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Sunday, 22 December, 2024
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एनआरसी से किसी को कुछ नहीं मिला है, असम अपने जातीय संघर्ष को अब खत्म करना चाहता है

कोई भी एनआरसी की फाइनल सूची को स्वीकारने को तैयार नहीं है. लंबी चली प्रक्रिया का निष्कर्ष लोगों के सामने कई परेशानियां लेकर आया है.

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नेशनल रजिस्टर सिटिजेंस (एनआरसी) की संशोधित सूची ने असम को काफी परेशानी में डाल दिया है. सतही तौर पर स्थिति भले ही सामान्य दिख रही हो. लेकिन, राज्य में भयानक अंतर्विरोध की स्थिति है.

31 अगस्त को जारी हुई एनआरसी की अंतिम सूची में 19 लाख से भी ज्यादा लोगों को बाहर कर दिया गया है. राज्य के 6 फीसदी से भी कम लोगों को इस सूची से बाहर किया गया है. इससे पहले आई सूची में 40 लाख लोगों को बाहर किया गया था.

पूरी योजना के तहत कराई गई एनआरसी की प्रक्रिया लोगों के लिए परेशानी का सबब बनकर रह गई है. इस प्रक्रिया से राज्य में चल रहे लंबे जातीय संघर्ष से कोई ठोस उपाय नहीं मिला है. बल्कि इस प्रक्रिया के भीतर ही कई खामियां है जिसकी वजह से राज्य में कोलाहल की स्थिति है.

हाल में ही मेरी असम यात्रा से मैंने एनआरसी और उसकी प्रक्रिया को लेकर यह चीजें अनुभव की हैं.

प्रक्रिया में निहित गड़बड़ियां

एनआरसी सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया काफी लंबी थी. जिसमें काफी संख्या में लोगों की जरूरत पड़ी. लेकिन फाइनल सूची से इस बात का पता चलता है कि इस प्रक्रिया में काफी खामियां थी.

इस सूची की सबसे ख़राब बात यह है कि इसकी वजह से कई लोगों के परिवार टूटे हैं. इस सूची ने भारतीय नागरिक और विदेशी नागरिक के बीच बहस पैदा कर दी है.

ऐसे मामले हर एक धर्म के लोगों के साथ जुडे़ हुए हैं. जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय में मुस्लिम और बंगाली हिंदू भी शामिल हैं. परिवार द्वारा एक ही तरह के डाटा उपलब्ध कराए जाने के बावजूद सूची में एक ही परिवार के कई लोगों को शामिल किया गया तो कई को बाहर कर दिया गया.

प्रशासन का कहना है कि दस्तावेजों में टेक्निकल दिक्कतों के कारण ऐसा हुआ है और परिवार की तरफ से अगर जानकारी नहीं दी गई तब भी ऐसा हुआ है. प्रशासन की तरफ से इस तरह के बयान एनआरसी से शुरू हुए परेशानी को सुलझा नहीं रही है.


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दूसरी बात यह है कि इस प्रक्रिया से पता चलता है कि इस तरह की चीजें कितनी खतरनाक है. बहुत सारे मामले में डिसपोशिंग अफसर के कारण परेशानियां हुई हैं. इस प्रक्रिया के लिए कई गाइंडलेंस बने हुए थे. लेकिन राज्य के गांव के लोगों का मानना है कि अधिकारियों की मर्जी के कारण यहां काफी समस्या पैदा हुई है.

तीसरी बात यह है कि अपने पूराने दस्तावेज दिखाने की प्रक्रिया में भी काफी खामियां थी. जिसकी वजह से महिलाओं, ट्रांसजेंडर और बेघरों को काफी दिक्कत हुई है. जिस महिला का नाम उसकी शादी के बाद बदल गया उसको अपने पूर्वजों के साथ अपने संबंध दिखाना काफी मुश्किल है. जिसकी वजह से वो अपने पति के आधार पर अपनी नागरिकता नहीं मांग सकते हैं.

