किसी भी आन्दोलन की शुरुआत कोई न कोई लक्ष्य एवं सपना दिखाकर के ही किया जाता है. भारत के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी समाजों पर यह लागू होता है. नेतृत्व यह जानता भी है कि सपने को किस सीमा तक सच बनाया जा सकता है. लेकिन आम कार्यकर्ता को इसका बहुत ज्यादा आभास नहीं होता. बहुजन समाज पार्टी की बुनियाद सवर्ण और कांग्रेस के विरोध में रखी गयी. शुरूआती दौर में करारे प्रहार किये गए और सभी समस्याओं का जड़ इन्हीं को बताया.
तिलक, तराजू और तलवार का नारा देने से भावना का संचार हुआ और लोग इसपर इकठ्ठा हुए. कांग्रेस के ऊपर बराबर हमला किया और डॉ आंबेडकर को केंद्र में रखा गया. भावनात्मक बातें बार-बार की गयी कि बाबा साहब को कांग्रेस ने
तिरस्कृत किया और इसे दलित समाज के मान समान से जोड़ दिया गया. बाबू जगजीवन राम को खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया. इतना करार प्रचार किया कि जिनके लिए कार्य किया था वो भी नफरत करने लगे.
बड़ा सपना सामने रखकर और उसके अन्दर भावना भरकर संगठन का निर्माण कांशीराम ने शुरू किया. कार्यकर्ता को समर्पण जैसे पे बैक तू सोसायटी आदि भावना को कूट-कूट कर भर दिया, फिर क्या था कि समर्थक तन-मन और धन से जुड़ गये, धीरे-धीरे यह स्थिति पैदा हुई कि दलित समाज अपनी छाया कांशीराम और मायावती में देखने लगा. समय अंतराल व्यक्ति पूजा का रूप ले लिया और जनतांत्रिक मूल्य ख़त्म हो गए. कार्यकर्ताओं को कहा गया कि बूथ का निर्माण करो और वोट डालो. जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी ये बहुत प्रभावी नारे में रूप में काम किया.
भारतीय समाज भावनात्मक, व्यक्तिपूजक एवं अन्धविश्वासी है, बुनियाद के लिए जो सपना दिखाया गया वो कितना धरातल पर उतर रहा है, इसके ऊपर बसपा समर्थकों ने कभी आत्म-अवलोकन ही नहीं किया. एक-एक करके सारे अधिकार छीनते गए, जिसे नज़रंदाज़ किया जाता रहा. यह कहते हुए कि हमे तो सत्ता छीननी है.
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कार्यकर्ता का चाहे उत्पीड़न हो या उसके सशक्तिकरण या परिश्रम के अनुसार पावती आदि सभी बाते गौण हो गयी कार्यकर्ता की हत्या हो जाए तो भी भी पार्टी कि तरफ से कोई सहारा नहीं दिया गया, फिर भी कार्यकर्ता भावना और सपनों में चलता रहा. एक तरफ से उपदेश दिया जाता रहा और कार्यकर्ता जमीन पर बैठकर के सुनता रहा, चलता रहा, करता रहा और धीरे-धीरे संवाद ख़त्म हो गया.
60 के दशक में बैंक महाजनों के चंगुल में थे राष्ट्रीयकरण हुआ, आम लोगों के लिए दरवाजा खुला और भारी पैमाने पर अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को आरक्षण की वजह से नौकरी मिली. बीस सूत्री कार्यक्रम के कारण भूमिहीनों को भूमि, सब्प्लान ,ट्रायबल सब्प्लान, खाली पदों पर भर्ती खाली पदों पर भर्ती, पेट्रोल पम्प, राशन और तेल की दुकानों में कोटा ,होस्टल वजीफा, फीस माफ़ी, व्यापार के लिए क़र्ज़, भूमि सुधार कानून, दलित कानून आदि के लाभ मिले. उत्तर भारत में जब दलित बसपा से जुडा तो कांग्रेस कमजोर हो गयी ऐसी स्थिति में दलितों के लिए उसके द्वारा किये जा रहे कल्याणकारी कार्य करने में उदासीनता आयी और सत्ता में पकड़ कमजोर होने कि वजह से ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं रहे इसके अतिरिक्त अनगिनत काम कांग्रेस ने दलितों-आदिवासियों के पक्ष में किये.
वह मायने नहीं रह गया उस नारे के सामने ये विशेष परिस्थिति में बाबा साहब के द्वारा कही हुई बात की राजनीतिक सत्ता की कुंजी से सारे ताले के सारे ताले खुल जाते हैं. उस समय भी समाज महसूस नहीं कर सका. जब मुख्यमंत्री होते हुए लालू प्रसाद को जेल भेज दिया गया और मायावती के गर्दन पर सीबीआई की तलवार लटका दी गयी. सत्ता केवल एमपी -एमएलए चुनकर भेजने से नहीं आती बल्कि तमाम संस्थाएं जैसे उच्च न्यायपालिका सीबीआई ,ईडी, इनकम टैक्स , सेना , पुलिस, कुलपति, कंपनियों, मीडिया हाउस के एम डी, सांस्कृतिक संस्थाओं के चेयर मैन जैसे सत्ता के केंद्र पर भागीदारी से आती है.
