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Sunday, 22 December, 2024
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बांग्लादेश चुनाव में अवामी लीग के सामने अवामी लीग लड़ी, हसीना को अरब स्प्रिंग की चिंता करनी चाहिए

बांग्लादेश के बारे में अमेरिका का जो भी गेम प्लान हो, विपक्ष-मुक्त राजनीतिक स्थान शेख हसीना के लिए आगे चलकर मुश्किलें ही बढ़ाएगा.

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रविवार को, बांग्लादेश में लोकतंत्र कुछ हद तक श्रोडिंगर की बिल्ली की तरह व्यवहार कर रहा था – एक ही समय में मृत और जीवित. शायद एक स्थानीय टीवी चैनल पर कुछ क्षणों के लिए दिखने वाली फोटो और उसके नीचे चलने वाला टिकर इसका सबसे अच्छा उदाहरण है. जबकि टीवी स्क्रीन पर एक सुनसान प्राथमिक विद्यालय को मतदान केंद्र के रूप में दिखाया गया था, टिकर में कहा गया था कि लोग बांग्लादेश में 12वें राष्ट्रीय चुनाव के लिए बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए बाहर आ रहे थे.

शायद यह एक चूक थी, या टिकर चलाने की जिम्मेदारी वाले व्यक्ति की मजाक करने की इच्छा, लेकिन चुनावों से पहले देश का मूड भी अलग-अलग था. बांग्लादेशी या तो रविवार के नतीजों से संतुष्ट थे या नतीजे आने से पहले ही निराश थे,क लेकिन यह इस बात पर निर्भर था कि आपने किससे पूछा. दोनों पक्षों को इसमें कोई संदेह नहीं था कि शेख हसीना प्रधानमंत्री के रूप में वापस आएंगी.

जब बांग्लादेश के मुख्य चुनाव आयुक्त, काजी हबीबुल अवल ने रविवार शाम को घोषणा की कि देश भर में औसत मतदान लगभग 40 प्रतिशत है, तो उन बांग्लादेशियों के बीच अविश्वास का भाव समाप्त हो गया जो हसीना को वापस चाहते थे. ब्लिट्ज़ पत्रिका के 61 वर्षीय संपादक सलाहुद्दीन शोएब चौधरी ने वोटों की गिनती से एक दिन पहले दिप्रिंट को बताया, “बांग्लादेश में अधिकांश लोग कट्टरपंथी बन गए हैं, भले ही उनका राजनीतिक झुकाव कुछ भी हो. अगर हसीना वापस नहीं आईं तो अराजकता हो जाएगी”. और यही सबसे बड़ी समस्या है.

सिर्फ हसीना ही क्यों?

चौधरी के तर्क के साथ समस्या – और वह ढाका में ऐसा करने वाले अकेले नहीं हैं – यह है कि रविवार का चुनाव हसीना को सत्ता में वापस लाने के लिए बनाया गया लगभग एक तमाशा बनकर रह गया था. प्रमुख विपक्षी दल, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने चुनावों का बहिष्कार किया. पार्टी ने तर्क दिया था कि मौजूदा सरकार के तहत देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकते हैं और हसीना को चुनाव से पहले पद छोड़ देना चाहिए और एक कार्यवाहक सरकार को चुनाव कराने देना चाहिए.

हसीना ने प्रस्ताव ठुकरा दिया. सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी, बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी को अदालतों ने चुनाव में भाग लेने से रोक दिया था. बीएनपी और जमात के चुनावी मैदान से बाहर होने के बाद, हसीना की अवामी लीग के लिए कोई वास्तविक विरोध नहीं बचा था.

अधिकांश स्वतंत्र उम्मीदवार, जिनकी संख्या कुल 437 थी, अवामी लीग के नेता थे जिन्हें पार्टी ने नामांकन से वंचित कर दिया था. दिलचस्प बात यह है कि स्वतंत्र रूप से लड़ने के बावजूद उन्होंने अवामी लीग नहीं छोड़ी. इसके अलावा, चुनाव के बाद उनके पार्टी में वापस आने की संभावना हमेशा बनी रहती है.

द डेली स्टार ने लिखा, “जैसा पहले कभी नहीं हुआ, अवामी लीग ने अपने जमीनी स्तर पर अन्य अल्पज्ञात पार्टियों के उम्मीदवारों का समर्थन करने का भी निर्देश दिया, जो कथित तौर पर सरकारी वरदहस्त के साथ हाल ही में बनी थीं. अवामी लीग ने अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल करने के प्रयासों में उच्च मतदान सुनिश्चित करने के लिए अधिक से अधिक मतदाताओं को मतदान केंद्रों तक लाने के लिए देश भर में समर्पित टीमों का गठन किया.”

