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Sunday, 22 December, 2024
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पश्चिम की उम्मीद मुताबिक प्रतिबंधों, लंबे समय तक युद्ध से रूस को नहीं पहुंचा नुकसान, पर चुकानी पड़ेगी कीमत

आर्थिक प्रतिबंधों का घातक असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि रूस को अपने तेल के लिए ग्राहक के रूप में चीन और भारत मिल गए, लेकिन ईरान सबूत है कि प्रतिबंधों का अंततः असर पड़ता ही है.

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रूसी हमले का सामना कर रहे यूक्रेन ने 2022 में अपनी जो जमीन गंवाई (2014 में गंवाई गई जमीन को तो भूल ही जाएं) उसे वापस लेने की उम्मीद भी जबकि धूमिल होती जा रही है, तब रूस को स्थायी सफलता मिलने की संभावना बढ़ रही है. अमेरिका और यूरोपीय संघ से यूक्रेन को मिल रही सैन्य सहायता के कारण यूक्रेन अधिक-से-अधिक सैन्य गतिरोध की उम्मीद कर सकता है. और सबसे बुरा यह हो सकता है कि रूस और ज्यादा जमीन पर कब्जा कर ले. यूक्रेन में आर्थिक पुनर्निर्माण एक जबर्दस्त चुनौती रहेगी, जिसके लिए भारी विदेशी सहायता की जरूरत पड़ेगी, जो जरूरत भर आ भी सकती है और नहीं भी आ सकती है.

रूस जो सैन्य दुस्साहस का रहा है उसकी क्या कीमत चुकानी पड़ेगी? रूस के खिलाफ व्यापार तथा वित्तीय प्रतिबंधों की झड़ी लग गई है लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था ने पश्चिमी देशों की इन आशंकाओं को गलत साबित किया है कि वह धड़ाम से गिर जाएगी. उसे नुकसान तो पहुंचा है लेकिन उस नुकसान को संभाल लिया गया है. 2022 में उसकी अर्थव्यवस्था में 2.1 फीसदी की सिकुड़न आई, लेकिन 2023 में उम्मीद है कि वह 2.8 फीसदी की वृद्धि दर्ज करेगी. सबसे ताजा तिमाही में उसने 5.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है. व्यापार प्रतिबंधों के बावजूद चालू खाते में भारी सरप्लस है.

सैन्य खर्चे में 2024 तक दोगुना से ज्यादा, यानी जीडीपी के 6 फीसदी के बराबर की तेज वृद्धि होने की संभावना है. इसका अर्थ है कि बजटीय घाटा 2.8 फीसदी है लेकिन इसे सहा जा सकता है क्योंकि सार्वजनिक कर्ज जीडीपी के 20 फीसदी के बराबर यानी निचले स्तर पर है. सेना में जबरन भर्ती, बड़े पैमाने पर विस्थापन, और सैन्य उत्पादन पर सरकारी खर्च के कारण बेरोजगारी मात्र 2.9 फीसदी के स्तर पर है.

7.5 फीसदी पर मुद्रास्फीति की दर ऊंची है और इसी तरह ब्याज दरें भी 12.4 फीसदी के स्तर पर हैं ताकि रूबल को बचाया जा सके जिसमें 22 महीने पहले शुरू हुए युद्ध के बाद से 20 फीसदी की गिरावट आई है. लेकिन शेयर बाजार ने एक साल के अंदर 7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है.

युद्ध न होता तो ये संकेतक बेहतर स्थिति में होते. युद्ध ने बड़ी मानवीय कीमत भी वसूली है. लेकिन आर्थिक आंकड़े वैसे बुरे नहीं हैं जिसकी घोषणा फरवरी 2022 में पश्चिमी शक्तियों ने की थी, जब प्रतिबंध लगाए गए थे. तब ‘रूसी किले’ को ‘ध्वस्त किले’ में बदलने की बातें की जा रही थीं, और कहा जा रहा था कि रूसी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी, व्लादिमीर पुतिन के गंभीर रूप से बीमार पड़ जाने की खबरें तक आ रही थीं. लेकिन रूस और पुतिन, दोनों की सेहत इतनी अच्छी दिख रही है कि वे युद्ध जारी रख सकें.

आर्थिक प्रतिबंधों का गहरा असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि रूस को अपने तेल के लिए ग्राहक के रूप में चीन और भारत मिल गए, जबकि वह पश्चिमी देशों द्वारा तेल की कीमत की प्रति बैरल 60 डॉलर की सीमा को भी तोड़ने में हाल के महीनों में सफल रहा है. जींसों की कीमतों में उछाल ने उसके निर्यातों को बढ़ावा दिया है जबकि आयात पड़ोसी देशों (तुर्की, लिथुयानिया, मध्य एशिया, ईरान और चीन) से या उनके रास्ते हो रहा है. यह आयात कभी-कभी युआन के जरिए होता है, जिससे रूस को वैसे दुर्लभ सप्लाई तक पहुंच हो जाती है.

लेकिन यह ऑटोमोबाइल के उत्पादन में तेज गिरावट को रोक नहीं पाया है, जबकि अधिक आधुनिक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सिलिकन चिप्स के अभाव और देश में कई पश्चिमी कंपनियों का कारोबार बंद होने के कारण धक्का लगा है. लेकिन सामान्य रूसियों का कहना है कि उन्हें आर्थिक प्रतिबंधों से बहुत फर्क नहीं पड़ा है. इसकी मुख्य वजह यह है कि रोजाना इस्तेमाल की चीजों को प्रतिबंधों से मुक्त रखा गया है. युद्ध के लिए लोगों का समर्थन ऊंचा बना हुआ है.

लेकिन रूस को बेशक दीर्घकालिक नुकसान झेलना पड़ेगा. उसकी प्राकृतिक गैसों को वैकल्पिक बाज़ारों की जरूरत है (एकमात्र खरीदादर चीन है, जिसने जाहिर तौर पर कड़ी मोल-तोल की है). पश्चिमी टेक्नोलॉजी तक पहुंच में बाधा के अलावा विस्थापन के कारण हुनरमंद कामगारों की कमी का असर भी समय बीतने के साथ दिखेगा. निजी क्षेत्र की गतिविधियों में काफी कमी अर्थव्यवस्था को कौशल से वंचित करेगी.

फिर भी, ईरान का अनुभव बहुत कुछ स्पष्ट करता है. इस देश को पश्चिमी प्रतिबंधों का दशकों से सामना करना पड़ता रहा है लेकिन वह 3 फीसदी से ऊपर की दीर्घकालिक वृद्धि दर बनाए रखने में सफल रहा है. विकास के इस चरण के लिए यह बहुत पर्याप्त नहीं है लेकिन यह देश को मजबूती देती रही है.

यूक्रेन अपने बूते रूस से लड़ने लायक कभी नहीं रहा. पश्चिमी समर्थन में और कमी के कारण सवाल यह था कि यूक्रेन को लेकर टकराव टाला जा सकता था या नहीं, और देश को मौतों और विनाश से बचाया जा सकता था या नहीं. इससे जुड़े सवाल ये हैं कि पश्चिमी खेमे में लड़ाई लड़ने की कितनी इच्छा शक्ति है, चाहे वह यूरोप की परिधि में ही क्यों न होती हो.

इसके अलावा, यह सवाल भी है कि आर्थिक प्रतिबंध कितने कारगर होते हैं, चाहे वे उतने बड़े क्यों न हों, जितने बड़े प्रतिबंध रूस के खिलाफ लगाए गए हैं.

(संपादन : इन्द्रजीत)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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