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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतओबीसी की बुलंद आवाज बनकर उभरे बीजेपी सांसद गणेश सिंह

ओबीसी की बुलंद आवाज बनकर उभरे बीजेपी सांसद गणेश सिंह

सांसद गणेश सिंह पटेल शुरू से ही मंडल आयोग की सिफारिशों के प्रबल समर्थक रहे हैं. वे मूल रूप में समाजवादी विचारधारा के समर्थक हैं और मंडल कमीशन के समर्थन में हुए आंदोलन में भी उन्होंने हिस्सा लिया था.

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ओबीसी आरक्षण और क्रीमी लेयर एक बार फिर से चर्चा में हैं. दरअसल केंद्र सरकार द्वारा गठित बीपी शर्मा कमेटी ने ओबीसी आरक्षण में क्रीमीलेयर के नियमों में बदलाव करने की सिफारिशें की हैं. उनमें प्रमुख सिफारिश ये है कि आय की गणना में वेतन और कृषि समेत हर आमदनी को शामिल किया जाए. ऐसा होने की स्थिति में नौकरीपेशा लोगों और किसानों का एक बड़ा हिस्सा ओबीसी आरक्षण से बाहर हो जाएगा. कई ओबीसी नेता इसके विरोध में मुखर हुए हैं. जिनमें प्रमुख नाम मध्य प्रदेश के सतना के भाजपा सांसद गणेश सिंह पटेल का है. पटेल ओबीसी कल्याण की संसदीय समिति के अध्यक्ष भी हैं.

गणेश सिंह के नेतृत्व में इस कमेटी ने सिफारिश की है कि नौकरीपेशा लोगों के वेतन को क्रीमी लेयर संबंधी आय की गणना में शामिल न किया जाए.

सतना से चौथी बार सांसद चुने गए गणेश सिंह पटेल ने सभी दलों के 112 ओबीसी सांसदों को पत्र लिखकर सभी से अनुरोध किया है कि वो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को पत्र लिखकर या ट्वीट करके, क्रीमीलेयर से नौकरीपेशा और किसानों को लगभग बाहर करने की कोशिश का कड़ा विरोध करें.


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ओबीसी की आवाज बनकर उभरे गणेश सिंह

इसके बाद से ही गणेश सिंह ओबीसी के नए चैंपियन के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर उभरे हैं. हालांकि वो पहले भी जातिगत जनगणना, या क्रीमीलेयर की आयसीमा बढ़ाने जैसे ओबीसी के हितों से जुड़े सारे मुद्दों पर मुखर रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने अपने ही दल की सरकार की कोशिशों के खिलाफ कड़ा रवैया अपनाया है.

बहुत सारे लोगों को सांसद गणेश सिंह पटेल के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है. दरअसल श्री पटेल शुरू से ही मंडल आयोग की सिफारिशों के प्रबल समर्थक रहे हैं. वे मूल रूप में समाजवादी विचारधारा के समर्थक हैं. आइए जानते हैं उनके राजनीतिक जीवन के बारे में.

दो जनवरी 1962 को जन्मे गणेश सिंह पटेल का राजनीति में उदय ही उस दौर में हुआ था, जब केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी थी और उसने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया था.

जनता दल के साथ राजनीतिक जीवन की शुरुआत

जनता दल के जरिए ही सांसद गणेश सिंह ने राजनीति में कदम आगे बढ़ाए थे. जब सागर से सांसद रहे लक्ष्मी नारायण यादव मध्यप्रदेश में जनता दल के प्रदेशाध्यक्ष होते थे, तब उन्होंने सतना के इस होनहार और जुझारू युवा की क्षमता पहचानते हुए, युवा जनता दल की मध्यप्रदेश इकाई का प्रदेशाध्यक्ष बनाया था.

1992 में जब शरद यादव ने वीपी सरकार गिर जाने के बाद देश भर में मंडल रथयात्रा निकाली थी, तो मध्यप्रदेश में इस यात्रा के प्रभारी युवा नेता गणेश सिंह ही थे. जोशीला और मंत्रमुग्ध कर देने वाला भाषण देने वाले गणेश सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिश लागू करने को क्रांतिकारी कदम बढ़ाते हुए, पूरे प्रदेश में युवा जनता दल के संगठन को मजबूत करने में काफी जोर लगाया.

