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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतरुबिका लियाकत और सईद अंसारी जैसे हिंदी समाचार एंकर भाजपा के मुस्लिम नेताओं की तरह हैं

रुबिका लियाकत और सईद अंसारी जैसे हिंदी समाचार एंकर भाजपा के मुस्लिम नेताओं की तरह हैं

ये एंकर रंगमंच की जीती-जागती, विचारवान कठपुतलियां हैं जो खास रोल को निभाने के नाट्यशास्त्रीय समझौते से बंधी हैं. निजी जीवन में वे क्या सोचती हैं, इसका असर रंगमंच पर निभाए जाने वाले किरदार पर नहीं पड़ना चाहिए.

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कोरोनावायरस महामारी के दौर में न्यूज मीडिया के लिए रिपोर्टिंग करना एक मुश्किल और जोखिम भरा काम है. इसमें संक्रमण होने का पूरा खतरा है. फिर भी कई रिपोर्टर जान जोखिम में डालकर अपनी पेशेवर जिम्मेदारी निभा रही हैं.

लेकिन पत्रकारिता के पेशे में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी जान तो जोखिम में नहीं डाल रहे हैं लेकिन वे हर दिन पेशेवर कारणों से अपनी अंतरात्मा, अपने जमीर और वजूद को खतरे में डाल रहे रहे/रही हैं और उसे बचाने की कोशिश कर रहे/रही हैं या मान चुके/चुकी हैं कि ये मुमकिन नहीं है.

हम बात कर रहे हैं हिंदी न्यूज चैनलों में काम कर रहे एंकर या शो होस्ट की.

हिंदी न्यूज चैनलों में मुसलमान एंकर काफी कम हैं. चंद नाम ही सामने आते हैं जैसे रोमाना इसर खान, रुबिका लियाकत, सईद अंसारी आदि लेकिन मीडिया में डायवर्सिटी ना होने की बहस को फिलहाल छोड़ देते हैं (इस बारे में आप चाहें तो मेरा ये लेख पढ़ सकते हैं).

मौजूदा लेख में इस बात को समझने की कोशिश की जाएगी कि साम्प्रदायिक रूप से सरगर्म मौजूदा माहौल में मुसलमान एंकर इन चैनलों में खुद को कैसे बरत रहे हैं और अपने सार्वजनिक-प्रोफेशनल काम और निजी विचारों और जीवन के साथ सामंजस्य कैसे बिठा रहे हैं.


यह भी पढ़ेंः मोदी का जादू बरकरार है पर कोविड ने दिखा दिया कि देश की ब्यूरोक्रेसी लाचार हो गयी है


चैनलों में साम्प्रदायिक ओवरटोन वाले कटेंट की भरमार

आप कल्पना कीजिए एक ऐसी स्थिति की जब चैनलों में अमूमन हर दिन या हर दूसरे दिन हिंदू-मुसलमान विषय पर बहस हो रही हो और प्रभावशाली विमर्श ये है कि मुसलमान समस्या हैं और बाकी लोग समाधान हैं, तब उस एंकर पर क्या बीतती होगी जो खुद मुसलमान है और इस विमर्श से असहमत या सहमत होते हुए शो होस्ट कर रहा है.

भारत का मौजूदा साल, शुरुआती दिनों में सीएए-एनआरसी और बाद में कोरोनावायरस और तबलीगी जमात, मरकज और मौलाना साद के बारे में चर्चा करते हुए बीता है. चूंकि 2014 के आम चुनाव से पहले से ही बीजेपी हिंदू-मुस्लिम द्वेत को केंद्र में रखकर राजनीति कर रही है और इस राजनीति में उसे अभूतपूर्व सफलता मिली है, इसलिए इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है कि ये मुद्दा न्यूज ह्वील यानी समाचार चक्र का प्रमुख हिस्सा बना हुआ है.

