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Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतभाजपा-पीडीपी तलाक़ 2019 में दिला सकता है मोदी को वोट, पर कश्मीर-दिल्ली के बीच बढ़ सकते हैं फासले

भाजपा-पीडीपी तलाक़ 2019 में दिला सकता है मोदी को वोट, पर कश्मीर-दिल्ली के बीच बढ़ सकते हैं फासले

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भाजपा ने गठबंधन से किनारा कर लिया क्योंकि भाजपा द्वारा पीडीपी के साथ सत्ता में रहने के लिए इसे हर संभव तरीके से मनाने के कारण जम्मू के लोग आलोचनात्मक हो रहे थे।

पीडीपी के साथ अपनी पार्टी के चार साल पुराने खट्टे-मीठे रिश्ते के अंत की घोषणा करते हुए भाजपा के महासचिव राम माधव ने कहा कि “यह ध्यान में रखते हुए कि जम्मू कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है और राज्य में मौजूदा स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हमने (भाजपा) निर्णय लिया है कि राज्य में सत्ता की बाग-डोर को राज्यपाल को सौंप दिया जाना चाहिए”।

यह वास्तविक चित्र का पूर्ण विरूपण है। गठबंधन तोड़ने का निर्णय उतना ही अवसरवादी है जितना कि इसमें शामिल होने का निर्णय था।

भाजपा ने गठबंधन छोड़ दिया है क्योंकि इसे एहसास हुआ कि जमीन इसके पैरों के नीचे से तेजी से फिसल रही थी और इसकी व्यर्थ ईद युद्ध विराम योजना एक बड़ी गलती साबित हुई।

भाजपा ने गठबंधन से किनारा कर लिया क्योंकि भाजपा द्वारा पीडीपी के साथ सत्ता में रहने के लिए इसे हर संभव तरीके से मनाने के कारण जम्मू के लोग आलोचनात्मक हो रहे थे।

पार्टी ने गठबंधन इसलिए छोड़ा क्योंकि कश्मीर समस्या 2019 लोकसभा चुनाव की योजनाओं को बर्बाद करने के लिए खतरा पैदा करते हुए अब राह में भारी अड़चन बन रही थी।

2019 चुनाव अभियान को केंद्र में रखकर लिए गए इस निर्णय में भाजपा के स्पष्टीकरण का साधारण रूप से कोई भी अनुमान लगा सकता है कि ‘हमने देश की भलाई के लिए सत्ता छोड़ दी’।

हालाँकि मुफ़्ती मोहम्मद सईद सरकार का हिस्सा बनने के कुछ दिनों के भीतर ही भाजपा के लिए परिस्थितियां प्रतिकूल होनी शुरू हो गयीं थीं लेकिन असली समस्या कठुआ में आठ वर्षीय लड़की के कथित गैंगरेप और हत्या के बाद दो महीने पहले शुरू हुई। अपने दो मंत्रियों लाल सिंह और चंदर प्रकाश गंगा (अब हटाये जा चुके) और कुछ विधायकों द्वारा कठुआ बलात्कार के आरोपी की मदद के कारण समर्थन के लिए कड़ी आलोचना झेल रही भाजपा ने उन्हें बर्खास्त करके और महबूबा को उनके मंत्रालय में फेरबदल करवा के नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की थी।

हालाँकि, लाल सिंह के आक्रामक होने और बड़ी एवं विशालकाय जनसभाएं करने के साथ यह दांव भी उल्टा पड़ गया। पीडीपी के आलोचक लाल सिंह को सुनने के लिए आई विशाल भीड़ भगवा पार्टी, जिसने पिछले विधानसभा चुनावों में 25 सीटें जीती थीं, के लिए एक गंभीर रिमाइंडर थी कि जम्मू के लोग अब भाजपा का साथ देने के लिए तैयार नहीं हैं।

यह भी संकेत मिले थे कि लाल सिंह और कई अन्य भाजपा नेता एक क्षेत्रीय पार्टी स्थापित करने की योजना बना रहे थे, जो जम्मू के लोगों के अधिकारों और हितों के लिए काम करती। इससे राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को नुकसान पहुंचा होगा, कर्नाटक में सरकार बनाने में इसकी असमर्थता से भी कहीं ज्यादा।

