हिंदी के युवा कवि विहाग वैभव को उनकी कविता ‘चाय पर शत्रु-सैनिक’ के लिए इस वर्ष का ‘भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार-2018’ दिया जाएगा. जानिए क्या है इस कविता में.
विहाग वैभव (जन्म-1994) की यह कविता पत्रिका ‘तद्भव’ में छपी थी. कविता के क्षेत्र में युवाओं के लिए यह महत्वपूर्ण पुरस्कार माना जाता है. यह पुरस्कार रजा फाउण्डेशन द्वारा आयोजित वार्षिक समारोह ‘युवा-2019’ के अवसर पर 11 अक्टूबर 2019 को वैभव को प्रदान किया जाएगा. यह पुरस्कार कवि की चिंतन धारा को रेखांकित करते हुए दिया जाता है. इस पुरस्कार की शुरुआत 1979 में हुई थी और पहला पुरस्कार हिंदी के चर्चित कवि ‘अरुण कमल’ को उनकी कविता ‘उर्वर प्रदेश’ के लिए दिया गया था.
हिंदी के युवा कवि विहाग वैभव का जन्म ‘उत्तर प्रदेश’ के जौनपुर जिले के सिकरौर नामक गांव में एक सामान्य किसान-मजदूर परिवार में हुआ है. उनकी 10वीं तक की शिक्षा जौनपुर के श्री सहदेव इंटर कॉलेज, 12वीं सेंट्रल हिन्दू स्कूल से और बीए तथा एमए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से हुई. वर्तमान में वे हिन्दी साहित्य में वहीं से पीएचडी कर रहे हैं. हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण पत्रिकाओं जैसे पहल, नया ज्ञानोदय, अदहन, आजकल, कविता कोश इत्यादि में उनकी कविता निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं. इसके अलावा वे कई साहित्यिक संस्थाओं में काव्य पाठ के लिए बुलाये भी जाते हैं.
विहाग वैभव ने जिस प्रकार परंपरा का ज्ञान रखते हुए कविता में नएपन का प्रयोग किया है, वह बेजोड़ है. उनकी कविता में इतिहास का आख्यान और परंपरा का ज्ञान तथा भविष्य के सवाल छुपे हुए हैं. हालांकि, विहाग वैभव का कोई कविता संग्रह नहीं है, बावजूद उसके उनकी कविताएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से पाठक वर्ग तक अपनी पहुंच बना चुकी हैं. वे एक विवेकवान और संवेदनशील कवि के रूप में पाठकों के बीच प्रतिष्ठित हो चुके हैं.
जिस कविता को लेकर विहाग वैभव को ‘भारत भूषण अग्रवाल’ पुरस्कार से नवाजा गया है, उस कविता में कई ऐसे कई बिन्दु हैं जिसको लेकर चर्चा की जा सकती है. विषय-वस्तु के आधार पर यह कविता युद्ध की विभीषिका को लेकर लिखी गई है. जिसमें विषय युद्ध है और उसमें कई बिंदु समाए हुए हैं. यह मित्रता, शत्रुता, परिवार और देश समाज के बीच रचे-बसे मैत्री संबंध को लेकर रची गई कविता है. युद्ध की विभीषिका का आख्यान पेश करती है यह कविता. यह कविता युद्धोन्माद के कारणों की व्यक्तिगत पूछताछ के माध्यम से दुनिया के हर देश की तानाशाही व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाती है.
जब पूरी दुनिया में दक्षिणपंथी ताकतें बढ़ रही हैं तो ऐसे समय में एक युवा कवि की सार्थकता इसी में निहित है कि वह कविता में प्रेम और प्रतिरोध की संस्कृति को प्रबलता के साथ प्रयोग करे.
अंत में विहाग वैभव की पूरी कविता जिस पर ‘भारत भूषण अग्रवाल’ सम्मान मिला है.
‘चाय पर शत्रु – सैनिक’
उस शाम हमारे बीच किसी युद्ध का रिश्ता नही था
मैनें उसे पुकार दिया
आओ भीतर चले आओ बेधड़क
अपनी बंदूक और असलहे वहीं बाहर रख दो
आस-पड़ोस के बच्चे खेलेंगें उससे
यह बंदूकों के भविष्य के लिए अच्छा होगा
वह एक बहादुर सैनिक की तरह
मेरे सामने की कुर्सी पर आ बैठा
और मेरे आग्रह पर होंठों को चाय का स्वाद भेंट किया
मैंनें कहा
कहो कहां से शुरुआत करें ?
