सफल G20 शिखर सम्मेलन के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया के शीर्ष पर होना चाहिए. और वो ये डिजर्व भी करते हैं . भारतीय जनता पार्टी के नेता भी उतने ही खुश हैं. हालांकि, उन्हें थोड़ा विवेकशील होना चाहिए. पीएम को जो देश के लिये करना था, बखूबी किया. पर उनको जो पार्टी के लिए करना चाहिए था, उन्होंने नहीं किया. हालांकि मोदी थोड़े निराश होंगे. यह केवल छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के हालिया नतीजों के बारे में नहीं है, जो त्रिपुरा को छोड़कर थोड़े निराशाजनक थे. उपचुनावों के नतीजे उनके शासन का आइना नहीं थे. ज़मीन पर मौजूदा सत्ता समीकरणों के लिहाज से उपचुनाव, अपने आप में महत्वहीन थे. पीएम मोदी को इसकी परेशानी होगी कि ये नतीजे कई राज्यों में उनकी पार्टी के पिछड़ने के कई संकेतकों के बीच नए थे.
प्रधानमंत्री को इस बात की चिंता होगी कि विभिन्न राज्यों से आ रही खबरें – भ्रष्टाचार और अंदरूनी कलह के आरोप और भाजपा के भीतर नैतिक पतन की घटनाएं, पार्टी की छवि खराब कर रही हैं.
जून 2021 में, मैंने यूपी, एमपी, गोवा, उत्तराखंड-भाजपा की कमान और नियंत्रण में खराबी शीर्षक से एक लेख लिखा था. यह कई राज्यों में भाजपा में तेजी से हो रहे विभाजन के बारे में था. तब से भारतीय राजनीति में बहुत कुछ हुआ है. हालांकि, भाजपा के लिए, उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में जीत के बावजूद, बहुत कुछ नहीं बदला है – अभी भी पीएम मोदी पर अत्यधिक निर्भरता है और विपक्ष ने कोई विकल्प पेश नहीं किया है. हालांकि, भाजपा के भीतर बहुत कुछ बदल गया है या बदल रहा है. गुटबाजी और अंतर्कलह और अधिक तीव्र हो गई है. भ्रष्टाचार और नैतिक अधमता के आरोप एक नियमित विशेषता बनते जा रहे हैं.
उपचुनाव भाजपा को कड़ा संदेश देते हैं
आइए विधानसभा उपचुनावों के नतीजों पर नजर डालें. त्रिपुरा में भाजपा के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी जहां उसने एक सीट बरकरार रखी और एक सीट वामपंथियों से छीन ली और पहली बार मुस्लिम बहुल बॉक्सानगर सीट जीती. भाजपा के प्रतिद्वंद्वी कई बहाने पेश कर सकते हैं: बड़े पैमाने पर धांधली, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और उसके उम्मीदवार की ओर से उदासीनता, और, पूर्व कांग्रेस मंत्री और बॉक्सानगर के दो बार के विधायक, बिलाल मियां द्वारा उपचुनाव के 12 दिन पहले बगावत. उपचुनावों से पहले उनके भाजपा में चले जाने और उसके उम्मीदवार तफज्जल हुसैन, एक अन्य पूर्व-कांग्रेस नेता को समर्थन. हालांकि, सच्चाई यह भी है कि भाजपा को उस निर्वाचन क्षेत्र में 88 प्रतिशत वोट मिले, जहां अनुमानित 66 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. यह भाजपा के लिए बहुत बड़ी बात है हालांकि इसका उसने पर्याप्त जश्न नहीं मनाया.
