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Sunday, 21 April, 2024
होममत-विमतबीजेपी हो, आप या शिवसेना-नेताओं को सरकारी कामकाज की फुर्सत नहीं, सत्ता तो बस बदला लेने का औजार

बीजेपी हो, आप या शिवसेना-नेताओं को सरकारी कामकाज की फुर्सत नहीं, सत्ता तो बस बदला लेने का औजार

महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा पर बवाल से लेकर मोदी की पेट्रोल-डीजल टैक्स पर बातें, राजनैतिक मर्यादाएं तो दरवाजे से बाहर हैं. झेलते तो देश के गरीब लोग हैं.

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राजनीति सुनते ही सबसे पहले आपके दिमाग में क्या आता है-गंदी, बुरी, क्षुद्र? तो, भारत में अब उसे नया नाम मिल गया है: बदला भंजाओ. जैसा आपने पहले कभी नहीं सुना होगा.

सिर्फ बुलडोजर ही नहीं, हमारे ‘काबिल नेताओं’ ने बदला भंजाने की नई रवायत शुरू कर दी है. राजनीति अब कानाफूसी और ‘दरबारी साजिशों’ तक सीमित नहीं रही. अब सरेआम दो-दो हाथ करने पर उतर आई है. महाराष्ट्र में ही देखिए.

निर्दलीय विधायक रवि और नवनीत राणा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के निवास मातोश्री के सामने हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहते थे, ताकि उन्हें दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के ‘हिंदुत्व के आदर्शों’ की याद दिलाई जा सके. मुंबई के पूर्व मेयर किशोरी पेडनेकर ने उसे ‘नौटंकी’ करार दिया. राणा दंपती को प्रेरणा शायद एमएनएस के मुखिया राज ठाकरे से मिली थी, जिन्होंने मस्जिदों पर लाउडस्पीकर बंद करने और वहां हनुमान चालीसा पढ़ने की धमकी दी है. इसलिए ठाकरे ने एमएनएस मुखिया की अपमानजनक बातों को यह कहकर लौटा दिया कि वे और उनके लगभग बीजेपी के सहयोगी ‘धंटाधारी हिंदुत्ववादी’ हैं जबकि वे ‘गदाधारी’ यानी सच्चे हिंदू नेता हैं. बेशक, यह इतने पर खत्म नहीं हुआ. कथित तौर पर शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने बीजेपी नेता किरीट सोमैया की कार पर हमला किया और उन्हें घायल कर दिया.

संदेश साफ है. नेताओं के बीच हाथापाई विधानसभा या संसद में ही नहीं, सरेआम सड़क पर भी शुरू हो गई है. राजनैतिक मर्यादाओं को तो बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. सिर्फ और सिर्फ बदले की राजनीति रह गई है.


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कैसे इस गर्त में पहुंचे

बीजेपी ने राजनीति में एक नया दौर शुरू किया कि आप सत्ता में सिर्फ एक वजह से हो-ज्यादा से ज्यादा चुनाव जीतो. सरकारी काम काज तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद अफसरों और मुख्यमंत्रियों को सौंप दिया गया है, जो सब कुछ कबाड़ा कर रहे हैं क्योंकि महंगाई बढ़ रही है, बेराजगारी में इजाफा हो रहा है, ईंधन की कीमतें आसमान छू रही हैं और जीडीपी गोता लगा रही है.

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प्रशासन तो बस अफसरशाही की फाइलों में है, उसका मतलब वोटरों की जिंदगी में सुकून लाना नहीं रह गया है. सब कुछ तुम बनाम मैं हो गया है. प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में गैर-बीजेपी शासित राज्यों से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वैट घटाने की अपील की, क्योंकि वह ‘आपके लोगों के साथ जायज नहीं’ है. टैक्स के असली गणित को तो छोड़िए, इस बयान में सबसे परेशान करने वाली बात तो यह है कि वे गैर-बीजेपी शासित राज्यों के लोगों को अपने ‘लोग’ नहीं मानते.