इस बीच अगर हम देखें कि मुसलमान एंकरों ने हिंदी चैनलों में इस विषय पर कैसे शो होस्ट किए तो कुछ इस तरह की हेडलाइंस सामने आती हैं. यू ट्यूब और सोशल मीडिया पर उन्हें इन हेडलाइंस के साथ देखा जा सकता है-

 

 

 

खासकर मुसलमान समुदाय इस बात को लेकर व्यथित है. हिंदू एंकर उनको निशाना बना रहे हैं ये तो उनकी समझ में आता है, लेकिन मुसलमान एंकर ऐसा कैसे कर सकते हैं? इसलिए हम पाएंगे कि वाशिंगटन पोस्ट की कॉलमनिस्ट राणा अयूब जब भारतीय मीडिया का शर्म बताते हुए चार टीवी शो की तस्वीरें पोस्ट करती हैं तो उनमें दो शो ऐसे हैं, जिन्हें मुसलमान एंकरों- रुबिका लियाकत और रोमाना खान ने होस्ट किया है. बाकी दो शो अमीश देवगन और सुरेश चह्वान के के हैं और इससे शायद लोगों को उतनी शिकायत भी नहीं है, क्योंकि उनसे शायद यही अपेक्षित है.

दरअसल, मुसलमान एंकरों के होस्ट किए हुए शो की जो लिस्ट ऊपर दी गई है या राणा अयूब जिन शो का जिक्र कर रही हैं, वो एक सेलेक्टिव लिस्ट है. ये एंकर सिर्फ यही नहीं करती हैं. वे बाकी तमाम तरह के शो करती हैं और उनके कई शो सेकुलर या सर्वधर्म समभाव के जीवन मूल्यों को बढ़ावा देने वाले भी होते हैं लेकिन स्वाभाविक कारणों से ऐसे शो विवाद का विषय नहीं हैं.

किस तरह का संतुलन साध रही हैं एंकर

अगर हम रुबिका लियाकत के सोशल मीडिया बिहेवियर को केस स्टडी के तौर पर लें, तो एक दिलचस्प लेकिन बेहद पेचीदा परिघटना सामने आती है. रुबिका लियाकत जहां मुस्लिम पब्लिक स्फीयर में इस बात के लिए तिरस्कार और घृणा की पात्र हैं कि वे एक खास तरह के शो करती हैं, वहीं खुद रुबिका सोशल मीडिया पर एक पाबंद मुसलमान की तरह पेश आती हैं और अक्सर कुरान की आयतें पोस्ट करती हैं. अपनी एक पोस्ट में वे कुरान के हवाले से बताती हैं कि जिहाद का वास्तविक अर्थ क्या है. लेकिन साथ में जब बीजेपी नेता और कुश्ती खिलाड़ी बबिता फोगाट के एक साम्प्रदायिक समझे गए ट्वीट के समर्थन में एक वीडियो डालती हैं तो रुबिका उसे रिट्वीट भी करती हैं.

यह दरअसल एक सर्कस के कलाबाज की तरह का काम है, जिसे लगातार संतुलन साधकर एक पतली सी रस्सी पर चलना होता है और जिन पर लाखों लोगों की नजर है कि वह लड़खड़ा तो नहीं रही हैं.

रुबिका को सबसे ज्यादा आलोचना सेकुलर और मुसलमान स्पेस से झेलनी पड़ती है और उनके एक वीडियो को मॉर्फ करके उसे वायरल भी किया गया और ऐसा करने वाले कौन थे, ये आसानी से देखा जा सकता है. रुबिका संबित पात्रा के एक चैलेंज के जवाब में इस बात का सार्वजनिक ऐलान करती हैं कि उन्होंने पीएम केयर्स फंड में पैसा दिया है. ट्विटर पर जब एक शख्स कहता है कि मुसलमान होते हुए भी रुबिका ने जिस तरह #NizamuddinIdiots और मौलाना साद और मरकज का बचाव करने वालों की धज्जियां उड़ाई, वह सराहनीय है, तो रुबिका इस ट्वीट को रिट्वीट करती हैं.

रिट्वीट किए गए ट्विट में जो शब्द खास हैं वो हैं – ‘मुसलमान होते हुए भी.’

