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Sunday, 22 December, 2024
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नागरिकता कानून संविधान की प्रस्तावना के खिलाफ, देश का बहुजन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित

बाबा साहेब अम्बेडकर कहते थे कि मेरे जाने के बाद ये मत समझना कि मैं मर गया, जब तक संविधान जिंदा है, मैं जिंदा हूं, बस संविधान को मत मरने देना. हम बाबा साहेब को मरने नही देंगे. हम संविधान की आखिरी सांस तक रक्षा करेंगे.

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बहुमत के गुमान में देशव्यापी विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून 2019 को संसद के दोनों सदनों से पारित करा लिया. इस बिल में यह तो प्रावधान है कि हिंदू, बौद्ध, जैन, ईसाई, पारसी और सिखों को, जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत में शरण लेने आए हैं उन्हें नागरिकता प्रदान की जाएगी लेकिन यह कानून सिर्फ मुसलमानों के साथ हीं नहीं बल्कि दलित, ट्राइबल (आदिवासी), वनवासी, तमिल, गोरखा और नास्तिकों के साथ भी अन्याय कर रहा है.

धर्म के आधार पर यह दुनिया का सबसे बड़ा भेदभाव का कानून है. यह कानून भारतीय संविधान और भारतीयता के नितांत विरुद्ध है, जो की साफ़ तौर पर धर्म के आधार पर भेदभाव है. यदि अच्छे से समझना है तो इसे एनआरसी के साथ जोड़कर देखना पड़ेगा क्योंकि एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) एक दूसरे के पूरक हैं और भारतीय संविधान की प्रस्तावना के खिलाफ है.

नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी से अगर कोई प्रभावित हो रहा है तो वह भारत का बहुजन है. यह बहुजन यहां का मूल निवासी है जिसमें दलित, ट्राइबल, मुसलमान और अन्य अल्पसंख्यक शामिल हैं. हम नागरिकता कानून का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि यह बहुजनों की राजनीतिक और सामाजिक शक्ति को समाप्त करने की अब तक की सबसे बड़ी साजिश है.

सरकार ने अपने बहुमत के नशे में इसे पारित करके कानून तो बना दिया है लेकिन संसद के दोनों सदनों के सांसद यदि भारत के समग्र जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे होते तो आज पूरा देश जल नहीं रहा होता. जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं पर पुलिसिया निजाम ने लाठियां और गोलियां बरसाकर निरंकुशता की परकाष्ठा पार कर दी. उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पुलिस ने दमन से आंदोलन कुचलने की कोशिश की. आज यह आंदोलन पूरे देश की यूनिवर्सिटी में फैल गया है. पूरा उत्तर पूर्व जल रहा है, पूरे हिंदी क्षेत्र में तनाव है. तमिलनाडु की खबरें सामने नहीं आ रही है और उत्तर प्रदेश के तराई और उत्तर पूर्व में गोरखा लोगों की तीखी प्रतिक्रिया भी खबरों में हैडलाइन नहीं बन रही है.


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यह कानून संविधान के कवर को बचाकर उसके अंदर की पूरी आत्मा को हिंदू राष्ट्र में बदलने की घटिया चाल है और मानवता के खिलाफ संगठित अपराध है. इस क्रूर कानून के खिलाफ पूरे देश में विद्रोह की आग सुलग पड़ी है. आपको पता है कि यह कानून केवल मुसलमानों के खिलाफ ही नहीं बल्कि सभी आदिवासी और देश के मूल निवासियों के खिलाफ भी है.

भारत जैसे देश में तमाम आदिवासी आज भी खानाबदोश की जिंदगी जीते हैं, तमाम घुमन्तू जाति के लोग बिना किसी प्रमाण पत्र के जी रहे हैं, तमाम भूमिहीन लोग आज भी जमींदारों के यहां पीढ़ियों दर पीढ़ियों से काम करके उन पर आश्रित चले आ रहे हैं जो ताजा कमाकर ताजा खाने वाले लोग हैं, जो काम की तलाश में निरंतर भटकते रहते हैं, जिनका स्थायी कोई घर नही है वो कहां से कागज लाएंगे, झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले दलित समाज के लोग जिन्हें तेज बारिश आने पर घर छोड़कर भागना पड़ता है वो कागज कहां से लाएंगे, आदिवासी समाज के लोग जिनके यहां अभी तक बिजली नही पहुंची वो कौन सी नागरिकता का कागज देंगे. यह बर्बर हुकूमत एक झटके में उन्हें विदेशी करार दे देगी. सच कहूं तो मुसलमान सिर्फ बहाना है, मुस्लिमों के साथ इनके असली निशाने पर बहुजन मूलनिवासी लोग ही हैं.

