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Friday, 15 November, 2024
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डिजिटल रुपया लॉन्च करने से पहले RBI को स्पष्ट करना चाहिए कि भारतीयों के लिए इसमें क्या प्रोत्साहन हैं

भविष्य में डिजिटल रुपया अपनाने के परिदृश्यों के बारे में सोचने के लिए, बैकवर्ड इंडक्शन एक ठोस तरीक़ा पेश करता है. बैकवर्ड इंडक्शन किसी स्थिति के अंत से, समय में पीछे जाकर तर्क करने की प्रक्रिया होती है, जिससे सबसे अच्छे उपायों का क्रम तय किया जा सके.

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2022 के अपने बजट भाषण में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि भारतीय रिज़र्व बैंक 2023 तक एक डिजिटल रुपया लॉन्च करने की ओर अग्रसर है. उसके कुछ समय बाद ही आरबीआई गवर्नर ने स्पष्ट किया कि मुद्रा आपूर्ति के नज़रिए से डिजिटल रुपए और उसके फिज़िकल प्रतिरूप में कोई अंतर नहीं है. लेकिन, मुद्रा की मांग की ओर से डिजिटल रुपए के दो नए पहलू हैं. एक, ये लोगों को अपनी बचत और लेन-देन को फिज़िकल और डिजिटल करेंसी में बांटने का विकल्प देगा. दूसरा, ये उन सौदों की गति को बढ़ाएगा जो इस पर आधारित होगी. इसका प्रभाव लोगों द्वारा फिज़िकल रुपयों को डिजिटल रुपयों में बदलने की सीमा पर निर्भर करेगा.

दोनों मामलों में, फिज़िकल और डिजिटल के बीच इस विभाजन का प्रारुप – अज्ञात है, जिससे दो प्रमुख सवाल खड़े होते हैं. पहला, इस विभाजन की अज्ञात प्रारुप का भारत के मुद्रा स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा? दूसरे, इस अनिर्धारित विभाजन से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए आरबीआई क्या कर सकता है?

आर्थिक परिदृश्य और रुपए का फिज़िकल-डिजिटल विभाजन

ये सोचिए कि आपके पास 2,000 रुपए का एक फिज़िकल नोट है, जिससे आप 200 रुपए की कोई चीज़ ख़रीदना चाहते हैं. लेकिन दुकानदार सौदे से मना कर देता है, क्योंकि 1800 रुपए लौटाना उनके लिए असुविधाजनक है. उसी तरह, अगर आप और दुकानदार अलग-अलग डिजिटल पेमेंट इंस्ट्रूमेंट (जैसे कि पेटीएम, गूगल पे) का इस्तेमाल करते हैं, तो भी ये लेन-देन नहीं हो पाएगा.

ये उदाहरण बताते हैं कि किसी भी लेनदेन नेटवर्क में, सभी पक्षों की स्वीकार्यता अनिवार्य है. बैंक फॉर इंटरनेशनल सैटलमेंट्स (बीआईएस) की सितंबर 2021 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि आने वाले डिजिटल रुपए को भी स्वीकार्यता की इस कसौटी से गुज़रना होगा.

डिजिटल रुपए से जुड़ीं दो और खास पहलुओ पर ध्यान देने की आवशयकता है. पहली, आरबीआई डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर ने पिछले महीने दिए गए एक भाषण में, निजी क्रिप्टोकरेंसीज़ के साथ मनी-लॉण्डरिंग, आतंकवाद की फंडिंग , और कर चोरी आदि चिंताओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया. इन चिंताओं को दूर करने के लिए, डिजिटल रुपए के अंदर एक लेन-देन ट्रैकिंग सुविधा स्थापित करनी होगी. अर्न्स्ट एंड यंग के एक हालिया सर्वे से पता चलता है कि लोग अपनी निजी जानकारी के प्रति काफ़ी संवेदनशील होते हैं , इसलिए ऐसी व्यवस्था से लेनदेन के कम हो जाने का ख़तरा है.

दुसरी, बीआईएस रिपोर्ट के मुताबिक़, नागरिकों के डिजिटल रुपया अपनाने के पीछे, यूज़र्स के लिए भविष्य की उपयोगिता एक महत्वपूर्ण बिंदु होगी. इसका मतलब है कि फिज़िकल रुपए या किसी भी दूसरे मौद्रिक साधन की अपेक्षा, पूंजी संचय में डिजिटल रुपए से ज़्यादा फायदा होना चाहिए. लेकिन, इसके कारण डिजिटल रुपए का आसानी के साथ मूल्य बढ़ने वाली संपत्तियों में निवेश की संभावना काफी बढ़ जाती है, जिसमें क़ीमती धातुएं, डॉलर एवं यूरो जैसी मुद्राएं और क्रिप्टोकरेंसीज़ शामिल हैं.

ससे डिजिटल रुपए की मांग और मूल्य बढ़ने वाली संपत्तियों में निवेश का संबंध काफी सुदृढ़ हो जाएगा.

इसलिए, डिजिटल रुपए की संरचना करते समय आरबीआई को, लेनदेन नेटवर्क में स्वीकार्यता, और लेनदेन ट्रैकिंग के प्रति लोगों की संवेदनशीलता के प्रमुख मुद्दों को ध्यान में रखना होगा.