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तुरंत त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा और पार्टी के अन्य नेताओं को बधाई दी. नड्डा ने ट्वीट किया, “यह परिणाम माननीय पीएम श्री @narendramodi जी के मार्गदर्शन में हमारी डबल इंजन सरकार द्वारा किए गए विकासात्मक कार्यों के प्रति लोगों की स्वीकृति को दर्शाता है ”
हालांकि, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी पार्टी अध्यक्ष के संदेश से खुश नहीं होंगे. यदि त्रिपुरा के नतीजों ने “डबल-इंजन शासन के प्रति लोगों की स्वीकृति” को दर्शाया , तो क्या यूपी के घोसी उपचुनाव में हार ने इसके विपरीत स्थिति को दर्शाया है? और यहां तक कि उत्तराखंड के बागेश्वर में जीत का अंतर भी कम हो गया?
निःसंदेह घोसी में यह एक चौंकाने वाली हार है. लेकिन क्या आप इसके लिए आदित्यनाथ को दोषी ठहरा सकते हैं? बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वह दारा सिंह चौहान की पार्टी में वापसी के विरोधी थे. चौहान ने योगी सरकार पर दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) विरोधी होने का आरोप लगाते हुए 2022 में विधानसभा चुनाव से पहले मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और भाजपा छोड़ दी थी. इसके बाद समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर चौहान घोसी से जीते. वो फिर बीजेपी और योगी कैबिनेट में वापसी चाह रहे थे. यद्यपि योगी यह नहीं चाह रहे थे कि उनके डिप्टी, उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और राज्य भाजपा प्रमुख भूपेन्द्र चौधरी थे – जो केंद्रीय गृह मंत्री के करीबी हैं ने चौहान को पार्टी में वापस लाने का काम किया. निष्ठा बदलने के मामले में चौहान की बसपा-सपा-बसपा-भाजपा-सपा-भाजपा यात्रा उल्लेखनीय रही है. इसलिए, लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ जब वह भाजपा में लौटने के बाद उपचुनाव हार गए.
जबकि सीएम आदित्यनाथ ,चौहान की वापसी के खिलाफ थे, फिर भी उन्होंने उनके लिए प्रचार किया. इससे ज्यादा वाह कुछ नहीं कर सकते थे. यह पहली बार नहीं था कि योगी पर लगाम लगाने या उन पर राजनेताओं और नौकरशाहों को थोपने की आलाकमान के प्रयास का उल्टा असर हुआ. यदि उदाहरण उद्धृत करना शुरू कर दे, तो कहने के लिए हजारों शब्द होंगे. यह कहानी किसी और दिन कहेंगे.
घोसी उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी की रणनीति पर कुछ चिंताजनक सवाल खड़े कर दिए हैं. पूर्व सीएम मायावती की घटती प्रासंगिकता से बीजेपी को फायदा होने की उम्मीद थी. 2022 में, बीएसपी ने घोसी में एक मुस्लिम को मैदान में उतारा, जिसे 54,000 से अधिक वोट और 21 प्रतिशत वोटशेयर मिला. इस उपचुनाव में, बसपा ने अपने समर्थकों से नोटा के लिए वोट करने के लिए कहा. नोटा को 1,725 वोट मिले. 2022 में नोटा को 1,249 वोट मिले थे. इसका मतलब है कि बसपा केवल 476 वोट ही जोड़ सकी. तो, पार्टी के वोट – मुख्य रूप से मुसलमानों और दलित- कहां गए? घोसी में भाजपा का वोटशेयर 4 प्रतिशत बढ़ गया – 2022 में 33 प्रतिशत से इस वर्ष 37 प्रतिशत – जबकि इस अवधि के दौरान एसपी के वोटशेयर में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई. ऐसा लगता है कि मायावती के मतदाता अखिलेश यादव की पार्टी में पूरी तरह से चले गए. भाजपा के वोटशेयर में मामूली बढ़ोतरी का श्रेय इस तथ्य को दिया जा सकता है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी), जो 2022 में सपा के साथ थी, अब भाजपा की भागीदार बन गई है.
