मध्य प्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है. यहां से लगातार आठ बार जीत दर्जकर भारतीय जनता पार्टी ने इसे अपनी परंपरागत सीट बना लिया है. लेकिन भोपाल लोकसभा सीट की यहां चर्चा इसलिए हो रही है, क्योंकि लोकसभा 2019 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी यहां से सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारने का मन बना चुकी है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पत्रकारों से वार्ता के दौरान सिंह के भोपाल लोकसभा से चुनाव लड़ने की बात कही है. जिसके बाद मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल देश की उन चर्चित लोकसभा सीटों में सुमार हो गई है जो आम चुनावों में लोगों की उत्सुकता का केन्द्र रहने वाली है.
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भोपाल लोकसभा के इतिहास पर नज़र दौड़ाई जाए तो यहां से छह बार कांग्रेस, एक-एक बार भारतीय जन संघ और भारतीय लोक दल तथा आठ बार भारतीय जनता पार्टी जीत हासिल कर चुकी है. पहली लोकसभा 1952-57 के लिए यहां से सईद उल्लाह राज़मी और चतुर नारायण मालवीय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से चुनकर पहली लोकसभा में पहुंचे थे. उस समय रायसेन और सिहोर जिलों को मिलाकर यह लोकसभा सीट बनती थी जिसमें सिहोर क्षेत्र से सईद उल्लाह राज़मी और रायसेन से चतुर नारायण मालवीय चुने गए थे. उसके बाद दूसरी और तीसरी लोकसभा के लिए कांग्रेस की मोमिना सुल्तान सदस्य चुनी गईं.
वही चौथी लोकसभा 1967-71 के लिए जन संघ की तरफ से जगन्ननाथ राव जोशी चुने गए जो बाद में भारतीय जनता पार्टी से सदस्य भी रहे. पांचवी लोकसभा 1971-77 के लिए भोपाल से डॉ. शंकर दयाल शर्मा कांग्रेस से सांसद चुने गए जो बाद में भारत के राष्ट्रपति भी बने. छठी लोकसभा 1977-80 में भारतीय लोक दल के आरिफ बेग सांसद के रूप में चुने गए जो बाद में 1989 में मध्य प्रदेश की बैतूल लोकसभा सीठ से बीजेपी सांसद के रूप में संसद पहुंचे. सातवीं लोकसभा 1980-84 दूसरी बार डॉ. शंकर दयाल शर्मा कांग्रेस के टिकिट से जीतकर लोकसभा पहुंचे. आठवीं लोकसभा 1984-89 के लिए कांग्रेस से केएन प्रधान ने जीत दर्ज की वह आखिरी कांग्रेस नेता थे जिन्होनें भोपाल लोकसभा से कांग्रेस को जीत दिलाई थी.
इसके बाद नौवीं 1989-91, 10वीं 1991-96, 11वीं 1996-98 और 12वीं 1998-99 लोकसभा के लिए भारतीय जनता पार्टी के टिकिट से सुशील चंद वर्मा लगातार चार बार सांसद रहे. सांसद बनने से पहले सुशील चंद्र वर्मा मध्य प्रदेश के मख्य सचिव भी रहे. 13वीं लोकसभा 1999-2004 के लिए भाजपा की फायर ब्रांड नेता रही उमा भारती भोपाल लोकसभा से चुनी गईं. उन्होनें पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को शिकस्त दी. 14वीं और 15वीं लोकसभा 2004-09 और 2009-2014 तक प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी यहां से सांसद रहे. मोदी लहर के दौरान 16वीं लोकसभा के लिए भोपाल लोकसभा से आलोक संज़र भारतीय जनता पार्टी के टिकिट से चुने गए. वह पार्षद से सीधे सांसद बने.
लेकिन इस बार 17वीं लोकसभा के लिए भोपाल लोकसभा सीट से हमेशा चर्चाओं में रहने वाले कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के नाम की घोषणा के बाद इस सीट पर कड़ा मुकाबला होने के आसार बन गए हैं. उनको राजनीति का चाणक्य कहा जाता है. हाल ही में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में एक कुशल रणनितिकार की भूमिका में रहे सिंह ने 15 साल बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार बनवाने में अपने राजनीतिक कौशल का इस्तेमाल किया. वह लगातार 10 वर्ष तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे हैं.
ऐसा माना जाता है कि वह ऐसे नेता हैं जिनकी पकड़ ग्राम पंचायत स्तर तक है. वह अपने कार्यकर्ता को नाम से ही पुकारते हैं भले ही वह वर्षों बाद ही क्यों न उससे मिले हों. वह मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी की परिक्रमा कर लौटे हैं.
मुख्यमंत्री कमलनाथ की पत्रकारों के बीच होली मिलन के अवसर पर दिग्विजय सिंह के भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद जहां राजनीति ने एक नया मोड़ ले लिया है वहीं भाजपा की सुरक्षित सीट मानी जाने वाली भोपाल लोकसभा के समीकरण भी बदलते नज़र आ रहे हैं. जहां दिग्विजय सिंह के नाम की घोषणा से पहले बीजेपी के स्थानीय नेता अपनी दावेदारी इस सीट से कर रहे थे वह अचानक ही यहां से किसी बडे़ कद के नेता के चुनाव लड़ने की वकालत करते दिख रहे हैं.
आठ विधानसभा और लगभग साढे 19 लाख वोटरों वाली भोपाल लोकसभा सीट भोपाल और सिहोर जिले के कुछ हिस्से से मिलकर बनी है. वर्तमान में आठ विधानसभाओं से मिलकर बनी भोपाल लोकसभा में पांच पर बीजेपी और तीन पर कांग्रेस का कब्जा है. अगर इस लिहाज से देखा जाए तो अब भी भाजपा का पल्ला भारी दिखता है. लेकिन राजनीतिक पंडितों की मानें तो दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेता के चुनाव लड़ने से भोपाल लोकसभा के समीकरण बदल सकते हैं.
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राजनीति के चतुर सुजान दिग्विजय सिंह ने हालांकि कमलनाथ की घोषणा के बाद अपनी इच्छा जाहिर करते हुए राजगढ़ सीट से चुनाव लड़ने की बात कही है, वहीं अंतिम फैसला अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी पर छोड़ दिया है. लेकिन दिग्विजय सिंह के भोपाल लोकसभा चुनाव लड़ने से बीजेपी के स्थानीय नेताओं की सांस फूल गई है. तो वहीं इसे मुख्यमंत्री कमलनाथ का मस्टरस्ट्रोक माना जा रहा है. सीएम का कहना है कि पार्टी के बडे़ नेता कठिन सीट से चुनाव लडे़ं जिससे प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीती जा सकें.
लेकिन दिग्विजय सिंह जैसे बडे़ कद के नेता का बीजेपी की परंपरागत सीट से लोकसभा चुनाव लड़ाने की घोषणा के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ जहां पार्टी में अपना कद ऊंचा होने की तरफ इशारा कर रहे हैं तो वहीं सिंह के लिए यह किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगी. अगर भारतीय जनता पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे किसी कद्दावर नेता को उनके सामने उतारती है तो यह मुकाबला बड़ा ही रोचक बन पडे़गा और भोपाल लोकसभा सीट पूरे देश में लोकसभा चुनाव का केन्द्र बन जाएगी. साथ ही लोकसभा की अहम सीटों में से एक भोपाल लोकसभा सीट भी वाराणसी की तरह सबके आकर्षण का केन्द्र रहेगी.
(दिनेश शुक्ल भोपाल के पत्रकार हैं)