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Monday, 25 November, 2024
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तेजस्वी के गायब होते ही बिहार में यादव वंश अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है

तेजस्वी के रुख से राजद नेता परेशान हैं और कई विधायक पहले से ही बातचीत कर रहे हैं कि कब और कैसे भाजपा और जेडी (यू) में शामिल हुआ जाए.

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बिहार का यादव वंश अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है. यादव वंश के संस्थापक लालू यादव 14 साल के जेल की सजा काट रहे हैं. यादव राजघराने के राजकुमार तेजस्वी यादव लापता हो गए हैं.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के विधायक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (यूनाइटेड) में अपने दल बदलने की शर्तों और समय की बातचीत में व्यस्त हैं और राजद के वफादार मतदाता जैसे यादव और मुस्लिम का मोहभंग हो गया है और वे क्रोध में हैं.

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी भी ख़राब दौर से गुजर रहीं है. बिहार और उत्तर प्रदेश का ये घटनाक्रम दशको की यदुवंशी पार्टियों के लिए एक गंभीर संकट का संकेत देता है. जो पिछले तीन दशकों में हिंदी भाषी राज्य की राजनीति पर हावी है.

राजद का गिरता समर्थन आधार

लेकिन, इससे पहले कि हम वर्तमान संकट पर आएं पिछले 15 वर्षों में बिहार में राजद के वोट शेयर में लगातार गिरावट के पैटर्न पर एक नजर डालते हैं. 2004 के लोकसभा चुनावों में राजद को कुल वोटों का 30.7 प्रतिशत मत मिला. जनता दल को 1990 के विधानसभा चुनावों में लालू यादव को पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने से लगभग 5 प्रतिशत अधिक मत मिला. राजद का वोट शेयर तब से लगातार गिर रहा है. 25 फीसदी (फरवरी 2005 विधानसभा चुनाव में), 23.45 फीसदी (अक्टूबर 2005 विधानसभा चुनाव में), 19.3 फीसदी (2009 के लोकसभा चुनाव में), 18.8 फीसदी (2010 के विधानसभा चुनाव में), 20.5 फीसदी प्रतिशत (2014 के लोकसभा में), 18.3 प्रतिशत (2015 के विधानसभामें ) और 2019 के आम चुनावों में 15.4 प्रतिशत मत मिला.


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ये डेटा एक स्पष्ट प्रवृत्ति दिखता है. 2014 के लोकसभा चुनावों में 1.7 प्रतिशत की मामूली वृद्धि को छोड़कर, राजद 2005 के बाद से हर चुनाव में अपने गठबंधन की परवाह किए बिना अपना वोट शेयर खो रहा है.

पार्टी के सबसे वफादार मतदाता यादव भी विकल्प तलाश कर रहा है. 2019 का सीएसडीएस-लोकनीति का सर्वेक्षण दर्शाता है कि 2014 के 64 प्रतिशत के मुकाबले 2019 में केवल 55 फीसदी यादवों ने राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट दिया. दलित नेता जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और ओबीसी नेता मुकेश साहनी के साथ गठजोड़ करके तेजस्वी ने महागठबंधन बनाया था. ये जातियां उनके गठबंधन से शायद ही प्रभावित थीं.

इस पृष्ठभूमि में तेजस्वी के गायब होने के कारण राजद नेता परेशानी में हैं. बस वे परिवार के झगड़े को समाप्त करने की उम्मीद कर रहे हैं जिसमें तेजस्वी के भाई तेज प्रताप और बहन मीसा भारती शामिल हैं. पार्टी के मौजूद संकट पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए वे यह महसूस कर रहे हैं कि उनका नेता एक नाराज बच्चे की तरह व्यवहार कर रहा है.

तेजस्वी की गुमशुदगी

तेजस्वी के लापता होने के बारे में षड्यंत्र पर बात करते हुए राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद ने सुझाव दिया है कि वह क्रिकेट विश्व कप के लिए इंग्लैंड में हो सकते हैं. कुछ लोगों का मानना ​​है कि चुनाव के बाद राजद परिवार में भाई-बहनों के बीच विवाद हुआ था जिसने तेजस्वी को घर से दूर रहने के लिए मज़बूर किया. अब दिल्ली में रहने वाले युवा नेता के बारे में अफवाहें हैं कि परिवार के लिए एक प्रतिनिधि प्राप्त करने के लिए भाजपा के साथ समझौते का प्रयास करें.