दरअसल, जो प्रभावशाली नैरेटिव है, वह मुसलमान एंकरों से ऐसा ही होने की उम्मीद करता है और एंकरों के पास ऐसा ना करने का शायद कोई तरीका नहीं है. इसका मतलब ये नहीं है कि वे इससे अलग कुछ करना चाहती हैं. अगर ऐसा है, तो ये सार्वजनिक जानकारी में नहीं है. उन्हें शायद हर दिन ये साबित करना होता है कि वे ‘उस तरह’ के मुसलमान नहीं हैं.

न्यूज चैनलों के मुसलमानों को कैसे देखें?

इस परिघटना को दो नज़रिए से देखा जा सकता है. पहला नज़रिया वो है जिससे ये एंकर खुद को देखती हैं. दूसरा तरीका उन्हें बाकी लोगों के नज़रिए से देखने का है.

1. अगर हम बाकी लोगों के नज़रिए से इन एंकर्स को देखें तो कहा जा सकता है कि वे बस अपना काम कर रही हैं. जो भी काम उन्हें दिया जा रहा है, उसे वे निभा रही हैं. या फिर वे राष्ट्रभक्ति कर रही हैं और इसमें बुराई क्या है?

तीसरा तरीका ये हो सकता है कि वे बिक चुकी हैं और अपनी आत्मा का, अपने वजूद का सौदा कर चुकी हैं. जिसे अमेरिका में अश्वेत लोग अंकल टॉम सिंड्रोम कहते हैं. ये उन अश्वेत लोगों के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्द हैं जो न सिर्फ श्वेत वर्चस्व को स्वीकार कर चुके हैं, बल्कि बेहद वफादारी से श्वेत वर्चस्व को बनाए रखने के लिए काम करते हैं. इन लोगों को अश्वेत हितों के लिए ज्यादा हानिकारक माना जाता है.

ये भी कहा जा सकता है कि चैनल इन एंकरों को अपनी एक खास छवि पेश करने के लिए रखते हैं या फिर ये भी कहा जा सकता है कि जब मुसलमान एंकर मुसलमानों की धुलाई करते हैं और हिंदुत्व एजेंडे के पक्ष में बोलते हैं तो इसकी विश्वसनीयता ज्यादा होती है. इसे प्रतीकवाद भी कहा जा सकता है, ठीक उस तरह जिस तरह बीजेपी अपने पास मुख्तार अब्बास नकवी या शाहनवाज हुसैन जैसे नेता भी रखती है, जो शोकेस में सजे तो होते हैं लेकिन जिनकी नीति निर्धारण में न्यूनतम भूमिका होती है.

मिसाल के तौर पर मुख्तार अब्बास नकवी तबलीगी जमात वाले मामले में बीजेपी के हिंदू नेताओं से भी ज्यादा उग्र तरीके से बात रखते हैं और इसके लिए उन्हें अपने खेमे में सराहा भी जाता है.

2. लेकिन बाहर से इन एंकरों को देखने से ज्यादा जटिल है इन एंकरों को उनकी अपनी नजर से देखना. इस काम में हमें एक समाजशास्त्री इरविंग गॉफमैन के सिद्धांतों से मदद मिलती है, जिन्होंने ड्रामाटर्जी यानी नाट्यशास्त्र के नियमों के आधार पर बताया कि मनुष्य सामाजिक परिदृश्य में किस तरह से आचरण करता है.


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उनका कहना है कि व्यक्ति जब निजी स्पेस से बाहर सार्वजनिक स्पेस में आता है तो दरअसल एक परफॉर्मर की तरह आचरण करता है और उसका ये आचरण उसके जीवन के बैक स्टेज यानी उसके निजी क्षणों या परिवार के साथ बिताए जाने वाले क्षणों से अलग होता है. उसका सार्वजनिक आचरण कैसा होगा, वह परिस्थितियों की उसकी और अन्य लोगों की व्याख्या पर निर्भर होता है, जिसके मुताबिक वह खुद को ढाल लेता है.

