देश के हर इंसान को बेहतर मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध करवाने को लेकर लंबे समय से बातें तो हो रहीं थी, पर अब जाकर सरकार ने देश में 75 नये सरकारी मेडिकल कॉलेजों को खोलने के प्रस्ताव को विगत बुधवार को मंजूरी देकर एक अहम ऐतिहासिक फैसला लिया है. कहने की जरूरत नहीं है कि देश में जब नए-नए मेडिकल कॉलेज खुलेंगे तो उनसे देश को डाक्टर, नर्से और दूसरे मेडिकल स्टाफ भी मिलेंगे. इससे सेवा के क्षेत्र में सम्मानजनक रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. कोई भी देश अपने नागरिकों को स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं दिए बगैर अपने को विकसित होने का दावा, तो नहीं कर सकता है.
इन मेडिकल कॉलेजों को खुलने से प्रतिवर्ष हजारों ऐसे बच्चे-बच्चियों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले का अवसर मिलेगा, जो मेधावी तो थे लेकिन गरीबी के कारण भारी भरकम फीस वाले ‘डोनेशन की वसूली’ में लिप्त प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने में असर्मथ थे. लेकिन, भारत को इस दिशा में अधिक ठोस पहल करती रहनी होगी. ये क्रम जारी रखना होगा.
देश में नए 75 मेडिकल कालेजों के खोले जाने पर 24 हजार करोड़ रूपये से अधिक राशि का निवेश होगा. यह एक बड़ी राशि है, पर देश के नागरिक स्वस्थ और सक्रिय रहें. इसलिए इतना निवेश करना घाटे को सैदा नहीं माना जा सकता. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस नए मेडिकल कॉलेज खोलने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. यह संयोग से ऐसे मौके पर हुआ जबकि प्रधानमंत्री ने ‘फिटनेस इंडिया’ के ‘नये नारे’ को बुलंद किया है.
देश में 75 नये मेडिकल कॉलेज खोलने से एमबीबीएस की 15,700 नयी सीट सृजित होंगी. अच्छी बात ये है कि ये सभी मेडिकल कॉलेज उन स्थानों पर खोले जायेंगे जहां पहले से कोई मेडिकल कॉलेज नहीं है. यानी जो जिले तक के विकास में पिछड़ गए हैं. देश का समावेशी विकास तो करना होगा. यह संभव नहीं है कि कहीं पर्याप्त संख्या में अस्पताल या डॉक्टर हों और कहीं इनका टोटा तक न हो. अब जम्मू-कश्मीर में भी नए मेडिकल कालेज खोले जाने का रास्ता साफ हो जाएगा. वहां पर जरूरत के मुताबिक मेडिकल कालेज न के बराबर हैं. जिसके कारण जनता को भारी कष्ट होता रहा है.
बेशक, मोदी सरकार के इस कदम से गरीबों एवं ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोगों को लाभ होगा और देहातों एवं ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की उपलब्धता भी बढ़ेगी. मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया के किसी देश में यह एक बड़ा विस्तार ही माना जाएगा. पर सरकार को इन मेडिकल कॉलजों के शुरू होने पर कुछ बातों पर नज़र रखनी होगी. उदाहरण के रूप में कि इनमें दाखिले की प्रक्रिया पारदर्शी रहे. देखा गया है कि मेडिकल कॉलेजों में दाखिले में भारी गड़बड़ी होती रही है. इसके चलते कई बार मेधावी बच्चों को उनका हक तक नहीं मिल पाता. यह सब बंद गोरखधंधा बंद होना ही चाहिए. दाखिले में गड़बड़ी करने वालों पर कठोरतम कार्रवाई होनी चाहिए. इन कॉलेजों में फैक्ल्टी भी उच्च स्तरीय होने चाहिए.
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सरकार को यह तो सुनिश्चित करना ही होगा कि मेडिकल कॉलेजों के अच्छे फैकल्टियों को प्राइवेट कॉलेजों के शिक्षकों से कहीं ज्यादा वेतन और सुविधाएं प्राप्त हों. मेडिकल कॉलेज खोलने का लाभ तब ही होगा जब उसमें योग्य टीचर पढ़ाएंगे. इसके साथ ही भावी डाक्टरों में रिसर्च करने पर भी जरूरत पर बल देना होगा. वे लगातार खुद नई शोधों को पढ़ें और नए-नए शोध करें. सिर्फ डिग्री लेने के बाद पढ़ाई को ज़िन्दगी भर के लिए बंद ना कर दें.
मुझे कहने में कोई संकोच नहीं है कि हमारे यहां बहुत से डॉक्टर एक बार डिग्री लेने के बाद नए-नए शोध करने पर समय नहीं दे पाते. न तो उनकी इसमें कोई दिलचस्पी ही शेष रह जाती है. अब केंद्र और राज्य सरकार को उन डाक्टरों की हर संभव मदद करनी होगी जो शोध करना चाहते हैं. अमेरिका के मेडिकल कालेजों में कई नोबल पुरस्कार विजेता टीचर भी होते हैं. आखिरकार भारतवर्ष में हम क्यों इस दिशा में कमजोर है ? हमें अच्छी फैकल्तियों की नियुक्तियों से रोका किसने है?