तेजस्वी, मीसा और पहले से दोषी ठहराए गए पिता लालू अनिश्चित भविष्य की ओर देख रहे हैं. केंद्रीय एजेंसियों ने विभिन्न मामलों में उनकी भूमिका की जांच की है. ये सभी सिद्धांत सिर्फ अनुमान और आधारहीन हो सकते हैं, लेकिन दिल्ली के राजनीतिक हलकों में इस तरह की चर्चा है.

मुजफ्फरपुर में पोस्टर लगे हैं, जो तेजस्वी के ठिकाने की जानकारी देता है, उसे 5,100 रुपये का इनाम दिया जायेगा. पार्टी के सांसद मनोज झा ने कहा है कि युवा नेता दिल्ली में हैं. मुज़फ़्फ़रपुर की स्थिति को करीब से देख रहे हैं, जो घातक तीव्र इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से जूझ रहा है. युवा राजद नेता ने अपने पिता के जन्मदिन और बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर ट्वीट करते हुए भी इन अफवाहों पर ध्यान नहीं दिया.


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लोकसभा चुनाव में राजद की पराजय के बाद तेजस्वी का गायब होना यह दर्शाता है कि कई लोग पहले से ही इस बात से सहमत हैं कि उनके पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है. जैसा कि बिहार के एक राजनेता ने बताया: ‘चुनाव के दौरान उन्होंने तीन दिनों के लिए निर्धारित अभियानों को छोड़ दिया, यह कहते हुए कि वह स्वस्थ नहीं थे. एक युवा नेता चुनाव कार्यक्रमों को कैसे छोड़ सकता है. लालूजी कभी ऐसा नहीं करते.’

पिता लालू जैसा कुछ नहीं

रामकृपाल यादव कभी लालू यादव के करीबी विश्वासपात्र थे. आपको पिता और पुत्र के बीच का अंतर बता सकते हैं. पार्टी के नेता और कैडर को चुनावी समर में उनका मनोबल बनाए रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत थी. तो उनके पिता कभी नहीं भागते. यहां तक ​​कि जब लालू यादव को अगले दिन जेल जाना पड़ा, तो उन्होंने एक बहादुर चेहरा पेश किया. लालू ने राजद कार्यकर्ताओं को कहा कुछ नहीं हुआ है काम करते रहो.

मुलायम सिंह यादव भी इसी तरह की प्रतिक्रिया देंगे, चुनाव के बाद सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को बताएंगे कि मतदाताओं को धन्यवाद देने के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्रों में वापस जाएं और परिणाम की परवाह किए बिना उन्हें सभी समर्थन का आश्वासन दें.

‘लालूजी कभी भी सार्वजनिक रूप से कोई भावना नहीं दिखाते. लेकिन आप लालू यादव को रात में उठते और खैनी बनाते हुए दिखते हैं.’ राम कृपाल यादव याद करते हुए बताते हैं जिन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र से उम्मीदवार के रूप में न चुनकर अपनी बेटी मीसा को चुना था. यहां तक ​​कि सबसे वफादार समर्थक भी ऐसे नेताओं के आसपास नहीं लटके, जिन्हें कमजोर के रूप में देखा जाता है.

लोग लालू के राजनीतिक वर्चस्व को तेजस्वी यादव के लेकर चलने की क्षमता के बारे में पहले से ही आशंकित थे. राजद नेता और कार्यकर्ता तेजस्वी के परिपक्वता की कमी और कठिन परिस्थितियों से निपटने के लिए निराश हैं. एक पार्टी जो लगातार अपने समर्थन का आधार खो रही है जिसे सर्वोच्च नेतृत्व कौशल के साथ किसी को चीजों को अपनी तरफ मोड़ने की आवश्यकता है. लेकिन, तेजस्वी यादव शायद उस कुशल नेतृत्व वाले नेता नहीं है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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