इस रमज़ान, नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से एक शांत इशारे ने चर्चा को हवा दे दी है — 32 लाख वंचित मुसलमानों के लिए ईद की किट्स, जिसे इस पाक महीने के साथ सद्भावना पहल के रूप में वर्णित किया गया है. यह पेशकश उत्सव की तरह दिखती है, जिसमें सूखे मेवे, सूजी, सेंवई और चीनी जैसी ईद पर इस्तेमाल होने वाली सामग्री शामिल है. किट में पुरुषों के लिए कुर्ता-पजामा और महिलाओं के लिए सूट के कपड़े भी शामिल हैं, जिन्हें ईद से पहले मुस्लिम घरों तक पहुंचाने के लिए बड़े करीने से पैक किया गया है. पहली नज़र में, यह भारतीय जनता पार्टी द्वारा एक सोची-समझी सांस्कृतिक पहल लगती है, जो उन घरों में गर्मजोशी और उत्सव लाने का प्रयास है, जो अन्यथा बिना इसके रह सकते हैं, लेकिन भारतीय राजनीति में ज़्यादातर चीज़ों की तरह, सतही तौर पर पूरी कहानी शायद ही कभी होती है.
यह कदम राजनीतिक पर्यवेक्षकों द्वारा अनदेखा नहीं किया गया है. मुसलमानों के लिए अचानक और बड़े पैमाने पर यह पहल क्यों — वह भी एक ऐसी पार्टी द्वारा जिसने अब तक तुष्टिकरण की राजनीति से खुद को दूर रखने पर अपना नैरेटिव सेट किया है? यह वही भाजपा है जिसके नेता लगातार इफ्तार में शरीक होने के लिए राजनीतिक विरोधियों की आलोचना करते हैं, ऐसे प्रकरण को अवसरवादी चापलूसी बताते हैं और फिर भी, हम यहां हैं, सत्तारूढ़ पार्टी सिर्फ कुछ प्रतीकात्मक लोगों के लिए नहीं बल्कि 30 लाख से ज़्यादा मुस्लिम परिवारों को ईद की मुबारकबाद दे रही है. कई लोगों के लिए, सवाल यह नहीं है कि यह इशारा दयालु है या नहीं, लेकिन अभी क्यों और इस तरह क्यों?
भाजपा की ‘सौगात-ए-मोदी’ किट ने न सिर्फ राजनीतिक टिप्पणीकारों को चौंकाया है, बल्कि विपक्ष की ओर से भी तीखी टिप्पणियां आकर्षित की हैं. कुछ लोगों के लिए, यह ऐसे इशारों पर भाजपा के सामान्य रुख के बिल्कुल उलट है, लेकिन इसे नज़दीक से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों के लिए, यह कदम दिल बदलने से कम और बिहार को ध्यान में रखते हुए एक रणनीतिक गणना की तरह ज़्यादा लगता है.
भाजपा की मुस्लिमों तक पहुंच
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव ने भाजपा के भीतर यह चिंता पैदा कर दी है कि विपक्ष की बढ़ती ताकत न केवल पार्टी को प्रभावित कर सकती है, बल्कि इसके प्रमुख सहयोगियों — नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड), चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) को भी प्रभावित कर सकती है. इस तरह से, ईद पर यह करना सांस्कृतिक उदारता के कार्य से कम और राजनीतिक बफर की तरह अधिक लगता है — एक ऐसे राज्य में झटके को कम करने का प्रयास जहां गठबंधन का गणित जल्दी बदल सकता है.
यह विश्लेषण कुछ हद तक सच हो सकता है, लेकिन यह उस बड़े आउटरीच पैटर्न को भी नज़रअंदाज़ करता है जिसे भाजपा लगातार बना रही है, खासकर गरीब मुसलमानों, पसमांदा समुदायों और मुस्लिम महिलाओं के प्रति. पिछले कुछ साल में, पार्टी ने मुस्लिम मतदाताओं के उन वर्गों के बीच जगह बनाने के लिए लक्षित प्रयास किए हैं जिन्हें लंबे समय से दूर माना जाता था.
उत्तर प्रदेश में 2023 के शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में, भाजपा ने पसमांदा मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है — एक ऐसा कदम जिसे कभी राजनीतिक रूप से अकल्पनीय माना जाता था. इसने जिन 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, उनमें से 54 ने जीत हासिल की. बड़े राष्ट्रीय संदर्भ में देखने पर ये संख्याएं मामूली लग सकती हैं, लेकिन वह पार्टी के दृष्टिकोण में एक सूक्ष्म बदलाव की ओर इशारा करती हैं. यह बदलाव उपहार बक्सों से आगे बढ़कर भाजपा की राजनीतिक रणनीति की पुनर्कल्पना की ओर इशारा करता है — कम से कम सतही तौर पर तो.
