चीन के शीर्ष थिंक-टैंक, चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस के एक लेख के अनुसार, बीजिंग ने बैठक में ‘द्विपक्षीय विषयों’ को शामिल करके जी20 शिखर सम्मेलन के एजेंडे को आकार देने की कोशिश के लिए नई दिल्ली को दोषी ठहराया है. चीन की शीर्ष जासूसी एजेंसी, राज्य सुरक्षा मंत्रालय से संबद्ध, थिंक-टैंक यह भी बताता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जी20 शिखर सम्मेलन को छोड़ने का फैसला क्यों किया.
सीआईसीआईआर के सहायक शोधकर्ता ज़ू किन द्वारा लिखित भारत की ‘बड़ी योजना’ और ‘छोटी मानसिकता’ शीर्षक वाला लेख शनिवार को वीचैट पर प्रकाशित हुआ था.
ज़ू ने लिखा कि भारत ने “विवादित क्षेत्र” में जी20 बैठक की मेजबानी करके अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन किया और “इस प्रकार क्षेत्रीय विवाद को जी20 एजेंडे में शामिल कर लिया”.
उन्होंने कहा, “इस साल मार्च में, भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने स्यूडो यानी छद्म ‘अरुणाचल प्रदेश’ (हमारा दक्षिणी तिब्बती क्षेत्र) में जी20 की एक बैठक की मेजबानी की, लेकिन चीन इसमें शामिल नहीं हुआ.”
सीआईसीआईआर कथित तौर पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों से संबंधित मामलों पर चीन की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था पोलित ब्यूरो को सलाह देता है.
लेख को नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन के पहले दिन प्रकाशित किया जाना था और वैश्विक कार्यक्रम को छोड़ने के शी के फैसले के पीछे बीजिंग के तर्क को बताना था.
यह घरेलू परेशानियां या अमेरिका नहीं है
अब तक, हमने शी की गैर-मौजूदगी के लिए कई स्पष्टीकरण सुने हैं – उनकी घरेलू परेशानियों से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ जटिल संबंधों तक. अब, सरकार से जुड़े चीनी विशेषज्ञों की आधिकारिक टिप्पणी में कहा गया है कि शी ने भारत के बढ़ते क्षेत्रीय और वैश्विक नेतृत्व और सीमा विवाद जैसे द्विपक्षीय मुद्दों को शिखर सम्मेलन के एजेंडे में शामिल करने के कारण शिखर सम्मेलन को छोड़ने का फैसला किया.
शी के फैसले को व्यक्तिगत कारणों या घरेलू आर्थिक समस्याओं के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है – चीनी थिंक-टैंक ने यह स्पष्ट कर दिया है कि शिखर सम्मेलन को छोड़ने के लिए शी के पास राजनीति से प्रेरित कारण थे.
जू ने यह भी बताया कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के नए नेता के रूप में खुद को स्थापित करने की भारत की कोशिश बीजिंग को रास नहीं आ रही है. जी20 शिखर सम्मेलन को लेकर नई दिल्ली के साथ बीजिंग की कलह की जड़ बताते हुए जू ने लिखा, “‘ग्लोबल साउथ’ का प्रतिनिधित्व करना और खुद को ‘नेता’ घोषित करना.”
जू ने कहा कि भारत जी20 की मेजबानी करके तथाकथित “ग्लोबल साउथ” में अमेरिका द्वारा छोड़े गए ‘पावर वैक्यूम’ को भरना चाहता है. बीजिंग अब भारत के साथ अपने संबंधों को “ग्लोबल साउथ” में शक्ति अंतर पर एक वैचारिक प्रतिस्पर्धा के रूप में देखता है.
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शी के लिए ‘निजी विषय’ एक समस्या
जू ने लिखा कि नई दिल्ली भू-राजनीतिक रूप से आरोपित ‘निजी विषयों’ को पेश करके जी20 के मूल इकोनॉमिक गवर्नेंस के एजेंडे से भटक गई है.
जू ने लिखा, “अगर भारत जी20 के मूल इरादे और फोकस से भटक जाता है और ग्लोबल इकोनॉमिक गवर्नेंस प्लेटफॉर्म में भू-राजनीतिक ‘निजी विषयों’ को लाने पर जोर देता है, तो यह न केवल बदलती अध्यक्षता की अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में अप्रभावी होगा,”
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर शिखर सम्मेलन को “अगले साल के आम चुनाव के लिए मोमेंटम बनाने के लिए एक प्रमुख राजनयिक उपलब्धि” के रूप में उपयोग करने का भी आरोप लगाया.
इससे पहले, शी जी20 शिखर सम्मेलन में नियमित रूप से – फिज़िकली या वर्चुअली – उपस्थित होते रहे हैं. उन्होंने कोविड प्रतिबंधों के कारण वीडियो लिंक के माध्यम से रियाध और रोम में 2020 और 2021 के शिखर सम्मेलन में भाग लिया. हालांकि, इस साल उन्होंने बैठक के लिए चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग को भेजा है.
अगर किसी को भारत के साथ प्रतिस्पर्धा पर शी के भू-राजनीतिक एकालाप पर कोई संदेह था कि यही कारण है कि उन्होंने जी20 को छोड़ दिया, तो जू की आधिकारिक टिप्पणी ने अब उस अटकल को समाप्त कर दिया है.
जी20 शिखर सम्मेलन निश्चित रूप से भारत को हमारे समय के भू-राजनीतिक तनावों के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रदान करने का अवसर देगा. लेकिन बीजिंग भूल जाएगा और आगे बढ़ जाएगा, क्योंकि भारत के साथ वैचारिक टकराव अब द्विपक्षीय संबंधों के सामने और केंद्र में होने की संभावना है.
(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीनी मीडिया पत्रकार थे. उनका एक्स हैंडल @aadilbrar है. उनके द्वारा व्यक्त किए विचार व्यक्तिगत हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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