बहुजन आन्दोलन से उपरोक्त अधिकार नहीं मिले, लेकिन छीन जरुर गए. वर्तमान में निजीकरण इतनी तेजी से हो रहा है. पूरी बसपा सोयी हुई है और यह कोई नया भी नहीं है. माना की फुले-साहू-आंबेडकर के विचारों से समाज लैस हुआ, जागृति आयी. लेकिन उस जागृति की परिणिति कहीं देखने को नहीं मिली. दलितों में उप जातिवाद बढ़ने के बदले कम हुआ, कला और संस्कृति , व्यापार , साहित्य आदि क्षेत्रों में जागृति तो परिलक्षित तो होती. कोई बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन भी नहीं दिखता है. समाजवादी पार्टी के मॉडल में ये सारे सपने नहीं थे. लेकिन अपने कार्यकर्ताओं को कहीं ज्यादा सशक्त कर दिया. बसपा यहां भी चूक गयी.
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कार्यकर्ता व्यक्तिपूजा और सपनों की दुनिया तक सीमित रहा. अधिकार और भागीदारी को लेकर कभी कोई विमर्श नहीं रहा. बड़ा सपना दिखाना गलत बात नहीं है, लेकिन कदम-कदम पर व्यवहार में उतारने का प्रयास शून्य हो जाना गलत बात है. कार्यकर्ता की जिम्मेदारी नोट और वोट इकठ्ठा करने तक रहा ना कि निरंतर रूप से अधिकारों को लेकर संघर्ष करना और संसद/ विधानसभा में आवाज़ उठाना. कार्यकर्ताओं को निरंतर काम नहीं दिया गया जिससे लाखों छोटे-बड़े संगठन बन गये. व्यक्ति पूजा इस तरह से हावी हुआ कि नेतृत्व धन संपत्ति जुटाने मे लगा और अन्ततः वह कमजोरी बना. वर्षों से मायावती जेल से बचने के लिए भाजपा की बी टीम बनी हुई हैं.
अभी राजस्थान में भाजपा की सरकार बनाए जाने के लिए भाजपा से ज्यादा आतुर दिखी. कांग्रेस का कहना ही क्या- वो अपने द्वारा किये गए कार्यों तक को नहीं बता पा रहे. एक छोटे से भ्रम को अभी तक कांग्रेस दूर नहीं कर पायी की बाबा साहब का कांग्रेस ने अपमान नहीं किया गया, बल्कि उनको अनगिनत अवसर मुहैया कराया. जब तक यह विमर्श में नहीं आएगा. तबतक बसपा समर्थक कांग्रेस को दुश्मन नंबर वन, संघ/ भाजपा दूसरे नम्बर पर रहेगी. मायावती अपने निजी हित में इसलिए करती हैं. ताकि दलित वापस कांग्रेस में नहीं लौटे.
(लेखक डॉ उदित राज, पूर्व लोकसभा सदस्य एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं .यह उनके निजी विचार हैं)
डॉ उदितराज जी ने बहुत सटीक टिप्पणी की है।दलितों के एकजुट होने से मायावती जी सत्ता तक पहुंची।इसका नतीजा हुआ, कांग्रेस कमजोर हुई क्योंकि आजादी के बाद से ही दलित और माइनॉरिटी उससे जुड़े थे।इसी बीच आरएसएस ने झूठे सब्जबाग दिखाकर बड़ी संख्या में दलितों और आदिवासियों का हिंदुइकरण कर दिया जो अब बीजेपी का वोटर बन गया है।
Sc St, माइनॉरिटी को यह समझना चाहिए कि जिस बीजेपी को इसने सत्ता में पहुंचाया उसी ने इसके सारे संबैधानिक अधिकार छीन लिए।बीजेपी आरएसएस की संतान है और आरएसएस का जन्म हुआ है गांधी, नेहरू, दलित और माइनॉरिटी के प्रति घृणा से।इसलिये अगर आप को अपना हित सुरक्षित चाहिए तो आपको वापस कांग्रेस के साथ आना होगा।
इनके निजी विचारों से मैं सहमत नहीं हूं इनके द्वारा जो कुछ लिखा गया है वह आधा अधूरा लिखा गया है और एक पक्षीय कांग्रेश की तारीफ लिखी गई है आज भी मान्यवर कांशीराम जी का आंदोलन देश में समय-समय पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है लेखक को यह नहीं दिखाई देगा क्योंकि इन्होंने कांग्रेस का चश्मा पहन रखा है और इसके पहले बीजेपी का और इसके पहले दूसरे दलों का अब इन पर जनता विश्वास नहीं करती है।
Jab central mai sarkar banegi tabhi sapna sakar hoga
Tu to godi media hai jo modi ki goad mai baitha hai
Bjp or congress dono mili hui hai… ye dono desh ko loote hai magar kisi ka neta jail nahi jata…. or congress bsp ko khatam kar dena cahti hai taki dalito ka sara vote bina kuch kiye he mil jaae… dalit bjp ko vote karega nahi to sirf congress bachi vote k liye…
Aap batao phir kya karna chahiye. Aap BJP me the tab kyu Nahi Apne privatisation Ka virodh kya.