घोसी में राजभरों की अच्छी-खासी आबादी है, जिस पर एसबीएसपी का प्रभाव है. सपा ने राजपूत नेता सुधाकर सिंह को मैदान में उतारा था. अगर इससे भाजपा की ‘उच्च’ जाति के वोटबैंक पर पकड़ में सेंध लग गई , तो सत्तारूढ़ दल को अधिक चिंता करने की जरूरत है. योगी का चौहान की भाजपा में वापसी का विरोध सही निकला.
भाजपा ने पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में बागेश्वर सीट बरकरार रखी, लेकिन उसकी जीत का अंतर 2022 में 12,000 से अधिक वोटों से घटकर 2023 में 2,405 वोटों पर आ गया. भाजपा को सबसे अधिक नुकसान धूपगुड़ी में हार से हुआ, जो 2021 विधानसभा चुनाव के बाद से पश्चिम बंगाल में पार्टी की लगातार आठवीं उपचुनाव हार है.
केरल के पुथुपल्ली विधानसभा उपचुनाव में, भाजपा ने अपनी ईसाई आउटरीच पहल का चुनावी परीक्षण करने की कोशिश की. अंतत: उसे हार का सामना करना पड़ा और उसे केवल 6,558 वोट मिले – जो 2021 के विधानसभा चुनाव में उसे मिले वोटों से 5,000 से अधिक वोट कम थे. भाजपा ने इस चुनाव के पहले कांग्रेस नेता एके एंटनी के बेटे, अनिल, को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया और केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर और वी मुरलीधरन को बड़े पैमाने पर प्रचार करने उतारा. हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और कुशासन के आरोपों के बावजूद, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने वोटशेयर में 14 प्रतिशत अंकों की बढ़ोतरी की, जबकि बीजेपी के सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के वोटशेयर में 2019 विधानसभा चुनाव के बाद 23 प्रतिशत अंकों की कमी आई.
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बीजेपी को लेकर पीएम मोदी की चिंता
ये उपचुनाव अपने आप में पीएम मोदी को चिंतित नहीं करेंगे क्योंकि 2024 का लोकसभा चुनाव पूरी तरह से एक अलग तरह का खेल होगा. तब लोग उन्हें वोट देंगे. लेकिन ढुलमुल होते पार्टी संगठन और राज्य के नेताओं को कई प्रकार के विवादों में घिरना मोदी को उनके उद्देश्य में मदद नहीं करेगा. उदाहरण के लिए, उनके गृह राज्य गुजरात को ही लीजिए. पीएम मोदी अकेले दम पर पार्टी को जिताते रहे हैं. और देखिए कि उनकी पार्टी के सहयोगी क्या कर रहे हैं. सीएम भूपेन्द्र पटेल के कार्यालय में एक ‘पर्चा’ घोटाला सामने आया है, जिसके परिणाम स्वरूप संयुक्त सचिव, परिमल शाह को स्थानांतरित कर दिया गया.
हाल के महीनों में संदिग्ध कारणों से ट्रांसफर किए जाने वह सीएमओ के पांचवें अधिकारी हैं. अन्य चार अधिकारियों में पटेल के निजी सहायक, विशेष कर्तव्य अधिकारी और एक अतिरिक्त जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) शामिल थे. गुजरात भाजपा के महासचिव और राज्य भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल के करीबी सहयोगी प्रदीप सिंह वाघेला ने इस महीने की शुरुआत में इस्तीफा दे दिया. वह संदिग्ध भूमि सौदों से जुड़े तथाकथित पैम्फलेट घोटाले में नामित पात्रों में से एक थे. बेशक, उन्होंने किसी भी संलिप्तता से इनकार किया है.
असम में बीजेपी पर आत्महत्या और घोटाले का साया मंडरा रहा है. 44 वर्षीय भाजपा किसान मोर्चा महासचिव इंद्राणी तहबीलदार की पिछले महीने आत्महत्या से मृत्यु होने का संदेह था. इसे कथित तौर पर नौकरी के बदले नकदी घोटाले से जोड़ा गया है.
