अगर आपको लगता है कि बंगाली सिर्फ रसगुल्ला, माछेर झोल और रवींद्र संगीत के बारे में ही सोचते हैं, तो फिर से सोचिए. बंगालियों का एक और जुनून है भूतेर गोल्पो — टैगोर सहित कई प्रसिद्ध लेखकों द्वारा लिखी गई रोंगटे खड़े कर देने वाली भूत-प्रेतों की कहानियां. सत्यजीत रे ने भी कुछ भूतिया कहानियां लिखीं और भूतेर राजा या भूतों के राजा को अपनी आवाज़ भी दी — बच्चों की फिल्म गूपी गाइन बाघा बायने का एक किरदार. अनिक दत्ता की भूतेर भविष्यत ने 2012 में बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया और हर रविवार को रेडियो स्टार मीर और उनकी टीम लाखों बंगालियों को शानदार ढंग से नाटकीय भूत की कहानियों के लिए आकर्षित करती है: संडे सस्पेंस. अगर आपको थोड़ी-बहुत भी बंगाली आती है, तो इसे सुनिए. यह एक बेहतरीन अनुभव है.
मुझे नहीं पता कि वे शो सुनती हैं या नहीं, लेकिन ममता बनर्जी — जो बंगाली साहित्य की अच्छी जानकार हैं और खुद गद्य, कविता और आत्मकथा की सौ से ज़्यादा किताबें लिख चुकी हैं — उन्होंने अभी तक कोई भूत की कहानी नहीं लिखी है. उनके साहित्यिक कार्यों में यह फर्क शायद उनके दिमाग में रहा होगा. इसलिए, जब राज्य की वोटर्स लिस्ट में एक अजीबोगरीब बात देखी गई — इलेक्ट्रॉनिक फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) में बंगाल और, ज़्यादातर हरियाणा के मतदाताओं के लिए बिल्कुल एक जैसे नंबर थे — तो उन्होंने इस गड़बड़ी को एक ऐसा नाम देने में ज़रा भी वक्त नहीं गंवाया, जिसके बारे में उनके अंतर्मन ने कहा होगा कि बंगाली लोग इस पर पागल हो जाएंगे: घोस्ट वोटर्स.
और वह पागल हो गए.
27 फरवरी को बनर्जी द्वारा इसे यह नाम दिए जाने के तुरंत बाद, तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का समूह भूत-शिकारी बन गया और पश्चिम बंगाल के गांवों में जाकर डुप्लिकेट EPIC की तलाश करने लगा, जिसके बारे में उनका दावा था कि भाजपा ने निर्वाचन आयोग (ECI) के साथ मिलकर 2026 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए वोटर्स लिस्ट में इसे डाला है. पीछे न रहने के लिए, भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी घोस्ट वोटर्स की तलाश शुरू कर दी, जिनके बारे में उन्हें संदेह था कि उन्हें TMC ने तैनात किया है, घोस्ट वोटर्स को पकड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं.
पश्चिम बंगाल में 7.6 करोड़ मतदाता हैं. अंतिम गणना में, TMC ने राज्य में डुप्लिकेट EPIC कार्ड के नौ मामलों को सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध किया. निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने मुझे बताया कि, TMC द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने से बहुत पहले, बंगाल में लगभग 8,000 EPIC नंबरों की पहचान की गई थी जो कि हरियाणा के डुप्लिकेट थे. उन्होंने दावा किया कि डुप्लिकेट — जो 15 साल की अवधि में पाए गए — संभवतः तब आए जब वोटर्स लिस्ट मैनुअल या हाफ-मैनुअल से पूरी तरह से कम्प्यूटराइज्ड सिस्टम में बदल गई.
अब, चुनाव आयोग ने वेब-बेस्ड वोटर्स लिस्ट मैनेजमेंट सिस्टम ERONET में बदलाव किया है. अब हर विधानसभा क्षेत्र में निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) देश में कहीं भी सिर्फ एक क्लिक पर डुप्लिकेट EPIC पा सकते हैं. वोटर्स लिस्ट को पूरी तरह से सिक्योर बनाने के लिए एक और बड़ा कदम हाल ही में आधार और EPIC को जोड़ने का फैसला है.
लेकिन क्या निर्वाचन आयोग कभी भी एक सही मायने में बिना किसी गलती के वोटर्स लिस्ट तैयार कर सकता है? या, जैसा कि कोई भी भूत-भयभीत बंगाली पूछेगा, क्या सरसों में भी भूत है — शोरशेर मोधे भूत? यह मुहावरा भूत-प्रेत से ग्रसित व्यक्ति से भूत या आत्माओं को भगाने के लिए भूत भगाने वाले लोगों द्वारा सरसों के बीजों को आग में फेंकने की पुरानी प्रथा की याद दिलाता है. सवाल यह है कि अगर दोष अंदर ही है, तो क्या आप उसे ठीक कर सकते हैं?