चौथी बात यह है कि लोगों को अपने दस्तावेज जांच कराने में भी काफी दिक्कत हुई है. राज्य के जो लोग बाहर के राज्यों में रहते थे वो भी अपनी नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर पाए हैं. जिसकी वजह से वो सूची से बाहर हैं.

पांचवी बात यह है कि बहुत सारे ऐसे मामले भी आए हैं कि जिन लोगों को पहले विदेशी मान लिया गया था और डिटेंशन सेंटर भेज दिया गया था. लेकिन बाद में उन्हें एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल कर लिया गया है.

छठी बात यह है कि यह पूरी प्रक्रिया लोगों की गिनती की नहीं थी. बहुत सारे ऐसे भी लोग हैं जिसने एनआरसी के लिए आवेदन भी नहीं किया था. ऐसे में ये सभी लोग सूची से बाहर कर दिए गए हैं.

किसी का नहीं है एनआरसी

एनआरसी की सूची का कोई भी अपने ह्रदय से स्वागत नहीं कर रहा है. ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) ने 1979 में असम आंदोलन का नेतृत्व किया था. आसू ने भी एनआरसी की फाइनल सूची को नकार दिया है. उनका कहना है कि फाइनल सूची में बाहर किए गए लोगों की संख्या काफी कम है.

सत्तारूढ़ भाजपा ने भी इस सूची को नकार दिया है. उनका मानना है कि फाइनल सूची से राज्य के असल नागरिकों को बाहर कर दिया गया है. भाजपा का कहना है कि बहुत सारे हिंदू लोगों को बाहर कर दिया गया है और मुस्लिम लोगों को सूची में शामिल किया गया है.

ऑल असम मायनॉरिटी स्टूडेंट यूनियन (आमसू) और असम पब्लिक वर्क्स ने भी एनआरसी सूची और उसके परिणामों पर सवाल खड़े किए हैं.


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जिन मुस्लिम औऱ बंगाली हिंदुओं को सूची से बाहर किया गया है वो भी एनआरसी को खारिज कर रहे हैं. जिन लोगों के नाम सूची में आ गए हैं वो भी इस बात को लेकर खुश नहीं हैं कि कोई यह कहे कि पूरी प्रक्रिया में काफी खामियां है.

गहराती दिक्कतें

एनआरसी की एकमात्र सफलता यह है कि असम आंदोलन के समय जिन लोगों ने बाहरी लोगों के डर को महसूस नहीं किया था, आज के समय में वो डर फिर से यहां के लोग महसूस कर रहे हैं.

गुवाहाटी विश्वविद्यालय के 19 वर्षीय छात्र अमित बरूआ का कहना है कि बाहरी लोगों की पहचान करके उन्हें वापस भेज देना चाहिए. हम लोग कई पीढ़ियों से पीड़ित है. अमित का कहना है कि उसने ये सब अपने परिवार वालों से सुना है और टीवी से इस बारे में जाना है.

एनआरसी की प्रक्रिया ने लोगों के बीच देश के असल नागरिक और बाहरी लोगों के बीच बहस पैदा कर दी है. यह प्रक्रिया लोगों के भावना से जुड़ी हुई है.

इस प्रक्रिया ने भारतीय जनता पार्टी को ध्रुवीकण के लिए एक और मौका दे दिया है. जमीनी स्तर पर ये काम दिखने भी लगा है.


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नौगांव के एक ताकतवर स्थानीय नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘जमीन पर जाकर लोगों को कहने के लिए हमारे पास सिर्फ यही है कि इस प्रक्रिया की फाइनल सूची में बहुत सारे मुस्लिम हैं. आपने जीवन भर इन लोगों के साथ बिताया है. लेकिन आपको अभी तक पता नहीं चला कि मुस्लिम लोग बाहरी हैं. ये सभी लोग या तो पूर्वी पाकिस्तान से आए हैं या बाद में बने बांग्लादेश से.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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