उनकी मृत्यु से कुछ दिन पहले, तहबीलदार की अंतरंग तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आई थीं, साथ ही एक भाजपा पदाधिकारी के साथ उनकी बातचीत के ऑडियो क्लिप भी सामने आए थे. जोरहाट के एक भाजपा नेता पर उन तस्वीरों को प्रसारित करने का संदेह था. उनकी कथित आत्महत्या और नौकरी के बदले नकदी घोटाले के सिलसिले में भाजपा से जुड़े पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के लिए स्थिति और खराब हो गई है, उनके खिलाफ असंतोष की आवाजें उभर रही हैं. भाजपा के एक पूर्व विधायक, अशोक सरमा ने हाल ही में सार्वजनिक रूप से कहा कि पार्टी को “एक नवागंतुक द्वारा नुकसान पहुंचाया जा रहा है” जो 2015 में आया था और पुराने लोगों को भगा रहा है – हिमंत सरमा उसी वर्ष भाजपा में शामिल हुए थे. पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेन गोहेन ने अगस्त 2023 में असम खाद्य और नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और अपने नागांव निर्वाचन क्षेत्र में परिसीमन को लेकर सीएम सरमा पर हमला किया. उन्होंने सरमा सरकार के एक मंत्री पर उन्हें निशाना बनाने का भी आरोप लगाया.
मेघालय में, पूर्व विधायक एचएम शांगप्लियांग ने राज्य इकाई प्रमुख अर्नेस्ट मावरी पर भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए भाजपा से इस्तीफा दे दिया. कॉनराड संगमा सरकार में भाजपा के एकमात्र मंत्री अलेक्जेंडर लालू हेक ने भी मावरी पर एकतरफा फैसले लेने का आरोप लगाया है.
महाराष्ट्र के पूर्व भाजपा सांसद किरीट सोमैया जुलाई 2023 में उस समय विपक्ष के निशाने पर आ गए जब एक विवादास्पद वीडियो क्लिप सामने आई, हालांकि मामले की अभी जांच चल रही है.
और महाराष्ट्र में अभी भी डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता को उनकी फैशन डिजाइनर दोस्त, एक सट्टेबाज की बेटी, अनिक्षा जयसिंघानी द्वारा ब्लैकमेल करने के प्रयास के बारे में उत्सुक्तता बनी हुई है. अनिक्षा अब जमानत पर बाहर है.
एक के बाद एक राज्यों में बीजेपी की कैबिनेट से बहुत सारे रहस्य सामने आ रहे हैं. ऐसा तब है जब कोई राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे राज्यों में जन नेताओं के साथ भाजपा आलाकमान के हॉट कोल्ड वॉर के बारे में बात भी नहीं कर रहा है. कई भाजपा नेता भी असामान्य अहंकार प्रदर्शित कर रहे हैं – हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हाल में ही सार्वजनिक रूप से एक महिला का मजाक उड़ाया. महिला ने उनसे अपने क्षेत्र में एक कारखाना खोलने का आग्रह किया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके. सीएम ने अपने जन संवाद कार्यक्रम में उनसे कहा, “अगली बार जब चंद्रयान-4 चांद पर जाएगा, [मैं] तुम्हें वहां भेजूंगा.”
पीएम मोदी की लोकप्रियता रेटिंग हमेशा ऊंची रही है. अब यह और भी बढ़ सकती है कि जी20 शिखर सम्मेलन इतना सफल रहा है. लेकिन जब वह दुनिया के शीर्ष पर हैं तो ये बाते जश्न मनाने की हैं. लेकिन भाजपा की हालत इस जश्न को किरकिरा कर रहा है. कांग्रेस या INDIA पीएम मोदी को परेशान नहीं कर रहा . उनकी परेशानी बीजेपी है.
(अनुवाद: पूजा मेहरोत्रा)
डीके सिंह दिप्रिंट में राजनीतिक संपादक हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.
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