इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (ईवीएम) चुनाव हारने वालों के लिए डिफॉल्ट रूप से फसाने का साधन बन गई हैं. पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने एक जनहित याचिका पर टिप्पणी की, “अगर आप चुनाव जीतते हैं, तो ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं की जाती. जब आप हारते हैं, तो ईवीएम से छेड़छाड़ की जाती है”.
महाराष्ट्र चुनाव में पार्टी की बुरी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने फिर से अपनी शिकायती बयानबाज़ी शुरू कर दी है, उन्होंने राहुल गांधी से ईवीएम के इस्तेमाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू करने का आग्रह किया है — इस विषय पर मेरे कॉलम के एक अन्य प्रतिष्ठित अखबार में प्रकाशित होने के बमुश्किल छह महीने बाद.
इस नाटक के चलते हुए मुंबई पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और आईटी अधिनियम की धाराओं के तहत सैयद शुजा नामक व्यक्ति के खिलाफ धोखाधड़ी के लिए एक एफआईआर दर्ज की है, जो विदेश में कहीं छिपे हुए अपने ठिकाने से बार-बार आरोप लगाता है कि वो भारत की स्वदेशी ईवीएम को हैक कर सकता है.
लेकिन क्या ईवीएम सचमुच एक समस्या है? सारे सबूत इसके विपरीत कहते हैं.
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ईवीएम क्या है?
भारत के निर्वाचन आयोग की वेबसाइट ईवीएम को एक ऐसे टूल के रूप में परिभाषित करती है जिसका उपयोग चुनावों में डाले गए वोटों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिकॉर्ड करने और गिनने के लिए किया जाता है. भारतीय ईवीएम प्रणाली, जिसे ईसीआई-ईवीएम कहा जाता है, को विशेष रूप से भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा तैयार की गई प्रक्रियाओं और नियमों के अनुसार चुनावों के लिए डिज़ाइन, निर्मित और उपयोग किया जाता है.
इन मशीनों को दो सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) — रक्षा मंत्रालय के तहत भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) द्वारा स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्मित किया जाता है — जिनकी निगरानी ईसीआई द्वारा नियुक्त तकनीकी विशेषज्ञ समिति द्वारा की जाती है.
अन्य देशों में उपयोग की जाने वाली ईवीएम के विपरीत, एम3 मॉडल ईसीआई-ईवीएम और वीवीपीएटी (वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) की तकनीकी विशिष्टताओं में कहा गया है कि वह नॉन-नेटवर्क वाली, इंटर्नल बैटरी से चलने वाली स्टैंड-अलोन यूनिट हैं. इंटरनेट या ब्लूटूथ या वाईफाई जैसी कनेक्टिविटी सुविधाओं तक पहुंच न होने के कारण, किसी भी नेटवर्क-आधारित विधियों के ज़रिए से इन ईवीएम में हेरफेर करना असंभव है.
हर ईवीएम को एक स्टैंड-अलोन डिवाइस के रूप में स्थापित किया गया है, जो एक साधारण कैलकुलेटर के बराबर है. इसमें कोई बाहरी पावर सोर्स नहीं है, क्योंकि यह BEL द्वारा स्थापित इंटर्नल बैटरी से चलता है. यह डिज़ाइन सुनिश्चित करता है कि ईवीएम को संशोधित करना व्यावहारिक रूप से असंभव है.
हैक-प्रूफ सिस्टम
ईसीआई ने 2009 और 2017 में दो बार खुली चुनौती दी है कि सभी राजनीतिक दल लेक्चर डेमो में शामिल हों और अपने हैकर एक्सपर्ट को भी साथ लेकर आएं. चुनौती स्वीकार करने वाली पार्टियों को सफलता नहीं मिली.
हाल ही में एक लेख में साइबर विशेषज्ञ और आईपीएस अधिकारी बृजेश सिंह ने एम3 मॉडल ईवीएम को हैक करने की संभावना का जोरदार खंडन किया, जिसमें बताया गया कि डिस्प्ले यूनिट “केवल आउटपुट-ओनली है और इसमें इनपुट क्षमता नहीं है”. ईवीएम में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शील्डिंग के ज़रिए भी हेरफेर नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हें 6 टेस्ला मैगनेटिक किरणों का सामना करने के हिसाब से तैयार किया गया है, जो उन्हें एमआरआई मशीनों से अधिक मजबूत बनाता है.