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विकल्पों के नेटवर्क में डिजिटल रुपए स्थान

भविष्य में डिजिटल रुपया अपनाने के परिदृश्यों के बारे में सोचने के लिए, बैकवर्ड इंडक्शन एक ठोस तरीक़ा पेश करता है. बैकवर्ड इंडक्शन किसी स्थिति के अंत से, समय में पीछे जाकर तर्क करने की प्रक्रिया होती है, जिससे सबसे अच्छे उपायों का क्रम तय किया जा सके.

सोचिए कि आपके पास भुगतान के सिर्फ तीन साधन हैं- फिज़िकल रुपया, डिजिटल भुगतान, और डिजिटल रुपया. भविष्य में डिजिटल रुपए को संवर्धित ढंग से अपनाने के दो मतलब होंगे. एक, अपना लेनदेन करने के लिए लोग फिज़िकल रुपए एवं डिजिटल पेमेंट इंस्ट्रूमेंट से डिजिटल रुपए की ओर रूख कर रहे हैं. दूसरा, अर्थव्यवस्था में कुल लेनदेन बढ़ गए हैं, जिसमें डिजिटल रुपए के प्रति काफी दृढ़ आकर्षण है.

पहला मंज़र आसानी के साथ मौजूदा आर्थिक परिदृश्य में स्थित हो सकता है. नवंबर 2021 में दिप्रिंट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल चैनलों और औपचारिक वित्त ने, पारंपरिक रूप से नक़दी-प्रधान अर्थव्यवस्था में काफी हद तक सेंध लगाई है. इतनी ज़्यादा, कि 2017-21 के बीच में औपचारिक अर्थव्यवस्था का आकार, क़रीब 50 प्रतिशत से बढ़कर 80 प्रतिशत से अधिक हो गया है, जिसका एक प्रमुख कारण डिजिटल भुगतान साधनों के इस्तेमाल में बढ़ोतरी है. एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 19 से वित्त वर्ष 21 के बीच तीन सालों में, डिजिटल भुगतान के लेनदेन में क़रीब 90 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है.

इन आंकड़ों को देखने पर पता चलता है, कि वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहन, डिजिटल रुपया अपनाने के लिए सकारात्मक संकेत होते हैं. लेकिन डिजिटल पेमेंट इंस्ट्रूमेंट ज़्यादा इसलिए चलते हैं, कि उनके साथ कैशबैक तथा रिवॉर्ड प्वॉइंट्स जैसे प्रोत्साहन जुड़े होते हैं. इसलिए संभवत: उनका मूल आकर्षण और विकास बना रहेगा, क्योंकि एक डिजिटल रुपए में इस तरह की विशेषताएं नहीं होंगी. इसका मतलब है कि ज़्यादातर लेनदेन फिज़िकल रुपए से उसके डिजिटल रुपए में होंगे.

दूसरे परिदृश्य में, सतत आर्थिक विकास के साथ लेनदेन की कुल मात्रा को बढ़ाया जा सकता है. लेनदेन में इस वृद्धि का डिजिटल रुपए, फिज़िकल रुपए, और डिजिटल भुगतान साधनों पर कितना असर पड़ेगा, ये इस पर निर्भर करेगा कि लोग इन तीनों को क्या प्राथमिकता देते हैं. डेटा सुरक्षा गोपनियता के मामले में फिज़िकल रुपया, बाक़ी दोनों से आगे निकल जाता है, जबकि डिजिटल पेमेंट इंस्ट्रूमेंट काई तारिके के प्रोत्साहनो से अंतर्निहित हैं. डिजिटल रुपए की क्या सापेक्षिक विशेषता होगी, यह देखा जाना बाकी है. अगर ये बिना किसी अतिरिक्त ख़सियात के, ऐसे ही फिज़िकल रुपए के एक सामान्य विकल्प के रूप में सामने आ जाएगा, तो लोग डिजिटल रुपए के ऊपर फिज़िकल रुपए, और डिजिटल पेमेंट इंस्ट्रूमेंट को ही प्राथमिकता देते रहेंगे.

पॉलिसी परामर्श

जब तक डिजिटल रुपए को अपनाने के लिए, नक़दी और डिजिटल पेमेंट इंस्ट्रूमेंट के मुक़ाबले, कुछ अतिरिक्त प्रोत्साहन नहीं होंगे, तब तक संभावना यही है कि इनकी मांग कम और परिवर्तनशील बनी रहेगी. मूल्य संचय के मामले में इसकी उपयोगिता को लेकर भी चिंताएं हैं, जिससे लोग क्रिप्टोकरेंसी जैसी मूल्य बढ़ने वाली संपत्तियों की ओर जा सकते हैं. डिजिटल रुपए को पूरी तरह लॉन्च करने से पहले, आरबीआई, पायलट परियोजनाओं पर ग़ौर कर रहा है, लेकिन साथ ही उसे चार मुख्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा- डिजिटल रुपए की मांग और उसमें अस्थिरता की सीमा, इसकी पूंजी संचय विशेषताएं, गोपनीयता की चिंता, और भुगतान के दूसरे साधनों के ऊपर लोगों की डिजिटल रुपए को प्राथमिकता.

लेखक एक प्रौद्योगिकी नीति परामर्श फर्म कोआन एडवाइजरी ग्रुप में प्रमुख अर्थशास्त्री हैं. वो @gautamvikash पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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