scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतमोदी विरोध इतना हावी है कि एक अमेरिकी अर्थशास्त्री का कोविड-19 पर संदेह भरा मॉडल भी इस लॉबी को सही लगता है

मोदी विरोध इतना हावी है कि एक अमेरिकी अर्थशास्त्री का कोविड-19 पर संदेह भरा मॉडल भी इस लॉबी को सही लगता है

अमेरिका स्थित एक अर्थशास्त्री ने कम-से-कम 20 करोड़ भारतीयों के संक्रमित होने का अनुमान लगाया है पर किसी को उन अवधारणाओं का पता नहीं जिस पर कि ये आंकड़ा आधारित है.

Text Size:

अर्थशास्त्री रमनन लक्ष्मीनारायण के ‘गणितीय मॉडल’ को यदि आप मानें तो भारत का अंत निकट है. उन्होंने हाल ही में कई समाचार चैनलों के सामने दावा किया कि कोविड-19 से करीब 20 करोड़ भारतीय, जिन्हें उन्होंने अगले कुछ दिनों में बढ़ाकर 50 करोड़ तक कर दिया, संक्रमित होंगे और उनमें से करोड़ों की हालत गंभीर हो जाएगी, जबकि दसियों लाख की आगे चलकर मौत हो जाएगी. मोदी विरोधी लॉबी को इन भविष्यवाणियों ने खुश कर दिया है. 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद पहली बार उन्हें मुस्कुराने का कोई कारण मिला है. उन्हें लगता है कि अगर लक्ष्मीनारायण की भविष्यवाणियां सच साबित होती हैं तो ये निश्चित रूप से मोदी युग के अंत का कारण बन सकेंगी.

अगर हम लक्ष्मीनारायण के संदिग्ध अतीत, जिसके बारे में मैंने विस्तार से ट्वीट किया है, की अनदेखी भी कर दें तो भी ऐसे कई प्रासंगिक प्रश्न हैं जो किसी ने भी उनसे नहीं पूछे हैं. ऐसा कोई भी मॉडल कुछ अवधारणाओं पर आधारित होता है. उनके सिवा कोई नहीं जानता कि वो क्या हैं. लेकिन मैं उनकी भविष्यवाणी में अंतर्निहित एक अवधारणा को लेकर निश्चित हूं: नरेंद्र मोदी सरकार, राज्य सरकारें, और स्थानीय निकाय बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए कुछ नहीं करेंगे, संक्रमित लोगों की देखभाल नहीं करेंगे और उन्हें मरने देंगे.

विभिन्न पूर्वानुमानों के कारण, ऐसा कोई भी मॉडल कई तरह के परिदृश्यों की कल्पना करता है. यदि कोई अनुमान सही नहीं बैठता है, तो उसे दिए गए महत्व के आधार पर भविष्यवाणी काफी भिन्न हो सकती है. इसके कारण विभिन्न परिदृश्यों का निर्माण होता है. वर्तमान मामले में, कोई नहीं जानता कि अर्थशास्त्री द्वारा दी जा रही संख्याएं, सबसे अच्छे परिदृश्य को लेकर हैं या सबसे बुरी स्थिति के बारे में, या फिर ये दोनों के बीच की औसत संख्याएं हैं. ये एक और महत्वपूर्ण सवाल है जो किसी ने उनसे पूछने की जहमत नहीं उठाई.

लक्ष्मीनारायण का अतार्किक गणितीय मॉडल

कोई उन्हें बौद्धिक संपदा अधिकार के उल्लंघन के मामले में उनके शामिल होने के बारे में क्यों नहीं पूछ रहा? कारण: उनके दावे सनसनीखेज हैं, अच्छी सुर्खी बनाते हैं और ऊंची टीआरपी रेटिंग लाते हैं, वह अमेरिकी लहजे में अमेरिका से बोल रहे हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उनकी कही बातें मोदी सरकार की खराब तस्वीर पेश करती हैं. मोदी विरोधी लॉबी मान चुकी है कि मोदी सरकार की तारीफ करने वाले डब्ल्यूएचओ के बेचारे विशेषज्ञ सही नहीं हो सकते.