जब सरकार 75 नए मेडिकल कालेज खोलने जा रही है, तब मेडिकल पेशे से जुड़े तमाम लोगों को यह सोचना ही होगा कि उनकी छवि समाज में लगातार क्यों खराब हो रही है. हमारा समाज में एक दौर में डॉक्टर को बेहद आदर के साथ देखा जाता था, भगवान का दूसरा अवतार ही माना जाता था. अब वह स्थिति नहीं रही है. अब हर रोगी और उसका परिवार कह रहा है कि डाक्टर रोगी को कस्टमर मानने लगे हैं. डॉक्टर अब लुटेरे बन गए हैं. मैं यह बात पहले से भी कहता रहा हूं कि डॉक्टरों को रोगियों को बिना वजह टेस्ट पर टेस्ट करवाने पर मजबूर नहीं करना चाहिए. कुछ डॉक्टर तो टेस्ट खत्म होने के बाद रोगी से अब यह कहने लगते हैं कि सर्जरी करवा लो.
सबको पता है कि डॉक्टरों और अस्पतालों की कमाई तो रोगी से मंहगे टेस्टों और उसकी सर्जरी करने के चलते ही होती है. सबके लिए उनका कमीशन पहले से तय होता है. यह स्थिति दुखद है. यह बंद होनी ही चाहिए. इसी कमीशनखोरी से डॉक्टर जैसा पेशा बदनाम हो गया है. वैसे अब भी देशभर में हजारों-लाखों निष्ठावान डॉक्टर हैं. वे रोगी का पूरे मन से इलाज करके उसे स्वस्थ करते हैं. यह सोच भी नकारात्मक है कि सभी डॉक्टर लूटते ही हैं. इस तरह की सोच के कारण ही डॉक्टरों और रोगियों के बीच के संबंध भी कटु होते गए हैं. लेकिन, जिन डॉक्टरों ने मेरिट के बल पर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त की, वे मरीजों को लूटकर ही तो अपनी भरपाई करेंगे ?
आजकल प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस करने में ही पचास लाख से एक करोड़ रूपये लग जाते हैं. फिर एमडी करने में दो से पांच-पांच करोड़ का डोनेशन जो प्राइवेट कॉलेजों की ख्याति और मेडिकल के ब्रांच की स्पेशलिटी की बाज़ार की मांग पर निर्भर करता है जिसमें छात्र एमडी करना चाहता है.
अब मेडिसिन के पेशे से जुड़े सभी लोगों को देश में बड़े अनुसंधान पर फोकस तो करना ही होगा, ताकि वे सही माने में पीड़ित मानवता की सेवा कर सकें. अमेरिका और यूरोप के तमाम मेडिकल कॉलेजों में ज्यादातर भारतीय डाक्टर ही तो शोध कर दुनिया भर में नाम कमा रहे हैं. फिर वे अपने यहां यही क्यों नहीं करते ? यह उन्हें अपने यहां भी करना होगा. फार्मा कंपनियों को भी शोध करने वाले डाक्टरों को अच्छी मदद देनी होगी. वे तो अरबों रुपए हर साल कमा ही रही हैं. उसका कुछ प्रतिशत शोध पर भी तो खर्च करें. डॉक्टरों को अपनी दवाइयों को लिखने के लिए भारी-भरकम गिफ्ट भी दे रहे हैं, हर साल अच्छे कमाई देने वाले डाक्टरों को विदेश भी घुमा रहे हैं, तो वे नई असरदार और सस्ती दवाईओं पर शोध क्यों नहीं कर सकते ?
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इस बीच, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) भी उन डाक्टरों को जरा सख्ती से कसें जो रोगियों से गैर-जरूरी टेस्ट करवाते हैं. सबको पता है कि वे टेस्ट पर टेस्ट करवाने में ज्यादा से ज्यादा खर्च करवाने की कोशिश कमीशन सिर्फ और सिर्फ ज्यादा कमाने के इरादे से ही करवाते हैं. उन्हें पैथलैबों से मोटा हिस्सा मिलता है. भगवान के लिए डॉक्टर रोगियों को ग्राहक मात्र न मानें .
कभी उनकी भी ऐसी स्थिति हो सकती है. अभी एक डॉक्टर का लिवर ट्रांसप्लांट करवाना पड़ा. मैंने सबके सहयोग से बीस लाख इक्कट्ठा कर जब उनका इलाज करवा दिया तब वह भी अब गरीबों के मुफ्त इलाज में लगे हैं. दरअसल हमें अपने मेडिकल पेशे में आ गई कुछ बुराइयों को दूर करके देश को मेडिकल टुरिज्म का विश्वस्तरीय विशाल हब बनाना होगा.
हमारे यहां हर साल बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान, अरब और अफ्रीकी देशों से लाखों रोगी इलाज के लिए आते हैं. अकेले अफगानिस्तान से साल 2017 में 55,681 रोगी इलाज के लिए भारत आए. भारत में ओमन, इराक, यूएई, मालदीव, यमन, उज्बेकिस्तान, सूडान वगैरह से भी रोगी आ रहे हैं. अगर हम अपने मेडिकल पेशे में आई कुछ कमियों में थोड़ा-बहुत सुधार कर लें तो देश को मेडिकल टूरिज्म के माध्यम से भी लाखों करोड़ों रुपए की विदेशी मुद्रा मिल सकती है और लाखों नौजवानों/नवयुवतियों को सम्मानजनक स्थाई रोजगार भी संभव है. बस थोड़ी सी इच्छा शक्ति की जरूरत है.
(लेखक भाजपा से राज्यसभा सांसद हैं. यह लेख उनके निज़ी विचार हैं)