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मंगलवार, 1 जुलाई, 2025
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क्या बीजेपी 2014 के अपने चुनावी घोषणा-पत्र पर अब बात करना चाहेगी

चुनाव सत्ताधारी दल के लिए अपने घोषणापत्र व पूरे किए वादों पर बात करने का एक मौका होता है. लेकिन बीजेपी इस बारे में बात क्यों नहीं कर रही है.

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भाजपा ने 2014 का लोकसभा चुनाव सबका साथ, सबका विकास के नारे पर जीता था, लेकिन अब पांच साल बाद जब उससे सवाल किया जा रहा है कि उसने किसका, कितना विकास किया, तो वह मुद्दे से भटकाकर राष्ट्रवाद, भारत-पाकिस्तान और हिंदू-मुस्लिम की बहस छेड़ना चाहती है. अब तो उसने चौकीदार का एक बेहद गैर-जरूरी मुद्दा छेड़ दिया है.

ऐसा करना बेवजह नहीं है, क्योंकि भाजपा ने जिस मुद्दे पर मतदाताओं को सबसे ज्यादा धोखा दिया है, वह यही सबका साथ, सबके विकास का है. भाजपा के 5 साल के इस कार्यकाल का मूल्यांकन करें तो उसने वोट भले ही सबके लिए हों, लेकिन विकास उसने केवल चंद लोगों और समुदायों का ही किया है.


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भाजपा ने जिनका विकास किया है, या जिनके एजेंडे को पूरा किया है, उनमें केवल कथित उच्च जातियां ही हैं. इसके अलावा उसने केवल कुछ पूंजीपतियों का विकास किया है, जिनमें से कई तो बैंकों के हजारों करोड़ रुपए लेकर देश छोड़कर भाग निकले हैं.

वादों से मुकरे मोदी

प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी खुद को कभी पिछड़ी जाति का, तो कभी दलित का बेटा, कभी गरीब और बर्तन धोने वाली मां का बेटा तो कभी चायवाला कहते रहे हैं.

इस तरह से उन्होंने हाशिए पर पड़े लोगों के मन में यह विश्वास जगाया था कि अगर वे प्रधानमंत्री बने तो उनके विकास पर खास ध्यान दिया जाएगा, क्योंकि वे खुद भी इन्हीं तबकों से आते हैं.

लेकिन उनके कार्यकाल में ज्यादातर सत्ता ब्राह्मणों के हाथ में सिमट गई, जिसे लेकर मीडिया में कई लेख भी प्रकाशित हुए. समाज में हाशिए पर पड़े और संसाधनों से वंचित तबकों का सपना नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही टूटने लगा था. उनकी कैबिनेट में 25 में से 7 सदस्य सिर्फ एक, ब्राह्मण जाति के हैं जिनके पास रक्षा, वित्त, वाणिज्य, उद्योग, सड़क परिवहन, राष्ट्रीय राजमार्ग, स्वास्थ्य, मानव संसाधन जैसे बड़े-बड़े और अहम मंत्रालय हैं. इन 9 सदस्यों में से अधिकतर के पास कई-कई मंत्रालय भी हैं. इसके अलावा स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री भी हैं, जिनके पास संचार और संस्कृति जैसे बड़े मंत्रालय हैं.

25 में से 7 ब्राह्मण कैबिनेट मंत्रियों के अलावा, बाकी अहम मंत्रालय भी ठाकुर, बनिया और कायस्थ जाति के नेताओं को थमा दिए गए हैं, और बाकी जातियों से कह दिया गया कि ये लोग ही सबका विकास करेंगे और आप लोग केवल जय-जयकार करते रहें. मंत्रालय में सिर्फ एक आदिवासी और दो दलित मंत्री हैं. वे भी हल्के विभागों में. सदानंद गौड़ा, उमा भारती और अनंत गीते के रूप में कहने को तो मंत्रालय में ओबीसी का भी प्रतिनिधित्व है, लेकिन देश की 52% से ज्यादा आबादी के हिसाब से ये संख्या न सिर्फ कम है, बल्कि इनके पास ढंग के विभाग भी नहीं है.