दुर्भाग्य यह रहा कि केंद्र में तो जनता दल में फूट हुई ही, उसका असर मध्यप्रदेश में भी पड़ा जहां 1990 के विधानसभा चुनावों के बाद जनता दल फिर से मजबूत होने लगा था. चंद्रशेखर के नेतृत्व में समाजवादी जनता दल बनने के बाद भी शेष जनता दल में समय-समय पर टुकड़े होते रहे, लेकिन जुझारू गणेश सिंह कठिन परिस्थितियों में भी राजनीति के सफर पर अपने कदम बढ़ाते गए.

मध्यप्रदेश के सतना जिले में खमरिया गांव में पिता कमल भान सिंह और माता फूलमती सिंह के परिवार में पैदा हुए गणेश सिंह ने अपने क्षेत्र में अपना जनाधार बढ़ाना जारी रखा. 1995 में वे अपने ही दम पर जिला पंचायत सदस्य बने.

इसी दौरान, क्षेत्र में काफी पहचान बना चुके गणेश सिंह ने 1998 में जनता दल के टिकट पर सतना लोकसभा चुनाव भी लड़ा. इस चुनाव में उनके सामने दिग्गज नेता रामानंद सिंह के साथ-साथ बसपा के सुखलाल कुशवाहा भी थे जो 1996 में इसी सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को हरा चुके थे. दलीय संगठन के अभाव में गणेश सिंह ये चुनाव तो नहीं जीत पाए, लेकिन वे 1999 में जिला पंचायत के अध्यक्ष बनने में जरूर सफल रहे.

बीजेपी ने राजनीति में दी जगह

तब तक मध्यप्रदेश में जनता दल तकरीबन खत्म हो चुका था. जो थोड़े-बहुत नेता बचे थे, वो या तो कांग्रेस में जा चुके थे या फिर भाजपा में. उस समय मध्यप्रदेश में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार को शिकस्त देकर मुख्यमंत्री बनीं ओबीसी नेता उमा भारती को युवा नेता गणेश सिंह में काफी संभावनाएं नजर आईं.

उमा भारती जानती थीं कि कांग्रेस को हराने के बाद भी, खुद भाजपा के ही अंदर उन्हें सवर्ण लॉबी का विरोध करना पड़ सकता है, इसलिए उन्हें गणेश सिंह जैसे तेज-तर्रार नेताओं की जरूरत थी.

1999 में उमा भारती ने जनता पार्टी, लोकदल, जनता दल, बसपा, सपा जैसे तमाम दलों में रहे पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री अखंड प्रताप सिंह यादव को उमा भारती ने खजुराहो लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ाने का दांव चला ही था जो सफल नहीं हो सका था, लेकिन 2004 में सतना से उन्होंने जनता दल के गणेश सिंह को भाजपा में लाकर लोकसभा चुनाव लड़ाने की उनकी रणनीति सफल रही और इसके साथ ही गणेश सिंह का सियासी कद लगातार बढ़ता गया. गणेश सिंह ने ये चुनाव जीत लिया.

इसके बाद गणेश सिंह ने 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव भी सतना लोकसभा सीट से जीते हैं. 2014 में उन्होंने स्वर्गीय अर्जुन सिंह के बेटे और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को मात दी थी. इस तरह से अर्जुन सिंह के परिवार की विंध्य इलाके में मजबूत पकड़ को खत्म करने में गणेश सिंह की अहम भूमिका रही है.


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राजनीति में लगातार बढ़ रहा है कद

अपने अब तक के लोकसभा सांसद के कार्यकाल में सांसद गणेश सिंह पटेल ने ओबीसी के मुद्दों को हमेशा प्रमुखता दी है. इसी वजह से उन्हें ओबीसी कल्याण की संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाया गया, और इस नाते उनका जो कद बढ़ा, उसका सही इस्तेमाल करते हुए उन्होंने ओबीसी क्रीमीलेयर के नियमों में होने जा रहे खतरनाक बदलावों का विरोध तो किया ही, साथ ही उसे राष्ट्रीय मुद्दा भी बना दिया.

आज स्थिति यह है कि क्रीमीलेयर में संशोधन की सिफारिश करने वाली कमेटी के चेयरमैन बीपी शर्मा देशभर में ओबीसी तबके के बीच खलनायक बन चुके हैं, और अब सरकार भी उनकी सिफारिशों पर आगे बढ़ने से पहले पुनर्विचार करती दिख रही है जैसा कि गृहमंत्री अमित शाह ने संकेत दिया है. अगर ओबीसी के लिए यह बात कुछ मायने रखती है तो इसका पूरा श्रेय समाजवादी पृष्ठभूमि के और मंडल आयोग के प्रबल समर्थक सांसद गणेश सिंह पटेल को ही जाता है.

(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं. यह उनका निजी विचार है)

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