इन मुसलमान एंकरों या किसी भी एंकर के लिए टेलीविजन का स्टूडियो एक रंगमंच है, जहां वे अपने लिए निर्धारित किए गए किरदार निभाते हैं. जब वे नौकरी में आते हैं तो वे एक समझौते में खुद को बांधते हैं, जहां उन्हें एक नाट्यशास्त्रीय वफादारी निभानी होती है. वे अपने मन के मुताबिक या विचारों के मुताबिक काम करने लगें तो शो भंग हो जाए.

ये वैसी ही बात है, जब किसी सर्कस में एक कलाबाजी आर्टिस्ट को जिम्मा दिया गया है कि कोई कलाबाज जब हवा में उछलता हुआ उसके पास आए तो उसका काम उसे लपककर पकड़ लेना है. अगर वह अपनी इस जिम्मेदारी को ना निभाए तो पूरा खेल खराब हो जाएगा. नाटक में मंत्री का किरदार निभाने वाला अगर चाहे कि वह चूंकि निजी जीवन में उस आदमी से बड़ा है जो राजा बना हुआ है इसलिए राजा को उसकी बात माननी होगी, तो ये नाटक हो ही नहीं सकता.

इन एंकरों के लिए एक साथ बैक स्टेज और फ्रंट स्टेज को मैनेज करने की चुनौती होती है. एक साथ वे मुसलमान हैं और मुसलमानों को हीन या खलनायक बताने वाले शो करने वाले एंकर भी हैं. इस मामले में वे हिंदू एंकरों से ज्यादा मुश्किल काम को अंजाम दे रहे हैं.

वे रंगमंच की जीती-जागती, विचारवान कठपुतलियां हैं, जिनकी डोर किसी और के हाथ में है और उनका किरदार भी किसी और ने और काफी हद तक जमाने ने लिखा है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह लेख उनका निजी विचार है)

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50 टिप्पणी

  1. Dileep ji ki story 100 fisidi satya hai…
    Isko padhker mujhe news room ki yad aa gai.

    Dileepji ko badhai.

    • Dilip ji khud kya hain. Iske bare me to bataye. Pakistan me bhi jamatio ke bare mebyahe kaha ja raha hai ki ve kuch mante nahi apne chalate hain. To kya paki media aur leaders bjp ke sath hain.
      Aur print ke to kya kehne. Ek side ki bakwas dikha di. You tube ke ek side ke video dal diye.suri side ke bhi dal dete. Let people decide who is correct. But problem is same like your oppsites you also have a selective base for which you arrange stories. But tell you it is very small portion.

  2. काश कुछ सारगर्भित लिखते।

    • Ab Anchor ko v Hindu Muslim ke nazariye se dekhe .bhai intellectual ho matlab Kuch v.print ne dukhi Kiya.

  3. हमे अफसोस the print ऐसे एक पक्ष को समर्थित को स्थान देता है।

  4. Shame on u dilip mondal ….kitana giroge …har jagah apni tuchahi mat dikhata kro…..itani gahtiya soch kis school se mili hai….or yahi ghatiya soch tum apne students ko b dete ho…..mujhe to tmhre students ki halat PR bada dukh hota hai….kitana ghatiya or doyam darje ka teacher hai Jo har bat Mai dharm…jati….dekhtanhai or sochta hai……or apni ghaiua soch ko sarvjanik dikhata b hai….

  5. ये जो आर्टिकल है तुम्हारा, इससे ज्यादा साम्प्रदायिक तो कोई नहीं है। कश्मीरी पंडितों के हश्र जैसा पूरे हिंदुस्तान में हो हिदुओं का ये सपना तुम्हारा कभी सच नहीं होगा।