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नोटबंदी ने किया गरीबों का शोषण

बात केवल मंत्रालयों के निर्धारण तक ही नहीं रही, भाजपा शासन की सारी नीतियां ही सबका साथ सबके विकास के खिलाफ रहीं. नोटबंदी जैसे कठोर और क्रूर फैसले लिए गए, जिनका लाभ केवल बैंकों से हजारों करोड़ रुपए का कर्ज लेकर न लौटाने वाले पूंजीपतियों को हुआ और नुकसान सर्वाधिक गरीब तबके को हुआ जिनकी सारी जमा-पूंजी जबरन बैंकों में जमा करा ली गई.

सबका साथ, सबका विकास के नारे के बिल्कुल विपरीत चलते हुए, सरकारी नौकरियों में भारी कटौती की गई और बेरोजगार युवा केवल देखता रह गया. महंगाई की मार इस कदर पड़ी कि गरीब और मध्यम वर्ग अब तक अपनी कमर सहला रहा है और उस पर लगातार चोट हो रही है.

वंचित जातियों को नहीं मिला उनका हिस्सा

सबसे ज्यादा क्रूरता भाजपा सरकार ने आरक्षण नीति पर दिखाई और समूची आरक्षण नीति को ही निष्प्रभावी करने में काफी हद तक सफलता पाई. वैसे भी आरक्षण नीति को ढंग से लागू नहीं किया जा रहा था और किसी न किसी बहाने से आरक्षित कोटे की नौकरियां खाली रखी जा रही थीं या उन्हें सामान्य में कन्वर्ट किया जा रहा था. हालांकि इसके बावजूद, ये खतरा बना हुआ था कि भविष्य में कोई अनुकूल सरकार होने पर आरक्षित पदों पर सही तरह से भर्तियां हो सकती हैं. मोदी सरकार ने इसीलिए ऐसे इंतजाम किए या कराए कि आरक्षण जारी रहते हुए भी आरक्षित तबके को नौकरी न देना कानून सम्मत हो सके.

और इन सबके ऊपर से सवर्णों को भी आरक्षण दे दिया गया, जिनका प्रतिनिधित्व नौकरियों में पहले से ही काफी ज्यादा है और उनमें कोई सामाजिक पिछड़ापन भी नहीं है.

विश्वविद्यालयों में 13 पॉइंट रोस्टर की चाल ऐसी ही थी जिसमें एससी, एसटी और ओबीसी के तबके की विश्वविद्यालयों में भर्ती एक तरह से निषिद्ध हो जाती. इस तबके के उग्र आंदोलन के बाद सरकार अध्यादेश लाने पर मजबूर तो हुई लेकिन साथ ही उसने अन्य सरकारी विभागों में भी इसी तरह के रोस्टर सिस्टम को लागू करने की छूट दे दी जो कि अब तक जारी है.


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बैंक भी बने शोषण का जरिया

बैंकों का मामला भी ऐसा ही है. आम आदमी जहां कुछ लाख रुपए के कर्ज को लेने में ही परेशान हो जाता है और न चुकाने पर उसके जेल जाने की नौबत आ जाती है या उसे आत्महत्या करनी पड़ जाती है, वहीं बड़े-बड़े पूंजीपति हजारों और सैकड़ों करोड़ रुपए का कर्ज आसानी से ले लेते हैं, और उसे चुकाने की जहमत तक नहीं उठाते. इतना ही नहीं, इस कर्ज को चुकाने के लिए उसी या अन्य बैंकों से और ज्यादा रकम का कर्ज ले लेते हैं और सिलसिला चलता रहता है. बैंक आखिर में इस कर्ज को एनपीए में डाल देते हैं. यहां भी आम आदमी का शोषण और पूंजीपतियों का विकास होता रहता है.

मोदी सरकार के 5 साल पूरी तरह से केवल कुछ लोगों के विकास को समर्पित रहे और बाकी लोगों को गाय, मुस्लिम, नक्सलवाद, आतंकवाद, पाकिस्तान सरीखे मुद्दों में उलझाए रखा गया. 5 साल तक विपक्ष की उदासीनता ने भी उसकी मदद की लेकिन चुनावों के समय अब ये सारे मुद्दे सामने आने लगे हैं. यही कारण है कि भाजपा अब बगले झांकने में लगी है.

इसलिए भाजपा से ये उम्मीद करना ज्यादती होगी कि वह अपने 2014 के घोषणा पत्र को याद करेगी.
(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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