एक मुसलमान होने के नाते मुझे यह लिखते हुए बहुत खुशी हो रही है कि तबलीगी जमात के जिन सदस्यों को यह लांछन लगाकर बदनाम किया गया था कि उन्होंने जानबूझकर कोरोनावायरस को फैलाया और उन पर आईपीसी की कई धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गए, उन सबको आरोपों से बरी कर दिया गया है. 36 तबलीगियों को और उन आठ दूसरे लोगों को ‘क्लीन चिट’ दे दी गई है जिन पर लगाए गए आरोपों को अगस्त में ही रद्द कर दिया गया था.
यह मुझे इसलिए निजी मामला लगता है क्योंकि भारत में जो पीत पत्रकारिता चल रही है और जिसे प्रायः ‘गोदी मीडिया’ कहा गया है, उसने देश के 20 करोड़ मुस्लिम नागरिकों को बदनाम और कलंकित करने का पूरा इंतजाम कर दिया था क्योंकि भारतीयों के एक वर्ग को मुसलमानों को निशाना बनाने का कोई बहाना चाहिए था जिसका बिल्कुल सटीक मौका मार्च में निज़ामुद्दीन मरकज़ के मज़हबी जमावड़े ने उसे जुटा दिया था.
चिंता की बात यह है कि, जैसा कि चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने संकेत किया, ऐसी घटिया छवि बनाने में नरेंद्र मोदी की सरकार की भी मिलीभगत लगती है. जज अरुण कुमार गर्ग ने साफ कहा कि यह ‘बहुत मुमकिन है कि आरोपियों को अलग-अलग जगहों से इसलिए पकड़ा गया ताकि भारत सरकार के गृह मंत्रालय के निर्देश से उन पर दुर्भावना ढंग से मामले दर्ज़ किए जा सकें’.
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सरकार से लेकर मीडिया तक सब शरीक
बदनामी व्यवस्थित तरीके से की गई और पूरी संभावना यह है कि मोदी सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की चेतावनियों की अनदेखी करने तथा आसन्न महामारी से निपटने की तैयारी करने में अपनी नाकामी की जवाबदेही से बचने के लिए यह ध्यान भटकाने वाली चाल चली.
कोविड के फैलाव के लिए बलि का बकरा ढूंढने के चक्कर में एक कहानी रची गई. इसमें मुस्लिम प्रचारक समूह से बेहतर बलि का बकरा कौन हो सकता था.
हकीकत तो यह है कि फरवरी के अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के स्वागत के लिए अहमदाबाद में जो भीड़भाड़ भरा ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम किया गया, उसे आसानी से माफ कर दिया गया और इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया गया कि उसके कारण भी कोरोनावायरस फैला होगा.
यह मुसलमानों के खिलाफ पूर्वाग्रह को ही उजागर करता है. इस कार्यक्रम में मोटेरा स्टेडियम में एक लाख से ज्यादा लोग जमा हुए लेकिन इसके खिलाफ कोई नहीं बोला. सबकी नज़रें दिल्ली के निज़ामुद्दीन में आयोजित मरकज़ में जमा हुए 2500 बंदों पर ही टिकी रहीं और उनके ऊपर तोहमतों की बरसात की गई. किसी ने उन्हे ‘तालिबानी’ कहा, किसी ने ‘जिहादी’ तो कुछ लोगों ने उन्हें ‘बम’ तक कहा.
पीत पत्रकारिता भारत में अपने शिखर पर थी. टीवी चैनल मदरसों को और ‘तबलीगियों’ को ‘कोरोना जिहाद’ के केन्द्रों और स्रोतों के तौर पर दिखा रहे थे, कोविड-19 के बारे में दिखाई जाने वाली खबरों में टोपी पहने मुस्लिम मर्दों और बुर्के वाली महिलाओं को दिखाया जा रहा था जिनका तबलीगियों से कुछ लेना-देना नहीं था. लोगों को इशारों में संदेश दिए जा रहे थे— ‘उन्होंने’ भारत में कोरोना को फैलाया और चीन ने उसे दुनिया भर में फैलाया. प्राइम टाइम पर फर्जी, बदनाम करने वाली कहानियां इस तरह के सवाल उठाते हुए दिखाई जा रही थीं जिनसे तबलीगियों को ‘गद्दार’ बताया जा सके. इस्लाम के खिलाफ नफरत का प्रचार खुल कर और क्रूर तरीके से किया जा रहा था.