    • मैं ने कितनो का कमेन्ट पढ़ा सब अपनी विचार से आर्टिकल लिखने वाले को गाली दे रहे । क्या ये सही है?
      कोई बोल रहा कश्मीरी पंडितों के बारे में क्यों नही लिख रहे । आप लोग अपनी जगह सही हो अपनी सोच के कारण । अगर हिम्मत है तो क्यों नही आप सरकार से पूछ रहे कि वो क्या कर रही है? कितनो की सोच है कांग्रेस ने कश्मीरी पंडितों के लिए बहुत बुरा किया तो फिर बीजेपी क्यों नही कोई एक्शन ले रहे है । आज बीजेपी पावर में है। सरकार उनकी है। अगर बीजेपी चाहे तो इंसाफ मिल जाएगा हमारे पंडितो को लेकिन । नही क्युकी ये सिर्फ हमारी आस्था और भावना का इस्तेमाल आपने वोट बैंक के लिए करती है। आज सभी नेता यही बोल रहे कि तुमने इतने सालों में क्या किया ? लेकिन कोई नही बताता मैं क्या कर रहा हु आपने देश के लिए। आज देश की राजनीतिक सिर्फ जाती और धर्म और हमारी आस्था से चल रही है। मुझे बस आप सब से यही कहना है। कि आप विपक्ष बनो और निष्पक्ष होकर अपनी हर अधिकार सरकार से मानगो । तब ही सरकार देश हित मे अच्छा करेगी हम अपना और आपने देश का भविष्य खुद बनाएंगे
      जय हिंद

  6. Ek hi baat samajh me aati hai ki aap bade sampradayik hai. Are hindu kya aur Muslim kya,sabhi ko sahi paksh rakhne ka adhikar hai. In dono ankron ne sahi baat kahi hai. Kitne aise jhooti baat kahkar desh drohi kuch hindu aur Muslimko ko khus karte hain, unke baare me Kyun nhi likhte.

  7. This is an attack on impartial journalists. Rubiya liyakat, Romana Isar Khan are my favorites. Their comments & anchoring debate as moderators are praiseworthy. They are people of sound perspective and any biasedness towards them is simply politically motivated. THE PRINT doing prejudiced journalism to create hate politics.

  8. दिलीप मंडल साहब जैसे लोग सिर्फ कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता बनकर काम कर सकते है ।
    इन्होने बाबा साहेब डॉ आंबेडकर के नाम से खूब रोटियां सेंकने का काम किया है पर कभी ये नहीं बताया लोगो को की कांग्रेस ने उन्हें भारत रत्न के लायक कोई नहीं समझा , क्या कारण था की जवाहरलाल नेहरू जी , इंदिरा गांधी जी , राजीव गांधी जी को तो भारत रत्न कांग्रेस ने दे दिया और बाबा साहेब डॉ आंबेडकर को नहीं दिया ।

    दिलीप मंडल , यश मेघवाल , हंसराज मीणा , ट्राइबल आर्मी के नाम से सिर्फ अपना फर्जी प्रोपगेंडा और दबाव बनाना चाहते है।

  9. दिलीप मंडल साहब जैसे लोग सिर्फ कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता बनकर काम कर सकते है ।
    इन्होने बाबा साहेब डॉ आंबेडकर के नाम से खूब रोटियां सेंकने का काम किया है पर कभी ये नहीं बताया लोगो को की कांग्रेस ने उन्हें भारत रत्न के लायक कोई नहीं समझा , क्या कारण था की जवाहरलाल नेहरू जी , इंदिरा गांधी जी , राजीव गांधी जी को तो भारत रत्न कांग्रेस ने दे दिया और बाबा साहेब डॉ आंबेडकर को नहीं दिया गया ।

  10. Nonsense article. Muslim anchor pe saawal lihne se pahle ye batao. Tum kaun se agreement ke anusaar anti Hindu article like rahe ho???

  11. लिखा है कि लेखक वरिष्ठ पत्रकार है..
    पर जानता कौन है इस स्वघोषित वरिष्ठ पत्रकार को?
    जिस तरह से इसने तथ्यों को प्रस्तुत किया है, ये तो एक publicity हासिल करने का सस्ता तरीका ज्यादा दिख रहा है।

  12. Bilkul bakwass news ya keh lo bilkul bakwass topic….. Tumse kisne kisi anchor k bare m opinion puchha….saale rum jaise log hi caste, religion ki deeware khadi krte ho……tum jaise logo k liye koi b side sahi ni hoti…..aisa article likhne s pehle yeh socho k tum kisi insaan k bare k aisa likh rhe ho….jinse unki professional aur oersonal life p asr pdega……

  13. Bilkul bakwass news ya keh lo bilkul bakwass topic Tumse kisne kisi anchor k bare m opinion puchha saale rum jaise log hi caste, religion ki deeware khadi krte ho tum jaise logo k liye koi b side sahi ni hoti aisa article likhne s pehle yeh socho k tum kisi insaan k bare k aisa likh rhe hj jinse unki professional aur oersonal life p asr pdega.

