कहें, “हम बहुत ही कंफ्यूजिया गए हैं” तो आपको दोष नहीं दिया जा सकता. इसलिए एक आसान निष्कर्ष मान लेते हैं—अमित शाह और फडणवीस के महाराष्ट्र की राजनीति में शायद ज़्यादा साझा दोस्त नहीं हैं….बस इतना ही.


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संविधान क्लब का चुनाव

अब चलते हैं दिल्ली की तरफ. क्या आप जानते हैं कि मौजूदा संसद सत्र के दौरान बीजेपी के सांसद और नेता किस चीज़ में सबसे ज़्यादा व्यस्त हैं? जवाब है—संविधान क्लब का चुनाव. मौजूदा और पूर्व सांसद दोनों ही इसमें पूरी तरह जुटे हुए हैं. सोचिए, कांग्रेस के ए.पी. जितेंद्र रेड्डी और राजीव शुक्ला और डीएमके के तिरुची शिवा—कोषाध्यक्ष, सचिव (खेल) और सचिव (संस्कृति) के पद पर निर्विरोध चुने गए हैं, लेकिन सचिव (प्रशासन) का चुनाव बेहद कड़ा मुकाबला बन गया है.वह भी दो बीजेपी नेताओं के बीच—सारण के सांसद राजीव प्रताप रूडी और पूर्व मुज़फ्फरनगर सांसद संजीव बालियान.

25 साल में पहली बार रूडी को चुनौती मिली है और वह भी अपनी ही पार्टी के साथी से. दोनों खेमे ज़ोरदार लॉबिंग में जुटे हैं, ताकि क्लब के 1,295 मौजूदा और पूर्व सांसदों का समर्थन मिल सके. जाट नेता बालियान, जो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी नहीं माने जाते, उनको अपना सबसे बड़ा समर्थक और प्रचारक मिला है—पार्टी सांसद निशिकांत दुबे. हाल ही में एक पॉडकास्ट में दुबे ने कहा कि 2017 में यूपी में लोगों ने मोदी को वोट दिया था, योगी को नहीं और “आज भी” मोदी को ही वोट देते हैं, जहां तक योगी को “पसंद” करने की बात है, दुबे ने कहा कि लोग “कई लोगों” को पसंद करते हैं, जैसे हिमंत बिस्वा सरमा और देवेंद्र फडणवीस. फिर उन्होंने कहा कि अमित शाह की लोकप्रियता “कल्पना से परे” है. सीधा मतलब दुबे के मुताबिक, योगी बीजेपी के कई नेताओं में से एक हैं और लोकप्रियता में अमित शाह के आस-पास भी नहीं आते.

दुबे का इस तरह बालियान के लिए खुलकर प्रचार करना, राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है, मानो संविधान क्लब के उम्मीदवारों के पीछे असली मुकाबला कोई और ही हो. यूपी के एक बीजेपी सांसद, जो बालियान का समर्थन कर रहे हैं, ने मुझसे कहा, “अगर एक लाइन में समझना है तो यह चुनाव है ठाकुर बनाम बाकी.” सबसे दिलचस्प बात यह है कि पार्टी हाईकमान ने दो नेताओं को आमने-सामने लड़ने की इजाज़त क्यों दी. प्रचार अब जातिगत रंग ले रहा है और पार्टी के मौजूदा व पूर्व सांसद बंट रहे हैं. मतदान मंगलवार को होगा. देखते हैं कौन जीतता है.


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मंत्री बनाम अफसर

लखनऊ में, ठाकुर नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मानो अपने ही लोगों से घेरे में हैं. कुछ ताज़ा घटनाओं पर नज़र डालते हैं. पिछले महीने, उनकी सरकार में मंत्री प्रतिभा शुक्ला ने अकबरपुर थाने में धरना दिया, आरोप लगाया कि पुलिस उनके सहयोगियों को निशाना बना रही है. उनके पति, बीजेपी नेता अनिल शुक्ला ने मीडिया से कहा कि मौजूदा यूपी सरकार में ब्राह्मणों को बार-बार टारगेट किया जा रहा है.

शुक्ला दंपति शायद संकेत ले रहे थे एक और यूपी मंत्री, आशीष पटेल से, जो केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के पति हैं. आशीष, जो यूपी के तकनीकी शिक्षा और उपभोक्ता मामलों के मंत्री हैं, उन्होंने सूचना विभाग पर 1,700 करोड़ रुपये के बजट का इस्तेमाल उनकी पार्टी, अपना दल (सोनेलाल), को अस्थिर करने के लिए करने का आरोप लगाया. इससे पहले, उन्होंने तत्कालीन सूचना निदेशक शिशिर सिंह और सीएम के मीडिया सलाहकार मृत्युञ्जय सिंह पर “झूठी खबरें प्लांट” करके उनकी छवि बिगाड़ने का आरोप लगाया था. यहां तक कि उन्होंने अमिताभ यश की अगुवाई वाले स्पेशल टास्क फोर्स (STF) को चुनौती दी थी “अगर हिम्मत है तो सीने पर गोली मारो.”

