भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में रेल नेटवर्क के विस्तार, बुलेट ट्रेन चलाने, रेल यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने, रेलवे स्टेशनों पर नागरिक सुविधाएं मुहैया कराने संबंधी वादे किए थे. रेलवे एक प्रमुख क्षेत्र है, जहां यात्री लेटलतीफी से जूझते रहे. बुनियादी सुविधाओं का इंतजार करते रहे. रेल की रफ्तार बढ़ना तो दूर की बात, किराये की रफ्तार ने लोगों की हालत और पतली कर दी और रेलवे इस सरकार की विफलता की स्मारक बन गई है.
बीजेपी के घोषणा पत्र में किए गए 4 प्रमुख वादों की बात-
1- नए रेल नेटवर्क के माध्यम से बंदरगाहों को देश के भीतरी इलाकों से जोड़ा जाएगा.
2- कृषि रेल नेटवर्क विकसित किया जाएगा. ट्रेन के वैगन इस तरह तैयार किए जाएंगे, जिससे खराब होने वाले कृषि उत्पादों जैसे दूध और सब्जियों की ढुलाई की जाए. साथ ही नमक की ढुलाई के लिए हल्के वैगन तैयार किए जाएंगे.
3- सभी स्टेशनों का आधुनिकीकरण किया जाएगा और उनके बुनियादी ढांचे को बेहतर करने के साथ सार्वजनिक सुविधा केंद्र विकसित किए जाएंगे.
4- हाई स्पीड ट्रेन नेटवर्क यानी बुलेट ट्रेन के लिए हीरक चतुर्भुज परियोजना शुरू की जाएगी.
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सत्ता में आने के पहले साल इन परियोजनाओं पर खूब चर्चा हुई. लेकिन किसी बंदरगाह को देश के भीतरी इलाके से जोड़ने की कोई नई योजना अब तक मूर्तरूप नहीं ले सकी है, जिसका उल्लेख किया जा सके.
यही हाल कृषि रेल नेटवर्क का है. अब तक कोई ऐसा नेटवर्क नहीं तैयार हो सका है जिससे किसानों, दूधियों के माल की ढुलाई हो सके. सब्जी और दूध की ढुलाई के लिए कोई स्पेशल वैगन नहीं बन सका है. नमक की ढुलाई के लिए कोई हल्का वैगन नहीं बन पाया है.
स्टेशनों के आधुनिकीकरण की तो बहुत ही दुर्दशा हुई है. सरकार की यह बहुप्रचारित कवायद थी. इस योजना के तहत स्टेशनों का चयन पीपीपी मॉडल पर विकास के लिए किया गया था. बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर काम करने वाली कंपनियों ने परियोजना में रुचि नहीं दिखाई.
स्टेशनों के आधुनिकीकरण के नाम पर तमाम स्टेशनों पर वाई-फाई की सुविधा जरूर दे दी गई है. तमाम स्टेशनों पर वाई फाई सेवा बढ़ाने का भी लक्ष्य रखा गया. रेलमंत्री पीयूष गोयल ने अगस्त 2019 तक 6,441 स्टेशनों पर फ्री वाई-फाई सेवा देने का नया लक्ष्य रख दिया है. सरकार ने 600 स्टेशनों को चुना, जिससे उनकी संपत्ति को निजी हाथों में देकर उनसे धन कमाया जा सके और निजी क्षेत्र से उनका विकास कराया जा सके. इन स्टेशनों के विकास पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान था. इस परियोजना में निजी कंपनियों ने कोई खास दिलचस्पी नहीं ली. लंबे इंतजार के बाद अक्टूबर 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नए स्टेशन पुनर्विकास नीति को मंजूरी दी. इसमें जमीन के लिए पट्टे की अवधि बढ़ाकर 99 साल कर दी गई, जो पहले की नीति में 45 साल रखी गई थी. इसमें पट्टे पर लेने वाली कंपनी भी जमीन को पट्टे पर दे सकती है. सरकार ने 16 मार्च 2019 को 1 लाख करोड़ रुपये के पुनर्विकास परियोजना के पहले चरण में 42 स्टेशनों के पुनर्विकास के लिए सरकारी कंपनियों राइट्स, मेकॉन, नेशनल प्रोजेक्ट कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन, इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स इंडिया, और ब्रिज एंड रूफ कंपनी इंडिया को चुना है, जो 5 समूहों में विभाजित 42 स्टेशनों के विकास की निगरानी करेंगी.
बुलेट ट्रेन योजना के तहत देश में हीरक चतुर्भुज बनना है. इसके तहत देश के 4 बड़े महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई को उच्च रफ्तार वाले रेल नेटवर्क से जोड़ा जाना है. इस योजना के तहत 6 गलियारों की कल्पना की गई है. इनमें दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-हावड़ा, दिल्ली-चेन्नई, चेन्नई-हावड़ा, चेन्नई-मुंबई और हावड़ा-मुंबई गलियारे शामिल हैं. धन की कमी और निर्णय लेने की धीमी प्रक्रिया के चलते इन परियोजनाओं की रफ्तार सुस्त गति से आगे बढ़ रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2017 में मुंबई और अहमदाबाद के बीच 1.1 लाख करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली बुलेट ट्रेन परियोजना की नींव रखकर देश में ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाने की शुरुआत की. इस पर हीरक चतुर्भुज अब भी सपना बना हुआ है. दिल्ली अहमदाबाद बुलेट मार्ग के लिए 60 पुल बनने हैं, जिनमें से नवसारी जिले में पुल निर्माण के लिए बोली आमंत्रित की गई है. वहीं ज्यादातर बुलेट मार्गों पर मामला शुरुआती अध्ययन कराने तक ही सिमटा हुआ है.
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रेलवे की पुरानी ट्रेनों में सुविधाएं बदहाल हुई हैं, वहीं ट्रेनों की ज्यादातर सीटों को डायनमिक फेयर में डाल दिए जाने से रेल का किराया डेढ़ से दोगुना तक पहुंच गया है. सरकार की ओर से बुलेट ट्रेन की शक्ल की वंदे भारत ट्रेन दिल्ली से वाराणसी के बीच लोकसभा चुनाव के ठीक पहले शुरू की गई, जिसका किराया अब तक की सबसे महंगी रही शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन से भी ज्यादा है. इसके पहले शुरू की गई हमसफर एक्सप्रेस का रंगरोगन बेहतर है, लेकिन उस ट्रेन को शुरुआत से ही डायनमिक फेयर में डाल दिया गया है. महंगी होने की वजह से हमसफर यात्रियों की अंतिम प्राथमिकता पर होती है.
रेलवे देश की लाइफलाइन है. इस पर जिस तरह से प्राथमिकता के आधार पर काम करने का वादा बीजेपी ने 2014 चुनाव से पहले किया था, उसे पूरा करने में उसी स्तर की लापरवाही बरती गई.
(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.)
We have lost 70 years no one is asking for that, and there are so many scams no one is asking, but every one wants the promises to be done in few time. It will take time to do this. Give some room.