उसने एक गहरी सांस ली, जैसे वह बेहद थका हुआ हो
और बोला – उसके बारे में कुछ बताओ
मैंनें उसके चेहरे पर एक भय लटका हुआ पाया
पर नजरअंदाज किया और बोला
उसका नाम समसारा है
उसकी बातें मजबूत इरादों से भरी होती हैं
उसकी आंखों में महान करुणा का अथाह जल छलकता रहता है
जब भी मैं उसे देखता हूं
मुझे अपने पेशे से घृणा होने लगती है
वह जिंदगी के हर लम्हें में इतनी मुलायम होती है कि
जब भी धूप भरे छत पर वह निकल जाती है नंगे पांव
तो सूरज को गुदगुदी होने लगती है
धूप खिलखिलाने लगता है
वह दुनियां की सबसे खूबसूरत पत्नियों में से एक है
मैंनें उससे पलट पूछा
और तुम्हारी अपनी के बारे में कुछ बताओ..
वह अचकचा सा गया और उदास भी हुआ
उसने कुछ शब्दों को जोड़ने की कोशिश की
मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता
वह बेहद बेहूदा औरत है और बदचलन भी
जीवन का दूसरा युद्ध जीतकर जब मैं घर लौटा था
तब मैंनें पाया कि मैं उसे हार गया हूं
वह किसी अनजाने मर्द की बाहों में थी
यह दृश्य देखकर मेरे जंग के घाव में अचानक दर्द उठने लगा
मैं हारा हुआ और हताश महसूस करने लगा
मेरी आत्मा किसी अदृश्य आग में झुलसने लगी
युद्ध अचानक मुझे अच्छा लगने लगा था
मैंनें उसके कंधे पर हाथ रखा और और बोला
नहीं मेरे दुश्मन ऐसे तो ठीक नहीं है
ऐसे तो वह बदचलन नहीं हो जाती
जैसे तुम्हारे सैनिक होने के लिए युद्ध जरूरी है
वैसे ही उसके स्त्री होने के लिए वह अनजाना लड़का
वह मेरे तर्क के आगे समर्पण कर दिया
और किसी भारी दुख में सिर झुका दिया
मैंनें विषय बदल दिया ताकि उसके सीने में
जो एक जहरीली गोली अभी घुसी है
उसका कोई काट मिले
मैं तो विकल्पहीनता की राह चलते यहां पंहुचा
पर तुम सैनिक कैसे बने ?
क्या तुम बचपन से देशभक्त थे ?
वह इस मुलाकात में पहली बार हंसा
मेरे इस देशभक्त वाले प्रश्न पर
और स्मृतियों को टटोलते हुए बोला
मैं एक रोज भूख से बेहाल अपने शहर में भटक रहा था
तभी उधर से कुछ सिपाही गुजरे
उन्होंने मुझे कुछ अच्छे खाने और पहनने का लालच दिया
और अपने साथ उठा ले गए
उन्होंने मुझे हत्या करने का प्रशिक्षण दिया
हत्यारा बनाया
हमला करने का प्रशिक्षण दिया
आततायी बनाया
उन्होनें बताया कि कैसे मैं तुम्हारे जैसे दुश्मनों का सिर
उनके धड़ से उतार लूं
पर मेरा मन दया और करुणा से न भरने पाए
उन्होंने मेरे चेहरे पर खून पोत दिया
कहा कि यही तुम्हारी आत्मा का रंग है
मेरे कानों में हृदयविदारक चीख भर दी
कहा कि यही तुम्हारे कर्तव्यों की आवाज है
मेरी पुतलियों पर टांग दिया लाशों से पटी युद्ध-भूमि
और कहा कि यही तुम्हारी आंखो का आदर्श दृश्य है
उन्होंने मुझे क्रूर होने में ही मेरे अस्तित्व की जानकारी दी
यह सब कहते हुए वह लगभग रो रहा था
आवाज में संयम लाते हुए उसने मुझसे पूछा
और तुम किसके लिए लड़ते हो ?
मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था
पर खुद को स्थिर और मजबूत करते हुए कहा
हम दोनों अपने राजा की हवश के लिए लड़ते हैं
हम लड़ते हैं क्यों कि हमें लड़ना ही सिखाया गया है
हम लड़ते हैं कि लड़ना हमारा रोजगार है
वह हल्की हंसी मुस्कुराते मेरी बात को पूरा किया
दुनियां का हर सैनिक इसी लिए लड़ता है मेरे भाई
वह चाय के लिए शुक्रिया कहते हुए उठा
और दरवाजे का रुख किया
उसे अपने बंदूक का खयाल न रहा
या शायद वह जानबूझकर वहां छोड़ गया
बच्चों के खिलौने के लिए
बंदूक के भविष्य के लिए
वह आखिरी बार मुड़कर देखा तब मैंने कहा
मैं तुम्हें कल युद्ध में मार दूंगा
वह मुस्कुराया और जवाब दिया
यही तो हमें सिखाया गया है.
(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के शोधार्थी हैं. यह लेख उनका निजी विचार हैं.)