लेकिन हर कोई राजनीति से यही तो उम्मीद करता है, क्या नहीं? ये सभी राजनीति की रवायतें हैं, सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में. हालांकि, इधर कुछ समय से भारत में राजनीति नेताओं की बदला भंजाने की फितरत से कानून और संघीय ढांचे की सीमाएं तोड़ने लगी है. इसे ही दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता मैड या एमएडी (म्यूचुअली एसोर्ड डिटेनशन) कहते हैं.

जरा भूगोल पर नजर डालिए. गठजोड़ों के साथ मिलाकर 18 राज्यों में बीजेपी का राज है, गठजोड़ के साथ पांच में कांग्रेस काबिज है, दो में आप और बाकी में टीएमसी, टीआरएस, वाईएसआरसीपी, बीजेडी और सीपीएम की सत्ता है. इसलिए, जाहिर है राष्ट्रीय पार्टियां इन दूसरे राज्यों में जाना चाहती हैं. इस तरह बदले की राजनीति वहां भी घुस आती है, जहां जरूरी नहीं है. गृह मंत्री अमित शाह ने हाल में भाषा का सवाल छेड़ा. उन्होंने जोर दिया कि हर कोई, खासकर सरकारी मामलों में, हिंदी मे ही एक-दूसरे को संदेश भेजें. और इससे कोई खुश नहीं है. विपक्षी पार्टियों ने इसे ‘हिंदी साम्राज्यवाद’ करार दिया. जाहिर है, कोई चुनाव जीतना है तो प्रचार की भाषा, जो नफरत बुझी होती है, को लोगों को समझना चाहिए और इसके लिए हिंदी जरूरी है.

हाल में पंजाब के नए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी केंद्र पर गैर-बीजेपी शासित राज्यों के साथ ‘सौतेला’ व्यवहार का आरोप लगाया. पहले ऐसे आरोप ममता बनर्जी, पिनराई विजयन और यहां तक कि मायावती लगा चुकी हैं. मान ने केंद्र पर आरोप लगाया कि वह केंद्रीय पुल से पंजाब को पर्याप्त बिजली नहीं दे रहा है, इसके बदले हरियाणा को दे रहा है, जहां बीजेपी की सरकार है. बंगाल में भी हालात इतने बुरे हैं कि पिछले हफ्ते ही बीजेपी के एमपी अर्जुन सिंह ने आरोप लगाया कि बंद होने की कगार पर खड़े जूट मिलों को बचाने के लिए उनकी मांग केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल नहीं सुन रहे हैं, जिससे लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे.
मोदी सरकार अभी तक इन बातों के प्रति अपने कान मूंदे हुए है.

यह एकतरफा नहीं

तो, केंद्र के इन ‘अपमानों’ को लौटाने का बेहतर तरीका क्या है? उसी पैमाने पर असम्मान दिखाओ-यानी बदला! देश में कोविड के हालात पर गौर करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में अरविंद केजरीवाल अपने दोनों हाथ सिर पर रखे मोदी के सामने कुछ चेन की मुद्रा में बैठे देखे गए. वे प्रधानमंत्री की बातों पर छह बार जम्हाई लेते देखे गए. दिल्ली के मुख्यमंत्री पहले भी शिष्टाचार तोड़ चुके हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ एक बंद दरवाजे की बैठक को अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर लाइव कर दिया और प्रधानमंत्री से दिल्ली ऑक्सीजन सिलेंडर भेजने का अनुरोध किया.

बदले की राजनीति अब खुलकर होने लगी है. हालात बिगड़ रहे हैं. लेकिन इस राजनैतिक ‘नौटंकी’ की वजह से खामियाजा तो लोगों, खासकर गरीब लोगों को भुगतना पड़ेगा.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक राजनैतिक पर्यवेक्षक हैं . विचार निजी हैं)


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