आज आदिवासियों को कागजों के नाम पर जंगलों से बेदखल किया जा रहा है, जंगलों में जीवन बिताने वाला आदिवासी समाज नागरिकता का कौन सा कागज देगा. अब तक वो जंगल बचाने की लड़ाई लड़ रहा था, अब नागरिकता बचने की लड़ाई भी लड़नी पड़ेगी. कल देश से बेदखल किया जाएगा.

नॉर्थ ईस्ट के कई ट्राइब्स मुस्लिम भी हैं जिन्हें आज तक अनेक स्थानीय कारणों से नागरिकता नहीं मिल पायी. उनके लिए एनआरसी संकट का विषय बनता जा रहा है. असम के बागानों में काम करने वाले कई टी ट्राइब्स को एसटी का दर्जा नहीं मिला. उनकी मांग आज भी जारी है. सरकार आती है, चली जाती है, पर उनकी मांग पर आज तक ध्यान नहीं दिया गया.

गोरखा, कोच राजबंगशी, बोडो जैसे कई जनजाति समुदाय को सीएए और एनआरसी से परेशानी होगी. उनके रिज़र्व संसाधनों के छिन जाने का संकट आएगा. एनआरसी में नाम की हेराफेरी दिखाकर यह करोड़ों दलितों और ट्राइबल को कागजात के नाम पर लटकाने, उनकी नागरिकता छीनने और उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित करने की साजिश है.

ऐसे कानून के कारण मानसिक रूप से बीमार लोग जो भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कराने की बात करते है, उन्हें मनोबल मिलता दिखाई दे रहा है. इस समय भारत में कुछ धर्मों के प्रति और धर्म न मानने वालों के प्रति नफरत के बीज बोये जा रहे हैं जिससे यह लग रहा है कि बीजेपी सरकार का अगला कदम भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना है जो कि निस्संदेह भारत को विनाश की तरफ ले जाएगा.

जिस तरह कानून बनाकर भारत के बहुजन वर्ग के एक बहुत बड़े वर्ग मुसलमान, गोरखा, तमिल और अन्य अल्पसंख्यकों को नागरिकता लेने से वंचित करने की साजिश की जा रही है, इसी तरह ऐसी ही साजिश अनुसूचित जाति और जनजाति का आरक्षण छीनने के लिए कर रहे हैं. इस तरह ये पूरी तरह इस देश को तोड़ने और संविधान की मूल भावना को खत्म करने की साज़िश है. इसके खिलाफ हम सबको एकजुट होकर संघर्ष करना पड़ेगा वरना एक दिन ऐसा हीं एक बिल आरक्षण के खिलाफ आएगा. जनविरोध के बावजूद संख्याबल के दम पर राज्यसभा ओर लोकसभा में पास हो जाएगा, इसलिए देश को और संविधान को बचाने के लिए घरों से बाहर निकलना पड़ेगा.


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बाबा साहेब अम्बेडकर कहते थे कि मेरे जाने के बाद ये मत समझना कि मैं मर गया, जब तक संविधान जिंदा है, मैं जिंदा हूं, बस संविधान को मत मरने देना. हम बाबा साहेब को मरने नही देंगे. हम संविधान की आखिरी सांस तक रक्षा करेंगे. एनआरसी के बहाने आरक्षण को समाप्त करने की साजिश का पर्दाफाश करने और नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 की वापसी की मांग को लेकर ही 20 दिसंबर शुक्रवार को जामा मस्जिद से जंतर-मंतर तक मैं अकेला पैदल मार्च करूंगा.

जामा मस्जिद की ऐतिहासिक सीढ़ियों से मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भारत की एकता और सद्भाव का नारा दिया था. मौलाना अबुल कलाम आजाद जी को नमन करते हुए मैं भारतवर्ष को यह संदेश देना चाहता हूं कि भारत का बहुजन यहीं रहेगा और नागरिकता संशोधन कानून वापस होना चाहिए. क्योंकि यह करोड़ों बहुजन, मुसलमानों, गोरखा, तमिल, नास्तिक और दलित- ट्राइबल को अपने ही देश से बाहर करने की साजिश है और यह साजिश आरक्षण की समाप्ति की घोषणा है. जब तक मेरी जान में जान है मैं ऐसा नहीं होने दूंगा.

(लेखक भीम आर्मी के संस्थापक हैं. यह उनके निजी विचार हैं)

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