यह भी पढ़ें: ईश्वर का कोरोनावायरस से कुछ नहीं बिगड़ेगा और न आप उनसे पूछ ही पाएंगे कहां हो प्रभू


लक्ष्मीनारायण के अतार्किक गणितीय मॉडल पर आंख मूंदकर भरोसा करने वाले लोग ही अब प्रार्थना करने, योग एवं ध्यान के सहारे तनाव कम करने और प्राणायाम जैसे सांसों के व्यायाम की विधि के ज़रिए फेफड़ों को स्वस्थ और विषाक्त तत्वों से मुक्त रखने की सलाह के लिए आध्यात्मिक गुरुओं को परेशान कर रहे हैं.

मैं यहां इस बात के पक्ष में दलील नहीं दे रहा कि गोमूत्र की एक खुराक कोरोनोवायरस के संक्रमण को या किसी भी संक्रमण को ठीक कर देगी. लेकिन किसी गणितीय मॉडल पर आधारित उत्तेजना और भारतीयों के संक्रमणों से प्रतिरक्षित होने के झूठे दावे के दरम्यान और भी बहुत-सी कार्रवाइयां और गतिविधियां चल रही हैं और उनमें से कइयों का ठोस वैज्ञानिक आधार है, जैसे- हाथ धोना या सामाजिक दूरी कायम करना. इन क्रियाकलापों में से कुछेक निर्णायक आंकड़ों पर आधारित नहीं है, लेकिन उनके अच्छे परिणामों के उदाहरण और उनके बारे में अच्छी नैदानिक जानकारियां उपलब्ध हैं, जैसे- आईसीएमआर की ये सिफारिश कि रोग-निरोध के लिए हाइड्रोक्सिक्लोरोक्वीन दवा का उपयोग किया जा सकता है. या हमारी पारंपरिक ज्ञान प्रणाली से पता चलता है कि हल्दी, लहसुन आदि शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली को मजबूत बनाते हैं और अश्वगंधा जानवरों को फेफड़ों के फाइब्रोसिस से बचाने के काम आता है.

क्या ये कोविड-19 में फायदेमंद होंगे? मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है. मैं कभी भी यह तर्क नहीं दूंगा कि सरकार को साक्ष्य आधारित उपचार प्रणाली की जगह ऐसे उपचारों के विकल्प को चुनना चाहिए जोकि अप्रमाणित हैं. लेकिन साथ ही, उन्हें सिर्फ इसलिए नहीं नकारा जाना चाहिए क्योंकि वे हमारे पारंपरिक ज्ञान प्रणाली में वर्णित हैं.

पारंपरिक चिकित्सा की भूमिका

चीन कोविड-19 संक्रमण पर पारंपरिक चीनी चिकित्सा (टीसीएम) के असर के बारे में बड़े पैमाने पर डेटा एकत्रित कर रहा है. हाल ही में प्रकाशित एक शोध पत्र में दावा किया गया है कि 60,000 से अधिक रोगियों का इलाज टीसीएम से किया गया है. अन्य नैदानिक प्रक्रियाओं में सुधार के साथ ही, इस शोध में दावा किया गया है कि टीसीएम के उपयोग ने नैदानिक इलाज की सफलता को एक तिहाई बढ़ा दिया.

भारत में भी हमें अपने पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक चिकित्सा के पूरक के रूप में इस्तेमाल करने की आवश्यकता है. हमें किसी अन्य परिकल्पना के समान ही इसका भी सख़्त परीक्षण करना चाहिए, ये सुनिश्चित करना चाहिए कि यह मौजूदा स्थिति को बिगाड़ता नहीं हो, और हमें निराधार दावों से बचना चाहिए. इसके साथ ही हमें पारंपरिक ज्ञान प्रणाली का सिर्फ इस आधार पर मजाक उड़ाना बंद करना होगा कि इसकी उत्पत्ति पश्चिमी जगत में नहीं हुई है.


यह भी पढ़ें: क्या कोरोनावायरस भारत में खचाखच भरे जेलों से कैदियों की रिहाई का रास्ता बनेगा


इस दरम्यान, इलाज के निराधार दावे के साथ ही मीडिया में अतार्किक गणितीय मॉडलिंग की उपस्थिति बनी रहेगी और यह एक दुर्भाग्यपूर्ण यथार्थ है.

(लेखक भाजपा के विदेशी मामलों के प्रकोष्ठ के प्रभारी हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. Bhaut badiya lekh hai sir…modi virodhi logo ko unke Hal or chod de….unka kuch nahi go sakata ……

Comments are closed.