निर्माण के बाद अपडेट करना कोई ऑप्शन नहीं है क्योंकि प्रोग्राम एक चिप में एम्बेडेड है जिसमें किसी भी बदलाव की गुंजाइश नहीं है. बाहरी पोर्ट की कमी हैकिंग के ‘सॉफ्टेवेयर अपडेट’ सिद्धांत को और भी कमज़ोर कर देती है. मेमोरी को AES-256 का उपयोग करके एन्क्रिप्ट किया जाता है — एक “उन्नत एन्क्रिप्शन मानक” जिसका इस्तेमाल अमेरिकी सरकार द्वारा वर्गीकृत डेटा को सुरक्षित करने के लिए किया जाता है — और इसे एक मेमोरी कम्पार्टमेंट में फिजिकल रूप से सिक्योर किया जाता है, जो टेम्पर-प्रूफ सील से ढका होता है. इन सीलों के साथ छेड़छाड़ करने के किसी भी प्रयास का तुरंत पता लगाया जा सकता है. मशीनों में एक डेडमैन स्विच भी लगा होता है जो छेड़छाड़ का प्रयास करने पर EVM को निष्क्रिय और बेकार कर देता है.
इसके अलावा, रिमोट कनेक्टिविटी की कमी — कोई WiFi, ब्लूटूथ आदि नहीं — EVM को हैक करना लगभग असंभव बना देता है. इसके अलावा हर EVM की फिजिकल हैंडलिंग निर्माण के बाद कई कठोर सेफ्टी चैक से गुज़रती है.
सैयद शुजा के बेबुनियाद दावे
किसी अज्ञात देश में राजनीतिक बयानबाजी के पीछे छिपकर, सैयद शुजा भारत के ईवीएम को हैक करने की अपनी क्षमता के बारे में बेबुनियाद दावे कर रहा है. निहित स्वार्थी तत्व खुशी-खुशी इस निराधार बयानबाजी को बढ़ावा दे रहे हैं. ईवीएम की फ्रिक्वेंसी को बदलकर उन्हें हैक करने का दावा करने वाले पुराने वीडियो सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हो रहे हैं, जो हाल ही में महाराष्ट्र चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद फिर से सामने आने लगे हैं.
शुजा ने कथित तौर पर गणित में पीएचडी की है और वह बीईएल का पूर्व कर्मचारी होने का दावा करता है, जहां उसने ईवीएम पर काम किया था. इंडिया टुडे द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन के दौरान, शुजा ने संकेत दिया कि ईवीएम को हैक करने की उसकी कथित क्षमता के कारण उसे अमेरिका में शरण दी गई थी. हालांकि, हैदराबाद के उन विश्वविद्यालयों में उसके जाने का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, जिन्हें वह अपना अल्मा मेटर बताता है. आज तक, शुजा अपने दावों को पुष्ट करने या भारत की नॉन-नेटवर्क मशीनों के साथ छेड़छाड़ करने की अपनी क्षमता का ठोस सबूत नहीं दे पाया है. 2019 में, जब आखिरी बार शुजा ने इसी तरह के आरोप लगाए थे, तब भी कुछ साबित नहीं हुआ था.
थोड़ी जीत, थोड़ी हार
जब नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने जम्मू-कश्मीर चुनावों में 90 में से 48 सीटें जीतीं और उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री पद के लिए दावा पेश किया, तब ईवीएम से छेड़छाड़ या फिर बैलेट पेपर पर वाले पुराने ढर्रे पर वापस लौटने की मांग की कोई बात नहीं हुई. यह तब हुआ, जब भाजपा को कुल वोटों का 25.5 प्रतिशत वोट मिला, जबकि एनसी को 23.4 प्रतिशत वोट मिले. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तब ईवीएम को हटाने की मांग नहीं की थी.
जब पंजाब ने 2024 में भगवंत मान की AAP सरकार को वोट दिया, तब भी विपक्ष ईवीएम से छेड़छाड़ पर अजीब तरह से चुप रहा. इसके विपरीत, 2017 के पंजाब चुनावों में आप के खराब प्रदर्शन के बाद, उसके नेता अरविंद केजरीवाल ने ईवीएम से बड़े पैमाने पर छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया था.
हरियाणा में भाजपा की जीत के बाद कांग्रेस की ओर से भी इसी तरह की आवाज़े निकलीं.
क्या आप इस साजिश को समझ गए? जहां ईवीएम में 99 प्रतिशत बैटरी थी, वहां भाजपा जीत गई. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया था कि जहां 70 प्रतिशत से कम बैटरी थी, वहां कांग्रेस जीत गई. अगर यह साजिश नहीं है, तो क्या है?
फिर भी, जब झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली जेएमएम जीती, तो विपक्ष इस विषय पर स्पष्ट रूप से चुप था.
इस पैटर्न को सारांशित करते हुए 26 नवंबर के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की: “जब चंद्रबाबू नायडू हार गए, तो उन्होंने कहा कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है. अब इस बार, जगन मोहन रेड्डी हार गए, उन्होंने कहा कि ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है.”