हालाँकि इस कदम की टाइमिंग ने पीडीपी के नेताओं समेत कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया लेकिन भाजपा संभवतः पीडीपी द्वारा काम तमाम होने तक का इंतजार नहीं करना चाहती थी। और हाँ, यह एक खुला रहस्य है कि पीडीपी गठबंधन तोड़ने के लिए समयोचित क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी ताकि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र में संकेत भेज सके कि इसने कश्मीर की भलाई के लिए सत्ता छोड़ दी।

जल्द ही ऐसा होने की सम्भावना ने भाजपा को ये कदम उठाने के मजबूर कर दिया।

साथ ही, हर गुजरते हुए दिन के साथ घाटी में एक नए निम्न स्तर को छू रही सुरक्षा स्थिति के साथ अमरनाथ यात्रा राज्य सरकार के लिए कई चुनौतियाँ खड़ी कर देती। यहाँ तक कि यात्रियों पर आतंकवादियों द्वारा एक एकलौता हमला या बम विस्फोट भी नरेन्द्र मोदी सरकार के दावे के लिए एक बड़ा झटका होता कि इसने आतंकवादियों की किसी भी समय हमला करने की क्षमताओं को नष्ट कर दिया है।

हालाँकि, आश्चर्य की बात यह है कि इसके बार-बार के दावों के बावजूद, कि यह मतदाताओं की मनोदशा पढ़ने में महारथ हासिल कर चुकी है, भाजपा को इस निष्कर्ष पर आने में चार साल लग गए जो सभी स्पष्ट रूप से जानते थे। गठबंधन बस इसे नुकसान पहुंचा रहा था।

बीजेपी के पास चाणक्यों के लिए बहुत कुछ है!

अगला कदम: पीडीपी को खुश करने की किसी भी बाध्यता के बिना, चूंकि मुफ़्ती को अलगाववादियों पर नर्म रुख रखने वालों के रूप में देखा जाता था, भाजपा से अब खुलकर अपनी शक्तिशाली नीति को अभ्यास में ले आने की उम्मीद की जा सकती है।

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एन.एन. वोहरा एक सक्षम प्रशासक हैं, जिनसे आगामी अमरनाथ यात्रा के दौरान स्थिति पर नियंत्रण बनाए रखने की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन, सुरक्षा की स्थिति में सुधार कुछ ऐसा है जिसमें केंद्र की भूमिका राज्य प्रशासन की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होगी।

आतंकवादियों की बढ़ती गतिविधियों को बलपूर्वक कुचलने की अत्यंत शक्तिपूर्ण नीति शायद भाजपा को 2019 में वोट दिलवा सकती है लेकिन इसमें कश्मीर को हमेशा के लिए गर्त में धकेल देने का जोखिम भी है।

भाजपा को जम्मू-कश्मीर के लोगों की बढ़ती विरक्ति की जांच करने के लिए राज्यपाल को स्वतंत्र अवसर देना चाहिए, विशेष रूप से अंततः अतिविलंबित पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों का आयोजन करवाके, और वास्तविक जमीनी लोकतंत्र को वापस लौटने की अनुमति देनी चाहिए।

क्या वह ऐसा करेगी? यह बहुत संदिग्ध प्रतीत होता है।

एक चीज की सम्भावना है कि सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मामले में केंद्र और अधिक शामिल होगा कि क्या अनुच्छेद 35 A के माध्यम से जम्मू-कश्मीर को दी गई विशेष स्थिति असंवैधानिक है या नहीं। 6 अगस्त को, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को एक संवैधानिक न्यायपीठ को सौंपने के लिए याचिका पर सुनवाई शुरू कर दी थी।

यह धारा राज्य विधानसभा को, राज्य का स्थायी निवासी कौन है, पर एकमात्र मध्यस्थ होने का अधिकार देती है और ऐसे लोगों को विशेषाधिकार भी देती है।

केवल समय ही बताएगा कि क्या भाजपा ने अपनी वर्तमान स्थिति के साथ अपने गठबंधन सहयोगी की अपेक्षा बेहतर तरीके से न्याय किया है या जम्मू के लोग इस तथाकथित स्मार्ट कदम को स्वीकार करने से मना कर देंगे।

Read in English : BJP-PDP split may help Modi win 2019, but Kashmir may become a lost cause

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