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ईआरओ, बीएलओ और बीएलए
वोटर्स लिस्ट में बदलाव की प्रक्रिया में कुछ भी अनोखा नहीं है. निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) — हर विधानसभा क्षेत्र में तैनात राज्य सरकार के कर्मचारी — बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) को भेजते हैं, जो आमतौर पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और उनके जैसे होते हैं, ताकि वह मौजूदा वोटर्स का फिजिकल वेरिफिकेशन कर सकें और मृत या स्थानांतरित हो चुके लोगों के नाम हटा सकें. पश्चिम बंगाल में 80,633 बूथ हैं और वोटर्स लिस्ट में संशोधन एक सतत प्रक्रिया है जो नवंबर में तेज़ी से आगे बढ़ती है. जनवरी में अपडेट की गई लिस्ट प्रकाशित की जाती है.
यह केवल नौकरशाही की कवायद नहीं है. राजनीतिक दल पूरी प्रक्रिया में मुख्य हितधारक और सक्रिय भागीदार हैं. सभी मान्यता प्राप्त राज्य दल — पश्चिम बंगाल में छह — वोटर्स लिस्ट को स्कैन करने और किसी भी तरह की गड़बड़ी की रिपोर्ट करने के लिए ब्लॉक लेवल एजेंट (बीएलए) नामक पार्टी कार्यकर्ताओं को तैनात कर सकते हैं और करते भी हैं. बीएलए को अपने निर्धारित क्षेत्र के हर मतदाता के बारे में पता होने की सबसे अधिक संभावना होती है.
फिर, बीएलए, बीएलओ और ईआरओ के बावजूद, फर्ज़ी मतदाता वोटर्स लिस्ट में कैसे घुस जाते हैं? यह वाकई डरावना है. ये घोस्ट वोटर्स कितने असली हैं? क्या वह असली हैं या काल्पनिक? सुर्खियां बटोरने के लिए इनका ढोंग किया गया है, शोर-शराबे से भरा हुआ, जिसका कोई मतलब नहीं है? यह भी डरावना है कि हालांकि, दूसरे राज्यों में भी डुप्लीकेट कार्ड देखे गए, लेकिन सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही घोस्ट वोटर्स को राजनीतिक हथियार में बदल दिया गया.
कुछ पर्यवेक्षकों ने उन्हें बड़े पैमाने पर ध्यान भटकाने वाले हथियार करार दिया है.
चुनाव आयोग इस गड़बड़ी की ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकता और उसे सभी खामियों को दूर करना चाहिए, लेकिन वोटर्स लिस्ट संशोधन में राजनीतिक दलों की बड़ी भूमिका होती है. अगर उनकी भागीदारी के बावजूद भी लिस्ट में घोस्ट वोटर्स हैं, तो निश्चित रूप से उन पर भी दोष मढ़ा जाना चाहिए.
कल्पना से भी परे
स्वर्ग और पृथ्वी में आपके दर्शन में जितनी कल्पना की गई है, उससे कहीं अधिक चीज़ें हैं. हेमलेट ने मोटे तौर पर अपने पिता के भूत द्वारा अभिनीत इसी नाम के नाटक में कहा था. उन “अधिक चीज़ों” में से एक, जिनसे चुनाव आयोग नियमित रूप से निपटता है, वह है जनसांख्यिकी रूप से समान प्रविष्टियां (DSE). ऐसा तब होता है जब दो वास्तविक मतदाताओं के नाम, पिता का नाम और यहां तक कि उनकी EPIC पर एक ही उम्र होती है.
कोई हैरानी नहीं कि घोस्ट वोटर्स का डर भूत की कहानी पसंद करने वाले बंगालियों के रोंगटे खड़े कर रहा है.
और अलमारी में और भी कंकाल हैं. पिछले साल, चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल की वोटर्स लिस्ट से 9 लाख से अधिक नाम हटा दिए, जिनमें से ज़्यादातर ऐसे लोगों के थे जो मर चुके थे या स्थानांतरित हो गए थे, लेकिन कई DSE भी थे. 2022 में, पूरे देश में, चुनाव आयोग ने 10 मिलियन डुप्लिकेट एंट्री को हटा दिया या ठीक कर दिया — एक ऐसा मिश्रण जिसमें DSE और अपनी सांस थामिए, PSE: फोटोग्राफिक रूप से समान एंट्री शामिल थीं.
वास्तविक हो या काल्पनिक, घोस्ट वोटर्स पर यह बहस संभवतः हर बार चुनावों में सामने आएगी.
दरअसल, यह चुनाव से पहले के राजनीतिक दांव-पेंच हैं, लेकिन कौन सोच सकता था कि नीरस वोटर्स लिस्ट अगली भूतिया ब्लॉकबस्टर के लिए नाटकीय कंटेंट का इतना पक्का सोर्स हो सकती है.
अनिक दत्ता, मीर, क्या आप सुन रहे हैं?
(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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