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दिमाग और दिल को कैसे करें हैक
जून में न्यू इंडियन एक्सप्रेस में इसी विषय पर मेरे लेख में इस बात को उठाया गया था कि हमारा देश दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जिसके पास 969 मिलियन रजिस्टर्ड वोटर्स हैं — यह संख्या दुनिया के अगले पांच सबसे बड़े लोकतंत्रों के संयुक्त मतदाता आधार से कहीं अधिक है. बार-बार झूठ बोलना और हमारे आजमाए हुए ईवीएम पर संदेह करना 1.05 करोड़ मतदान कर्मचारियों, 30 लाख सुरक्षा कर्मियों और 55 लाख ईवीएम की ईमानदारी का अपमान नहीं है. ऐसी प्रणाली में हेरफेर करने के लिए जिस पैमाने पर हैकिंग या छेड़छाड़ की ज़रूरत होगी, वह दिमाग हिला देने वाला है.
इस पुराने नैरेटिव पर जोर देने के बजाय, कांग्रेस को लोगों के दिमाग को हैक करने का तरीका खोजने पर फोकस करना चाहिए. ईवीएम हैकिंग का यह नैरेटिव उतना ही पुराना है, जितना कि कांग्रेस पार्टी का मतदाताओं से जुड़ाव।
असली मुद्दा यह है कि कांग्रेस को यह नहीं पता कि भारतीय लोगों के दिमाग में क्या है या उनकी समस्याओं का समाधान कैसे किया जाए. यह कड़ी मेहनत और ईमानदारी से काम करने या लोगों से संपर्क करने और जुड़ने के लिए तैयार नहीं है.
सिर्फ कमरों में बैठकर और तकनीक को बलि का बकरा बनाकर खराब प्रदर्शन को नहीं छिपाया जा सकता है — जो दुनिया के लिए स्पष्ट है.
जो लोग ग्राउंड पर काम करते हैं, जैसे कि पार्टी के कार्यकर्ता और भाजपा के चुने हुए प्रतिनिधि, वो इससे अच्छी तरह वाकिफ हैं कि इस देश के लोग क्या चाहते हैं.
अभी, भाजपा ने दिल्ली चुनावों को ध्यान में रखते हुए एक घोषणापत्र समिति की घोषणा की है. इस समिति का काम यह जानना है कि दिल्ली के दिल में क्या है, इसे दिल्ली भाजपा के घोषणापत्र के हिस्से के रूप में लिखित रूप में रखना और चुने जाने पर उन वादों को पूरा करने की दिशा में काम करना. दूसरे शब्दों में, “संकल्प से सिद्धि तक” की यात्रा को पूरा करना.
ईवीएम एक सरल और स्केलेबल मॉडल पेश करते हैं. वह डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना उपलब्धियों के बैनर तले हस्ताक्षर तकनीक के रूप में खड़े हैं और उन्हें यूपीआई भुगतान प्रणाली और कोविन प्लेटफॉर्म के समान ही रखा जा सकता है. ये इनोवेशन ग्लोबल साउथ में भारत के इनोवेशन और तकनीकी नेतृत्व को दर्शाते हैं, जहां देश ग्लोबल लेवल के इन्फ्रास्टक्चर या प्रोडक्ट बनाने के लिए किफायती साधनों का उपयोग कर रहे हैं. इस प्रणाली को प्रभावी और कुशल चुनाव प्रबंधन के साथ-साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए अन्य देशों को भी निर्यात किया जा सकता है. लोकतंत्र और लोकतांत्रिक शासन के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता इस तरह के सहयोग के माध्यम से सबसे अच्छी तरह से उदाहरणित होगी.
ऐसा लगता है कि भाजपा ने भारतीय लोगों के दिल और दिमाग को हैक करने की कला में महारत हासिल कर ली है. हालांकि, यह एक ऐसा दावा है जो नए बीएनएस के तहत अदालत में टिक नहीं सकता है!
इस बीच, कांग्रेस को ठकेला की धुन पर नाचना बंद कर देना चाहिए और दुनिया की नज़रों में हंसी का पात्र बनने से बचना चाहिए. ईवीएम को चुनाव में धांधली और बूथ कैप्चरिंग की कार्रवाई को रोकने के लिए पेश किया गया था, जो कि, यह तर्क दिया जा सकता है, कांग्रेस की खासियत है. लोकतंत्र के रथ के पहिये चलते रहने चाहिए और लुढ़कते पत्थर की तरह जिस पर काई नहीं जमती, ईवीएम विवाद को भ्रष्टाचार की धूल में पीछे छोड़ दिया जाना चाहिए.
(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
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