  14. Ara bhai usma galat bola kya, ya lakh likta likta
    Akal kam hogai ha, agar tabliki jamat 1/3 contribution diya ha coronavirus ka toh tumhari kyu jal k khaak ho rahi. Kahi tum tabliki jamat se beka hua ho kya

  15. You are the more communal than Rubika Liyakat and Sayeed Ansari. How can you say that being a muslim Sayeed And Rubika should favour muslims isn’t it communal

  16. Ye anti hindu nahi hai? Itna dar kyu hai tum logo ko? Muslim ho ya hindu jo galat hai wo galat hai। Sabko pata hai desh me corona ko failane me sabse bada haath Tablighi jamaat ka hai। Aur ye sach tere iss jhuthe lekh se badal nahi sakta. TABLIGHI JAMAT ke jihadiyon.

  17. वास्तव में ये सब जानकर बहोट शर्म आती है कि कोई कैसे अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। क्या इन्हे नहीं पता इनकी घटिया पत्रकारिता देश के लोगो में कितना ज़हर और देश को तोड़ने वाली है ? लेकिन इन्हे इससे क्या । देखा जाए तो सच में असली देश तोड़ने एवं देश द्रोहियों का हक ऐसे ही पत्रकार रखते है।

  18. Ghatiya aadmi ke ghatiya vichaar!! Oopar se bina mulyankan ke aise vichaaron ko apni sites pe space dene wali news agency bhi democracy aur hypocrisy me antar nhi kr pa rhi. Shame!! Waste of time

  19. वास्तव में ऐसी पत्रकारिता को देख कर शर्म आती है कि कोई कैसे अपने पर्सनल लाभ के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। क्या इन्हे नहीं पता कि इनकी पत्रकारिता देश के लोगो में ज़हर घोलने एवं देश को बांटने का काम कर रही है। सच में ऐसे लोगो की ही पत्रकरिता देश द्रोही पत्रकारिता कहलाने का हक रखती है।

  20. The print vam or congress ki God mai betha hua media h , jisko ab fanding milni band ho gayi h so yah bhok rahe h

  21. Dileep ji aap Ek number ke dogle insan hai is article se pata chalta Hai. Kitna aur niche giraoge print ko.

  22. Aray ye ek Muslim aadmi hai or Congress ko support karta hai desh ka gadar hai ye

  23. जब किसी की बात का तोड़ न मिले तो सबसे आसान होता है कि उसकी नियत पर सवाल खड़ा करो, और उसको बदनाम करो,
    Well try to defame anyone by using prolong religion game

  24. No doubt sir it’s your opinion and I respect it but one question is in my mind that if these muslim anchor are in role play then it may be your’s too.
    I am saying this bcoz in your articles you are saying that a muslim can’t have some openion other than its majority of fallowers or saying something against your own community ill practice is against ones own will than how it is possible that you are having same point of view against most of the Hindu or RSS
    it suggests that you are considering them inferior with respect to yourself.
    Sir Don’t think yourself different from them as it’s your thinking which you have narrated and it’s their thinking that they are expressing and you have no right to judge them it is democracy in india and remember it’s our right to have our own opinion….

  25. No doubt sir it’s your opinion and I respect it but one question is in my mind that if these muslim anchor are in role play then it may be your’s too.
    I am saying this bcoz in your articles you are saying that a muslim can’t have some openion other than its majority of fallowers or saying something against your own community ill practice is against ones own will than how it is possible that you are having same point of view against most of the Hindu or RSS
    it suggests that you are considering them inferior with respect to yourself.
    Sir Don’t think yourself different from them as it’s your thinking which you have narrated and it’s their thinking that they are expressing and you have no right to judge them it is democracy in india and remember it’s our right to have our own opinion…..
    Thankyou

  26. This is worst type of journalism.may be they are Muslim ,but they are showing truth. Rana ayuub may be big journalist. But he is zero in india.why you are wasting our time by your article. Please go and sleet. You are worst journalists.

