अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पश्चिम बंगाल की बिसात पर 4डी शतरंज की चालें चल रहे हैं, तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लूडो जैसे आसान खेल में उन्हें मात दे रही हैं.
पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले, भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष पदों से लेकर राज्य स्तर तक, ऐसे कदम उठा रही है, जिनका कोई खास राजनीतिक मतलब नहीं है. बनर्जी, अपने खिलाफ ढेर सारी बाधाओं के बावजूद, एक के बाद एक संकट से बचती रही हैं.
बोहिरागोतो (बाहरी लोगों) की पार्टी, जैसा कि बनर्जी और उनके तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सहयोगी भाजपा को बुलाना पसंद करते हैं, बंगाल को गलत तरीके से समझ रही है. दिल्ली के सीआर पार्क मछली बाज़ार विवाद से लेकर मुर्शिदाबाद हिंसा तक, जिसने राज्य के भीतर हिंदू परिवारों को विस्थापित कर दिया — इसके ताज़ा उदाहरण हैं.
पहले मछली, फिर धार्मिकता
हिंदू बंगाली जाति के आधार पर नहीं बल्कि वर्ग के आधार पर बंटे हुए हैं, लेकिन भद्रलोक और गैर-भद्रलोक दोनों के लिए नदी की मछली अस्तित्व का कारण बनी हुई है, भले ही धर्मनिरपेक्षता पर बहस उनके बीच पानी को गंदा कर रही हो. मुझे एक बंगाली दिखाओ जिसे मछली पसंद न हो और मैं तुम्हें एक ढोंगी दिखाऊंगा. मछली बंगाल के लिए धर्म है क्योंकि घर से बहुत दूर, दक्षिण दिल्ली के पॉश, बड़े पैमाने पर बंगाली इलाके सीआर पार्क में हुई एक घटना ने उन दोनों को झकझोर कर रख दिया था.
एक वायरल वीडियो में पुरुषों के एक समूह को एक मंदिर के बगल में मछली बेचे जाने को लेकर आपत्ति जताते हुए दिखाया गया, उनका कहना था कि इससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है. “यह गलत है. सनातन कहता है कि हम किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते”, आदमी को वीडियो में यह कहते हुए सुना गया. उसने यह भी कहा कि देवी को मांस परोसना “काल्पनिक” है और हिंदू धार्मिक शास्त्रों में इसके कोई सबूत नहीं है.
टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा ने तुरंत वीडियो शेयर किया और मछली खाने वाले बंगालियों को धमकाने का आरोप “बीजेपी के गुंडों” पर लगाया. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, “प्लीज़ देखिए कि भगवा ब्रिगेड के बीजेपी के गुंडे दिल्ली के चित्तरंजन पार्क में मछली खाने वाले बंगालियों को धमका रहे हैं. निवासियों का कहना है कि 60 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ.”
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने तुरंत स्पष्ट किया कि वीडियो “झूठा और मनगढ़ंत” है और “ऐसा लगता है कि समुदायों के बीच दुर्भावना को बढ़ावा देने के इरादे से इसे शूट किया गया है”, लेकिन मोइत्रा पश्चिम बंगाल के मामले में बीजेपी को उस जगह पर चोट पहुंचाने में कामयाब रहीं जहां उसे सबसे ज़्यादा दर्द होता है: यह विचार कि पार्टी को बंगाली संवेदनशीलता नहीं समझ आती.
सीआर पार्क मछली बाज़ार विवाद ने बंगालियों को हर साल गैर-बंगालियों द्वारा सामना किए जाने वाले ट्रोल की याद दिला दी, जो सोचते हैं कि दुर्गा पूजा के दौरान मांसाहारी भोजन खाना एक अपवाद है. पूजा के दिनों को उत्तर भारत में शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है, जहां अधिकांश मांसाहारी नौ दिनों तक मांस खाना छोड़ देते हैं.
अलग-अलग पाक-संस्कृतियों का यह टकराव मामूली लग सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है. यह ममता बनर्जी और उनकी पार्टी को भाजपा को बाहरी लोगों की पार्टी के रूप में ब्रांड करने में मदद करता है, जिन्हें बंगाली हिंदू धर्म भी नहीं आता, अपनी सांस्कृतिक पहचान के अन्य पहलुओं को तो भूल ही जाइए. बंगालियों के बारे में एक-दो बातें जानने के लिए, सीआर पार्क में हुए विवाद के बाद एक व्यक्ति का रिपोर्टर से बात करते हुए एक वीडियो है. उसने कहा कि अगर कोई परेशानी है, तो मंदिर को शिफ्ट कर देना चाहिए. मछली को निशाना क्यों बनाया जाए?
2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया था. इसने सरकार पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, कोविड-19 कुप्रबंधन, अम्फान राहत कोष की हेराफेरी और अपने पार्टी कैडर के खिलाफ राजनीतिक हिंसा का आरोप लगाया. बनर्जी ने भारी मतों से जीत हासिल की. भाजपा की कई रणनीतिक गलतियों में से एक बंगाली उप-राष्ट्रवाद को समझने में असमर्थता थी.