मोदी सरकार और भाजपा समर्थक मीडिया इस संकटग्रस्त समय में इसी तरह काम कर रहा है. तमाम खराबियों के लिए किसी और को जिम्मेदार बताओ. उस ‘किसी और’ का चेहरा हमेशा विचित्र रूप से एक जैसा होता है. ऐसा जिसकी पहचान साफ है और जो अल्पसंख्यक समूह का है और जिसे सबसे पहले बलि का बकरा बनाने के लिए चुना जाता है. किसानों का आंदोलन इस बात की और तस्दीक ही करता है.
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नया दुश्मन- सिख किसान
यह एक तथ्य है कि 2014 में जब मोदी सरकार पहली बार सत्ता में आई, उसके बाद किसानों के दो बड़े आंदोलन हुए— एक मार्च 2017 में और दूसरा नवंबर 2018 में. लेकिन अब इस सरकार के नये कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में किसानों को ‘आतंकवादी’ या ‘खालिस्तानी’ बताया जा रहा है. इसकी वजह क्या है? यह कि इस बार आंदोलन का नेतृत्व पंजाब के सिख किसान कर रहे हैं. मीडिया और सत्ता में बैठी पार्टी इसे ‘राष्ट्र विरोधी’ बता रही है. हरियाणा के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता एम.एल. खट्टर बयान दे चुके हैं कि उनके पास ‘ऐसी खबरें हैं जो किसानों के आंदोलन में खालिस्तानियों की मौजूदगी की पुष्टि करती हैं’. भाजपा के इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी सेल के प्रमुख अमित मालवीय भी आरोप लगा चुके हैं कि इस आंदोलन के पीछे ‘खालिस्तानियों और माओवादियों’ का भी हाथ है. इसके अलावा कंगना रनौत जैसी भाजपा समर्थक-प्रचारक हस्तियां भी इस कथा को आगे बढ़ाती रही हैं.
मीडिया भी पीछे नहीं है. और उसके आरोप भी कटु रूप से वैसे ही हैं. इस बार भी अपमानजनक बयान सवालिया निशान के साथ दिए जा रहे हैं- ‘किसानों के आंदोलन को हाइजैक कर लिया गया, क्या इसमें हिंसा के पीछे खालिस्तानी आतंकवादियों का हाथ है?’. यह वैसा ही है जैसा तबलीगियों पर तरह-तरह की साज़िशों के आरोप गढ़ते समय कहा जा रहा था कि उन्हें ‘विदेशी पैसा’ मिल रहा है और वे ‘एफसीआरए’ कानून का उल्लंघन कर रहे हैं. इसी तरह के आरोप दिल्ली की सीमा पर धरना दे रहे किसानों पर लगाए जा रहे हैं और गृह मंत्रालय इन ‘खालिस्तानी गिरोहों’ को मिले ‘विदेशी पैसे’ पर रोक लगाने, ‘भारत विरोधी गतिविधियों’ तथा इस किसान आंदोलन में उनकी भूमिका की जांच करने पर विचार कर रहा है.
किन लोगों पर ऐसे आरोप लगाए जाएंगे और क्यों लगाए जाएंगे, इसका अंदाजा लगाना कोई मुश्किल नहीं है. चाहे तो वे मुसलमान होंगे या सिख किसान होंगे. और आरोप कौन लोग लगाएंगे, यह अंदाजा लगाना भी मुश्किल नहीं है. वह गृह मंत्रालय होगा या भाजपा समर्थक मीडिया होगा. लेकिन तबलीगी जमात के जमावड़े के बहाने मुसलमानों को बदनाम करने की चालों को अदालत ने जिस तरह खारिज कर दिया, किसानों को कलंकित करने की कोशिशों का भी वही हश्र होगा.
(लेखिका राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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Indian people not United also don’t forget rigidness of muslim community also biggest factor to Rise of modi.
You media created a Mr. Modi like a medival hero but also don’t forget you Muslim can’t control your Mullahs like we hindu can’t control our Extremists. That why un competent, cunning, n greedy leaders elected in Parlamaint like Modi, shah, owaisi etc.
Is hamam hai hum sab nange hai
don’t forget also it’s farmar mean mango people protest don’t picturised it’s communal angel.