पसमांदा और गरीब मुसलमानों को जोड़ने का भाजपा की कोशिश कोई नई नहीं है. उत्तर प्रदेश में, योगी आदित्यनाथ की दूसरी कैबिनेट में पसमांदा मुसलमान दानिश अंसारी को अल्पसंख्यक कल्याण, मुस्लिम वक्फ और हज राज्य मंत्री नियुक्त किया गया था — जिसे कई लोगों ने प्रतीकात्मक लेकिन राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा. पार्टी और उसके प्रवक्ता अक्सर दावा करते हैं कि यह भाजपा ही थी जिसने एपीजे अब्दुल कलाम को भारत का राष्ट्रपति बनाया था, इसे अपनी समावेशी साख का सबूत बताते हुए. इसके अलावा कई कल्याणकारी योजनाएं हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि वाले मुसलमानों को लाभान्वित करती हैं.
इसके अलावा, सरकार ने न केवल भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए बढ़े हुए हज कोटे का अनुरोध किया और उसे हासिल किया, बल्कि पहली बार 45 वर्ष से अधिक उम्र की मुस्लिम महिलाओं को बिना पुरुष अभिभावक (महरम) के हज यात्रा करने की अनुमति भी दी. कुल मिलाकर, ये प्रयास एक दीर्घकालिक राजनीतिक प्रयोग को दर्शाते हैं, जिसका उद्देश्य पार्टी के पारंपरिक आधार से आगे तक पहुंचना और मुस्लिम समुदाय के उन वर्गों के साथ चुनिंदा पुल बनाना है, जो ऐतिहासिक रूप से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से हाशिये पर रहे हैं.
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भाजपा की ईद किट्स से आगे जाना चाहिए
प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार मुसलमानों से सीधे संपर्क किया है. हाल ही में, उन्होंने दिल्ली में सूफी संगीत समारोह जहान-ए-खुसरो में भाग लिया, जहां उन्होंने सूफी परंपरा के बारे में विस्तार से बात की, जो विविधता में एकता की शक्ति है. उस संदर्भ में, सौगात-ए-मोदी को केवल चुनावी लाभ के चश्मे से देखना मुश्किल हो जाता है.
इस तरह के इशारों से — और समय के साथ पार्टी के व्यापक रुख से — एक बात तो तय है, वह यह है कि भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में देखी जाना चाहती है जो निष्पक्ष शासन करने के लिए तैयार है और आम मुसलमानों की समस्याओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है.
कल्याण किया जाता है, प्रतिनिधित्व दिया जाता है और सांस्कृतिक पहुंच दिखाई देती है, लेकिन इसके साथ ही उम्मीदों की एक धारा भी जुड़ी होती है. जिस मुसलमान को गले लगाया जाता है, वह अक्सर एक निश्चित फ्रेम में फिट बैठता है: ‘अच्छा’ मुसलमान, देशभक्त मुसलमान और समावेशी और सांस्कृतिक रूप से आत्मसात मुसलमान. यह हमेशा सीधे तौर पर नहीं कहा जाता है, लेकिन सूक्ष्म रूप से रेखाएं खींची जाती हैं — उन लोगों के बीच जिनका स्वागत किया जाता है और उन लोगों के बीच जिनके विचारों का स्वागत नहीं किया जाता या जिन्हें राष्ट्र के लिए खतरनाक माना जाता है. इसमें, समावेश की राजनीति अभी भी शर्तों का भार सहती है.
फिर भी, यह हमेशा एक स्वागत योग्य संकेत होता है जब देश का शीर्ष नेतृत्व अल्पसंख्यक समुदायों को आत्मसात करने और समायोजित करने का प्रयास करता है — खासकर ऐसे समय में जब ध्रुवीकरण इतना आम हो गया है. जब प्रधानमंत्री सीधे मुस्लिम दर्शकों से बात करते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, या कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत करते हैं, तो वे समावेशिता का एक महत्वपूर्ण संकेत भेजते हैं, लेकिन, इस संकेत को वास्तव में प्रतिध्वनित करने के लिए, इसे कल्याणकारी योजनाओं और आउटरीच कार्यक्रमों से परे जाना चाहिए. इसे पुष्टि करनी चाहिए कि मुसलमान, अपनी सभी विविधताओं में, केवल राज्य की उदारता के प्राप्तकर्ता नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रीय कहानी में समान हितधारक हैं.
(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक साप्ताहिक यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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