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भीतरी इलाकों में खौफ
इससे कम गंभीर चिंता की बात यह नहीं है कि भाजपा मुसीबत के वक्त पश्चिम बंगाल के भीतरी इलाकों में अपने पार्टी कार्यकर्ताओं, समर्थकों और हिंदू आबादी के साथ खड़ी नहीं हो पाती. मुर्शिदाबाद में हाल ही में हुई हिंसा को ही ले लीजिए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के लिए वक्फ कानून को लेकर हुए विवाद पर रिपोर्टिंग कर रहे निशांत आज़ाद ने एक्स पर लिखा: “पहले #सीएए के बहाने और अब #वक्फ को एक औज़ार की तरह इस्तेमाल करते हुए इस्लामवादियों ने लगातार हिंदुओं को निशाना बनाया है — उनके पूजा घर और उनकी संपत्ति. छिपा एजेंडा हिंदुओं को सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक और शारीरिक सुरक्षा के मामले में कमजोर करने की व्यवस्थित कोशश लगती है.”
दूसरी ओर, न केवल ममता बनर्जी, बल्कि अन्य राजनीतिक आवाज़ों ने मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के लिए भाजपा को दोषी ठहराया है. बनर्जी के लिए अपने खुले समर्थन की घोषणा करते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है:
“भगवा ब्रिगेड हमेशा हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेलकर दंगों का फायदा उठाने की कोशिश करती है.”
चाहे आप घटनाओं के बारे में भाजपा-आरएसएस के संस्करण पर विश्वास करें या बंगाल में सांप्रदायिक राजनीतिक हिंसा पर अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की मांग करें, एक तथ्य निर्विवाद है: भाजपा गैर-भद्रलोक हिंदुओं की ज़रूरत के समय उनके साथ खड़े होने में असमर्थ है. बंगाल भाजपा प्रमुख सुकांत मजूमदार ने पहले भी भड़काऊ बयान दिए हैं. उन्होंने कहा था, “मैं किसी पर खुलकर हमला नहीं करूंगा, लेकिन अगर मुझे अपने धर्म को बचाने के लिए हिंसा का सहारा लेना पड़ता है, तो मेरा मानना है कि यह उचित है और एक पवित्र कार्य है.”
मुर्शिदाबाद से सैकड़ों हिंदू परिवार भागीरथी नदी पार कर पड़ोसी मालदा की ओर पलायन कर गए गैर-भद्रलोक बंगाली हिंदुओं के पास कोई नहीं था.
दि ओरिजिनल लिंच मॉब: द अनटोल्ड स्टोरीज़ ऑफ पॉलिटिकल वायलेंस इन वेस्ट बंगाल के लेखक देबा प्रतिम घटक ने दिप्रिंट से कहा, “ममता बनर्जी जैसी चतुर राजनीतिज्ञ के खिलाफ भाजपा आलसी राजनीति कर रही है, जो जानती है कि कथात्मक युद्ध कैसे जीते जाते हैं.”
उन्होंने कहा, “पार्टी को बंगाली हिंदुओं के संकट के समय में उनके लिए काम करते हुए दिखना चाहिए, न कि हिंसा खत्म होने के बाद सिर्फ़ दिखावा करना चाहिए.”
मुर्शिदाबाद हिंसा के विरोध में दक्षिण दिनाजपुर में सुकांत मजूमदार के नेतृत्व में भाजपा समर्थकों और पुलिस के बीच झड़प हुई. पार्टी की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा के एक कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि बंगाल में भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक दोनों ही निराश महसूस कर रहे हैं.
एक पार्टी कार्यकर्ता ने कहा, “कल्पना कीजिए कि अगर ममता बनर्जी विपक्ष में होतीं और मुर्शिदाबाद में हिंसा होती. वह यह सुनिश्चित करतीं कि मामला संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचे और यहां हमारे नेता अपना गुस्सा एक्स पर निकाल रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि घटना की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जांच न कराना, अदालत के आदेश के बाद ही बीएसएफ को तैनात करना और धारा 355 न लगाना राज्य सरकार की गलतियां हैं, जिन्हें भाजपा के वरिष्ठ नेता समझ नहीं पा रहे हैं.
और यह सिर्फ मुर्शिदाबाद ही नहीं है जिसने गैर-भद्रलोक बंगाली हिंदू को निराश किया है. 2021 के विधानसभा चुनावों और चुनावों से पहले, चुनावों के दौरान और बाद में हुई हिंसा को कवर करने के बाद, मैंने पार्टी के कार्यकर्ताओं और उसके समर्थकों के भीतर से पार्टी की कथित निष्क्रियता के बारे में विरोध की कई आवाज़ें सुनीं.
चूंकि, पश्चिम बंगाल 2026 में अगले विधानसभा चुनावों के लिए तैयार है, इसलिए यह सही वक्त है कि भाजपा उस राज्य को समझने के लिए ठीक से कोशिश करे जिसे वह जीतने की उम्मीद करती है क्योंकि 4डी शतरंज के विपरीत, असली राजनीति में, आज की गलतियां शायद ही कभी कल की जीत में बदल जाती हैं.
(दीप हलदर लेखक और दिप्रिंट के कंट्रीब्यूटिंग एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @deepscribble है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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