आशीष की पत्नी अनुप्रिया पटेल, जिन्हें अमित शाह के पसंदीदा नेताओं में माना जाता है, कई बार यूपी सरकार को असहज कर चुकी हैं, खासकर आरक्षण नीति लागू न करने पर सवाल उठाकर. योगी के दूसरे कार्यकाल में अब तक आठ मंत्री या तो उन्हें पत्र लिख चुके हैं या सार्वजनिक रूप से सरकारी अफसरों पर निशाना साध चुके हैं—यानी सीधे तौर पर उनकी गवर्नेंस पर सवाल.

ज़रा सोचिए—एक मुख्यमंत्री, जिसे प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताया जाता है, लगातार अपने मंत्रियों के हमले झेल रहा है, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा. वे उन्हें बर्खास्त भी नहीं कर सकता, क्योंकि नियुक्ति का अधिकार बीजेपी हाईकमान के पास है.

कमांड-एंड-कंट्रोल की नाकामी?

मुंबई, दिल्ली और लखनऊ से आगे, गुजरात में मंत्री बचुभाई खाबड़ के दो बेटों को मनरेगा घोटाले में गिरफ्तार किया गया, लेकिन वे अब भी सरकार में बने हुए हैं. राजस्थान के मंत्री किरोड़ी लाल मीणा अपनी ही सरकार पर कुप्रशासन से लेकर फोन टैपिंग तक कई मुद्दों पर हमला कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी चुप है. पिछले हफ्ते उन्होंने ऐलान किया, “मुझे रोकने की हिम्मत अच्छे-अच्छे नहीं कर सकते.”

हरियाणा के मंत्री अनिल विज खुलेआम मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पर लगातार हमले कर रहे हैं.

बीजेपी सांसद रामचंदर जांगड़ा ने पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ितों और उनके परिवारों का अपमान करते हुए कहा कि जिन पर्यटकों की हत्या हुई, उनके “हाथ जुड़े हुए थे” और उनकी पत्नियों में “वीरता की भावना” की कमी थी.

ये तो कुछ उदाहरण हैं, ऐसे कई और मामले हर राज्य में मिल जाएंगे, जिससे लगता है कि बीजेपी अब “पार्टी विद डिफरेंसेज़” बन गई है. सवाल है, बीजेपी के साथ हुआ क्या है? इसका कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम क्यों ढह गया?

आरएसएस शायद अब इस ‘सक्षम’ पार्टी की मार्गदर्शक आत्मा नहीं रही, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी तरह कमान में हैं और गृहमंत्री अमित शाह भी. जून 2024 से बीजेपी अध्यक्ष का पद खाली है, लेकिन जब जे.पी. नड्डा अध्यक्ष थे, तब भी असल हाईकमान मोदी-शाह ज़्यादातर मामलों में शाह ही थे.

असलियत ये है कि कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम में कोई बदलाव नहीं आया. आज भी हाईकमान चाहे तो तुरंत कार्रवाई होती है. उदाहरण के लिए तेलंगाना के विधायक राजा सिंह को इसलिए हटना पड़ा क्योंकि वे यह नहीं समझ पाए कि वे राज्य बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव में किसके खिलाफ लड़ने जा रहे थे– अमित शाह के उम्मीदवार रामचंदर राव के. शाह और राव का नाता 1980 के दशक से है, जब दोनों अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में थे.

इसी तरह, बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बी.वाई. विजयेंद्र पर लगातार हमले करके अपने निष्कासन को लगभग तय कर दिया. यतनाल जानते थे कि विजयेंद्र ने किस तरह और क्यों अमित शाह का भरोसा जीता.

संक्षेप में, पीके के आमिर खान की तरह कन्फ्यूज़ मत होइए. जो आपको या मुझे अव्यवस्था लगे, उसमें भी एक तरीका है. खासकर मुंबई, दिल्ली और लखनऊ में जो हो रहा है, वह सोची-समझी चाल है और मंगलवार का संविधान क्लब चुनाव बीजेपी के भीतर ‘ठाकुर बनाम बाक़ी’ की लड़ाई का अंत नहीं है. अगला बड़ा मोड़ तब आएगा जब लोकसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना के नतीजे सामने आएंगे. ओबीसी की अंतिम गिनती कई ऊपरी जाति के नेताओं सिर्फ ठाकुर ही नहीं, बल्कि फडणवीस, नितिन गडकरी जैसे नेताओं की महत्वकांक्षाओं पर कुठाराघात कर सकती है. संविधान क्लब का बीजेपी बनाम बीजेपी चुनाव तो बस एक झांकी है. पूरी पिक्चर अभी बाकी है.

(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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