  27. द प्रिंट खुद ही 1 बिकाऊ और दलालो का समूह है जो खुद घटिया काम करता है उसे दूसरे पर उंगली करने की जरूरत नही है।

    घटिया पत्रकार

  28. बिकाऊ मीडिया की सोच प्रदर्शित करती है इस आर्टिकल में।

  29. Es lekh se kai trah k log apni Rai denge kuch Alochna kuch support me ye kadvi bat hi aesi hoti ?

  30. आपके लेख को पढ़कर यह अवश्य मालूम पड़ता है कि लोग चाहे हिंदू मुस्लिम करी या ना करें परन्तु आप जैसे देश विरोधी डरपोक आतंकी समर्थक सदैव ऐसा करते रहेंगे। प्रशांत भूषण, काटजू, रणदीप सुजेवाला, रेबीज कुमार, जैसी के चमचे जान पड़ते है आप जिन्हे किसी भी कीम पर भारत देश की अखंडता और वीरता अच्छी नहीं लगती जो सदैव चीन की मूत्र सूंघने में लगे रहते है और किसी ना किसी प्रकार से देश में हमेशा सांप्रदायिक तनाव बरकरार रखते हैं

  31. आपके लेख को पढ़कर यह अवश्य मालूम पड़ता है कि लोग चाहे हिंदू मुस्लिम करी या ना करें परन्तु आप जैसे देश विरोधी डरपोक आतंकी समर्थक सदैव ऐसा करते रहेंगे। प्रशांत भूषण, काटजू, रणदीप सुजेवाला, रेबीज कुमार, जैसी के चमचे जान पड़ते है आप जिन्हे किसी भी कीम पर भारत देश की अखंडता और वीरता अच्छी नहीं लगती जो सदैव चीन की मूत्र सूंघने में लगे रहते है और किसी ना किसी प्रकार से देश में हमेशा सांप्रदायिक तनाव बरकरार रखते हैं

  32. मैं ने कितनो का कमेन्ट पढ़ा सब अपनी विचार से आर्टिकल लिखने वाले को गाली दे रहे । क्या ये सही है?
    कोई बोल रहा कश्मीरी पंडितों के बारे में क्यों नही लिख रहे । आप लोग अपनी जगह सही हो अपनी सोच के कारण । अगर हिम्मत है तो क्यों नही आप सरकार से पूछ रहे कि वो क्या कर रही है? कितनो की सोच है कांग्रेस ने कश्मीरी पंडितों के लिए बहुत बुरा किया तो फिर बीजेपी क्यों नही कोई एक्शन ले रहे है । आज बीजेपी पावर में है। सरकार उनकी है। अगर बीजेपी चाहे तो इंसाफ मिल जाएगा हमारे पंडितो को लेकिन । नही क्युकी ये सिर्फ हमारी आस्था और भावना का इस्तेमाल आपने वोट बैंक के लिए करती है। आज सभी नेता यही बोल रहे कि तुमने इतने सालों में क्या किया ? लेकिन कोई नही बताता मैं क्या कर रहा हु आपने देश के लिए। आज देश की राजनीतिक सिर्फ जाती और धर्म और हमारी आस्था से चल रही है। मुझे बस आप सब से यही कहना है। कि आप विपक्ष बनो और निष्पक्ष होकर अपनी हर अधिकार सरकार से मानगो । तब ही सरकार देश हित मे अच्छा करेगी हम अपना और आपने देश का भविष्य खुद बनाएंगे
    जय हिंद

  33. दिमाग तो बहुत लगाए लेकिन काम का कुछ निकला नहीं। कितने दिनों तक इंदु – मुचलिम खेलते रहोगे ।

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