तो, एक तरह से, यह चुनाव अवामी लीग का अवामी लीग से अवामी लीग की लड़ाई का था. और अवामी लीग जीत गई.

हसीना समर्थक कहेंगे कि पीएम ने बांग्लादेश की ग्रोथ स्टोरी को तेजी से आगे बढ़ाया है – जो काफी हद तक सच है. प्रभावशाली जीडीपी आंकड़ों, अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और कल्याणकारी योजनाओं के साथ, उन्होंने अपने नागरिकों को एक स्मार्ट बांग्लादेश का वादा किया है जो तकनीकी, सामाजिक और ढांचागत रूप से बेहतर होगा. हसीना को बांग्लादेश के निर्माण का उचित श्रेय दिया जाना चाहिए जहां अल्पसंख्यक बीएनपी-जमात की सत्ता के दौरान की तुलना में अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं.

2001 में बीएनपी-जमात के कार्यकाल के दौरान हिंदुओं पर हुए अत्याचारों की यादें बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के दिमाग में अभी भी ताजा हैं. चूंकि जमात खुलेआम देश में शरिया कानून की वकालत कर रही है, इसलिए मतदाताओं के पास हसीना की ओर रुख करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. बीएनपी और जमात धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश के विचार को चुनौती देते हैं और इसे पूर्वी पाकिस्तान के बनने की मूल कहानी पर वापस ले जाने की धमकी देते हैं.

लेकिन “अगर हसीना नहीं तो कौन?” इस दुविधा ने प्रधानमंत्री को 15 वर्षों तक निर्विवाद शक्ति प्रदान की है. नागरिक समाज और स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय अधिकार निकायों द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दमन, विपक्षी दलों पर कार्रवाई और व्यापक भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं.

एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, “बीएनपी ने प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार पर अपने समर्थकों और विपक्षी राजनेताओं को निशाना बनाकर एक बड़ी कार्रवाई करने का आरोप लगाया है, जिसे वे चुनाव से पहले मनगढ़ंत आरोप बता रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि हाल के महीनों में उनके 20,000 से अधिक सदस्यों को जेल में डाल दिया गया है.” भले ही आंकड़े की तथ्यात्मक-जांच न की जा सके, फिर भी यह शायद ही कोई तर्कसंगत स्थिति है.

अमेरिका और अरब स्प्रिंग का ख़तरा

चुनावों की अगुवाई में संयुक्त राज्य अमेरिका ने हसीना प्रशासन पर हमला करते हुए और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनावों की प्रक्रिया में बाधा डालने वाले किसी भी व्यक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया.

बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर डी हास ने विपक्षी नेताओं से मुलाकात की, बार-बार चुनाव आयोग कार्यालय का दौरा किया और राजनेताओं व सशस्त्र बलों के सदस्यों पर प्रतिबंध लगाए. उनका बहुत ज्यादा हस्तक्षेप ढाका के राजनीतिक हलकों में मजाक का विषय बन गया, जहां उन्होंने हास को चुनावों में वास्तविक उम्मीदवार करार दिया.

बांग्लादेश के बारे में अमेरिका का चाहे जो भी गेम प्लान हो, विपक्ष-मुक्त राजनीतिक स्थान आगे चलकर हसीना के लिए मुश्किलें ही बढ़ाएगा. ढाका के राजनीतिक हलकों में अफवाहें हैं कि अमेरिका बांग्लादेश के परिधान निर्यात पर प्रतिबंध लगाएगा और देश की विकास गाथा को बाधित करेगा. अमेरिका के अलावा, यह भावना कि बांग्लादेश में राष्ट्रीय चुनाव अब अवामी लीग और अवामी लीग के बीच लड़े जा रहे हैं, अंततः बांग्लादेशी समाज को टूटने की स्थिति में ले जा सकता है.

रूसी केंद्रीय चुनाव आयोग के सदस्य और बांग्लादेश चुनाव के पर्यवेक्षक आंद्रेई शुतोव ने कहा ढाका से फोन पर दिप्रिंट को बताया, “यदि संयुक्त राज्य अमेरिका लोगों के वोट के परिणामों से संतुष्ट नहीं है, तो अरब स्प्रिंग की तर्ज पर बांग्लादेश में स्थिति को और अस्थिर करने का प्रयास किया जा सकता है.”

देश में एक व्यवहार्य विपक्ष के लिए जगह बनाना हसीना के तत्काल राजनीतिक हित में नहीं हो सकता है, लेकिन बाहरी ताकतों द्वारा तैयार किए गए अरब स्प्रिंग से उन्हें निश्चित रूप से चिंता होनी चाहिए.

(दीप हलदर एक लेखक और पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @deepsribble है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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