दोनों का एक ही दुश्मन है, नीतीश कुमार और फिर सीबीआई भी तो है
कुछ समय से, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नीतीश कुमार को अपने आक्रमण का केंद्र बिंदु बनाते हुए उन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। मोदी सरकार से संबंधित मुद्दों और सांप्रदायिकता की लड़ाई के मुद्दे अनिवार्य रूप से संदर्भित हो रहे हैं, लेकिन आरजेडी ने नरेंद्र मोदी या अमित शाह के नाम का उपयोग ज्यादा नहीं किया है।
पिछले सप्ताह पटना में आरजेडी के स्थापना दिवस पर एक आवेशपूर्ण भाषण में, तेजस्वी यादव ने नीतीश पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि नीतीश इस विचार को फैलाने की कोशिश कर रहे थे कि आरजेडी को, भाजपा को हराने के लिए उनकी जरूरत है। तेजस्वी ने इस विचार को खारिज कर दिया और जोर देकर कहा कि आरजेडी को नीतीश की जरूरत नहीं है। इसके बजाय उन्होंने सुझाव दिया कि नीतीश को सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए।
आरजेडी चाहती है कि बिहार की राजनीति उसके और भाजपा के बीच एक द्वि-ध्रुवीय प्रतियोगिता हो। साथ ही वह नीतीश को अप्रासंगिक बनाना चाहती है।
एजेंडा की तरह भाजपा का भी यही अजेंडा है। कुछ दिनो से यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा जेडी (यू) को खुशमिजाज रखने में रूचि नहीं रखती है। वह बिहार में एनडीए गठबंधन के साझेदार के रूप में जेडी (यू) को नौ या 10 से अधिक सीटें नहीं देना चाहती है। राज्य में कुल 40 सीटें हैं।
दुश्मन का दुश्मन – दोस्त
जब से नीतीश ने पाला बदला है और भाजपा के साथ गठबंधन किया है, तब से बिहार में सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं में वृद्धि हुई है। हाल ही में, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह सांप्रदायिक हिंसा में भूमिका निभाने के आरोपी बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के पास गए और उनके परिवारों से मुलाकात की।
कमजोर नीतीश इस पर एक अनिवार्य निंदा जारी करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि बिहार के लगभग 17 प्रतिशत मुसलमान हिंदुत्व आक्रामकता से उनकी सुरक्षा के लिए नीतीश पर निर्भर नहीं रह सकते हैं।
भाजपा की सांप्रदायिकता और आरजेडी की धर्मनिरपेक्षता के बीच,नीतीश की किसको जरूरत है? जितना अधिक भाजपा बिहार में ध्रुवीकरण की राजनीति को बढ़ावा देगी, उतना अधिक मुस्लिम आरजेडी के लिए वोट देंगे। जेडी(यू) की हालत ऐसी है कि न घर की न घाट की।
मई में जैसा कि सरगर्म विधानसभा उपचुनाव में प्रभाव स्पष्ट था। मुस्लिम बहुलता वाले जेडी(यू) के गढ़ में आरजेडी ने जीत हासिल की।
ऐसा लगता है कि भाजपा इससे बहुत खुश होगी कि नीतीश कुमार एनडीए से बाहर निकल जाएं और उसके बाद उनको कांग्रेस और आरजेडी से गठबंधन की सहमति न मिले। यह भाजपा के लिए बहुत बढ़िया स्थिति होगी क्योंकि यह 2014 की तरह मोदी विरोधी वोटों को विभाजित करेगी। उस लोकसभा चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगियों ने राज्य की 40 सीटों में से 31 सीटें जीती थीं।
आरजेडी चाहेगी कि हम सोचें की नीतीश कमज़ोर हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। नीतीश ने रविवार को दिल्ली में अपनी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से कहा, “हमारा सबसे खराब दौर 2014 था। फिर भी, हमने 17 प्रतिशत वोट हासिल किए थे।“
क्या आरजेडी यह सोचते हुए फैसला लेने में एक गलती तो नहीं कर रही कि बिहार की राजनीति अब उसके और भाजपा के बीच का द्विध्रुवी मुकाबला बन गई है।
या यहाँ कुछ और चल रहा है?
लालू यादव अगर लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करना चाहते हैं तो उन्हें नीतीश कुमार की जरूरत है। अपने दम पर वह अपनी पार्टी की सीटें चार से आठ कर सकते हैं, लेकिन अगर महागठबंधन होता तो यह संख्या 15 तक पहुँच सकती है। इसके अलावा, महागठबंधन भाजपा को लोकसभा में बहुमत प्राप्त करने से रोकने में महत्वपूर्ण हो सकता था।
लालू इससे खुश होंगे, लेकिन उन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य केंद्रीय एजेंसियों के निरंतर उत्पीड़न से स्वयं की और उनके परिवार की रक्षा करने की आवश्यकता है।
पिछले महीने से एजेंसियाँ लालू परिवार पर धीरे धीरे कार्यवाही कर रही हैं। आखिरी बड़ी खबर 12 जून की थी जब प्रवर्तन निदेशालय ने लालू परिवार से जुड़ी कुछ संपत्ति को पकड़ा था।
तेजश्वी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप हैं, जिसकी वजह से नितीश ने गठबंधन तोड़ दिया था, कि जाँच सीबीआई द्वारा की जा रही है। इन दिनों वह मामला सुर्खियों में नहीं है। इसके बाद एक कथित आईआरसीटीसी घोटाला है जिसमें लालू और राबड़ी देवी के नाम सामने आए हैं। और फिर मीसा भारती और उसके पति के छापेमारी, नोटिस और पूछताछ हैं जो कई महीनों तक जारी रही। लालू, राबड़ी, बेटी मीसा और पुत्र तेजस्वी- ये सभी कई अलग-अलग मामलों में फँसे हुए हैं।
जैसै ही ये मामले धीमे होते जा रहे हैं, नीतीश कुमार के खिलाफ लालू परिवार की शत्रुता आनुपातिक रूप से बढ़ती हुई प्रतीत होती है। आरजेडी को कुछ और लोकसभा सीटों से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। परिवार संचालित पार्टी के लिए निरंतर जाँच का प्रबंधन एक बड़ा उद्देश्य है। हो सकता है कि यह मैच फिक्स हो, लेकिन यह तब भी दिलचस्प होगा।
Read in English : Are Lalu Yadav and Narendra Modi playing a fixed match in Bihar?